लंडन में रॉयल होलोवे विश्वविद्यालय की डॉ. बर्निस एंड्रयूज ने लगभग सौ मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं पर एक प्रयोग किया; उनमें से 79% में कम आत्मसम्मान और उदासी रोग थी। वह चाहती थी कि वे सात सालों में कैसे बदल गईं। अनुवर्ती शोध से पता चला कि केवल 4% महिलाओं में अभी भी एक ही निदान था। यह दिखाता है कि लोग निश्चित रूप से बदल सकते हैं, चाहे वह अलग-अलग वातावरण के कारण हो या कुछ घटनाओं के कारण। हमने चिड़चिड़े लोगों को कोमल होते, और निष्क्रिय लोगों को सक्रिय होते देखा है; तो यह समझा जा सकता है।
इसलिए आपको सिर्फ इसलिए निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि आपको अपना व्यक्तित्व पसंद नहीं है। जब तक आप हार नहीं मानेंगे, तब तक बदलाव की गुंजाइश है। इच्छाशक्ति की कमी होने पर भी यह ठीक है। ऐसा कहा जाता है कि अधिकांश लोग आखिरकार वह पूरा करते हैं जिसमें उन्हें देरी होती है, जब उन्हें सही वातावरण और अवसर प्रदान किया जाता है।
स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए हमें किन व्यक्तित्व विशेषताओं को प्राप्त करना चाहिए, इसके बारे में परमेश्वर के वचन को पढ़ने और सुनने के द्वारा हम अपने व्यक्तित्व को बदलने के लिए लगातार वातावरण और अवसरों का सामना करते हैं। न बदलने की तुलना में हमारे लिए यह बहुत आसान है कि हम बदलाव करें।
जिनके द्वारा उसने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं : ताकि इनके द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूटकर, जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्वभाव के समभागी हो जाओ। इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्न करके अपने विश्वास पर सद्गुण, और सद्गुण पर समझ, और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति, और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ। 2पत 1:4-7