परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, हम सिय्योन की प्रजाओं के रूप में बुलाए गए हैं, और हमारे असंख्य व अधिक से अधिक पाप क्षमा और मुक्त हो गए हैं। क्योंकि हमने परमेश्वर से इतना बड़ा अनुग्रह पाया है, हमारे लिए अपनी सारी जिन्दगी पूरी तरह से पश्चाताप करते हुए बिताना आवश्यक है। उद्धार का दिन पास आ रहा है, फिर भी यदि हम अभी तक अपने पापी स्वभाव व ज़िद का त्याग नहीं करेंगे, और पश्चातापहीन होते हुए परमेश्वर की इच्छा का विरोध करेंगे, तब हमें दी हुई पापों की क्षमा निरर्थक होगी।
हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि हम मूल रूप से ऐसे पापी हैं जो स्वर्ग में भयंकर पाप करके नीचे इस धरती पर निकाल दिए गए हैं, और हमें हमेशा परमेश्वर के सामने स्वयं को दीन करना चाहिए। आइए हम परमेश्वर से, जिसने अपने पवित्र बलिदान से हमारे पापों की पूरी–पूरी क़ीमत अदा की, विश्वासघात न करें, और ऐसी सिय्योन की सच्ची प्रजा बनें जो हर बात में परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए सम्पूर्ण पश्चाताप करती हैं।
यीशु 2 हज़ार वर्ष पहले इस धरती पर आया, और उसने सब से पहले यह कहकर सुसमाचार का प्रचार करना शुरू किया कि “मन फिराओ!”। हम बाइबल में बहुत बार ऐसा दृश्य देख सकते हैं जिसमें यीशु ने सुसमाचार का प्रचार करते समय लोगों से मन फिराने का अनुरोध किया।
“और जब उसने सुना कि यूहन्ना बन्दी बना लिया गया है, तो वह गलील को चला गया। और वह नासरत को छोड़ कर कफरनहूम में जो झील के किनारे जबूलून और नप्ताली के क्षेत्र में है, रहने लगा … उस समय से यीशु ने यह प्रचार करना और कहना आरम्भ किया: “मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” ”मत 4:12–17
“मैं तुमसे कहता हूं कि इसी प्रकार स्वर्ग में भी उन निन्यानवे धर्मियों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं, मन फिराने वाले एक पापी के लिए बढ़कर आनन्द मनाया जाएगा।”लूक 15:7
आज, आइए हम वह आवाज दुबारा याद करें जो मसीह मानव जाति को पश्चाताप करने के लिए सुनाता था, और गौर करें कि क्या मन के अन्दर कोई ऐसी बात है जिसका हम पूरी तरह से पश्चाताप नहीं कर पाए हैं। परमेश्वर के बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा, हम यहां तक पहुंच गए हैं कि हमने धर्मी होकर उद्धार पा लिया है। तो हमें एक धर्मी योग्य जीवन जीना चाहिए। अब से आइए हम परमेश्वर की दृष्टि में दुष्ट व भ्रष्ट संसार की रीति व व्यवहार के अनुसार न चलें, और केवल परमेश्वर की शिक्षाओं पर ध्यान दें। इससे हम उस परमेश्वर को जिसने पाप व अपराध के कारण हम मरे हुओं को फिर से जिलाया है, उसके अनुग्रह के बदले खुशी लौटा सकेंगे।
“तू उसकी कृपा, सहनशीलता और धैर्य–रूपी धन को तुच्छ जानता है, और नहीं जानता कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन–परिवर्तन की ओर ले आती है? परन्तु अपने हठीले और अपरिवर्तित मन के कारण तू परमेश्वर के प्रकोप के दिन के लिए और उसके सच्चे न्याय के प्रकट होने तक, अपने लिए क्रोध संचित कर रहा है।”रो 2:4–5
परमेश्वर ने कहा है कि कठोर और हठीले मन वालों पर अन्तिम न्याय के दिन परमेश्वर का क्रोध भड़केगा। सीधी बात में वे कभी उद्धार नहीं पाएंगे।
कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि परमेश्वर उनकी गलती व पाप को नहीं जानता। वे इसलिए इस बड़े भ्रम में होते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर पर सम्पूर्ण रूप से विश्वास नहीं करते हैं। परमेश्वर सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापी है और सब कुछ जानता है। उसके सामने कुछ छिपाने का विचार करना मूर्खता ही तो है। परमेश्वर सब जानता है कि हम क्या– क्या पाप कर रहे हैं, लेकिन वह हमारे अपने पापों का अंगीकार करके पश्चाताप करने तक, धीरज के साथ हमारा इन्तजार करता है। हमें परमेश्वर की इस कृपा को महसूस करना चाहिए, और चाहे छोटा सा पाप हो, इसे छिपाए बिना, परमेश्वर से अपना पाप स्वीकार करके, पश्चाताप करके क्षमा पानी चाहिए।
परमेश्वर अभी भी इन्तजार कर रहा है, क्योंकि सन्तान अपने किए पर पूरी तरह पश्चाताप नहीं कर रही है। हमें दिया हुआ उद्धार का मौका और समय किसी दिन एकदम चला जाएगा। आइए हम बहुत देर हो जाने से पहले, अपने पिछले दिनों का विचार करते हुए, सम्पूर्ण रूप से धूलिकण जैसे छोटे पाप को भी पीछे छोड़े बिना, अपने किए गए सभी पापों का अंगीकार करें और पश्चाताप करें, जिससे हम स्वर्ग वापस जा सकेंगे।
“हे प्रियो, यह बात तुमसे छिपी न रहे कि प्रभु की दृष्टि में एक दिन हज़ार वर्ष के बराबर है, और हज़ार वर्ष एक दिन के बराबर। प्रभु अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने में विलम्ब नहीं करता, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं, परन्तु वह तुम्हारे प्रति धीरज रखता है। वह यह नहीं चाहता कि कोई नाश हो, परन्तु यह कि सब पश्चात्ताप करें। परन्तु प्रभु का दिन चोर के सदृश आएगा जिसमें आकाश बड़ी गर्जन के साथ लुप्त हो जाएगा और तत्त्व प्रचण्ड ताप से नष्ट हो जाएंगे और पृथ्वी तथा उस पर किए गए कार्य भस्म हो जाएंगे। जबकि ये सब वस्तुएं इस प्रकार नाश होने पर हैं तो तुम्हें पवित्र चाल–चलन और भक्ति में किस प्रकार के लोग होना चाहिए! तुम्हें परमेश्वर के दिन को शीघ्र लाने के लिए किस प्रकार प्रयत्नशील रहना चाहिए …” 2पत 3:8–13
परमेश्वर, जो कृपालु और दयालु है, सचमुच चाहता है कि सभी लोग नाश न हों और उन्हें मन फिराव का अवसर मिले। इस तरह परमेश्वर दुष्टों को भी तब तक बरदाश्त करता है, जब तक वे अपने किए पर पछताव न करें, लेकिन वे सोचते हैं कि परमेश्वर उसके किए अपराध को नहीं जानता, यह सोचकर वे पाप करने को उतावले हो जाते हैं। परमेश्वर भले ही बहुत लंबे समय तक उन्हें बरदाश्त करते हुए उनके पश्चाताप करने तक इन्तजार करता है, तो भी वे कोई पछतावा नहीं करते। इसी वजह से परमेश्वर उनका न्याय करेगा।
हम परमेश्वर के उत्तराधिकारी हैं, तो परमेश्वर का दिन जल्द आने की बाट जोहते हुए, हमें पूरा प्रयत्न करना चाहिए कि उस दिन हम निर्दोष और कंलक रहित पाए जाएं। और हमें परमेश्वर के वचन का, जो सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा, पालन करना चाहिए।
“जब सब कुछ सुन लिया गया, निष्कर्ष यह है: परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्वर प्रत्येक काम और प्रत्येक गुप्त बात का चाहे वह भली हो या बुरी, न्याय करेगा।”सभ 12:13–14
यह पुराने रोमन साम्राज्य के दिनों में एक फौजदारी के हाकिम की कहानी है। एक बार उसे अपराधियों को पोत से ले जाने का अवसर मिला। वह बहुत दयालु और बुद्धिमान था। इसलिए उसने पोत पर सवार हर एक अपराधी को बुलाकर, उसके अपराध करने का कारण पूछा, और उसने कहा कि यदि उसके साथ अन्याय हो, तो सब बता दे। इस पर पोत पर सवार 100 अपराधी अपने साथ हुए अन्याय पर शिकायत करने लगे। एक के बाद एक सब अपराधियों ने यही कहा कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था, पर अन्याय से उन्हें यहां ले जाया गया है।
लेकिन केवल एक व्यक्ति ने अपने अपराध को स्वीकार किया और कहा, “मेरा कैद किया जाना न्यायोचित है। घर में खाने को रोटी नहीं थी, और पत्नी व बच्चे भूखे थे। तब मेरा दिमाग काबू से बाहर हो गया। इससे मैंने दूसरों से चोरी कर ली। यह तो मेरी ही गलती के कारण है, और मेरे कर्मों का ही फल है।”
हाकिम ने उसकी बात सुनकर अपने पास खड़े कर्मचारी को यह आदेश दिया, “यहां सभी लोगों के न्याय में अन्याय हो गया है। इसलिए यहां केवल धर्मी लोग हैं। लेकिन वह अकेला कहता है कि उसने पाप किया है। तो वह अपराधी धर्मियों के साथ कैसे रह सकता है? उसे यहां से निकाल लो! और बाकी लोगों को पोत में सवार होने दो!”
ऐसे ही, लोग जिन्होंने धर्मी होने का दावा किया था, वे सब जेल में कैद हो गए, लेकिन वह व्यक्ति जिसने अपने पाप का अंगीकार किया और अपने किए पर पछतावा किया, वह जेल से रिहा किया गया। पापी जिन्होंने केवल बहाने ढूंढ़े, सिर्फ उसके रिहा हो जाने को ईष्र्या भरी आंखों से देखते ही रहे।
हम भी यदि परमेश्वर के सामने अपने पापों का अंगीकार करेंगे, तब दयालु परमेश्वर हम पर दया करेगा और पापों को क्षमा करेगा। लेकिन यदि हम केवल अपने पापों को छिपाने की कोशिश करें और पापों का अंगीकार न करें, तब न्यायी परमेश्वर हमारे कर्मों के अनुसार हमारा न्याय करेगा।
परमेश्वर की आखों के सामने मनुष्य की हर एक बात खुली और बेपरदा हैं। इसलिए हम छोटी सी गलती भी नहीं छिपा सकते। सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो मनुष्य के मन की बातें और विचारों को जानता है, हमारे हर एक पाप को भी जानता है। लेकिन वह चाहता है कि हम परमेश्वर के सामने जाकर अपने पापों का पश्चाताप करें।
“यदि हम कहें कि उसके साथ हमारी सहभागिता है फिर भी अन्धकार में चलें, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य पर आचरण नहीं करते, परन्तु यदि हम ज्योति में चलें जैसा वह स्वयं ज्योति में है, तो हमारी सहभागिता एक दूसरे से है, और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पाप से शुद्ध करता है। यदि हम कहें कि हम में पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं, और हम में सत्य नहीं है। यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं।”1यूह 1:6–10
यह कहानी भारत के राष्ट्रवादी गांधीजी की है।
बचपन के दिनों में, एक बार गांधीजी ने सच्चे रास्ते से भटक जाकर, घर में चोरी की थी। चोरी करने के बाद, उन्हें मन ही मन बड़ा भारी बोझ का एहसास हुआ। पाप करने में तो थोड़ा समय लगा था, लेकिन पाप के कारण मन पर दुख का बोझ सहने का समय बहुत ही लंबा लगा। सब बातों को पीछे छोड़कर, वह एक बात से सबसे ज्यादा दुखी व डरते थे कि पिता उनकी बदमाशी के कारण बहुत दुखी होंगे।
जब वह अपराध–बोध से ग्रस्त होकर, असहाय महसूस कर रहे थे, उन्होंने पिता को अपनी गलती बताने का संकल्प लिया। गांधीजी ने पिता को चिट्ठी लिख कर, अपनी पिछली गलती को साफ–साफ कबूल कर लिया। “पिता! क्षमा कीजिए। मैंने बड़ी गलती कर दी है। मैं फिर चोरी न करने की शपथ लेता हूं।”
उन्होंने डर से कांपते हुए चिट्ठी पिता के हाथ में थमा दी। पिता ने चिट्ठी पढ़ी। इसे पढ़कर पिता ने उन्हें डांट– फटकार या गालियां नहीं दीं, पर उनकी आंखों से मोती के बिन्दु टपकने लगे, चिट्ठी भीग गयी, पल–भर के लिए उन्होंने आंखें बन्द कर लीं। अपनी गलती के कारण दुखी हुए पिता को देखकर, गांधीजी की आंखों से आंसुओं की धार बही। गांधीजी को लगा कि पिता के नेत्रों से बहे मोती–बिंदुओं ने उन्हें क्षमा व शुद्ध किया।
उसके बाद, पिता के बहते आंसू स्पष्ट चित्र के रूप में, गांधीजी के दिमाग में रह गए, इससे वह सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हो सके, और वह भारतीय लोगों के लिए एक महान राजनीतिज्ञ व विचारक बन गए, और उनका नाम अभी तक सुना–सुनाया जा रहा है।
परमेश्वर हमारे सभी पापों को जानता है। लेकिन वह हमारा अपने पापों को कबूल करने का इन्तजार करता है। पाप को कबूल करना फिर वैसा ही पाप न करने का वादा है।
हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां पापमय विचार और दुराचार अधिक फैला हुआ है। हमें अपना हर एक पाप परमेश्वर के सामने कबूल करके, व सच्चे हृदय से पश्चाताप करके, एक एक पाप की क्षमा पानी चाहिए, ताकि हम परमेश्वर के सामने निष्कलंक और निर्दोष पाए जाएं। इसके लिए हमें दिन प्रतिदिन प्रार्थना के द्वारा अपने किए पर पछतावा करते हुए उसी मार्ग पर चलना चाहिए जिससे स्वर्गीय पिता और माता प्रसन्न होते हैं।
पश्चाताप करने का मतलब यह है कि हम अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं और अपने आप को ऐसी गलती करने से दूर करते हैं। अब वह समय आ गया है जब हम सब को एक–एक करके पश्चाताप करना है, जिससे कि पाप में भागीदार हुए संसार के सारे लोग पश्चाताप कर सकें।
“जब मैं धर्मी से कहूं कि तू निश्चय जीवित रहेगा और वह अपनी धार्मिकता पर ऐसा भरोसा करे कि वह अधर्म करे तो उसके कोई भी धार्मिकता के कार्य स्मरण न किए जाएंगे, पर अपने उसी अधर्म के कारण जो उसने किया वह मरेगा। परन्तु जब मैं दुष्ट से कहूं, ‘तू अवश्य मरेगा,’ और वह अपने पाप से फिर कर न्याय और धार्मिकता के कार्य करने लगे, अर्थात् यदि दुष्ट व्यक्ति बन्धक लौटा दे, और जो कुछ उसने लूट कर ले लिया उसे लौटा दे, तथा बिना कुटिल कार्य किए जीवनदायी विधियों पर चले, तो वह निश्चय ही जीवित रहेगा, वह मरेगा नहीं। उसका किया हुआ कोई भी पाप स्मरण नहीं किया जाएगा। उसने न्याय और धार्मिकता का आचरण किया है, वह निश्चय जीवित रहेगा।”यहेज 33:13–16
चाहे कोई अब धर्मी जीवन जीने पर गर्व करता हो, यदि वह सोचे कि ‘इस तरह की गलती तो कोई बात नहीं!’, और यह सोचकर पाप करे, तो उसका धार्मिक कर्म जो उसने अब तक किया है, बेकार ही होगा, सार्थक नहीं। लेकिन एक व्यक्ति, चाहे उसने पहले परमेश्वर को नहीं जाना हो और लुचपन में पाप किया हो, तो भी यदि वह अपने पाप के लिए खेद महसूस करे व जीवनदायी सत्य के वचनों पर चले, तो वह अवश्य ही उद्धार पाएगा।
पाप करना लज्जित बात है। इसलिए इसे कबूल करना बहुत ही मुश्किल है। कबूल करने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है। आइए हम गांधीजी की कहानी को याद करें। जब गांधीजी को एहसास हुआ कि उन्होंने पाप करके पिता का मन दुखाया है, तब उन्होंने अफसोस महसूस करके निर्णय किया कि वह कभी पाप न करेंगे। मैं निवेदन करता हूं कि आप परमेश्वर के सामने, जिसने हमारी जगह पापों की कीमत चुका कर क्षमा दी है, सभी पापों को, चाहे बड़ा हो या छोटा, कबूल करें और पापों की क्षमा के अनुग्रह की ओर पूरी तरह से बढ़ते जाएं।
परमेश्वर ने जोर दिया है कि जो पाप से मन न फिराता है, वह अन्तिम न्याय के दिन के लिए अपने ऊपर परमेश्वर का क्रोध कमा रहा है। परमेश्वर को जानने से पहले किए गए सभी पाप व विश्वासी जीवन जीते हुए किए गए छोटे व हल्के पाप का भी अंगीकार करके पश्चाताप करना चाहिए, और इस तरह पाप से दूर होकर परमेश्वर के अनुग्रह से भरपूर जीवन जीना चाहिए।
“अब मैं प्रसन्न हूं, इसलिए नहीं कि तुम दुखी हो, वरन् इसलिए कि इस दुख के कारण तुमने पश्चात्ताप किया। तुम तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार दुखी हुए कि तुम्हें हमारे द्वारा किसी भी बात में हानि न पहुंचे। क्योंकि परमेश्वर के इच्छानुसार जो दुख होता है वह ऐसा पश्चात्ताप उत्पन्न करता है जिसका परिणाम उद्धार है और जिस से पछताना नहीं पड़ता, परन्तु सांसारिक शोक तो मृत्यु उत्पन्न करता है…।”2कुर 7:9–11
जो पश्चाताप नहीं करता है, वह परमेश्वर के राज्य में नहीं जा सकता। जैसे धुंधले चश्मे से चीजें स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देती, वैसे ही हम पापों से गन्दे व मलिन होकर, परमेश्वरत्व को सही तरह से नहीं देख सकते और परमेश्वर के राज्य की महिमा को भी स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते। इसलिए हमें सम्पूर्ण पश्चाताप के द्वारा, सभी गन्दे व मलिन पापों को, जो हमारी आत्मिक दृष्टि को धुंधला करते हैं, पूरी तरह हटाकर उद्धार पाना चाहिए। जब हम बाइबल को ध्यान से पढ़ें, बाइबल के ज्यादातर प्रसंग पश्चाताप और पश्चाताप कराने के वचन से जुड़े हुए हैं। बपतिस्मा भी, जो उद्धार के लिए पहला कदम होता है, पश्चाताप के साथ ही पूरा हो सकता है।
यदि आपने अभी तक कुछ पाप छिपाए रखे हो, यह सोचकर कि परमेश्वर के सामने कबूल करने से लज्जित और अपमानित होंगे, तो उन्हें, चाहे पाप छोटा हो या बड़ा, खुलकर कबूल करें, ताकि हम पापों की क्षमा के अनुग्रह की ओर बढ़ सकें। परमेश्वर अपने सन्तान के पश्चाताप करने का इन्तजार कर रहा है। हम इसे उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त के द्वारा समझ सकते हैं। एक पुत्र पिता से अपने हिस्से की सम्पत्ति लेकर विदेश चला गया था। वहां उसने अपनी सम्पत्ति को कुर्कम में उड़ा दिया और कंगाल हो गया। जब वह पश्चाताप करके, अपने पिता के पास वापस लौट आया, पिता ने उसके विरुद्ध कोई बात नहीं की, लेकिन उसे गले लगाकर प्यार से उसका स्वागत किया।(लूक 15:11–24)
परमेश्वर जिसने अपने बड़े प्रायश्चित कार्य के द्वारा हमारे पापों को क्षमा किया है, उसके अनुग्रह को आइए हम अपने दिल में बसा लें, बजाय इसके कि हम हठीले और कठोर मन से पाप के दलदल में फंसने के कारण, परमेश्वर की क्रोध की कमाई करें। और चाहे छोटी सी गलती व पाप हो, आइए हम सब को कबूल करें, कि हम परमेश्वर के सामने निष्कलंक और निर्दोष पाए जा सकें। पिता और माता जो हमारे पश्चाताप करने तक धीरज धरते हैं और हमारे उद्धार के लिए धिक्कार व अपमान सहते हैं, उनके बलिदान के लिए आइए हम धन्यवाद दें। मैं आशा करता हूं कि आप भले व धार्मिक कर्म से परमेश्वर की महिमा को पूरे संसार में प्रकट करें।