मां का धुलाई का काम

क्यूजन सिटी, फिलीपींस से मारी रोज तंदुगोन तंदोइ

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अपनी पढ़ाई के कारण मैं घर से दूर छात्रावास में रह रही हूं। मैं अपने गंदे कपड़ों को धुलवाने के लिए सप्ताह में एक बार घर जाती हूं। मैं घर में कुछ घंटे बिना कुछ किए आलस्य में बिताती हूं और भोजन करती हूं, और जब छात्रावास वापस लौटने का समय होता है, तो मैं अपनी मां के पास अपना काम छोड़कर चली जाती हूं।

धीरे–धीरे मेरे लिए मेरा घर एक छात्रावास की तरह बन गया, और मेरा छात्रावास मेरा घर बन गया। ऐसे में मैं एक दिन घर में लंबे समय तक ठहरने के लिए आई। मैंने घर में अच्छे कार्य करने का फैसला किया। घर में पहुंचकर मैंने अपने बैग को खोला और अपने कपड़ों को धोने के लिए तह लगाकर ठीक से रखा। कपड़ों का ढेर देखकर, मैंने अचानक सोचा, ‘मांं पूरे परिवारवालों के सभी कपड़ों के साथ–साथ कैसे हर सप्ताह मेरे कपड़े भी धोती थी?’

मेरी मां 60 वर्ष की उम्र से अधिक की है, लेकिन अभी तक वह जीविका चलाने के लिए नौकरी करती है। काम समाप्त करने के बाद हर दिन आधी रात के बाद सोती है, और सवेरे–सवेरे जल्द उठकर घर को व्यवस्थित बनाए रखती है, और अपने परिवार के लिए खाना पकाती है, और ढेर सारे कपड़ों को धोती है। खासकर जब मैंने उसे अधिक बोझ दिया, अवश्य ही उसे यह बहुत कठिन लगा होगा।

जब मैं पीछे मुड़कर अपने बीते दिनों के बारे में सोचती हूंं, मैंने सच में अपने माता–पिता के लिए कुछ नहीं किया है। मैं एक नासमझ बेटी थी जो अपनी मां पर बोझ लादती थी। मेरा दिल टूट जाता था जब मैं अपनी मां को हर दिन कष्ट उठाते देखती थी, लेकिन जैसे ही दूसरी चीजें मेरे सामने आती थीं, मैं अपनी मां के कष्ट को पूरी तरह से भूल जाती थी। मैं आत्मिक रूप से भी ऐसी ही थी।

मेरी मां उन ढेर सारे कपड़ों के बारे में कभी शिकायत नहीं करती थी जिन्हें मैं हर सप्ताह लाती थी। यह मुझे स्वर्गीय माता की याद दिलाता है। जब मैं हर तीसरे दिन और सब्त के दिन पर अपने ढेरों पाप लाती थी, तब स्वर्गीय माता उन्हें धोते हुए मुझ पर मुस्कुराती थीं। वह पूरी दुनिया की संतानों के लिए दिन–रात प्रार्थना करती हैं और अनगिनत संतानों के पापों को धोती हैं। भले ही हम धीमे हैं और हम में हर चीज की कमी है, लेकिन माता अपना बलिदान करके हमें शुद्ध करती हैं।

मुझे वह बात याद आई जो एक बहन ने सिय्योन की सफाई करते हुए मुझसे कही थी। उसने झाड़ू लगाते हुए मुझसे पूछा कि कहीं फर्श पर बाल तो नहीं रह गया? मैंने उसे जवाब दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि झाड़ू लगाने के बाद कोई भी बाल न रह जाए। तब उसने शांति से कहा कि स्वर्गीय माता हर समय हमारे पापों को साफ करती हैं, फिर भी हम पाप करते रहते हैं, इसलिए माता एक पल भी आराम नहीं ले सकतीं।

हर समय जब मैं आराधना करती थी और बाइबल का अध्ययन करती थी, तब मैं हमेशा अपनी पिछली गलतियों पर पछताती थी और संकल्प करती थी कि चाहे मैं किसी भी हालत या स्थिति में होऊं, मैं जिस किसी से भी मिलूंगी उसे निडरता से पिता और माता का प्रचार करूंगी। लेकिन जब मैं सिय्योन से बाहर अकेले सड़कों पर चलती थी या स्कूल में होती थी, तब मैं प्रचार करने से हिचकिचाती थी और अपने पुराने स्वभाव में लौटती थी। मैं अपने मुंह से धन्यवाद कहती थी और यह कहती थी, “मैं आपसे प्रेम करती हूं!” लेकिन मेरे कार्य मेरे शब्दों से बिल्कुल मेल नहीं खाते थे। मैं हर दिन पाप करती रहती थी जिन्हें मैं खुद मिटा नहीं सकती थी, और इससे मैं माता को बहुत अधिक दर्द देती थी।

उसके बावजूद, माता कहती हैं, “मैं सिर्फ आपके बारे में चिंतित हूं और आप मेरे जीवन का सब कुछ है।” माता का वचन सत्य है और कभी भी कार्य के विपरीत नहीं है। माता इस युग में शरीर में हमारे साथ निवास करती हैं, इसका कारण हम लोग ही हैं जिनमें हर चीज की कमी है, और जिन्होंने स्वर्ग में उन्हें चोट पहुंचाई।

सब कुछ जो स्वर्गीय पिता और माता ने किया है और अब वे कर रहे हैं, वह सब हमारे लिए है। मैं सिर्फ पश्चाताप के आंसू दिखाकर या फिर अपने होंठों से प्रेम और अनुग्रह के बारे में चिल्लाकर नहीं, बल्कि उन्हें कार्य में लाकर ही अपने आसपास के सभी लोगों को प्रचार करने की आशा करती हूं। मेरी बड़ी अभिलाषा यही है कि मैं अपने माता–पिता को भी जो मेरे कारण बहुत कष्ट झेल रहे हैं, शब्दों और कार्यों के जरिए और स्वर्ग की आशा के सबसे बड़े उपहार के जरिए अपना प्रेम और धन्यवाद व्यक्त करूं।

कम से कम अपने खुद के कपड़ों को धोकर अपनी मां की सहायता करने का संकल्प करते हुए, मैं आग्रहपूर्वक स्वर्गीय पिता और माता से प्रार्थना करती हूं, “कृपया फिर से पाप न करने के लिए मेरी मदद कीजिए, ताकि संतानों के पाप थोड़े भी कम हो सकें जो माता को अपने ऊपर उठाने चाहिए। मुझे ऐसी अच्छी बेटी बनने दीजिए जो उन परमेश्वर के लिए जो बहुत ही सुन्दर, हृदयस्पर्शी और असीम प्रेम से हमारे दिल को छूते हैं, बोझ नहीं बनती और अपना संतानोचित कर्तव्य पूरा करती है। मेरी मदद कीजिए कि मैं वचन सुनकर अपने मुंह से सिर्फ “आमीन!” न कहूं और मुस्कुराते चेहरे और अच्छे मन रखने का अभ्यास कर सकूं।”