नर्म होना चाहिए

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एक घमंडी युवक रहा करता था। एक दिन जब वह कहीं से गुजर रहा था, तो एक बूढ़े आदमी ने जो फूलों की क्यारी को साफ कर रहा था, उसे बुलाया।

“बेटे, क्या तुम इस जमीन पर कुछ पानी डाल सकते हो?”

वह युवक केवल वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका क्योंकि वह आदमी गांव का एक सम्मानित बुजुर्ग था। वह जमीन इतनी कठोर थी कि पानी को जमीन सोख नहीं पा रही है। पानी जमीन के अन्दर न जाकर बाहर ही से बह जाता था। उस युवक ने त्योरी चढ़ाई और मुंह बना लिया।

वह बूढ़ा आदमी यह देख रहा था। वह उस युवक के पास गया और जमीन को हथौड़े से मारा। फिर उसने जमीन के टूटे हुए टुकड़ों को इकट्ठा किया और युवक को एक बार फिर पानी डालने को कहा। चूंकि अब जमीन ज्यादा नर्म हो गई थी, जमीन ने पूरा पानी अपने अंदर सोख लिया।

तब उस बूढ़े आदमी ने उस युवक से कहा, “कठोर जमीन के अन्दर पानी नहीं सोखा जाता। लोगों के साथ भी वैसा ही है। किसी घमण्डी मन में कोई बीज नहीं बोया जा सकता। यदि तुम फूल खिलाना और फल फलना चाहते हो, तो सबसे पहले अपने मन की जमीन को नर्म बनाओ।”