अरस्तू ने कहा कि दूसरों को मनाने के लिए लोगोस(logos, तर्क), पेथोस(pathos, भावना), और एथोस(ethos, नैतिकता) की जरूरत होती है।
लोगोस स्पष्ट प्रमाण और तर्क को संदर्भित करता है। क्योंकि मनुष्य एक तर्कसंगत प्राणी है, एक उचित निर्णय लेने के लिए एक आधार होना चाहिए। यदि यह आग्रह कि, “नाश्ता करना फायदेमंद है,” अच्छे कारणों के साथ समर्थित नहीं किया जाता, तो यह असंतुष्ट बात होती है।
पेथोस सुननेवाले की मनोवैज्ञानिक स्थिति को संदर्भित करता है। क्योंकि लोग अपने मूड के अनुसार एक ही शब्द पर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं, इसलिए बात करते समय आपको सुननेवाले की भावनाओं को समझना चाहिए। उस बच्चे के लिए जो अपने दोस्त के साथ बहस करने के बाद परेशान हो गया है, यह बेहतर है कि आप उसके साथ सहानुभूति रखें और उसे, “अपने दोस्तों के साथ मिलजुल कर रहो,” कहने के बजाय यह कहते हुए अपना मन खोलने दें कि, “तुम अपने मित्र के साथ झगड़ा करने की वजह से परेशान हुए होगे।”
एथोस बोलने वाले व्यक्ति की प्रकृति के आधार पर विश्वास और सद्भावना को संदर्भित करता है। लोग किसी ऐसे व्यक्ति के शब्दों का अनुसरण करते हैं जिसे वे पसंद और जिस पर वे भरोसा करते हैं। एक कहावत है कि, “यदि आपकी पत्नी सुंदर है, तो आप उसके माता-पिता के घर की चौखट के सामने भी झुकेंगे।”
अरस्तू ने एथोस को तीनों में सबसे महत्वपूर्ण कारक माना। विश्वास और नैतिकता पर निर्मित होने पर तार्किक आधार अधिक आश्वस्त हो सकता है। आखिरकार, किसी को मनाना इस बात पर नहीं कि आप कितनी धाराप्रवाह से बोलते हैं, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसी पर कितना अनुकूल प्रभाव डालते हैं।