अपनी दादी के साथ तिल के पौधों को फटकते हुए

आनयांग, कोरिया से जन यंग सन

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फसल की कटाई के मौसम के दौरान मैं अपनी दादी के घर गई थी। आमतौर पर मैं अगले दिन नौकरी पर जाने के लिए वहां से जल्दी निकल जाती हूं, लेकिन उस दिन मैंने फैसला किया कि मैं तिल के पौधों को फटकने में उनकी मदद करने के बाद थोड़ा देर से वहां से निकल जाऊंगी।

तेंदू फल के खेत को जहां तेंदू यहां–वहां गिर गए थे, पार करने के बाद, जब मैं पके हुए तिल के खेत में पहुंची, मुझे ज्ञात हुआ कि काम मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा है। पहाड़ पर स्थित खेत में तिल के पौधों के गट्ठे बांधे हुए थे, जैसे बच्चे खेल के मैदान में एक पंक्ति में खड़े हों।

“दादी, क्या हम इन सभी पौधों को हिलाने वाले हैं?”

“हम इन सभी को आज खत्म नहीं कर पाएंगे। हम जितना हो सके केवल उतना सूर्यास्त होने तक करेंगे।”

चूंकि मैं मदद करने के लिए आई थी, मैं वहां हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती थी। अपनी चिंता को छिपाकर मैंने पौधों को हिलाना शुरू किया। मैं तिल के पूलों को खेत से निकालकर खलिहान तक ले आई, और अच्छी मात्र में उन्हें विभाजित कर दिया। फिर, मेरी दादी ने मुझे बताया कि कैसे पौधों से बीजों को निकाला जाता है। जिस तरह धुलाई के कपड़ों को मोगरी से मारा जाता है, दादी एक मोगरी से तिल के पूलों की छोर को कई बार मार रही थी, उन्हें हिला रही थी और फिर से उन्हें मार रही थी। जैसे ही मैंने तीन या चार पूलों को मारा, मेरी बांहों में दर्द होने लगा।

‘इस मोगरी के साथ इस विशाल खेत में इन सभी पूलों को मैं कब खत्म कर पाऊंगी?’

लेकिन फिर भी मारते रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मुस्कुराते चेहरे के साथ दादी ने मेरी ओर देखा। मैं उन्हें निराश नहीं कर सकती थी। मैंने असंतोष प्रकट करना बंद किया और तिल के पौधों को झाड़कर और फटककर बीजों को अलग करने पर ध्यान केंद्रित किया।

मैंने उन्हें जोरों से झाड़ा और मेरी बांहों में दर्द होने लगा, लेकिन बीज जो उनमें से गिरे, काफी कम थे। मैं निराश हो गई, क्योंकि जितना मैंने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया था उतने बीज प्राप्त नहीं हुए थे। तब मैंने पुराने दिनों के लोगों के बारे में भी सोचा, जो इस तरह खेत का काम किया करते थे, और अनुमान लगाया कि यह उनके लिए कितना कठिन रहा होगा। मैं इस बात पर कुड़कुड़ा रही थी कि खेत पहाड़ों से घिरा हुआ है, फिर भी क्यों सूरज अब तक आकाश में चमक रहा है। जबकि हर तरह की बातें मेरे मन में आ रही थीं, मेरी बांहों में और अधिक पीड़ा हो रही थी। मैंने एक रोबोट की तरह केवल झाड़ना और फटकना जारी रखा।

दादी ने तिल के पूलों को खलिहान के एक कोने में रखा और उन्हें गोलाकार में फैला दिया। फिर उसने एक अजीब दिखने वाली छड़ी को लिया। एक लंबी लकड़ी का हैंडल और आसानी से झूलनेवाली छड़ी एक सिरे पर एक दूसरे से जुड़े हुए थे। वह अनाज फटकने का एक औजार था जिसके बारे में मैंने केवल सुना था। जब वह छड़ी को घुमाते हुए तिल के पूलों को पीट रही थी, तब उनसे बहुत बीज जमीन पर नीचे गिरने लगे।

फटकने की धम–धम की आवाज समस्त पहाड़ों और खेतों में गूंजने लगी। एक स्थिर मुद्रा में उसने लगातार पूलों से बीजों को अलग करना जारी रखा। इस बात पर कौन विश्वास करेगा कि अगले महीने वह अस्सी वर्ष की हो जाएगी? हालांकि मेरी दादी कहती थी कि उसके घुटनों और पीठ में पीड़ा होती है, लेकिन उसका हावभाव बता रहा था कि वह अनाज पीटने में विशेषज्ञ है, क्योंकि उसने दशकों से एक ही तरह का काम किया था। भले ही मेरे पिता ने उससे काम बंद करने का आग्रह किया था, लेकिन वह खेतों में काम करने से अपने आप को रोक नहीं सकी, क्योंकि तिल के बीजों से बना हुआ एक बोतल तेल अपनी सन्तानों को देना उसके लिए बड़ा आनंद था।

जब अंधियारा गहरा होने लगा, चारों ओर बिखरे हुए तिल के बीजों को हमने इकट्ठा किया और उन्हें एक बैग में डाल दिया। हर एक बीज बहुत मूल्यवान दिखाई दे रहा था। टहनियों और टुकड़ों को बीनने, झाड़ने, कीड़ों को निकालने और खाली बीजों को उड़ाने के बाद, जो रह गया वह केवल बीजों का आधा हिस्सा था। एक आदमी का सिर जितना बड़ा तिल के बीजों का ढेर सिकुड़ गया।

सभी प्रकार की कड़ी मेहनत के बाद जब मैंने तिल के बीजों का बैग देखा, मुझे रोने जैसा महसूस हुआ। आधे दिन की कड़ी मेहनत के बावजूद जो मुझे प्राप्त हुआ, वह केवल एक बैग था! एक बोतल जिसका मेरी मां खाना पकाने के दौरान इस्तेमाल किया करती थी, वह इस तरह की कड़ी मेहनत का उत्पाद था। मुझे गौर से महसूस हुआ कि अपनी सन्तानों के प्रति माता–पिता के प्रेम के अलावा इस दुनिया में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता।

अपनी दादी के साथ तिल के पौधों को फटकते हुए मुझे कुछ महत्वपूर्ण बात महसूस हुई। चूंकि मैंने पहली बार तिल के पूलों को पकड़ा और उन्हें मारा था, इसलिए मेरी दादी को मुझसे शायद ही थोड़ी मदद मिली होगी, लेकिन वह मुझसे प्रसन्न थी और उसने खुद ही सब कठिन काम अपने ऊपर ले लिया। जब मैं सत्य के पथ पर चलती हूं, उस समय भी मेरे साथ ऐसा ही होता है। मैं एक नासमझ सन्तान हूं। भले ही मैं नहीं जानती कि एक कठिन जीवन या खुद को बलिदान करने का अर्थ वास्तव में क्या होता है, लेकिन बचकाने तरीके से मैं केवल स्वर्गीय माता की नकल करती हूं, फिर भी मुस्कान के साथ वह मेरी ओर देखती हैं और खुद ही सभी प्रकार की कड़ी मेहनत करती हैं।

सूर्यास्त के बाद न दिखने वाले पतझड़ के खतों को पीछे छोड़कर अपने हृदय में प्रचुर मात्रा में प्रेम भरते हुए, जब मैं घर वापस जा रही थी, तब मैंने यह सोचा कि मैं कैसे माता की पीड़ा को कम कर सकती हूं, और अपने कार्य के द्वारा स्वर्गीय माता के अनुग्रह का प्रतिदान देने का दृढ़ संकल्प लिया।