
17 फरवरी 2016 को मेरे बेटे का प्राथमिक स्कूल से ग्रेजुएशन पूरा हो गया। उसके ग्रेजुएशन समारोह में मेरे साथ भाग लेने के लिए मेरे पति ने भी छुट्टी ले ली जो घर से दो घंटे की दूरी पर काम करता था।
ग्रेजुएशन समारोह में ग्रेजुएट हुए छात्रों के नाम एक–एक करके बुलाए गए, और उन्हें ग्रेजुएशन के प्रमाणपत्र दिए गए। कुछ छात्रों को पुरस्कार प्राप्त करने के लिए मंच पर बुलाया गया, और मेरा बेटा उनमें से एक था। मैं इतनी खुश थी कि मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए।
लोग शायद ऐसा सोच सकते हैं कि उसे एक शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार या ऐसा ही कुछ और प्राप्त हुआ है, लेकिन उसे जो प्राप्त हुआ, वह एक एथलेटिक पुरस्कार था जो केवल एथलेटिक गतिविधियों में प्रतिभा रखने वाले छात्रों को दिया जाता है। कोई नहीं जान सकेगा कि मेरे पति और मेरे लिए इस पुरस्कार के क्या मायने थे।
मेरे बेटे को प्राथमिक स्कूल में प्रवेश करने के ठीक पहले एक गंभीर जुकाम के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया था। उसे स्कूल में प्रवेश करने के कुछ ही समय बाद उसी रोग–लक्षण के कारण फिर से अस्पताल में भर्ती किया गया और दो महीने के बाद एक बार फिर उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। अस्पताल में बार–बार भर्ती होने के कारण वह नियमित रूप से कक्षा में उपस्थित नहीं हो सका। वह बहुत ही मुश्किल समय था, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि वह अस्पताल जाने से पहले बहुत बीमार रहता था, लेकिन सिर्फ एक दिन तक आईवी का इंजेक्शन लगाए जाने के बाद वह ठीक हो जाता था जैसे कि पहले वह बिल्कुल भी बीमार नहीं था।
जब उसे पिछली बार अस्पताल में भर्ती किया गया, परिस्थिति पहले जैसी ही थी। उसके डॉक्टर ने मुझसे कहा, “यह कल घर जा सकता है। लेकिन आज मुझे एक सेमिनार में जाना है, इसलिए मैं किसी अन्य डॉक्टर को डिस्चार्ज की प्रक्रिया में आपकी मदद करने के लिए कहूंगा।” इसके बाद उसने मुझे बताया कि वह पूरी तरह से ठीक हो गया है और मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है।
उस रात मैंने अपना सामान पैक करना शुरू किया और एक ब्रेक लेने के लिए अस्पताल के बाहर लॉबी में चली गई। तभी एक नर्स मुझे ढूंढ़ते हुए मेरे पास आई। उसने कहा कि मुझे थोड़ी देर के लिए ऊपरी मंजिल पर जाना पड़ेगा। मुझे लगा कि डिस्चार्ज की प्रक्रिया के लिए नर्स मुझे बुला रही होगी, लेकिन उसने मुझे उस डॉक्टर से परिचय कराया जो डिस्चार्ज की प्रक्रिया में मेरी मदद करने वाला था। और उस डॉक्टर ने बड़ी सावधानी से मुझे अपने बेटे का सीटी स्कैनह्यकम्प्यूटेड टोमोग्राफीहृ कराने का सुझाव दिया।
“डिस्चार्ज की प्रक्रिया की तैयारी करने के दौरान मेरे पास कुछ समय था, इसलिए मैंने आपके बेटे की छाती के चित्र को नजर भरकर देखा। लेकिन उसमें कुछ अजीब चीज थी।”
“आप क्या कहना चाहते हैं?”
“मुझे लगता है कि उसके फेफड़े के आसपास कुछ है। उसका एक सीटी स्कैन कराना होगा ताकि हम देख सकें कि क्या समस्या फेफड़े में ही है या कहीं और।”
मेरे पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं था, क्योंकि मैं पहले से ही अस्पताल से अपने घर जाने के लिए पैकिंग कर रही थी।
जैसे ही उसने सुझाव दिया, मैंने उसका सीटी स्कैन कराया, और लगभग एक घंटे बाद उसका नतीजा आया। डॉक्टर ने कहा कि उसके फेफड़ों को ढकने वाली पसलियों में कुछ है, और यह कि अगले दिन एक कार्डियोथोरेसिक सर्जन आ जाएगा और उसकी जांच करेगा।
अगली सुबह, कई डॉक्टर एक साथ कमरे में आ गए। कार्डियोथोरेसिक सर्जन ने सीटी स्कैन के नतीजे के बारे में मुझे समझाया। उसने कहा कि यह एक पसली का ट्यूमर है, और यह भी कहा कि हालांकि बायोप्सी टेस्ट कराने के बाद ही उन्हें निश्चित रूप से पता चलेगा कि क्या यह घातक है या हानिरहित है, लेकिन बच्चों के विकास की अवधि के दौरान उनकी पसली में होनेवाले ट्यूमर के 90 प्रतिशत मामले घातक ट्यूमर के होते हैं क्योंकि उनकी हड्डियां बहुत सक्रिय और बढ़ रही होती हैं। यह सुनकर मुझे लगा मानो आसमान मेरे सिर पर गिर गया हो।
‘क्या चल रहा है?’
मुझे ऐसा लगा कि वे मेरे बेटे के बारे में नहीं, किसी और के बारे में बात कर रहे हैं। मेरा पति जल्दबाजी में अस्पताल आ गया। जब मैं हैरान होकर कुछ भी नहीं कह रही थी, उसने मेरे हाथ कसकर थाम लिए।
डॉक्टर ने जल्द से जल्द उसकी बायोप्सी टेस्ट कराने की सलाह दी। उसकी सलाह लेकर, डॉक्टर के टिप्पणी–पत्र के साथ हम सीधे सियोल चले गए। विश्वविद्यालय अस्पताल में आवेदन फॉर्म जमा करने के बाद, हमने सर्जरी की तारीख निर्धारित होने का इंतजार किया। वह इंतजार का समय हर दिन हमें बहुत लंबा लग रहा था। मैंने परमेश्वर से मुश्किल दौर में अपने विश्वास को बनाए रखने के लिए मदद मांगी और बार–बार प्रार्थना की कि वह मेरे बेटे के साथ कभी भी कुछ बुरा न होने दें।
चूंकि मेरी बड़ी बहन सियोल में रहती थी, इसलिए मैं उस समय अपनी बड़ी बहन के साथ रहती थी और सियोल में उसके सिय्योन में आराधना मनाती थी। एक सब्त के दिन पर शाम की आराधना के बाद, जब मैं और मेरी बहन घर की ओर लौट रही थीं, चर्च की एक बहन ने मेरी बहन को फोन किया। उसने कहा कि कोई चीज है जो वह उसे देना चाहती है, और पूछा कि क्या वह थोड़ी देर के लिए उससे मिल सकती है।
हम घर जाने के आधे रास्ते पर थीं, लेकिन हम बस से उतर गईं और बस स्टॉप पर उससे मिलीं। वहां उसने हमें एक प्लास्टिक थैली थमा दी।
“मुझे खेद है कि यह ज्यादा तो नहीं है। कृपया धैर्य रखिए।”
उस प्लास्टिक थैली के अंदर, खीरे की किमची और मसालेदार अंकुरित सोयाबीन थी। मेरी बहन ने मुझे बताया कि वह बहन कठिन परिस्थिति में अपने विश्वास को बनाए रख रही है। मैं उस बहन से बहुत प्रेरित हो गई, क्योंकि उसने खुद मुश्किल समय से गुजरने पर भी पहले मेरे बारे में सोचा और मेरे लिए अपनी चिंता व्यक्त करने की कोशिश की। स्वर्गीय परिवार के सदस्यों के द्वारा महसूस किए गए माता के प्रेम ने मुझे शक्ति दी।
आखिरकार, सर्जरी का दिन आ ही गया। सर्जरी कक्ष के बाहर जब मैं अपने बेटे की सर्जरी पूरी होने तक इंतजार कर रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे दसियों साल बीत गए हों। मेरा मन हुआ कि यदि संभव हो, तो अपने बेटे के बजाय मैं सर्जरी के बिस्तर पर लेटूं।
एक ओर, मैं स्वर्गीय माता के हृदय की गहराई को थोड़ा–सा नाप सकी। यदि बच्चा आग में जल रहा हो, तो माता–पिता बिना किसी हिचकिचाहट के आग में कूद सकते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनकी संतान पीड़ा सहन करे। ऐसे मन के साथ, स्वर्गीय माता ने हमें उद्धार का मार्ग बताने के लिए अपनी संतानों की तरह मांस और लहू धारण कर लिया, क्योंकि वह इसे नहीं देख सकती थीं कि उनकी संतान अपने पापों के कारण इस पृथ्वी पर एक कठिन जीवन जी रही थीं। यह सोचकर मेरा मन सहसा एकदम पसीज गया।
मेरा मन स्वर्गीय माता के विचार से दुखी हो गया, और सर्जरी के बाद जब मेरा बेटा बाहर आ गया, तब मेरा मन और भी ज्यादा दुखी हो गया। जब मैंने उसे बेहोशी से जागने के बाद अत्यंत पीड़ा सहन करते हुए देखा, तो मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े।
लगभग एक या दो दिन के बाद, मेरा बेटा थोड़ा सा स्वस्थ हो गया और उसने मुझसे कहा,
“मां, जब मैं सर्जरी कक्ष के अंदर गया, मैं बहुत डर गया क्योंकि मैंने वहां चाकू, आरी और हथौड़े देखे। इसलिए दर्द सहन करने में मेरी मदद करने के लिए मैंने परमेश्वर से बहुत प्रार्थना की।”
मैंने उसे कसकर गले लगा लिया।
“हां, परमेश्वर मेरे बेटे की प्रार्थनाओं को सुनेंगे। मुझे इस पर विश्वास है।”
उसके साथ बातचीत करते हुए मैंने मानसिक रूप से मजबूत होने का फैसला किया।
कुछ दिनों के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई, और हम परिणाम का इंतजार करने लगे। परिणाम का इंतजार करने के दौरान, मुझे अपने बेटे के स्कूल से फोन आया और मुझसे कहा कि वे मेरे बेटे के लिए अनुदान एकत्रित करना चाहते हैं। मैंने इसकी सराहना की, लेकिन विनम्रता से मैंने उनके प्रस्ताव से इनकार कर दिया, क्योंकि मैं सबसे खराब स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहती थी जबकि हमें अभी तक परिणाम भी प्राप्त नहीं हुआ था।
मैं किसी भी प्रकार के परिणाम के लिए तैयार थी, शायद इसी कारण मैं सर्जरी का परिणाम जानने के लिए अस्पताल जाते हुए बहुत शांत थी। मेरे बेटे के डॉक्टर ने टेस्ट के परिणाम और स्क्रीन को देखते हुए मुझसे कुछ प्रश्न पूछे। जब मैंने विस्तार से बताया कि किस तरह मैंने पहली बार उसके रोग–लक्षण को जाना, तो वह अचानक उठ खड़ा हो गया और उसने मेरे बेटे के सिर को सहलाया।
“वाकई तुम एक भाग्यशाली बच्चे हो। बधाई हो मैडम! पसली का ट्यूमर हानिरहित सिद्ध हुआ है। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बहुत जल्दी ट्यूमर का पता चल गया और बायोप्सी टेस्ट करने के दौरान हमने एक पसली निकाल दी है। आपको उस डॉक्टर का शुक्रिया अदा करना होगा जिसने पहले इसे ढूंढ़ निकाला। भले ही आपका बेटा उसका मरीज नहीं था, फिर भी उसने उस पर काफी ध्यान दिया। वास्तव में प्रारंभिक चरण में इसे खोजना आसान नहीं है।”
‘धन्यवाद, पिता और माता! धन्यवाद!’
जैसे ही मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया, मुझे एहसास हुआ कि सब कुछ जो तब तक हुआ था, वह एक बड़े संकट को रोकने के लिए परमेश्वर की आशीष थी। मेरे बेटे को लगातार जुकाम होने के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया, और अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले उसके डॉक्टर को कुछ मीटिंग में जाना पड़ा, और वह ट्यूमर निकालना आसान हो गया क्योंकि वह शरीर के किसी अन्य भाग के बजाय उन पसलियों में से जो एक दूसरे से अलग रहती हैं, एक पर था। ये सभी परमेश्वर की इच्छा थी। मुझे महसूस हुआ कि बाइबल का यह वचन कि परमेश्वर अपनी संतानों को अपनी आंखों की पुतली के समान सुरक्षित रखते हैं, कितना सत्य है।
स्कूल में पहले वर्ष के पहले सेमेस्टर में वह बहुत दिनों तक गैरहाजिर था, लेकिन अपने स्वास्थ्य को पुन: प्राप्त करके वह स्कूल वापस चला गया और वह इतने तंदुरुस्त बच्चे के रूप में बड़ा हुआ कि उसे अपने ग्रेजुएशन समारोह में एक एथलेटिक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। जब कभी मैं उसे स्फूर्ति से भागते हुए देखती हूं, मैं उस डॉक्टर का आभार प्रकट करती हूं जिसने उसकी बीमारी का पता लगाया, और बेशक, साथ ही मैं परमेश्वर को बहुत धन्यवाद देती हूं।
जिस तरह उस डॉक्टर ने मेरे बेटे को यों ही घर भेजने के बजाय उसकी बीमारी पर अधिक ध्यान दिया, मैं भी उन बीमार आत्माओं की अधिक देखभाल करूंगी और यत्न से उन्हें ठीक होने का तरीका बताऊंगी। जिस तरह मेरा कमजोर बच्चा तंदुरुस्त हो गया, मेरी आत्मा भी प्रतिदिन अधिक विकसित हो जाएगी ताकि मैं माता को प्रसन्न कर सकूं। स्वर्गीय पिता और माता इस संतान को अपने जीवन में सब कुछ मानते हैं जिसमें कई मायनों में कमियां हैं, और भले ही वे कभी मुझे नम्र बताते हैं और कभी कठिनाइयों के सामने खड़ा करते हैं, लेकिन वे अन्त में मेरा भला ही करते हैं। मैं सच में स्वर्गीय पिता और माता को धन्यवाद देती हूं।