
“क्या आप जानते हैं कि स्पैगेटी पेड़ पर उगती है?”
1 अप्रैल 1957 को BBC के द्वारा यह झूठी खबर का प्रसारण किया गया। शुरुआत में लोग केवल मजे के लिए झूठी खबर बनाते थे, लेकिन हाल ही में वह झूठी खबर बड़े पैमाने पर समाज पर असर डाल रही है। इंटरनेट पर समाचार लेख के रूप में लिखी गई झूठी खबर लोगों को गलत जानकारी देकर भ्रमित कर रही है।
साल 2016 की ग्रीष्म ऋतु में जब अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव नजदीक आ रहा था, ऐसी बहुत सी झूठी खबरों के लेख थे जो किसी एक उम्मीदवार के लिए लाभदायक और दूसरे विरोधी उम्मीदवार के लिए हानिकारक थे। कुछ संदिग्ध महसूस करके प्रेस ने उनके बारे में पता लगाया। अनपेक्षित रूप से ज्यादातर झूठी खबरें दक्षिण–पूर्वी यूरोप के एक देश, मैसिडोनिया के “वेल्स” नामक एक छोटे शहर से शुरू हुई थीं; विज्ञापन के द्वारा पैसे कमाने के लिए कुछ किशोर “डिजिटल गोल्ड रश” के नाम पर लोगों का ध्यान खींचने वाली झूठी खबरें बना रहे थे।
प्रेस ने छानबीन में यह पाया कि उन झूठी खबरों ने वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव को प्रभावित किया था। झूठी खबर जिसमें तेज खंजर छिपा है, अभी भी बुरे इरादे से बनाई जाती है और वह बड़ी मात्रा में फैल जाती है।
झूठी खबरें सोशल नेटवर्किंग सेवाओं के माध्यम से बहुत तेजी से फैलाई जाती हैं। चूंकि बहुत से लोग उन्हें पढ़ते हैं, उन्हें सच्ची खबरों के रूप में माना जाता है। और ऐसी एप्लीकेशन जो कुछ ही क्लिक की दूरी पर झूठी खबरें बनाती है, और वेबसाइट जो असली प्रेस की वेबसाइट जैसी सजाई जाती है, ये दोनों इस परिस्थिति को और भी खराब कर रही हैं। एक बार कोरियाई प्रेस ने भी विदेश की कुछ झूठी खबरों को सच मानकर रिपोर्ट किया था, और इसके लिए बाद में उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी।
विशेषज्ञ बताते हैं कि झूठी खबर किसी व्यक्ति के पूर्वाग्रह को और मजबूत बनाती है और विपक्षियों के प्रति विरोध का भाव जगाती है। और वे कहते हैं कि ऐसी झूठी खबरों के प्रचलित होने का सबसे बड़ा कारण “कन्फर्मेशन बायस” है, यानी लोगों का ऐसा झुकाव है कि वे केवल ऐसी जानकारियों को स्वीकार करते हैं जो उनके विचार और दावे के अनुकूल हैं। ब्रिटिश ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के द्वारा वर्ष 2016 के शब्द के रूप में “पोस्ट–ट्रुथ” शब्द को चुना गया, यह भी इससे असंबद्ध नहीं होता। पोस्ट–ट्रुथ का अर्थ एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण होना है, जहां निजी भावनाएं और विचार सत्य या वस्तुनिष्ठ तथ्यों से भी अधिक प्रभाव डालते हैं। ब्रेक्सिट वोट जिसने इंग्लैंड के यूरोपीय संघ से अलग होने का निर्णय किया था, और अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान इस शब्द का अक्सर प्रयोग किया गया था। आर्थिक संकट की चिंता के लिए शरणार्थियों को और देशान्तरवासियों को जिम्मेदार ठहराकर मानसिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए, झूठी खबर जो उन विषयों से मेल खाती थी, फैलाई गई थी और उसने बहुत से लोगों को भरोसा दिलाई और नीतियों को भी प्रभावित किया।
लोग केवल उस पर विश्वास करना चाहते हैं जिस पर वे विश्वास करना चाहते हैं, और वही सुनना चाहते हैं जो वे सुनना चाहते हैं। उस सत्य की अपेक्षा जो उन्हें सुनना नापसंद है, वे ज्यादा झूठी जानकारियों को सुनना चाहते हैं जो उन्हें सुनना पसंद है। यद्यपि कुछ आग्रह तर्कसंगत नहीं है या सत्य पर आधारित नहीं है, फिर भी उसे मान्यता मिलती है और उसे सत्य के रूप में माना जाता है। सरकार और प्रेस मिलकर झूठी खबरों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह काम आसान नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि हम में से हर एक को सत्य और झूठ में भेद करने की क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है।
पोस्ट–ट्रुथ के ऐसे बुरे नतीजे बाइबल के इतिहास में भी देखने में आते हैं। दो हजार साल पहले, यहूदी अपने मसीह के आने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन उन्होंने इस पृथ्वी पर शरीर में आए उद्धारकर्ता पर विश्वास करने के बजाय उस झूठ पर विश्वास किया जिस पर उन्होंने विश्वास करना चाहा। यद्यपि यीशु ने सत्य का प्रचार किया, उन्होंने अपने विचारों के आधार पर मसीह का न्याय किया, और यह कहते हुए कि “तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बताता है(यूह 10:30–33),” यीशु को तुच्छ जाना और उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया।
चूंकि उन्होंने यीशु के इस वचन को नहीं समझा कि वह उन्हें अपने मांस और लहू के द्वारा अनन्त जीवन देंगे, उन्होंने यह कहते हुए उनकी आलोचना की कि, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना मांस खाने को दे सकता है?”(यूह 6:51–52) ऐसी झूठी खबरें आगे भी चलती रहीं और रोमवासियों को यह सोचने पर मजबूर किया गया कि प्रथम चर्च ऐसे लोगों का एक समूह है जो मनुष्य के मांस को खाते हैं, और उसके परिणामस्वरूप उन्होंने ईसाइयों को बहुत सताया। उससे बढ़कर, उस समय के धार्मिक नेताओं ने सैनिकों को घूस खिलाकर यीशु के पुनरुत्थान को, जो बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार हुआ था, झूठा बना दिया(मत 28:11–15)। उनके लिए, सत्य का कुछ भी महत्व नहीं था।
पोस्ट–ट्रुथ का युग इस पवित्र आत्मा के युग में भी जारी रहता है। यदि हम इतिहास से सबक नहीं लेते, तो वह दुर्भाग्य फिर से दोहराया जाएगा। यदि हम उद्धार पाना चाहते हैं, हमें झूठ में से सत्य को पहचानना चाहिए। अब वह समय है जब हमें अपने आपको जांचकर देखना चाहिए कि क्या हम उस सत्य से मुंह फेरकर जो बाइबल हमें बताती है, अपनी पसंद के अनुसार झूठ पर तो विश्वास नहीं कर रहे हैं?