पिता के जूते

संगनाम, कोरिया से जन उन ओक

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यह तब की बात है जब मैं एक लंबे समय के बाद अपनी मां के जन्मदिन के अवसर पर अपने मायके गई थी। अपनी मां के लिए एक जन्मदिन का उपहार खरीदने के लिए मैं बाजार की ओर जाने ही वाली थी कि मैं अपने पिता से मिली जो बाहर से घर वापस आए। तब पिता के जूतों पर मेरी नजर पड़ी। वे फटे–पुराने कपड़े के जूते थे जो डोरियों से इतने कसकर बांधे हुए थे कि उसमें हवा भी नहीं जा सकती थी।

“पिताजी, आपने इसी तपती गर्मी में क्यों कपड़े के जूते पहने हैं? क्या आपके पास चप्पलें नहीं हैं?”

वे बिना कुछ कहे बनावटी हंसी हंसकर घर के अंदर चले गए।

बाजार में मैंने अपनी मां के लिए बड़े ध्यान से अच्छे जूतों को ढूंढ़ा और एक जोड़ी जूतों को खरीदा। लेकिन दुकान से बाहर आने के बाद मुझे अचानक अपने पिता के फटे–पुराने जूतों की याद आई। मैं वापस दुकान के अन्दर गई और उनके लिए एक जोड़ी चप्पलें ले लीं।

मैंने घर वापस आकर पिता को वह शॉपिंग बैग दिया जिसमें उनकी नई चप्पलें थीं। जब उन्होंने चप्पलों को बाहर निकाला, उनका चेहरा खिल उठा। वह नई चप्पलों को कभी पहन रहे थे, कभी निकाल रहे थे और उसे पहनकर यहां–वहां घूम रहे थे मानो वह उन्हें पहली बार पहन रहे हों।

“ये मंहगे हैं। तो आप अपने बाकी बचे जीवन में पहन सकते हैं।”

वास्तव में मैंने बस यही सोचते हुए कि सभी चप्पलें तो एक जैसी हैं, ज्यादा सोचे बिना किसी भी चप्पल को चुना था, लेकिन पिता उन चप्पलों से बहुत ही अधिक खुश थे – यह तो मेरी सोच के बाहर था। इससे शर्मिंदा होकर मैंने अपने पिता से कहा कि यह बहुत महंगा है।

जबसे मेरी शादी हुई थी, तब से मैं अपने माता–पिता के साथ गर्मी की छुट्टियां बिताती थी, लेकिन मैं उस साल की गर्मी की छुट्टियों में यह बहाना बनाकर अपने मायके नहीं गई कि मैं पहले ही अपनी मां के जन्मदिन पर उनसे मिलने गई थी। गर्मियों के अंत में एक दिन सवेरे–सवेरे मुझे एक फोन आया। मुझे फोन पर मां के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी।

“तुम्हारे पापा… अचानक बीमार पड़ गए… हम प्राथमिक चिकित्सा की कक्षा में हैं… वे कह रहे हैं कि वह बच नहीं पाएंगे… अंतिम संस्कार में आ जाना।”

मेरे पिता ने जो ब्रेन हेमरेज के कारण अचानक बेहोश होकर गिर पड़े थे, तस्वीर में उस मुस्कान–भरे चेहरे के साथ मेरा स्वागत किया जिसे मैंने दो महीने पहले अपनी मां के जन्मदिन पर देखा था। मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मैं उन्हें कभी नहीं देख पाऊंगी। एक कड़वा दुख और यह अफसोस मेरे हृदय को छेद डाल रहा था कि मुझे उन गर्मी की छुट्टियों में उनसे मिलने के लिए जाना चाहिए था।

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह मर चुके हैं। मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि वह हमेशा की तरह घर के फर्श पर बैठे होंगे। शायद इसी कारण अंतिम संस्कार के दौरान, मैं नहीं रोई। उनकी आखिरी झलक जिसे मैंने देखा था, बार–बार मेरी आंखों पर छाई रहती थी।

अंतिम संस्कार के बाद मैं अपने पिता की वस्तुओं को समेट रही थी। पिता के सब प्रकार के कपड़ों और भिन्न वस्तुओं की मिलावटों में से एक जानी–पहचानी वस्तु ने मेरा ध्यान खींच लिया। वो वही एक जोड़ी चप्पलें थीं जिन्हें मैंने पहले उनके लिए खरीदा था।

उन चप्पलों को उठाकर मेरी सांस थम गई। अंतिम संस्कार के दौरान भी जो आंसू नहीं निकले थे, वे एक ही लम्हे में झरने की तरह बहते गए। उन चप्पलों पर मेरा नाम सफेद रंग से लिखा हुआ था।

गांव वालों में से एक ने मुझे बताया कि,

“तुम्हारा पिता गांव में इधर–उधर हर एक को इसे दिखाया करता था और वह यह कहते हुए बहुत गर्व महसूस करता था कि उसकी छोटी बेटी ने उसके लिए इसे खरीदा है।”

तब मेरी मां ने आंसुओं के साथ सिसकते हुए कहा कि,

“वह चिंतित थे कि कहीं इसे कोई आदमी उठाकर न ले जाए। जैसे ही तुम वापस गई, तुम्हारे पिता ने यह कहते हुए इस पर तुम्हारा नाम लिख दिया कि वह इसे खोना नहीं चाहते।”

मैंने उन्हें उनके बाकी बचे जीवन में उन चप्पलों को पहनने के लिए कहा था, और उन्होंने सच में उन पर अपनी लापरवाह बेटी का नाम लिखकर, अपनी मृत्यु के समय तक उन्हें पहने रखा।