संत जो परीक्षा पर विजयी होते हैं

9,839 बार देखा गया

जब हम इस्राएलियों की जंगल की यात्रा को देखें, तब हम परीक्षा पर विजयी होने की बुद्धि पा सकते हैं। इस्राएलियों ने मिस्र के अधीन 430 वर्षों तक गुलामी का जीवन काटने के दौरान हर प्रकार के कष्टों को सहन किया और परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा मिस्र से आजाद होकर कनान देश की ओर कदम बढ़ाए जहां दूध और मधु की धाराएं बहती थीं। वे परमेश्वर की चुनी हुई प्रजाएं थीं, और उन्होंने फसह का पर्व मनाया और परमेश्वर से वाचा के वचन अर्थात् दस आज्ञाएं और व्यवस्थाएं, विधियां व नियम प्राप्त किए। मगर उनमें से अधिकतर कनान देश में नहीं पहुंच पाए और जंगल में नष्ट किए गए। इसका कारण यह था कि वे परीक्षा पर विजयी नहीं हुए।

आज हम परमेश्वर की वाचा की प्रजाएं हैं जिनकी बाइबल में भविष्यवाणी की गई है, और हम प्रतिज्ञा की संतान हैं। वह सत्य जो हमें दिया गया है, उसमें कोई कमी नहीं है, और उसके प्रति किसी प्रकार की शंका करने का कोई कारण नहीं है। लेकिन समस्या वो परीक्षा है जिससे हम खुद ही उबर नहीं पाते। जब हम सोचते हैं कि हम परीक्षा के कारण मुसीबत और उस विनाश के मार्ग में फंस जाते हैं जहां हमें नहीं जाना चाहिए, तो हम सब को जरूर परीक्षा पर विजयी होना चाहिए।

परीक्षा में न पड़ो

यदि हम परमेश्वर की प्रजाएं हैं, तो हमें परीक्षा पर विजयी होने की बुद्धि पानी चाहिए। बाइबल हमें उद्धार प्राप्त करने के लिए बुद्धिमान बनाती है, इसलिए आइए हम बाइबल की बुद्धियों को एक एक करके सीखें।

“जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो…” मत 26:41

फसह के पर्व की रात में जब यीशु अगले दिन झेले जाने वाले अपने दुखों से व्याकुल होते हुए गतसमनी में अकेले रात भर प्रार्थना कर रहे थे, तब सभी चेले सो रहे थे। इसलिए यीशु ने उन्हें जगाते हुए कहा कि प्रार्थना करो कि तुम्हें परीक्षा में न पड़ना पड़े, और यह उदाहरण दिखाया कि हम प्रार्थना के द्वारा परीक्षा पर विजयी हो सकते हैं।

हम उस प्रार्थना में भी, जिसे यीशु ने चेलों को सिखाया, यह बात देख सकते हैं कि हमें परीक्षा में न पड़ने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

“अत: तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो: हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है… और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा…” मत 6:9–13

अब कुछ लोग हैं जो परीक्षा की वजह से आत्मिक जंगल में अपनी विश्वास की यात्रा के दौरान गिर जाते हैं, और कुछ ऐसे लोग होंगे जो स्वर्ग की दहलीज पर पहुंचेंगे लेकिन स्वर्ग में प्रवेश करने से पहले परीक्षा के कारण गिर जाएंगे। इस्राएलियों ने भी अपनी जंगल में 40 वर्ष की यात्रा के दौरान तरह तरह की परीक्षाओं का सामना किया। जिस प्रकार परमेश्वर ने हर दिन उनके खाने के लिए नीचे मन्ना बरसा दिया, वह उन्हें सब कुछ दे सकते थे जिनकी उन्हें जरूरत थी। लेकिन उन्होंने परमेश्वर पर पूरा भरोसा और विश्वास नहीं किया, इसलिए वे कभी पानी के लिए, कभी रोटी के लिए और कभी मांस खाने के लिए कुड़कुड़ाए, और वे सब परीक्षा में पड़े। वे अपने ही लालच के भ्रम में फंसकर परीक्षा में पड़े, जिससे उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध मूर्तिपूजा, व्यभिचार और शिकायत की और परमेश्वर को परखा। परिणामस्वरूप वे सब जंगल में नष्ट किए गए।

ये सब बातें हमारे लिए जिन पर युगों का अन्त उतरा हुआ है, चेतावनी रहती हैं(1कुर 10:1–11) परमेश्वर ने बाइबल में बहुत सी व्यावहारिक शिक्षाएं दी हैं ताकि हम परीक्षा में न पड़ें। आइए हम बाइबल के द्वारा उन्हें देखें।

शद्रक, मेशक और अबेदनगो जो मूर्तिपूजा करने की परीक्षा पर विजयी हुए

आइए हम उन पूर्वजों का विश्वास सीखें जो मूर्तिपूजा करने के पाप की परीक्षा पर विजयी हुए।

तब नबूकदनेस्सर झुंझला उठा, और उसके चेहरे का रंग शद्रक, मेशक और अबेदनगो के प्रति बदल गया। उस ने आज्ञा दी कि भट्ठे को सातगुणा अधिक धधका दो… और उसी धधकते हुए भट्ठे के बीच ये तीनों पुरूष, शद्रक, मेशक और अबेदनगो, बन्धे हुए फेंक दिए गए। तब नबूकदनेस्सर राजा अचम्भित हुआ और घबराकर उठ खड़ा हुआ… उसने कहा, “अब मैं देखता हूं कि चार पुरुष आग के बीच खुले हुए टहल रहे हैं, और उनको कुछ भी हानि नहीं पहुंची; और चौथे पुरुष का स्वरूप ईश्वर के पुत्र के सदृश है।” फिर नबूकदनेस्सर उस धधकते हुए भट्ठे के द्वार के पास जाकर कहने लगा, “हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो, हे परमप्रधान परमेश्वर के दासो, निकलकर यहां आओ!” यह सुनकर शद्रक, मेशक और अबेदनगो आग के बीच से निकल आए। जब अधिपति, हाकिम, गवर्नर और राजा के मंत्रियों ने, जो इकट्ठे हुए थे, उन पुरुषों की ओर देखा, तब उनकी देह में आग का कुछ भी प्रभाव नहीं पाया; और उनके सिर का एक बाल भी न झुलसा, न उनके मोजे कुछ बिगड़े, न उन में जलने की कुछ गन्ध पाई गई। नबूकदनेस्सर कहने लगा, “धन्य है शद्रक, मेशक, और अबेदनगो का परमेश्वर, जिसने अपना दूत भेजकर अपने इन दासों को इसलिये बचाया, क्योंकि इन्होंने राजा की आज्ञा न मानकर, तुझी पर भरोसा रखा, और यह सोचकर अपना शरीर भी अर्पण किया, कि हम अपने परमेश्वर को छोड़, किसी देवता की उपासना या दण्डवत् न करेंगे। दान 3:19–28

नबूकदनेस्सर ने बड़ी मूर्ति को दूरा नामक मैदान में खड़ा कराया और प्रान्त–प्रान्त के सब अधिकारियों को मूर्ति को दण्डवत् करने का आदेश दिया। अन्य सभी लोगों ने मूर्ति को गिरकर दण्डवत् किया, लेकिन शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने राजा की आज्ञा का पालन करने की अपेक्षा परमेश्वर के वचन का पालन करना चुना। भले ही वे राजा के आदेश को जानते थे, लेकिन उन पवित्र परमेश्वर ने, जो किसी भी राजा से ऊंचे थे और मनुष्य के जीवन के शुरू और अंत पर राज करते थे, उन्हें मूर्तिपूजा न करने की आज्ञा दी थी, इसलिए उन्होंने राजा के द्वारा संस्थापित मूर्ति को दण्डवत् करने से इनकार किया।

इस पर तो नबूकदनेस्सर क्रोध से भड़क उठा। उसने उन तीन यहूदी बंधुओं को, जिन्हें वह बंदी बनाकर बेबीलेन ले आया था, विशेष रूप से अनुग्रह दिया और सरकारी पद दिया, लेकिन उन्होंने उसके आदेश का पालन करने से इनकार किया। तब राजा ने अत्यंत क्रोधित होकर उन्हें उस भट्ठे में फेंक देने का आदेश दिया जिसे साधारण से सातगुणा अधिक धधका दिया गया था।

यद्यपि शद्रक, मेशक और अबेदनगो पर मृत्यु का भय और संकट मंडराया, लेकिन उन्हें कोई परवाह ही नहीं थी। उन्होंने यह कहते हुए अपने विश्वास की रखवाली की कि परमेश्वर उन्हें जलते हुए भट्ठे से बचा लेने में समर्थ हैं और यदि वह ऐसा नहीं करें तो भी वे मूर्ति को दण्डवत् नहीं करते। परमेश्वर ने परीक्षा पर विजयी हुए उन तीनों को आग के भट्ठे में से बचा लिया। फिर नबूकदनेस्सर इससे आश्चर्यचकित होकर कहा, “शद्रक, मेशक और अबेदनगो के परमेश्वर की प्रस्तुति करो,” और सारे बेबीलेन में यह नियम बनाया कि यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के विरोध में कुछ कहेगा तो उसके टुकड़े–टुकड़े कर दिए जाएंगे और उसके घर को तोड़ा–फोड़ा जाएगा(दान 3:29–30)

इस तरह जब हम परीक्षा पर विजयी होंगे, हमें परमेश्वर की आशीष मिलती है। परमेश्वर विश्वास के पूर्वजों के कार्यों के द्वारा हमें उद्धार पाने की बुद्धि सिखाते हैं।

विश्वास के पूर्वजों ने अपने जीवन को भी खतरे में डालते हुए अपने विश्वास की रखवाली की, फिर क्या हमें किसी छोटी सी कठिनाई के आने पर अपने विश्वास को छोड़ना चाहिए? जब हम सही विश्वास के मार्ग पर चलेंगे और परीक्षा से उबर पाएंगे, तब संसार के सभी लोग नबूकदनेस्सर के समान परमेश्वर की स्तुति करेंगे।

यूसुफ जो व्यभिचार करने की परीक्षा पर विजयी हुआ

परीक्षाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं। स्वर्ग जाने के मार्ग को बन्द करने के लिए, मूर्तिपूजा के अलावा बहुत सारी परीक्षाएं होती हैं जो हमें परमेश्वर पर विश्वास करने से रोकती हैं और हमें शैतान के अधीन रहने देती हैं। हमें इन परीक्षाओं पर हमेशा विजयी होना चाहिए।

जब यूसुफ मिस्र में पहुंचाया गया, तब पोतीपर नामक एक मिस्री ने जो फिरौन का हाकिम और अंगरक्षकों का प्रधान था, उसको इश्माएलियों के हाथ से, जो उसे वहां ले गए थे, मोल लिया। यूसुफ अपने मिस्री स्वामी के घर में रहता था, और यहोवा उसके संग था इसलिए वह भाग्यवान् पुरुष हो गया। और यूसुफ के स्वामी ने देखा कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है… इसलिए उसने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया कि अपने खाने की रोटी को छोड़, वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। यूसुफ सुन्दर और रूपवान् था। इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आंख लगाई और कहा, “मेरे साथ सो।” पर उसने अस्वीकार करते हुए अपने स्वामी की पत्नी से कहा… “उसने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है, मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा, इसलिए भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्यों बनूं?” और ऐसा हुआ कि वह प्रतिदिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उसने उसकी न मानी कि उसके पास लेटे या उसके संग रहे। एक दिन क्या हुआ कि यूसुफ अपना कामकाज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था। तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, “मेरे साथ सो,” पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा और बाहर निकल गया। यह देखकर कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया, उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा, “देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था, और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी; और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।” उत 39:1–23

यूसुफ याकूब का ग्यारहवां पुत्र था। उसे पोतीपर के घर में एक दास के समान बेचा गया था। जब यूसुफ ने अपनी स्वामिनी के साथ व्यभिचार करने से इनकार किया, उसे झूठे आरोप में फंसाकर जेल में डाला गया। लेकिन बाद में परमेश्वर उसके धार्मिक मन को देखकर उसके साथ रहे, और उसे मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहराया गया।

वह व्यक्ति जो परीक्षा में अटल रहता है, आशीष पाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि परमेश्वर विश्वासयोग्य और भक्त व्यक्ति को परीक्षा में से निकाल लेते हैं और आशीष देते हैं। परीक्षा से गुजरने के दौरान कभी–कभी हमें ऐसा लग सकता है कि हमारे साथ अन्याय किया जाता है या फिर परमेश्वर ने हमें अकेला छोड़ा है, लेकिन आखिरकार हमें सुपरिणाम दिया जाता है।

परीक्षा ही सबसे मुख्य कारक है जो हमें अन्त तक विश्वास बनाए रखने में असमर्थ बना देता है। यदि शद्रक, मेशक और अबेदनगो परीक्षा की वजह से ठोकर खाकर गिरे होते, तो इससे क्या फर्क पड़ता कि वे यहूदी हैं और परमेश्वर की चुनी हुई प्रजा हैं? यदि उन्होंने मूर्ति की आराधना की होती, तो वे यहूदी होने की और परमेश्वर की प्रजा होने की योग्यता खो देते, है न?

यदि यूसुफ अपनी स्वामिनी के प्रलोभन में आकर परीक्षा में पड़ा होता, तो उस पर हमेशा कुकर्मी का धब्बा लगा होता। लेकिन उसने हमेशा परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार भक्ति के साथ जीवन बिताया, इसलिए उस पर झूठा आरोप मढ़ा गया और थोड़े समय के लिए कैदी के रूप में जेल भेज दिया गया। लेकिन परमेश्वर ने स्थिति को उलट दिया, और वह मिस्र के राजा फिरौन के बाद दूसरा सबसे अधिक अधिकार प्राप्त अधिकारी बना और उसने सारे मिस्र पर शासन किया। उसके जीवन में अनेक उतार–चढ़ाव आए, लेकिन परमेश्वर की उसमें भलाई की योजना और प्रयोजन था। वह भाइयों की नफरत और ईष्र्या का पात्र बना था, और मिस्र में दास के रूप में बेचा गया था और हर प्रकार के कष्टों और परीक्षाओं से गुजरा। लेकिन वह अन्त में मिस्र का अधिकारी बना, और इससे जब कनान देश में अकाल पड़ा, उसने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को मिस्र में बुलाया, जिससे वे सब लंबे अकाल से बच सके। यही परमेश्वर का प्रयोजन था।

यीशु जो क्रूस की परीक्षा पर विजयी हुए

जब हमारे सामने कोई प्रलोभन और परीक्षा आए, तो यूसुफ के समान और शद्रक, मेशक और अबेदनगो के समान हम में यह पहचानने की क्षमता होनी चाहिए कि परमेश्वर की दृष्टि में क्या सही है और क्या न्यायसंगत है। चाहे परीक्षा से गुजरने के दौरान हम परेशान और दुखी होते हों, हमें अन्याय से समझौता नहीं करना चाहिए। चाहे हमारे जीवन में कोई भी कठिनाई क्यों न आए, फिर भी हमें परमेश्वर की व्यवस्थाओं, विधियों व नियमों के अनुसार विश्वास के मार्ग पर चलना चाहिए।

यीशु अपनी सेवकाई को पूरा करने के बाद सबसे बड़ी परीक्षा पर विजयी हुए।

इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ें, और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें, जिसने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके क्रूस का दु:ख सहा, और परमेश्वर के सिंहासन की दाहिनी ओर जा बैठा। इसलिये उस पर ध्यान करो, जिसने अपने विरोध में पापियों का इतना विरोध सह लिया कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो। इब्र 12:1–3

क्रूस पर अत्यंत बड़ी पीड़ा सहना यीशु के लिए एक कठोर परीक्षा थी। जब हम देखें कि क्रूस की पीड़ा सहने से पहले यीशु ने आग्रहपूर्वक यह प्रार्थना की, “हे मेरे पिता, यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए,” तो हम जरा अनुमान लगा सकते हैं कि क्रूस की पीड़ा कितनी कठोर और बड़ी थी।

यीशु क्रूस की परीक्षा पर विजयी हुए जिससे उन्हें परमेश्वर के सिंहासन की दाहिनी ओर बैठने का गौरव प्राप्त हुआ। यीशु पहले से यह जानते थे कि वह अत्यंत अपमानित और तिरस्कृत किए जाएंगे और असहनीय दर्द से गुजरेंगे, मगर उन्होंने उसे टालना नहीं चाहा और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिए हमारे बदले बलिदान हुए। इस तरह उन्होंने दुखों के मार्ग पर चलते हुए उद्धार का महिमामय मार्ग खोला।

आत्मिक जंगल में विश्वास की यात्रा के दौरान, हमारे सामने भी परीक्षाएं आती हैं। जब कभी हम परीक्षाओं का सामना करते हैं, हम बहुत परेशानी और दुखी महसूस करते हैं। यीशु की क्रूस की परीक्षा, यूसुफ की परीक्षा, और शद्रक, मेशक और अबेदनगो की परीक्षा, सब कष्टजनक थीं। यदि हम कष्टों को धैर्य से सहन करें और परमेश्वर के बताए मार्ग पर चलें, तब बड़ी आशीष हमारा इंतजार करेगी। मैं निवेदन करता हूं कि यदि परीक्षा आपके सामने आए, तो उसे सिर्फ टालने का प्रयत्न न करें, पर यह सोचते हुए परीक्षा पर विजयी रहें कि उसमें छिपी हुई परमेश्वर की इच्छा क्या है।

धन्य है वह मनुष्य जो परीक्षा में स्थिर रहता है

जंगल की 40 वर्ष की यात्रा के दौरान जैसे इस्राएलियों के पास परीक्षाएं थीं, वैसे आज भी सदस्यों के पास तरह तरह की परीक्षाएं होती हैं। परमेश्वर हमें बाइबल के द्वारा सिखाते हैं कि हम कैसे परीक्षा पर विजयी हो सकते हैं और विजयी होने के बाद हमें क्या आशीषें मिलती हैं।

धन्य है वह मनुष्य जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों से की है। याक 1:12

यदि हम परीक्षा को झेलें और उस पर विजयी हों, तो हम जीवन का मुकुट पाएंगे। परमेश्वर के द्वारा तैयार की गई सभी आशीषें और महिमा हमें दी जाएगी।

जब आप किसी परीक्षा का सामना करते हैं, तो आपको सिर्फ उसकी चिंता में डूबे नहीं रहना चाहिए, लेकिन परमेश्वर की इच्छा को सोचते हुए परमेश्वर की शिक्षाओं और आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। इसलिए बाइबल सिखाती है कि धन्य है वह मनुष्य जो परीक्षा में स्थिर रहता है, क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का मुकुट पाएगा।

तो प्रभु भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है, विशेष करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं… 2पत 2:9–12

यदि हम परीक्षा के समय परमेश्वर की सहायता पाना चाहते हैं, हमें अपना विश्वास का जीवन भक्ति के साथ जीना चाहिए। परमेश्वर भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेते हैं, लेकिन अधर्मियों को दण्ड की दशा में रखते हैं।

इस्राएली परमेश्वर के चुने हुए लोग थे, मगर जंगल की 40 वर्ष की यात्रा के दौरान उनमें से अधिकतर इसलिए जंगल में नष्ट किए गए, क्योंकि वे परीक्षा से उबर नहीं पाए। यद्यपि हम नई वाचा के सत्य के अन्दर परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों और स्त्री की शेष संतानों के महिमामय पद पर नियुक्त किए गए हैं, फिर भी यदि हम परीक्षा में पड़कर एसाव की तरह अपनी सारी आशीषों को खो देते, तो ऐसी स्थिति में इन सब का क्या फायदा है? वही परीक्षा है जो आपको एसाव की तरह सोचने देती है। यदि कोई परीक्षा में पड़ता है, तब वह अपने पहिलौठे के अधिकार को तुच्छ समझने लगता है और स्वर्ग का राज–पदधारी याजक होने की आशीष भी और परमेश्वर की वाचा भी बेकार मानने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप वह परमेश्वर से किए गए वादों को तुरन्त तोड़ देता है। इससे हमें सावधान रहना ही चाहिए। इसलिए यीशु ने हमेशा अपने चेलों से जो सत्य में थे, जोर देकर कहा, “जागते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो,” और “प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो,” और यह भी कहा कि जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।

हम सब को मसीह की शिक्षाओं और इच्छाओं के अनुसार पवित्र चालचलन और भक्ति के साथ जीवन जीना चाहिए। कृपया यह न भूल जाइए कि हम परमेश्वर की आशीषों के अन्दर रहते हैं, और परमेश्वर को अधिक महिमा और धन्यवाद चढ़ाइए। और कृपया परीक्षा में न पड़िए। मुझे आशा है कि आप परमेश्वर के वचनों को अपने मन के भीतर और अधिक गहराई तक अंकित करें, ताकि आप परीक्षा पर विजयी हो सकें, और मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप स्वर्ग की आशीषों को अन्त तक दृढ़ता से थामे रहें और स्वर्गीय पिता और माता को बड़ी प्रसन्न्ता दें।