संसार में बहुतेरे लोग परमेश्वर पर विश्वास करने का दावा तो करते हैं, लेकिन यदि वे परमेश्वर के वचन पर सम्पूर्ण रूप से आज्ञाकारी न हों, तो वे सच्चे विश्वासी नहीं हो सकते। हम कभी–कभी मसीहियों में से ऐसे लोग देखते हैं जो परमेश्वर को जानने का दावा करते हैं, परन्तु अपने कार्यों से परमेश्वर का इनकार करते हैं। वे हठ करते हैं कि ‘परमेश्वर का वचन चाहे जैसा हो, तो भी मेरे विचार से ऐसा करना ही बेहतर होगा’।
ऐसे लोग परमेश्वर पर विश्वास तो करते हैं, लेकिन परमेश्वर की केवल उस इच्छा का पालन करते हैं जो उन्हें ठीक लगती है, और बाकी परमेश्वर की इच्छाओं को छोड़ देते हैं जो उन्हें ठीक नहीं लगती हैं। वे सिर्फ़ अपनी इच्छा के अनुसार कर्म करते हैं। वे सब कुछ परमेश्वर को सौंपने वाले नहीं, लेकिन परमेश्वर को सौंपने से हिचकने वाले हैं। जो सब कुछ परमेश्वर को सौंप सकते हैं, वे ही सच्चे विश्वासी हैं।
परमेश्वर ने नई वाचा के बहुमूल्य लहू से हमें खरीदा है, इसलिए हम परमेश्वर के हैं। यदि हम परमेश्वर के हैं, तो हमें सब कुछ परमेश्वर को सौंपना चाहिए। विश्वासी दो प्रकार के होते हैं– एक तो जो स्वयं को परमेश्वर के हाथ में सौंपने से हिचकता है, दूसरा वह जो अपनी आत्मा को पूरी तरह से परमेश्वर के हाथ में सौंपता है। पहला विश्वासी भले ही मुंह से परमेश्वर की इच्छा जानने का दावा करता है, लेकिन कार्यों से उसकी इच्छा का इनकार करता है। आइए हम बाइबल की शिक्षा के द्वारा सोचें कि हम किस प्रकार का विश्वास लें।
यह एक पेशेवर बेसबॉल टीम के मैच की कहानी है। एक खिलाड़ी पहले बेस पर उपस्थित थे, और सिर्फ़ एक या दो रनों से टीम जीत या हार सकती थी। टीम संकट में थी। आखिरी बल्लेबाज की बारी आई। टीम की हार और जीत उसके हाथ में थी। कोच ने आखिरी बल्लेबाज को संकेत दिया कि वह धीरे से गेंद को मारे। लेकिन जब बल्लेबाज ने गेंद को उड़ते देखा, तब उसे लगा कि यह होम रन बनाने के लिए बहुत उचित है। उसने उसे धीरे से नहीं, पर ज़ोर से मारकर होम रन बना दिया। टीम जीत गई। दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उसे खूब सराहा। लेकिन कोच के चेहरे पर उदासी थी। उसी रात, कोच ने अपने दोस्त को अपने दिल की बात बताई;
“मैं बिल्कुल खुश नहीं हूं। मैं नहीं चाहता कि टीम किसी एक खिलाड़ी की योग्यता के द्वारा मैच जीते, और मैं यह चाहता हूं कि टीम के सभी खिलाड़ी एक जुट होकर मैच जीतें। आज मैंने एक खिलाड़ी को निर्देश दिया था। लेकिन उसने मेरे निर्देश की अवहेलना की और अपनी मनमानी की। मैंने खिलाड़ियों को अच्छी तरह से नहीं संभाला है। तो दरअसल यह जीत नहीं पर हार है।”
परमेश्वर भी वैसा ही है। परमेश्वर हमसे चाहता है कि हम अपने–अपने तरीक़े से काम न करें, पर परमेश्वर के हाथ में अपनी आत्मा को पूरी तरह से सौंपकर परमेश्वर की इच्छा का पालन करें।
“वे परमेश्वर को जानने का दावा तो करते हैं पर अपने कामों से उसका इनकार करते हैं। वे घृणित और आज्ञा न मानने वाले हैं तथा किसी भी भले कार्य के योग्य नहीं।” तीत 1:16
ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की इच्छाओं पर आज्ञाकारी नहीं रहते हैं और उनका पालन करने में देर करते हैं, क्योंकि वे अपनी सोच या स्थिति के हिसाब से परमेश्वर की इच्छाओं को ठीक नहीं समझते हैं, तो वे घृणित और आज्ञा न मानने वाले हैं तथा भले कार्य के योग्य नहीं हैं। हमें ऐसे मूर्ख लोग जैसा नहीं होना चाहिए। चाहे ऐसा लगता हो कि हम परमेश्वर के वचन के अनुसार नहीं, पर अपनी सोच के अनुसार करने से बहुत ही अधिक फल पैदा कर सकेंगे, फिर भी ऐसा कभी नहीं होगा। जब हमारा ध्यान परमेश्वर की आज्ञा मानने पर नहीं, लेकिन केवल फल पैदा करने पर केन्द्रित होगा, तब हम मूर्खता करेंगे कि कुछ चीज़ों को मेरी सोच के अनुसार करना चाहिए, क्योंकि यह आज्ञा मानने से भी ज्य़ादा बेहतर परिणाम लाता है।
कल्पना करें कि एक सदस्य है जिसे परमेश्वर की आज्ञा का अच्छी तरह से पालन करने पर भी, अब तक एक भी फल नहीं मिला है, और दूसरा सदस्य है जिसे परमेश्वर की आज्ञा का पालन न करते हुए भी, ज्य़ादा फल मिलते हैं, तो परमेश्वर, जो सभी जीवों को फल पैदा कराता है, आखिर में किसको अच्छा एवं उत्तम फल पैदा कराएगा? आखिर में वह आज्ञापालन करने वाले को अधिक और उत्तम फल पैदा कराएगा।
परमेश्वर अकेला सब कुछ पूरा कर सकता है। फिर भी उसने हमें उसे पूरा करने का कर्तव्य दिया है। क्योंकि परमेश्वर इससे हमारी जांच करना चाहता है कि हम स्वयं को परमेश्वर की इच्छा का पालन करने के लिए सौपते हैं या नहीं। मसीह ने मरते दम तक आज्ञाकारी रहकर, परमेश्वर की इच्छा का पालन करने का उदाहरण दिया है।
“अपने में वही स्वभाव रखो जो मसीह यीशु में था, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी परमेश्वर के समान होने को अपने अधिकार में रखने की वस्तु न समझा। उसने अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया कि दास का स्वरूप धारण कर मनुष्य की समानता में हो गया इस प्रकार मनुष्य के रूप में प्रकट होकर स्वयं को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु वरन् क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया … कि यीशु के नाम पर प्रत्येक घुटना टिके, चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे, और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए प्रत्येक जीभ अंगीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है। इसलिए मेरे प्रियो, जिस प्रकार तुम सदैव आज्ञा पालन करते आए हो, न केवल मेरी उपस्थिति में परन्तु अब उस से भी अधिक मेरी अनुपस्थिति में डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का काम पूरा करते जाओ।” फिलि 2:5–12
मसीह परमेश्वर के स्वरूप में था। लेकिन जब उसने थोड़ी देर तक शरीर की पोशाक पहनी और वह परमेश्वर की इच्छा पर इतना आज्ञाकारी रहा कि अपना प्राण तक दे दिया, तब उसे वह नाम दिया गया जो सब नामों के ऊपर है और उसे ऊंचे से ऊंचे स्थान पर उठाया गया। यीशु के विश्वास और आज्ञाकारिता के उदाहरण के द्वारा, परमेश्वर ने हमें वह महिमा दिखाई जो आज्ञाकारी व्यक्ति पाने वाली है।
“पुत्र होने पर भी उसने दुख सह सह कर आज्ञा पालन करना सीखा। वह सिद्ध ठहराया जाकर उन सब के लिए जो उसकी आज्ञा पालन करते हैं अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया, और परमेश्वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक नियुक्त किया गया।” इब्र 5:8–10
आज्ञाकारिता सम्पूर्ण विश्वास की ओर हमारा मार्गदर्शन करती है, इसलिए आज्ञाकारी लोग बुद्धिमान हैं। लेकिन जो अपने कौशल या योग्यता पर भरोसा करते हुए परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में देर करते हैं, वे मूर्ख लोग हैं। परमेश्वर ऐसी योजना बनाता है जो मनुष्य के विचार की सीमा के बाहर है। परमेश्वर हमें हमसे अधिक अच्छे से जानता है और हमारे मन के विचारों को जानता है। परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है, और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है।(1कुर 1:25) तो हम मनुष्य की तुलना परमेश्वर से कैसे कर सकेंगे?
इसलिए परमेश्वर ने हम से कहा है कि हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करें, तथा डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का काम पूरा करें। मनुष्य के विचार से हमें कभी–कभी परमेश्वर का उपाय निर्बल और ऐसा दिखाई देता है जिनके करने से हम मूर्ख ठहरेंगे और हमारा नुकसान होगा, लेकिन जब हम अपना सब कुछ परमेश्वर के हाथ में सौंपकर परमेश्वर के उपाय के अनुसार करेंगे, तब हम सारी आशीषें और स्वर्ग के अनन्त भण्डार पाएंगे। यीशु ने हमें यह सच्चाई सिखाने के लिए, परमेश्वर होते हुए भी हमारी तरह मनुष्य का रूप धरा, और इस धरती पर आकर स्वयं हमारे लिए इसका उदाहरण दिया कि हमें किस तरह के विश्वास से परमेश्वर के पास जाना चाहिए। उसने दुख उठाते हुए पूर्ण रूप से आज्ञाकारी रहने का उदाहरण दिया, जिसके द्वारा वह सिद्ध ठहराया जाकर उन सब के लिए, जो उसकी बाट जोहते हैं, अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया।
जैसे मसीह ने उदाहरण दिया है, वैसे ही यदि हम परमेश्वर के वचन के हाथ में अपनी आत्मा को पूर्ण रूप से सौंपेंगे, तब सारी परिस्थितियां अनुकूल बन जाएंगी।
पिछली बार ‘यरूशलेम का प्रचार मेला’ के दौरान, मुझे यह खबर मिली थी कि कोरिया में एक चर्च ने 4 दिनों में 70 आत्माओं की अगुवाई की है। उस चर्च की सफलता का राज़ यह था कि जैसे पिता ने कहा, वैसे ही सदस्यों ने यरूशलेम माता का प्रचार किया।
परमेश्वर ने कहा कि जब हम यरूशलेम की महिमा पूरे संसार में चमकाएंगे, तब खोए हुए भाई और बहनें बादल की नाई ऐसे चले आएंगे जैसे कबूतर घोंसलों की ओर उड़ते हुए आते हैं। इस पर किसी को तो मनुष्य के छिछले विचार से ऐसा लगता होगा कि लोग यरूशलेम की महिमा एकदम तुरन्त नहीं समझ सकेंगे। लेकिन वास्तव में ऐसा विचार भविष्यवाणी के पूरा होने में बहुत देर लगाता है।
जब परमेश्वर के वचन की घोषणा की जाती है, तब हमें इसके अनुसार ऐसे तुरन्त कार्य करना चाहिए जैसे तुरही बजाते ही सैनिक कार्य करते हैं। प्रकाशितवाक्य ग्रंथ में लिखा है कि परमेश्वर एक श्वेत घोड़े पर सवार होकर दुश्मनों से लड़ाई करता है, तब स्वर्ग की सेना श्वेत घोड़ों पर सवार होकर श्वेत और शुद्ध मलमल पहिने हुए उसके पीछे पीछे चलती है।(प्रक 19:11–16) इस तरह विश्वासियों की तुलना स्वर्ग की सेना से की गई है।
जिस व्यवहार के लिए तुरही बजाई गई है, यदि सैनिक वह व्यवहार नहीं, परन्तु अलग व्यवहार करें तो उनके साथ क्या होगा? जागने के लिए तुरही बजाने पर भी यदि वह सोता रहे, या सोने के लिए तुरही बजाने पर भी यदि वह परिसर में चलता रहे, तो उसे कड़ी सज़ा मिलेगी। परमेश्वर ने भविष्यवाणी की तुरही बजाई है, फिर भी यदि कोई उसके अनुसार कार्य न करे, तो यह प्रतीत होगा कि उसके अन्दर बहुत गहरे तक ऐसा मन है कि वह अपनी आत्मा को परमेश्वर के हाथ में पूर्ण रूप से न सौंप कर परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में हिचकिचाता है।
परमेश्वर हमारे आज्ञा मानने तक इन्तज़ार करता है। (2कुर 10:6) सबसे बड़ा विश्वास आज्ञाकारिता से बनता है। जो हर वचन पर आज्ञाकारी होता है, वह ऐसा व्यक्ति है जो अपनी आत्मा को परमेश्वर के हाथ में पूर्ण रूप से सौंपता है। और जो अपनी आत्मा को परमेश्वर के हाथ में पूर्ण रूप से सौंप सकता है, वह आखिर में आश्चर्यकर्म देखेगा। परमेश्वर ने वादा किया है कि आज्ञाकारी व्यक्ति के सामने सब घुटने टेकेंगे। तो मेमने के पीछे चलना क्या हमारे लिए लाभदायक न होगा?
“फिर मैंने दृष्टि की, और देखो, वह मेमना सिय्योन पर्वत पर खड़ा था, और उसके साथ एक लाख चवालीस हजा.र व्यक्ति थे … वे सिंहासन के सम्मुख तथा चारों जीवित प्राणियों और प्राचीनों के सम्मुख एक नया गीत गा रहे थे। उन एक लाख चवालीस हज़ार के अतिरिक्त जो पृथ्वी पर से मोल लिए गए थे, कोई भी वह गीत नहीं सीख सकता था … ये वे ही हैं जो मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं। ये परमेश्वर और मेमने के लिए प्रथम फल होने को मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। उन में झूठ नहीं पाया गया और वे निर्दोष हैं।” प्रक 14:1–5
144,000 भक्तों की मुख्य विशेषता यह है कि जहां कहीं मेमना जाता है, वे उसका अनुसरण करते हैं। वे अपनी इच्छा को परमेश्वर की इच्छा में शामिल करते हैं, और अपने विचार को परमेश्वर के विचार में शामिल करते हैं। जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करने से हिचकिचाते हैं और इनकार करते हैं, वे कभी वह अनुग्रहमय विश्वास नहीं ले सकते जो 144,000 भक्तों के पास है।
जो मेमने का अनुसरण करते हैं, उन्हें प्रिय–अप्रिय या अनुकूल–प्रतिकूल जगह से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, और उन्हें इससे भी कोई मतलब नहीं है कि रास्ता समतल है या कच्चा, या यह कीचड़ भरा है या सूखा। उसी रास्ते पर चलते समय, जब थोड़ी देर तक हमारा नुकसान होता है और हमारे मन में चोट लगती है, तब परमेश्वर को सोचें। परमेश्वर ने हमसे प्रेम किया है, इसलिए हमें बचाने के लिए वह नम्र व्यक्ति का रूप धर कर नीचे धरती पर आया, और हर प्रकार के अत्याचार एवं अपमान को सह लिया। यदि हम परमेश्वर के प्रेम को समझेंगे, तब हम अपनी आत्मा को पूर्ण रूप से परमेश्वर के हाथ में सौंपकर कहीं भी परमेश्वर का अनुसरण कर सकेंगे।
सम्पूर्ण आज्ञाकारिता अंध आज्ञाकारिता से अलग है। सम्पूर्ण आज्ञाकारिता केवल वही अपना सकता है जो परमेश्वर की इच्छा को सही तरह से समझते हुए, 100 प्रतिशत अपनी आत्मा को परमेश्वर के हाथ में सौंपता है। इसलिए हमें पवित्र आत्मा और दुल्हिन को अपनी आत्मा सौंपनी चाहिए, और जहां कहीं वे हमें ले जाते हैं, हमें उनके पीछे सम्पूर्ण समर्पण के साथ चलना चाहिए। परमेश्वर केवल सम्पूर्ण आज्ञाकारी लोगों का चुनाव करता है।
बाइबल में विश्वास के सभी पूर्वजों ने परमेश्वर की इच्छा का हर्ष से पालन किया। उनमें से इब्राहीम ने सबसे सम्पूर्ण आज्ञाकारिता का उदाहरण दिखाया जिसका इंसान को अभ्यास करना बहुत ही कठिन है।
“इन बातों के पश्चात् ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली … उसने कहा, “अपने पुत्र, हां, अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम करता है, साथ लेकर मोरिय्याह देश को जा; वहां एक पहाड़ पर, जिसे मैं तुझे बताऊंगा, उसे होमबलि करके चढ़ाना।” अत: इब्राहीम बड़े सवेरे उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर उसने दो सेवकों और अपने पुत्र इसहाक को साथ लिया, और होमबलि के लिए लकड़ी चीरी और उठकर उस स्थान के लिए प्रस्थान किया जिसके विषय में परमेश्वर ने उस से कहा था … तथा अपने पुत्र इसहाक को बांधकर वेदी पर लकड़ियों के ऊपर रख दिया। तब इब्राहीम ने अपने बेटे को बलि चढ़ाने के लिए अपना हाथ बढ़ाकर छुरी उठा ली। तब यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसे पुकार कर कहा, “इब्राहीम, हे इब्राहीम! … उस लड़के की ओर हाथ न बढ़ा, और न ही उसे कोई हानि पहुंचा। मैं अब जान गया हूं कि तू परमेश्वर से डरता है, क्योंकि तू ने मेरे लिए अपने पुत्र अर्थात् अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा। तब इब्राहीम ने आंखें उठाकर पीछे देखा कि एक मेढ़ा अपने सींगों से झाड़ी में फंसा हुआ है; इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ा और अपने पुत्र के स्थान पर उसको होमबलि चढ़ाया।” उत 22:1–13
इब्राहीम परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी था, परन्तु इस तथ्य की परख के लिए, परमेश्वर ने उसकी परीक्षा ली। परमेश्वर ने उससे कहा कि सबसे प्रिय पुत्र इसहाक की, जो उसे सौ वर्ष की उम्र में मिला था, बलि चढ़ाए। आम व्यक्ति हो तो वह इस पर ऐसा ही कहेगा, “काश परमेश्वरने पहले से मुझे बेटा न दिया होता, तब मैं दुखी न हुआ होता। हे परमेश्वर! क्योंकर मुझे ऐसा बुरा काम कराता है?”, “यदि आप यह आज्ञा वापस ले लेंगे, तो मैं कुछ भी कर सकता हूं।” ऐसा व्यक्ति जो आज्ञापालन करने में देर करता है, वह घृणित और आज्ञा न मानने वाला है। अत: वह नष्ट होगा।
परमेश्वर से आज्ञा मिलने के बाद, इब्राहीम सुबह जल्दी ही उठा और उसने परमेश्वर की आज्ञा का तुरन्त पालन किया। क्योंकि इब्राहीम को पक्का विश्वास था कि परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी होने वाले को अनुग्रह का परिणाम मिलेगा। इब्राहीम ने होमबलि की लकड़ी अपने पुत्र इसहाक पर लादी, और मोरिय्याह पर्वत की ओर चला। जब इब्राहीम ने अपने बेटे को बलि चढ़ाने के लिए अपना हाथ बढ़ाकर छुरी उठा ली, तब परमेश्वर ने स्वर्ग से उसे पुकार कर कहा, “हे इब्राहीम, तू ने मेरे लिए अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा, तो मैं तेरे लिए क्या रख छोड़ूंगा?” इस तरह परमेश्वर ने उसकी आज्ञाकारिता देखकर उसे बहुत सी आशीष दी।
इब्राहीम सब कुछ परमेश्वर को सौंपकर आज्ञाकारी रहा। इसी कारण वह परमेश्वर से विश्वास का पूर्वज कहलाया गया, और जो भी काम इब्राहीम करता था, उसके लिए परमेश्वर आशीष देता था। इब्राहीम ने आज्ञा मानने से बहुत आशीष पाई। और जब परमेश्वर ने इब्राहीम को आज्ञा दी कि अपने घर को छोड़कर जाओ, तब उसने कभी अपनी कठिन परिस्थिति का जिक्र नहीं किया। वह नहीं जानता था कि वह कहां जा रहा है, फिर भी चला गया। इस तरह इब्राहीम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने में कभी नहीं हिचका। उसने इस एक कारण से आज्ञापालन किया कि आज्ञा देने वाला परमेश्वर है और परमेश्वर ने उसे बुलाया है।
सिय्योन के लोगों को अवश्य ही ऐसा विश्वास रखना चाहिए जो इब्राहीम के विश्वास जैसा है। जब हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करने पर बहुत कुछ सोचते हुए हिचकेंगे, तब परमेश्वर की आशीष बेकार ही चली जाएगी।
आज्ञा न मानते हुए बहुत अच्छे से काम करने के बजाय, यह ज्य़ादा अच्छा है कि असमर्थ होते हुए भी हम आज्ञा मानें। भोर का तारा, उषाकाल का पुत्र तो बुद्धि से भरपूर और बहुत सामर्थी था। लेकिन क्या उसने परमेश्वर के सिंहासन पर बैठना नहीं चाहा? जो अपने विचार के अनुसार काम करता है, वह परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकता, चाहे उसका काम सफल रहे।
मनुष्य के विचार से तो लगता है कि चाहे परमेश्वर की आज्ञा न मानते हों, यदि हम बहुत सी अच्छी चीजें. परमेश्वर को दे, तो परमेश्वर को ठीक लगेगा। शाऊल ने भी ऐसा ही सोचा था। लेकिन परमेश्वर ने कहा कि वह हज़ारों मेढ़ों से और तेल की लाखों नदियों से ज्य़ादा आज्ञाकारिता से प्रसन्न होता है।
“तब शमूएल ने कहा, “क्या यह सच नहीं है कि यद्यपि तू अपनी ही दृष्टि में तुच्छ था तो भी तू इस्राएल के कुलों का प्रधान बनाया गया? … यहोवा ने तुझे एक विशेष कार्य पूरा करने के लिए भेजकर कहा, ‘जा, उन पापी अमालेकियों को समूल नाश कर डाल, और उनके विरुद्ध उस समय तक युद्ध कर जब तक कि वे सत्यानाश न हो जाएं।’ तब तू ने यहोवा की आज्ञा को क्यों नहीं माना? और तू ने लूट पर टूट कर वह काम क्यों किया है जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था? तब शाऊल ने शमूएल से कहा, “निस्सन्देह, मैंने यहोवा की आज्ञा का पालन किया है। यहोवा ने जिस विशेष कार्य को पूरा करने के लिए भेजा था उसके लिए मैं गया, और अमालेक के राजा अगाग को पकड़ कर लाया हूं, तथा मैंने अमालेकियों को समूल नाश कर दिया है। परन्तु लोग लूट में से नाश किये जाने वाली अच्छी से अच्छी भेड़–बकरियों और गाय–बैलों में से कुछ ले आए हैं कि गिलगाल में उन्हें तेरे परमेश्वर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाएं।” तब शमूएल ने कहा, “क्या यहोवा होमबलि और बलिदानों से उतना प्रसन्न होता है जितना अपनी आज्ञाओं के माने जाने से? सुन, आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर और ध्यान देना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। क्योंकि विद्रोह करना शकुन विचारने के बराबर पाप है और अनाज्ञाकारिता मूर्तिपूजा के समान अधर्म है। इसलिए कि तू ने यहोवा के वचन को अस्वीकार किया है। उसने भी राजा होने के लिए तुझे अस्वीकार किया है।” 1शम 15:17–23
शाऊल राजा बनने से पहले नम्र भाव से अपने आप को तुच्छ समझता था और परमेश्वर का वचन मानता था। लेकिन जब उसे बड़ा अधिकार मिला, वह अधिकार के नशे में डूब कर परमेश्वर की इच्छा को अनदेखा करने लगा, और उसका मन अनजाने में घमण्ड से चूर होने लगा। ऐसे में, परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी कि वह अमालेकियों और उनकी सभी चीज़ों को पूरी तरह नष्ट करे। जब शाऊल उन्हें मारने गया, मोटे–मोटे पशुओं को देखकर उसे उन्हें मारने का अफ़सोस हुआ। इसलिए उसने सर्वोत्तम व मोटे पशुओं को रख लिया, और केवल उन सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया जो किसी काम की न थीं। इस तरह उसने आज्ञा न मानी।
शाऊल ने परमेश्वर के वचन का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया। फिर भी उसने परमेश्वर के सामने बहुत से बहाने बनाए। प्रजाओं की वजह से, अच्छे भेड़–बकरियां होने की वजह से और परमेश्वर को बलि चढ़ाने की वजह से–हर तरह का बहाना उसने बनाया। वह ऐसा व्यक्ति था जो परमेश्वर को सब कुछ सौंपने से हिचकता था और जो परमेश्वर के मार्ग के एवज़ में अपने मार्ग को अपना लेता था। इब्राहीम को सोचें। वह शाऊल से भी ज्य़ादा बहाने बना सका होता, जैसे ‘बच्चा शुद्ध नहीं है’, ‘उसे जुकाम हो गया है, वह तो होमबलि के लिए ठीक नहीं है’। इस तरह इब्राहीम ऐसे बहाने बनाते हुए परमेश्वर को बहुत दिनों तक अनुरोध कर सका होता। लेकिन इब्राहीम ने सम्पूर्ण विश्वास दिखाया और केवल परमेश्वर को सब कुछ सौंप दिया।
परमेश्वर शाऊल के पास से अलग हो गया। जब शाऊल ने आज्ञा न मानने से सब कुछ खो दिया, तब परमेश्वर को माफ़ी मांगी, फिर भी परमेश्वर ने उसे माफ़ नहीं किया। परमेश्वर ने ऐसा राजा नहीं चाहा जो आज्ञा न मानता था, चाहे वह प्रतिभाशाली हुआ हो, या राज्य में अच्छा शासन लाया हो। शाऊल को आज्ञा न मानने का मन तब आया जब उसे परमेश्वर की आवश्यकता नहीं थी। इसलिए परमेश्वर उसके पास से अलग हो गया।
जैसे बच्चों को हमेशा माता की आवश्यकता है, वैसे ही हमारी आत्माओं को हमेशा परमेश्वर की आवश्यकता होनी चाहिए, और हमें परमेश्वर को सब कुछ सौंपना चाहिए। इसी कारण बाइबल कहती है कि ‘आज्ञापालन बलिदान से बढ़कर है’।
सब बातें जो पिछले समय में घटीं, वे सब हमारी शिक्षा बनती हैं। इन शिक्षाओं को देखते हुए, आइए हम फिर से नया मन और नया संकल्प लेकर, सच्चा विश्वास रखें। मैं सिय्योन के सदस्यों से आशा करता हूं कि सब कुछ परमेश्वर के हाथ में सौंप दें और परमेश्वर की पवित्र इच्छा पर आज्ञाकारी रहते हुए उस जीवन के मुकुट को दृढ़ता से थामे रखें जो परमेश्वर हमें देगा।