यूनानी दर्शन

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नया नियम उस यूनानी भाषा में लिखा गया था, जो उन दिनों में अंतर्राष्ट्रीय भाषा थी। दर्शन के लिए यूनानी शब्द “फिलोसोफिया”(φιλοσοφια) है, जिसका मतलब है, “बुद्धि से प्रेम करना।” हेलाज(यूनान) एक देश था जहां दर्शनशास्त्र प्राचीन समय से विकसित हुआ और बहुत से दार्शनिक जैसे कि सुकरात, प्लेटो, अरस्तू इत्यादि उत्पन्न हुए। कुरिन्थुस, इफिसुस और आर्डेन हेलाज के मशहूर नगर थे जहां प्रेरित पौलुस प्रचार किया करता था।

प्रेरितों की पुस्तक में एक दृश्य है जहां प्रेरित पौलुस ने प्रचार करते समय इपिकूरी और स्तोईकी दार्शनिकों के साथ विवाद किया।

तब इपिकूरी और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है” – क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था।प्रे 17:18

सिकंदर महान की मृत्यु के बाद, यूनान का साम्राज्य चार सेनापतियों के द्वारा चार राज्यों में विभाजित किया गया। सिकंदर महान के द्वारा एकीकृत किए गए बड़े साम्राज्य में, “यूनानवाद” जिसने यूनान की सामान्य नागरिकता एवं संस्कृति की भावना का पालन किया, फैल गया। यूनानवाद के युग में दो लोकप्रिय दर्शन थे, इपिकूरी दर्शन और स्तोईकी दर्शन।

इपिकूरी दर्शन ने यूनानी दार्शनिक इपिकूरस(342-270 ईसापूर्व) के प्रत्यय-सिद्धांत का पालन किया। उसकी मृत्यु के बाद भी, वह लगभग 600 वर्ष तक जारी रहा। इपिकूरीवादी विश्वास करते थे कि सब कुछ परमाणुओं से बना है, और देवता भी परमाणुओं से बने हैं ताकि देवताओं में भौतिक घटनाएं हों। इसलिए, उन्होंने आत्मा के अस्तित्व का इनकार किया, और उन्हें देवताओं में मजबूत विश्वास नहीं था।

इपिकूरीवादियों ने दावा किया कि सरल और किफायती जीवन से “आथाराक्सीआ,” यानी मन की शांति को प्राप्त करना एक सच्ची खुशी है। इसलिए उन्हें खुशी “तलाशने वाले” कहा जाता था।

स्तोईकी दर्शन जेनोन(335-263 ईसापूर्व) के द्वारा स्थापित किया गया। इसे इपिकूरी दर्शन के साथ यूनानवाद के युग का मुख्य दर्शन माना जाता था। चूंकि यह दर्शन रोम में प्रचलित था, सम्राट नेरो का शिक्षक सेनेका और सम्राट मारकुस आउरेलिउस भी इस दर्शन के अनुयायी थे।

स्तोईकीवादियों को विश्वास था कि मनुष्य जिनके पास विवेक और सीमा है, प्रकृति से दी गई अपनी नियति को जानकर उसके अनुसार जीने के द्वारा अपने मूल, यानी प्रकृति में लौट जाते हैं, और एक बुद्धिमान मनुष्य जो प्रकृति के अनुसार चलता है, वह स्वयं प्रकृति है और परमेश्वर के समान है।

स्तोईकीवादी दार्शनिकों ने यूनानी साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के शासन के अधीन रहने वाले लोगों को अपनी वास्तविकता के प्रति खुद को अनुकूलित करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए साम्राज्य के शासकों के द्वारा उनका स्वागत किया गया। और उन्होंने सर्वत्यागी संन्यासी का जीवन जिया, इसलिए उन्हें संन्यासियों के रूप में बुलाया गया, और उन्होंने मध्ययुग में रोमन कैथोलिक चर्च के कुछ भिक्षुकों को प्रभावित किया।

प्रेरितों के युग के समय में, इपिकूरी और स्तोईकी दर्शन के अलावा प्राचीन यूनानी दर्शन पर आधारित बहुत से दर्शन थे। ये दार्शनिक परमेश्वर, मसीह, पुनरुत्थान इत्यादि के बाइबल के सत्य के संबंध में प्रेरितों के साथ विवाद किया करते थे। जब प्रेरित पौलुस ने कुलुस्से के संतों को पत्र लिखा, तब उसने दार्शनिकों के विचारों का वर्णन “संसार की आदि शिक्षा” के रूप में किया और जोर दिया कि दर्शन का मसीह के पालन से कुछ भी लेना-देना नहीं है।

चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अपना अहेर न बना ले, जो मनुष्यों की परम्पराओं और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार तो है, पर मसीह के अनुसार नहीं। कुल 2:8

फिलोसोफिया(φιλοσοφια), यानी दर्शन का मतलब “बुद्धि से प्रेम करना है,” लेकिन वास्तव में यह परमेश्वर की बुद्धि से नहीं, परन्तु मनुष्य की बुद्धि से प्रेम करना है। इसलिए प्रेरित पौलुस ने दर्शन के विरुद्ध चेतावनी दी। इस प्रकार प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस में परमेश्वर की कलीसिया को पत्र लिखा।

कहां रहा ज्ञानवान? कहां रहा शास्त्री? कहां रहा इस संसार का विवादी? क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया? क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना, तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालों को उद्धार दे। यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं, परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं, जो यहूदियों के लिए ठोकर का कारण और अन्यजातियों के लिए मूर्खता है; परन्तु जो बुलाए हुए हैं, क्या यहूदी क्या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ्य और परमेश्वर का ज्ञान है।1कुर 1:20-24