स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें विश्वास की निश्चित ही आवश्यकता है। जैसे बाइबल कहती है, “विश्वास के बिना परमेश्वर को प्रसन्न करना अनहोना है(इब्र 11:6),” विश्वास एक आवश्यक तत्व है जो स्वर्ग के राज्य में जाने के लिए हमारे पास होना चाहिए।
तब, यह जानने का तरीका क्या है कि हमारे पास कितना विश्वास है? जब हम बीमार होते हैं, तब हमारा शरीर लक्षण दिखाता है। उसी तरह, जब हम अपने हृदयों को विश्वास से भरने में नाकाम हों, तब हम आत्मिक बीमारी के बहुत से लक्षण दिखाएंगे; हम हमेशा कुड़कुड़ाते और शिकायत करते हैं, परमेश्वर के वचनों पर संदेह करते हैं और परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास नहीं करते। ऐसे गलत विचारों और व्यवहारों की श्रृंखला एक लक्षण है जिसे हम तब दिखाते हैं जब हमारा विश्वास खत्म हो जाता है। यीशु ने कहा, “मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है(मत 4:17)।” जैसे–जैसे स्वर्ग का राज्य दिन प्रतिदिन नजदीक आ रहा है, हमें यह देखने के लिए खुद पर विचार करने का समय लेना चाहिए कि हम में अब भी किस चीज की कमी है, ताकि हम स्वर्ग में प्रवेश करने के काफी योग्य बन सकें।
दस कुंवारियों के दृष्टांत से आइए हम स्वर्ग के राज्य के रहस्यों को खोजें, जिन्हें यीशु ने हमें दृष्टांतों के माध्यम से सिखाया(मत 13:10–11)।
स्वर्ग का राज्य उन दस कुंवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। उनमें पांच मूर्ख और पांच समझदार थीं। मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया; परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। जब दूल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब ऊंघने लगीं और सो गईं। आधी रात को धूम मची: “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।” तब वे सब कुंवारियां उठकर अपनी अपनी मशालें ठीक करने लगीं। और मूर्खों ने समझदारों से कहा, “अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जा रही हैं।” परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया, “कदाचित् यह हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो।” जब वे मोल लेने को जा रही थीं तो दूल्हा आ पहुंचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चली गईं और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुंवारियां भी आकर कहने लगीं, “हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे!” उसने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूं, मैं तुम्हें नहीं जानता।” इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को। मत 25:1–13
यीशु ने कहा कि स्वर्ग का राज्य उन दस कुंवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। जब दूल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब ऊंघने लगीं और सो गईं। आधी रात को धूम मची: “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।” पांच समझदार कुंवारियों ने, जिन्होंने अपनी मशालों के लिए पर्याप्त तेल तैयार किया था, दूल्हे का स्वागत किया और विवाह के घर में चली गईं।
ठीक से अपना कार्य करने के लिए हर मशाल में तेल होना चाहिए। दृष्टांत में मशालें परमेश्वर के वचन, यानी सत्य को दर्शाती हैं, जैसे बाइबल कहती है, “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है(भजन 119:105)।” तेल जो मशालों को जलाए रखता है, विश्वास को दर्शाता है जो सत्य को चमकाता रहता है। दूल्हा जिसका सभी इंतजार करते हैं, मसीह है(मर 2:18–20)।
हमें अपने सत्य की मशालों में मसीह के आने तक हमेशा विश्वास का तेल भरकर रखना चाहिए। लेकिन कभी–कभी हम बिना यह जाने कि हमारे पास कितना तेल है, सोचते हैं कि, ‘शायद मैंने पहले ही तेल तैयार करना समाप्त किया है।’ समझदार कुंवारियां तब तक हमेशा अपने तेल की जांच करती हैं जब तक दूल्हा न आए। जब तक हम विश्वास का पर्याप्त तेल तैयार न करें, तब तक हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। इस सत्य को अपने मन में रखते हुए, हमें यह देखने के लिए खुद को जांचने की जरूरत है कि हमारे पास अब कितना तेल है, सोचना चाहिए कि कहीं हमारे पास सिर्फ मशालें तो नहीं हैं, ताकि हम दूल्हे के आने से पहले पांच समझदार कुंवारियों की तरह विश्वास के तेल को तैयार कर सकें।
जिनका विश्वास खत्म हो जाता है, वे पहले अपने विश्वास के जीवन से ऊब जाते हैं। कभी–कभी उनकी स्वर्ग की आशा फीकी पड़ती है, वे अक्सर कुड़कुड़ाते और शिकायत करते हैं, और वे सत्य पर भी संदेह करते हैं या फिर सुसमाचार का प्रचार करने की इच्छा को खो देते हैं। दूसरी ओर, जो विश्वास के तेल से भरे होते हैं, वे कभी भी अपने विश्वास के लक्ष्य को नहीं छोड़ते।
जिनकी रक्षा परमेश्वर की सामर्थ्य से विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आनेवाले समय में प्रगट होनेवाली है, की जाती है… उससे तुम बिन देखे प्रेम रखते हो, और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो, जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है; और अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् आत्माओं का उद्धार प्राप्त करते हो। 1पत 1:5–9
हमारे विश्वास का अंतिम लक्ष्य है, हमारी आत्माओं का उद्धार प्राप्त करना। लेकिन लगता है कि हम में से कुछ सदस्य विश्वास के मार्ग पर चलते हुए उद्धार से कहीं अधिक ध्यान बाहरी चीजों पर देते हैं। उद्धार के अलावा दूसरी चीजों की अपेक्षा करना गलत है। यह एक कारक है जो हमारे विश्वास को कमजोर बनाता है। जैसे परमेश्वर ने कहा, “मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा,” वैसे ईमानदार विश्वास के बिना किया गया कार्य आगे बुरा परिणाम लाता है।
यदि हम आत्माओं को बचाने की इच्छा रखे बिना परमेश्वर के वचनों का प्रचार करने की कोशिश करें, तो हम बस झंझनाती हुई झांझ होंगे(1कुर 13:1)। हमें हमेशा स्वर्ग की आशा करनी चाहिए और अपने मनों को अपने विश्वास के प्रतिफल, यानी अपनी आत्माओं के उद्धार पर लगाना चाहिए। सिर्फ तब ही हम ऐसे आनन्दित और मगन होंगे, जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है। चाहे हम किसी भी स्थिति में क्यों न हों, आइए हम हमेशा आगे अपने उद्धार के लक्ष्य को देखते हुए, सिय्योन के सदस्यों का उद्धार के सही मार्ग पर मार्गदर्शन करते हुए और अपने आसपास के सभी लोगों के उद्धार के लिए प्रयास करते हुए अपने विश्वास को दृढ़ बनाए रखें।
जहां विश्वास होता है, वहां अकल्पनीय अद्भुत चीजें होती हैं। यीशु ने अपने कार्य के द्वारा व्यक्तिगत रूप से हमें दिखाया कि यदि हमारे पास दृढ़ विश्वास हो तो हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं।
जब यीशु वहां से आगे बढ़ा, तो दो अंधे उसके पीछे यह पुकारते हुए चले, “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर!” जब वह घर में पहुंचा, तो वे अंधे उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूं?” उन्होंने उससे कहा, “हां, प्रभु!” तब उसने उनकी आंखें छूकर कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।” और उनकी आंखें खुल गईं। मत 9:27–31
यीशु उठकर अपने चेलों समेत उसके पीछे हो लिया। और देखो, एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, पीछे से आकर उसके वस्त्र के आंचल को छू लिया। क्योंकि वह अपने मन में कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूंगी तो चंगी हो जाऊंगी।” यीशु ने फिरकर उसे देखा और कहा, “पुत्री ढाढ़स बांध; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।” अत: वह स्त्री उसी घड़ी चंगी हो गई। मत 9:19–22
यीशु ने दो अंधे मनुष्यों से जो यीशु की शक्ति के द्वारा चंगाई की खोज कर रहे थे, कहा “क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूं?” यीशु ने उनसे यह जानने के लिए पूछा कि क्या वे सच्चे विश्वास के साथ चंगाई मांग रहे हैं या नहीं। उन्होंने विश्वास के साथ जवाब दिया, “हां, प्रभु!” और यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिए हो।” तब चमत्कारिक ढंग से उनकी दृष्टि ठीक हो गई। एक स्त्री ने जिसे लहू बहने का रोग था, यीशु की शक्ति का अनुभव किया और उद्धार पाया, यह भी मसीह के प्रति उसके विश्वास के द्वारा हुआ। वे अद्भुत चमत्कार जो दो अंधे मनुष्यों और लहू बहानेवाली स्त्री के साथ हुए, वाकई उनके अंदरूनी विश्वास के परिणाम थे।
बाहरी परिस्थिति से अधिक महत्वपूर्ण चीज हमारा अंदरूनी विश्वास है। मैंने इस सत्य को उस समय और भी अधिक गहराई से महसूस किया जब मैं हाल ही में नेपाल के चर्चों में गया। नेपाल हिमालय पर्वतमाला के बीच स्थित है। उसकी जनसंख्या लगभग 3 करोड़ है, जो कोरिया से कम है। लेकिन नेपाल में बहुत से चर्च हैं; सिय्योन पूरे देश में स्थापित हुए हैं। नेपाल के सदस्य इससे संतुष्ट नहीं हैं। उनके पास पड़ोसी देशों में भी प्रचार करने की योजना है। मैं सुसमाचार के काम के प्रति उनके जोश से बहुत चकित हो गया, और जब मैंने सभी सुसमाचार के सेवकों को स्वर्ग की आशा से भरे हुए देखा, तो मेरा हृदय तेजी से धड़का। गरीब परिस्थितियों में भी उन्होंने दृढ़ विश्वास के साथ सब कुछ किया। इसलिए परमेश्वर ने उन्हें सुसमाचार के ऐसे अद्भुत परिणाम पाने की अनुमति दी।
हमारे पास भी, सिर्फ उद्धार पर अपना ध्यान केंद्रित करके स्वर्ग की ओर दौड़ने के लिए काफी मजबूत विश्वास होना चाहिए। हम में से कुछ सदस्य सोच सकते हैं कि जब उनका वातावरण और परिस्थिति बेहतर हो जाए तब उनका विश्वास बढ़ सकेगा। मगर, विश्वास की दुनिया बाहरी परिस्थिति के कारकों से बिल्कुल प्रभावित नहीं होती। जब यहोशू और इस्राएलियों ने यरीहो नगर पर कब्जा किया, वहां नगर की ऊंची व मजबूत दीवारें और ऊंचे व भारी भरकम निवासी जैसी बाहरी परिस्थितियां थीं। लेकिन विश्वास की दुनिया में वे सभी गिर गए। यह अंदरूनी विश्वास है जो बाहरी परिस्थिति बदलता है; विश्वास बाहरी परिस्थितियों के अनुसार नहीं बदलता।
यदि हमारे पास विश्वास है, तो हम अवश्य ही परमेश्वर की भविष्यवाणियों को पूरा होते हुए देखेंगे और हर समय आत्मिक आनन्द का अनुभव करेंगे। विश्वास हमें परमेश्वर की शक्ति को महसूस करने का अवसर देता है, इसलिए हम विश्वास में और अधिक मजबूत बन सकते हैं। दूसरी ओर, यदि हमारा विश्वास कमजोर होता है, तो हम आत्मिक आनन्द का अनुभव करने के लिए अवसरों को खो देते हैं, और हमारा विश्वास ठंडा पड़ता है। आखिरकार, हमारी बाहरी परिस्थिति नहीं, लेकिन हमारा अंदरूनी विश्वास ही मायने रखता है।
जो किसान चाहता है, वह गेहूं है न कि भूसी। कच्चे फलों की कटनी नहीं की जा सकती। इसलिए परमेश्वर इंतजार कर रहे हैं कि हम आत्मिक रूप से विश्वास से भरे हुए अच्छे फल बनने के लिए परिपक्व होंगे।
जो मैं तुम से अन्धियारे में कहता हूं, उसे तुम उजियाले में कहो; और जो कानों कान सुनते हो, उसे छतों पर से प्रचार करो। किनसे मत डरना? जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है। मत 10:27–28
यीशु ने हमें सिखाया कि हमें उनसे डरने के बजाय जो शरीर को घात करते हैं पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, परमेश्वर का भय मानना चाहिए जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकते हैं, और उन पर विश्वास करना चाहिए। आइए हम विश्वास के महत्व के बारे में मसीह की दूसरी शिक्षा पर नजर डालें।
भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिसमें गूंगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था… मैं ने तेरे चेलों से कहा कि वे उसे निकाल दें, परन्तु वे निकाल न सके।” यह सुनकर उसने उनसे उत्तर देके कहा, “हे अविश्वासी लोगो, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूंगा? और कब तक तुम्हारी सहूंगा? उसे मेरे पास लाओ।”… उसने उसके पिता से पूछा, “इसकी यह दशा कब से है?” उसने कहा, “बचपन से।” उसने इसे नष्ट करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है? यह क्या बता है! विश्वास करनेवाले के लिये सब कुछ हो सकता है।” बालक के पिता ने तुरन्त गिड़गिड़ाकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं, मेरे अविश्वास का उपाय कर।” जब यीशु ने देखा कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, तो उसने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डांटा, “हे गूंगी और बहिरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूं, उसमें से निकल आ, और उसमें फिर कभी प्रवेश न करना।” तब वह चिल्लाकर और उसे बहुत मरोड़ कर, निकल आई; और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहां तक कि बहुत लोग कहने लगे कि वह मर गया। परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया… मर 9:17–29
एक व्यक्ति यीशु के पास यह कहते हुए आया, “यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर,” तब यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है? यह क्या बता है! विश्वास करनेवाले के लिये सब कुछ हो सकता है।” “यदि तू कर सकता है,” ये शब्द दिखाते हैं कि उसे यीशु पर कुछ संदेह था और पूरा विश्वास नहीं था। उसके कमजोर विश्वास पर अफसोस करके, यीशु ने उसे सिखाया कि संपूर्ण विश्वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है।
बाइबल में लिखा हुआ सारा इतिहास हमारे लिए जो आज रहते हैं, एक अच्छा सबक है। ऊपर की स्थिति में हमारे पास ऐसा संपूर्ण विश्वास होना चाहिए, जिससे हम यह कहने के बजाय “यदि तू कर सके, तो हमारा उपकार कर,” यह कहने के लिए सक्षम हो सकें, “मैं विश्वास करता हूं। कृपया बस आज्ञा दीजिए, ‘तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिए हो।’ ”
2016 की शुरुआत में दुनिया भर के हमारे भाइयों और बहनों ने 7 अरब लोगों को सुसमाचार का प्रचार करने के लिए एक साथ संकल्प किया। तब से हर देश और क्षेत्र में हमारे सभी चर्च माता के मन को रखते हुए, सभी लोगों को बचाने के लक्ष्य की ओर बलपूर्वक आगे दौड़ रहे हैं।
हमने पहले ही से भविष्यवाणी के वचन सुने हैं। फिर भी, यदि हम आलस्यपूर्ण ढंग से सोचें, ‘यह कब होगा?’ ‘यदि मैं न करूं, तो कोई और उसे करेगा,’ तो हमारे बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि हमने विश्वास का पर्याप्त तेल तैयार किया है। भले ही परमेश्वर ने हमें भविष्यवाणी के सुनिश्चित वचन दिए हैं, लेकिन यदि वे जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं, विश्वास में कमजोर हैं, तो परमेश्वर की भविष्यवाणियों के पूरा होने में देर होगी। दिन जो अब हमें दिए गए हैं, वे हमारे लिए विश्वास का पर्याप्त तेल तैयार करने का अवसर है। बाइबल स्पष्ट रूप से हमसे कहती है कि विश्वास के बिना परमेश्वर को प्रसन्न करना अनहोना है।
और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है; क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए कि वह है, और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है। विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ जो विश्वास से होता है। विश्वास ही से अब्राहम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे मीरास में लेनेवाला था; और यह न जानता था कि मैं किधर जाता हूं, तौभी निकल गया… विश्वास से सारा ने आप बूढ़ी होने पर भी गर्भ धारण करने की सामर्थ्य पाई, क्योंकि उसने प्रतिज्ञा करनेवाले को सच्चा जाना था। इब्र 11:6–11
बाइबल के सभी नायकों और नायिकाओं ने स्थिर विश्वास के साथ भविष्यवाणी किए गए परमेश्वर के कार्य को पूरा किया। “विश्वास” ही वह शब्द है जो उनके चरित्र के गुण को व्यक्त करता है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर का कार्य विश्वास के बिना नहीं किया जा सकता।
क्योंकि तुम्हें धीरज धरना आवश्यक है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ। “क्योंकि अब बहुत ही थोड़ा समय रह गया है, जब कि आनेवाला आएगा और देर न करेगा। पर मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, और यदि वह पीछे हट जाए तो मेरा मन उस से प्रसन्न न होगा।” पर हम हटनेवाले नहीं कि नाश हो जाएं पर विश्वास करनेवाले हैं कि प्राणों को बचाएं। इब्र 10:36–39
हमें हटनेवाले नहीं होने चाहिए कि नाश हो जाएं, पर विश्वास करनेवाले होने चाहिए कि आत्माओं को बचाएं। आइए हम हमेशा परमेश्वर से प्रार्थना करें और उस सुसमाचार के मिशन के लिए जिसे हमें अपने आसपास क्षेत्रों में और यहां तक कि दुनिया भर में करना है, स्थिर विश्वास और जोश को बनाए रखें।
इस पृथ्वी पर सब कुछ समय बीतने पर मुरझा जाता है और भूला दिया जाता है, लेकिन ऐसी दुनिया है जहां समय बीतने पर सब कुछ उज्ज्वलता से चमकता है। वह विश्वास की दुनिया है। जब हमारे हृदय विश्वास से भरे होंगे, तब बाहरी दुनिया बदलेगी, और बाइबल में भविष्यवाणी के वचन हमारी आंखों के सामने सच हो जाएंगे।
इससे डरने के बजाय कि हमारी मशालें तेल की कमी के कारण शायद बुझ जाएंगी, हमें समझदार बनना चाहिए जो पर्याप्त तेल तैयार करते हैं, ताकि जब दूल्हा आए, तब हम अपनी मशालों को जला सकें और आनन्द से भरकर दूल्हे का स्वागत कर सकें। दुनिया भर के सिय्योन के भाई–बहनें 7 अरब लोगों को प्रचार करने की परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए अब सुसमाचार के काम में खुद को समर्पित कर रहे हैं। मैं आप सभी सिय्योन के लोगों से कहना चाहूंगा कि भविष्यवाणी की पूर्णता के लिए पर्याप्त विश्वास के तेल को तैयार करते हुए हमें दिए गए सुसमाचार के मिशन को पूरा करें।