एक परिवार जो आपस में संवाद कर सकता है वह एक खुशहाल परिवार है!
बोलनेवाले को सुननेवाले के प्रति विचारशील रहना चाहिए, और सुननेवाले को बोलनेवाले को समझने की कोशिश करनी चाहिए। तब ही वे संवाद कर सकते हैं।
कई लोग कहते हैं कि वे विदेश जाने या विदेशियों से मिलने से डरते हैं क्योंकि वे उनके साथ संवाद नहीं कर सकते। शायद, संवाद करने में असमर्थ होने जैसी निराश युक्त बात कोई नहीं होगी। कभी-कभी, लोग एक ही भाषा में बोलने वाले व्यक्ति के साथ भी संवाद करने में असफल होने से व्यथित महसूस करते हैं। यदि वह व्यक्ति आपसे असंबंधित है, तो आप आसानी से उससे दूर रह सकते हैं; लोग स्वाभाविक रूप से किसी ऐसे व्यक्ति के करीब आते हैं, जिनसे वे संवाद कर सकते हैं और उन लोगों से दूर हो जाते हैं जिनसे वे संवाद नहीं कर सकते।

लेकिन, यदि वह व्यक्ति जिसके साथ आप संवाद नहीं कर सकते, आपके परिवार का सदस्य है, तो यह एक गंभीर समस्या है। इससे ज्यादा तकलीफदेह बात कुछ नहीं होगा कि जीवन भर एक ही घर में एक ऐसे व्यक्ति के साथ रहना जिसके साथ आप संवाद नहीं कर सकते हों। एक व्यक्ति हर शर्त को पूरा करने पर भी यदि आप उसके साथ संवाद नहीं कर पाते हों, तो एक जीवनसाथी के रूप में उसे स्वीकार करना आपके लिए कठिन होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि परिवार के सदस्यों के बीच सहज बातचीत खुशी का एक महत्वपूर्ण मानदंड है।
जब आप किसी अल्पभाषी परिवार को देखते हैं, तो आपस में बात करने की कोशिश न करने का कारण खासकर यह होता है कि “वे एक दूसरे से संवाद नहीं कर सकते।” जब लोग किसी के साथ संवाद नहीं कर पाते, तो वे बात नहीं करते। वास्तव में, एक परिवार जिसमें यह देखने के लिए तर्क होते रहते हैं कि कौन सही है और कौन गलत या अपनी राय आगे लाने की कोशिश होती रहती है, ऐसे परिवार से भी अधिक खतरनाक ऐसा परिवार है जिसने आपस में बात करना बंद कर दिया है।
माता-पिता और बच्चा जो संवाद करते हैं
“मां, मुझे लगता है कि खरगोश बीमार है। / तुम्हें प्रश्नोत्तरी में 100 अंक प्राप्त हुए या नहीं?// खरगोश छींक रहा है।/ क्या तुमने अपना होमवर्क पूरा कर लिया?// वह कोई गाजर भी नहीं खा रहा।/ पहले अपनी डायरी लिखो!” (Kim Mi-hye, Umbrella of a Baby Magpie, Changbi, 2005 – किम मि हे, बच्चा नीलकण्ठ पक्षी का छाता, चांगबी, 2005)
यह एक बच्चों की कविता है जिसका शीर्षक है, “उससे बातचीत करना कठिन है।” अगर हर बार उनकी बातचीत इस तरह ही होती है, तो बच्चे के मन में, उसकी मां की छवि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में अंकित हो जाएगी जिसके साथ वह बातचीत नहीं कर सकता, और वह अपनी मां से बातचीत का दरवाजा बंद कर देगा। अपने बच्चों पर बड़बड़ाते हुए, उन्हें अनुशासित करते हुए, या उनकी गलतियां बताते हुए, कई माता-पिता गलत समझते हैं कि वे अपने बच्चों के साथ बातचीत कर रहे हैं। बातचीत कोई भाषण नहीं है जो एक व्यक्ति को एकतरफा होकर दर्शकों के सामने बोलना है। बातचीत बिल्कुल टेबल टेनिस की तरह एक दूसरे के मन साझा करना है।
2016 में कोरिया में लिंग समानता और परिवार मंत्रालय द्वारा 1,000 माता-पिता और 635 प्राथमिक स्कूल के छात्रों के लिए किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, माता-पिता और बच्चे दोनों ने सोचा कि “जो माता-पिता अपने बच्चों की बात सुनते और उनके साथ बहुत बातचीत करते हैं” अच्छे माता-पिता हैं। सच्ची बातचीत की शुरुआत करने के लिए जो एक बच्चे को संतुष्ट कर सकती है, माता-पिता और बच्चे के बीच घनिष्ठता का निर्माण करना जरूरी है। यदि ठंडे माहौल में आप अपने बेटे से कहते हैं, “चलो बात करते हैं,” तो बच्चा घबरा जाएगा और अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर सकेगा।
एक साथ मिलकर कुछ करना माता-पिता और बच्चे के बीच घनिष्ठता स्थापित करने में सहायक होता है। चाहे वह व्यायाम हो या खेलकूद या एक साथ बाहर जाना हो, यदि आप एक साथ कुछ करते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से बात कर सकते हैं, और आप आरामदायक माहौल में बात कर सकते हैं। बच्चे के साथ संवाद करते समय, माता-पिता को सावधान रहना चाहिए कि वे ज्यादा बात न करें लेकिन बच्चे को अधिक बात करने का मौका दें। इसके अलावा, आपको ध्यान देना चाहिए कि अपने बच्चे को बात करने का मौका देने के बहाने से आप उससे पूछताछ न करें या बहुत अधिक सवाल न पूछें।
यह कहने के बजाय, “तुम्हें क्या हो गया है?” या “तुम्हें इस तरह करना चाहिए,” व्यक्त करें कि आप क्या सोचते हैं, आप कैसा महसूस करते हैं, या आप क्या चाहते हैं: “मुझे आशा है कि तुम शालीन कपड़े पहनो,” या “मैं चाहता हूं कि तुम चीजों को व्यवस्थित करो” या “जब तुम्हारे पास कोई शिकायत हो, तो नाराज होने के बजाय बेहतर होगा कि तुम इसे समझा सको।” ऐसा कहने से आप बहुत अधिक नरम तरीके से बात कर सकेंगे, जिससे सुनने वाले को कम प्रतिरोध प्राप्त होती है।

लेकिन, सिर्फ इसलिए कि आप एक ऐसे माता-पिता बनना चाहते हैं जो अपने बच्चे के साथ संवाद कर सकते हैं, बिना किसी रोक आपका बच्चा जो चाहता है वह करने देना सही बात नहीं है। आपको अपने बच्चे की इच्छा का आदर करना चाहिए, लेकिन जब गलत विचार या आचरण की बात आती है, तो उसकी दृष्टि के स्तर पर उसे सिखाना और अनुशासित करना चाहिए।
दरअसल, कोई भी माता-पिता नहीं हैं जो अपने बच्चे के साथ सही संवाद कर सकते। चूंकि एक बच्चा भी अपने विचारों से भरा एक इंसान है, तो कभी-कभी माता-पिता और बच्चों के आमना-सामना होना स्वाभाविक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी स्थिति में जहां माता-पिता का बच्चे के साथ सामना होता है, माता-पिता को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए, बच्चे के मन को समझना चाहिए और स्थिति को सुचारू रूप से हल करना चाहिए। बेशक, यह कहना आसान है। लेकिन, यदि आप इस विश्वास के साथ कोशिश करते रहें कि ऐसी कोई समस्या नहीं है जो बातचीत से हल नहीं हो सकती, तो वह दिन आएगा जब बच्चा कहेगा, “मैं मां(पापा) के साथ संवाद कर सकता हूं।”
पति और पत्नी जो संवाद करते हैं
A)
“मुझे लगता है कि सूप थोड़ा बेस्वाद है।”
“नमकीन खाना आपके लिए अच्छा नहीं है।”
“मैंने यह नहीं कहा कि मैं इसे नमकीन होना चाहता हूं। मैंने केवल कहा कि यह थोड़ा बेस्वाद है।”
“यह मेरे लिए बिल्कुल ठीक स्वाद है।”
“आपके लिए यह ठीक होगा, लेकिन मेरे लिए यह बेस्वाद है।”
“आप तो बस खाने में नखरेबाज हैं।”
“मैं बिल्कुल भी नखरेबाज नहीं हूं। और इसमें नखरेबाज होने वाली कोई बात नहीं है!”
“तो फिर आप अपने लिए खाना क्यों नहीं बनाते?”
B)
“हनी, मेरे लिए रात का खाना तैयार करने के लिए धन्यवाद।”
“कोई बात नहीं, कृपया खाइए।”
“सूप स्वादिष्ट है, लेकिन मुझे लगता है कि अगर आप इसमें थोड़ा और मसाला डाल देती तो यह और बेहतर हो जाता।”
“मैंने चखा और सोचा कि यह ठीक है लेकिन मुझे लगता है कि यह पर्याप्त नहीं था। क्या आप इसमें कुछ और मसाला चाहते हैं?”
“मुझे लगता है कि थोड़ा और सोय सॉस डालना अच्छा होगा।”
“हां? एक सेकंड रुकिए।”
“आपको तकलीफ देने के लिए मैं माफी चाहता हूं।”
“कोई बात नहीं। मैं अगली बार बेहतर बनाऊंगी।”
आपको क्या लगता है कि दोनों दंपति के बीच किसमें बेहतर संवाद है, A या B? दंपति A एक दूसरे के साथ अच्छे से संवाद नहीं कर पाता क्योंकि वे दोनों खुदगर्ज होकर बात कर रहे हैं। दंपति B के लिए हम कह सकते हैं कि वे एक दूसरे का सम्मान करते हैं और एक दूसरे के प्रति विचारशील रहते हैं। परिणामस्वरूप, चीज जो उन्हें टकराव की ओर ले जा सकती थी, वह प्यार और विश्वास का निर्माण करने के अवसर में बदल जाती है।

कई मामलों में, दंपति एक दूसरे के साथ तर्क करते हैं, यह इसलिए नहीं कि वे एक दूसरे से प्रेम नहीं करते, बल्कि इसलिए क्योंकि उनके पास एक अच्छा संवाद कौशल नहीं होता। एक कौशलहीन संवाद में, जब एक व्यक्ति अपना आपा खो देता है, तब ही वे लड़ने लगते हैं। जब उनका धैर्य अपनी सीमा तक पहुंच जाता है, यदि वे ऐसी व्यंग्यात्मक बात कहते हैं, “तुम हमेशा से ऐसे ही हो” या वे स्थिति को टालने की कोशिश करते हुए कहते हैं, “बात न करना बेहतर होगा,” तो उनकी बातचीत वहीं समाप्त हो जाती है।
जब आप आश्वस्त हो जाते हैं कि आपने कुछ भी गलत नहीं किया है, तो पीछे हटना मुश्किल हो जाता है। और यदि आप यह सोचते हुए बस दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व पर दोष लगाते रहें कि, ‘मेरा तो यह मतलब नहीं था। उसने इसे गलत तरीके से लिया। क्योंकि वह बहुत संवेदनशील है,’ तो इससे केवल बातचीत की ऊंची दीवार निर्माण हो जाएगी। सुनने वाला उस बात का न्याय करता है जो आपने कहा। यदि आपको लगता है कि, ‘चाहे मेरा इरादा तो अच्छा था, अगर सुनने वाले को बुरा लगा, तो इसमें मेरी गलती है,’ तो उस बात से पूरी तरह सहमत या संतुष्ट न होने पर भी आप स्वेच्छा से रिआयत कर सकते हैं।
किसी को समझने और विचारशील रहने का प्रयास भी प्रेम की श्रेणी में आता है। किसी भी स्थिति में, यदि आप आत्म-नियंत्रित रहें और कोमल स्वर में बातचीत करते रहें, तो आप और आपके जीवनसाथी का प्रेम और विश्वास गहरा हो जाएगा और आप एक दूसरे के साथ संवाद कर पाएंगे।
बोलने वाला और सुनने वाला
कुछ लोग सभी अतिरिक्त स्पष्टीकरणों को छांटते हुए आसानी से और सरलता से बात करना पसंद करते हैं, और सोचते हैं कि, ‘उसे समझाने के लिए इतना काफी होगा,’ जबकि कुछ लोग अपनी राय आगे लाने के लिए हर विवरण का उल्लेख करते हैं। पहले मामले में, ऐसा हो सकता है कि सुनने वाला बोलने वाले की बात और इरादे को न समझ सके क्योंकि बातचीत में बहुत से शब्द छांट दिए जाते हैं, बहरहाल दूसरे मामले में, सुनने वाला उब सकता है। बातचीत में, कभी आप बोलने वाले बनते हैं, तो कभी सुनने वाले। इसलिए, बोलने वाले को सुनने वाले के प्रति और सुनने वाले को बोलने वाले के प्रति विचारशील रहना चाहिए।
“जवाब-निर्धारित-तुम,” यह एक वाक्य है जो कभी कोरिया में लोकप्रिय था। इसमें नवशब्द अर्थ है कि, “जवाब पहले से ही निर्धारित है; जो तुम्हें करना है वह सिर्फ मुझे जवाब देना है।” दूसरे शब्दों में, भले ही आप दूसरे व्यक्ति की राय पूछ रहे हैं, लेकिन आप एक निश्चित जवाब सुनना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि पत्नी पूरे मन से भोजन बनाती है और अपने पति से पूछती है कि क्या वह खाना अच्छा है। इस मामले में, पत्नी सुनना चाहती है कि, “इसका स्वाद अच्छा है।”
यह कोई खराब परिस्थिति नहीं है। लेकिन, यदि आप हर बार अपने दिमाग में एक उत्तर निर्धारित करते हैं और अन्य सभी लोगों के उत्तरों को गलत मानते हैं, तो आप उनके उत्तरों से सहमत नहीं हो पाएंगे और आपके विचारों पर और भी अधिक दृढ़ता से जोर देंगे। यदि आप केवल वही कहते हैं जो आप कहना चाहते हैं और केवल वही सुनते हैं जो आप सुनना चाहते हैं, तो सच्चा संवाद करना मुश्किल होगा। क्या हमारे पास यह सोचने की आदत नहीं है, “मैं हमेशा सही हूं,” और दूसरे व्यक्ति की बातों पर ध्यान देने के बजाय उसकी बातें काटकर, आप इसके बारे में नहीं सोचते कि आप आगे क्या बोलने वाले हैं?
लोगों का कहना है कि सबसे आदर्श परिवार एक ऐसा परिवार है जो बातचीत न करने पर भी संवाद कर सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस तरह के परिवार को बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह कि वे एक दूसरे के मन पढ़ ले सकते हैं। जब तक इस तरह के एक आदर्श परिवार का गठन नहीं होता, तब तक हमें गलतियों और चूकों से गुजरना पड़ता है और निरंतर बातचीत के द्वारा विश्वास और एक बंधन का निर्माण करना चाहिए।
यदि हम अहंकार से भरे रहें, तो दूसरों के लिए हमारे मन में कोई जगह नहीं होगी। तब हम पूरी तरह से उबाऊ और जिद्दी इंसान बन जाते हैं। जिस तरह सुषिर वाद्य जो अंदर से खाली हैं उनमें से हवा गुजरने पर एक स्पष्ट और गहरी ध्वनि बनती है, वैसे ही संवाद की कोमल प्रतिध्वनि बनाने के लिए लोगों के हृदयों में भी ऐसी जगह होनी चाहिए जिसमें अन्य लोग आना-जाना कर सकते हैं।
हमें अपने मन को खाली करने का अभ्यास करने की आवश्यकता है क्योंकि लोग जिनके साथ हम संवाद कर सकते हैं पहले से ही निर्धारित नहीं हुए, लेकिन यह इस बात पर निर्भर होता है कि हम उनके साथ खुद को अनुकूल बनाने की कितनी कोशिश करते हैं।