सिय्योन की महिला पुरोहित कर्मचारी का खुशहाल मार्ग
ठाणे, भारत से एंजेला बेरी

मैं अपने परिवार में सबसे बड़ी बेटी हूं, और मेरे माता-पिता ने शमूएल नबी की माता के समान हमेशा मुझे परमेश्वर को अर्पित करना चाहा। मेरे माता-पिता ने मुझे धर्मशास्त्रीय स्कूल में भेज दिया ताकि मैं पादरी बनकर परमेश्वर की सेवा कर सकूं।
सत्य प्राप्त करने से पहले, मेरा सपना पादरी बनना था जो परमेश्वर की सेवा करता है। भारत में, पादरियों को समाज में मान्यता मिलती है; उन्हें ईसाइयों के द्वारा परम जीव के रूप में सम्मान किया जाता और सेवा की जाती है। जब उनका किसी निश्चित संगठन में पंजीकृत होता है तो उन्हें अधिक आमदनी की गारंटी दी जाती है। इससे ज्यादा, मुझ में परमेश्वर की सेवा करने का जुनून था। लेकिन मुझे इस बात पर गर्व था कि मैं एशिया के दूसरे सबसे बड़े धर्मशास्त्रीय स्कूल में जाती हूं, इसलिए ज्ञान के कारण अनजाने में मेरा मन अभिमानी हुआ होगा।
जब मैं बैचलर डिग्री को पूरा करके पादरी बनने की अंतिम परीक्षा देने वाली थी, तब मेरे जीवन में सबसे बड़ी बात घटित हुई। उस समय, मेरे माता-पिता ने मुझे फोन किया और स्वर्गीय पिता और माता के बारे में सत्य बताया।
मैं आश्चर्यचकित हो गई। पहले तो मुझे सत्य को हजम करने में बहुत तकलीफ हुई, लेकिन मेरे माता-पिता विश्वास में बहुत दृढ़ थे। इसलिए वे मुझे सत्य के विषय में और अधिक जानने देने के लिए ट्रेन से मुंबई ले गए। मुंबई सिय्योन में सत्य का अध्ययन करने का बाद, मैं परमेश्वर के वचन का विरोध नहीं कर सकी। बाइबल की सारी भविष्यवाणियों ने मुझे इस बात को लेकर प्रबुद्ध किया कि जहां मैं तब तक थी वह सच्चा चर्च नहीं था।
आखिरकार, स्वर्गीय पिता और माता के अनुग्रह से मैं परमेश्वर की संतान बन गई। सत्य प्राप्त करने से पहले, मेरा एक मात्र सपना पादरी बनकर परमेश्वर की सेवा करना था। इसके अलावा मेरा कोई दूसरा सपना नहीं था। लेकिन सत्य ग्रहण करने के बाद, मुझे स्वर्ग का मार्ग दिखाने के लिए मैं पिता और माता के प्रति आभारी थी, इसलिए मैंने स्वयं को परमेश्वर के प्रति समर्पित करने और जहां कहीं पिता और माता मेरा नेतृत्व करें उनके पीछे हो लेने का निर्णय लिया।
एक दिन, मैंने सिय्योन में डीकनेस, जो महिला पुरोहित कर्मचारी थी, को सुंदर मुस्कान के साथ भोजन तैयार करके सदस्यों की सेवा करते देखा। उस समय से मैं उसे देखती रही, वह बहुत व्यस्त दिखती थी और सिय्योन में बहुत काम करती थी, लेकिन वह हमेशा मुस्कुराती थी। सुबह से शाम तक वह अपने चेहरे पर निरंतर मुस्कान और उत्साह रखती थी। इसने मुझ तक बहुत ही अच्छा और सकारात्मक संदेश पहुंचाया।
उस डीकनेस को देखकर मैं सेवा करने का सही अर्थ समझ सकी और महिला पुरोहित कर्मचारी होने का सपना संजोने लगी। चाहे मैं पादरी नहीं बन सकी, मैंने सोचा कि मैं सुंदर महिला पुरोहित कर्मचारी बन सकूंगी जो सदस्यों के प्रति समर्पित है। उस पल तक मेरे मन में अहंकार था जो धर्मशास्त्रीय स्कूल जाते समय मुझ में हुआ करता था, लेकिन उस कोरियाई डीकनेस ने, जो नम्रता और मुस्कान से सिय्योन में भाई-बहनों की सेवा करती थी मुझे वास्तव में बदल दिया।
मैंने वर्ष 2015 में विदेशी मुलाकाती दल की सदस्य के रूप में पहली बार कोरिया का दौरा किया था। दरअसल, कोरिया का दौरा करने से पहले मैंने महिला पुरोहित कर्मचारियों के बलिदान को समझा नहीं था। कोरिया मेरी सोच से भी अधिक साफ और सुंदर था। मैं इस बात का एहसास कर सकी कि कोरियाई महिला पुरोहित कर्मचारियां माता के हृदय के साथ भारत में भारतीय लोगों को बचाने के लिए आई थीं। यदि वे भारत न आई होती तो वे अधिक सुविधापूर्ण परिस्थितियों में सुसमाचार के कार्य कर सकती। लेकिन वे माता की शिक्षाओं का पालन करते हुए भारत में गर्मियों और उमस से भरे मौसम में स्वयं का बलिदान कर रही हैं।
मैंने कोरियाई महिला पुरोहित कर्मचारियों से बहुत सी चीजें सीखीं। मैंने उन चीजों को अभ्यास में लाना शुरू कर दिया। यह वास्तव में सुसमाचार के परिणाम पर एक बड़ा प्रभाव डाला था, और मैं इसे साझा करना चाहूंगी।
वर्ष 2017 में, हमें सिय्योन की स्थापना के लिए कानपुर जाने का अवसर मिला। वास्तव में, मैं इसे लेकर बहुत नकारात्मक दृष्टिकोण रखती थी। क्योंकि मेरे पास स्थिर धारणा था कि वहां के लोग अपने स्वयं के रीति-रिवाजों के कारण परमेश्वर को शायद ही ग्रहण करेंगे।
मैंने अपने मन की बात को एल्ड्रेस के साथ साझा किया, और उसने मुझे बहुत ही अनुग्रहपूर्ण और सकारात्मक शब्दों से प्रोत्साहित किया, और मैंने हिम्मत बांधी।
उसने कहा, “दुनिया में 7 अरब रत्न हैं जो पिता और माता ने हमें दिए हैं; हमें बस वहां जाकर उन्हें ढूंढ़ना है। हम नहीं जानते कि हमारे खोए हुए भाई-बहन कौन हैं। लेकिन यदि हम स्वर्गीय माता के उत्सुक मन से, जिन्होंने अपनी संतानों को खो दिया है, उन्हें ढूंढ़ने का प्रयास करें तो हम निश्चय ही हमारे प्रिय भाई-बहनों को खोजने में सक्षम हो जाएंगे।”
उसके शब्दों ने मेरी स्थिर धारणा को सकारात्मक रूप से बदल दिया। कानपुर पहुंचने तक मेरी धारणा पूरी तरह बदल चुकी थी। वहां, पिता और माता ने वास्तव में हमें बहुत से अच्छे फलों की आशीष दी। चार महीनों तक हमारे कानपुर में रहने के दौरान, परमेश्वर के अनुग्रह से हर हफ्ते बपतिस्मा जारी रहा।
तब से, उस एल्ड्रेस और पादरी ने कानपुर का दौरा किया, जो मुंबई से 23 घंटे की दूरी पर है। उनके कानपुर आने का कारण केवल सदस्यों को गर्मा-गरम भोजन परोसना था। उस समय, एक धर्मशास्त्रीय छात्र सिय्योन का संचालन कर रहा था, और इसलिए हर सब्त के दिन पर सदस्यों को खुद के लिए भोजन ले आना पड़ता था।
कानपुर के सदस्य पादरी और एल्ड्रेस को देखकर द्रवित हो गए, जो प्रेम की माता के सदृश थे, और उनका विश्वास तेजी से बढ़ने लगा। वे सुसमाचार के अच्छे सेवक बन गए, और यहां तक कि वे नम्रता और सेवा करने के मन से परमेश्वर के लिए सेवाओं में भाग लेने लगे। उन्हें देखकर मैं वास्तव में समझ सकी कि पुरोहित कर्मचारी की भूमिका क्या है।
शुक्र है कि मैं महिला पुरोहित कर्मचारी बन गई। मुझ में अभी भी बहुत सी चीजों की कमी है। लेकिन पिता और माता मेरे आस पास की आत्मिक बड़ी बहनों के माध्यम से हमेशा मेरी सहायता कर रहे हैं। मुझे एक पादरी का रास्ता छोड़ना पड़ा, लेकिन मैं अब बहुत खुश हूं। क्योंकि मैं चर्च ऑफ गॉड में महिला पुरोहित कर्मचारी बन गई। यदि मैं वहां जहां उद्धार नहीं है पुरोहित कर्मचारी के मार्ग पर चलती, तो शारीरिक रूप से मेरी सेवा की जाती। जब कभी मैं इस बात पर विचार करती हूं कि परिणाम क्या होता, मेरे दिल में सिहरन पैदा होती है। मुझे सच्चे प्रेम से परमेश्वर के लोगों की सेवा करने के मार्ग पर चलने देने के लिए मैं परमेश्वर का सच में धन्यवाद करती हूं।
हमारे चर्च के शुरुआती दिनों में हमारी स्वर्गीय माता ने भी महिला पुरोहित कर्मचारी की भूमिका निभाई। अब तक भी माता सेवा करती हैं और मुस्कुराते हुए अच्छे उदाहरण दिखा रही हैं। मैं महिला पुरोहित कर्मचारी की इस आशीष को कभी भी गंवाना नहीं चाहती। सिय्योन के रसोई घर में, मैं 7 अरब लोगों को प्रचार करने में सहायता करूंगी। मुस्कुराते हुए और स्वादिष्ट भोजन बनाते हुए, मैं सदस्यों को ऊर्जा दूंगी ताकि वे अच्छे फल उत्पन्न कर सकें। मुझे महिला पुरोहित कर्मचारी के पद पर अपनी भूमिका निभाने की अनुमति देने के लिए मैं माता को धन्यवाद देती हूं।