
यीशु मसीह के चेलों के चारों ओर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उनके साथ विवाद कर रहे हैं। यीशु ने इसे देखकर उसका कारण पूछा। तब भीड़ में से एक ने उत्तर दिया।
“हे गुरु, मैंने अपने पुत्र को आपके चेलों के पास लाया था, जिस पर एक दुष्टात्मा सवार है, और उनसे उस दुष्टात्मा को बाहर निकालने का अनुरोध किया था, परन्तु वे निकाल न सके।”
तब यीशु ने उसे अपने पास लाने को कहा। उसका शरीर मरोड़ने लगा और वह भूमि पर गिरकर मुंह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। तब यीशु ने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डांटा।
“हे गूंगी और बहिरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूं, उसमें से निकल आ, और उसमें फिर कभी प्रवेश न करना।”
तब वह दुष्टात्मा चिल्लाकर निकल आई और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहां तक कि बहुत से लोग कहने लगे कि वह मर गया। परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया।
“हम उसे क्यों न निकाल सके?”
चेलों के सवाल में यीशु ने उत्तर दिया।
“यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से नहीं निकाल सकती।”
प्रार्थना सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शक्ति लाने का मार्ग है। चूंकि प्रार्थना किए बिना हम कुछ भी पूरा नहीं कर सकते, इसलिए यीशु ने भोर के समय से प्रार्थना करने का नमूना दिखाया (मर 1:35)।
सुसमाचार के अंदर यदि जो चीज हम उत्सुकता से चाहते हैं, वह अभी तक पूरी नहीं हुई, तो पहले हमें अपने आपको जांचना चाहिए कि हमने परमेश्वर से पूरे हृदय से प्रार्थना की या नहीं। उन लोगों के लिए कुछ भी असंभव नहीं है जो हार माने बिना परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।