परमेश्वर के अनन्त राज्य में पहुंचने के लिए, हमें हमेशा अपने विश्वास को मज़बूत करना चाहिए, और अपने जीवन में स्वर्गीय पिता और माता की इच्छा को हमेशा पहला स्थान देना चाहिए। यदि हमने परमेश्वर के वचनों में से कोई वचन अब तक, न माना हो, तो पछताकर पूरी तरह से आज्ञाकारी रहना है।
सिय्योन में प्रत्येक व्यक्ति, जो इस युग में सुसमाचार का नबी है, अधिक महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से, परमेश्वर के सुसमाचार के कार्य में बाधाएं डाली जा सकती हैं, और एक मनुष्य के आज्ञा मानने से, परमेश्वर की आशीष और अनुग्रह के द्वारा सुसमाचार के कार्य में तेज़ी लायी जा सकती है।
बाइबल में इसका ठोस उदाहरण दिखाया गया है कि एक मनुष्य का आज्ञा मानना या एक मनुष्य का आज्ञा न मानना मानव–जाति पर बहुत बड़ा प्रभाव लाता है।
“जैसे एक मनुष्य के आज्ञा–उल्लंघन से अनेक पापी ठहराए गए, वैसे ही एक मनुष्य की आज्ञाकारिता से अनेक मनुष्य धर्मी ठहराए जाएंगे।” रो 5:19
रोमियों ग्रंथ के अध्याय 5 में, लिखा गया है कि आदम के आज्ञा न मानने के द्वारा पाप जगत में आया और मानव–जाति पर मृत्यु आई, लेकिन यीशु मसीह के आज्ञा मानने के द्वारा मानव–जाति को अनन्त जीवन दिया गया। परमेश्वर ने आदम को वर्जित फल खाने को मना किया, लेकिन आदम ने इसे खाकर आज्ञा नहीं मानी। उसके एक बार आज्ञा न मानने पर, ऐसा बुरा परिणाम निकला कि सभी लोगों पर मृत्यु आई।
“फिर यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह कहकर आज्ञा दी: … जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है–उस में से कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा।” उत 2:16–17
“ … उसने स्त्री से कहा, “क्या परमेश्वर ने सचमुच कहा है कि तुम इस वाटिका के किसी भी वृक्ष में से न खाना?” स्त्री ने सर्प से कहा, “वाटिका के वृक्षों के फल तो हम खा सकते हैं, परन्तु उस वृक्ष के फल में से जो वाटिका के बीचों–बीच है, परमेश्वर ने कहा है कि न तो उस में से खाना और न उसे छूना, नहीं तो मर जाओगे।” तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे! परमेश्वर तो जानता है कि जिस दिन तुम उसमें से खाओगे, तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी और तुम भले और बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के समान हो जाओगे।” जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने के लिए अच्छा, आंखों के लिए लुभावना, तथा बुद्धिमान बनाने के लिए चाहनेयोग्य है तो उसने उसका फल तोड़कर खाया, और साथ ही साथ अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया।” उत 3:1–6
परमेश्वर के दिए हुए वचनों को हमेशा मन में न रखने से, ऐसी स्थिति सामने आती है। शैतान ने मनुष्य को इतना लुभाया कि उसे वह फल, जिसे खाना परमेश्वर ने वर्जित किया, बहुत मीठा और मनमोहक लगा। शैतान ने इस तरह फुसफुसाया, “यदि तुम वह खाओगे, तो परमेश्वर के समान बुद्धिमान होगे और ज्ञान से भर जाओगे। सिर्फ़ एक बार चख लो।” यहीं से मनुष्य का पहला पाप शुरू हुआ।
आदम और हव्वा दोनों एक तन थे। इसलिए बाइबल वर्णन करती है कि एक मनुष्य के द्वारा, जो आदम था, पाप किया गया। तब परमेश्वर ने हमें क्या सिखाने के लिए, आदम का पाप बाइबल के आरंभ में लिखा है?
इससे हमें समझना चाहिए कि एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से मानव–जाति पर कितना बड़ा और बुरा प्रभाव आ सकता है। और पुराने समय में ऐसी घटना फिर घट गई जब यहोशू के सैनिक यरीहो नगर पर कब्जा करके, कनान देश में प्रवेश करने पर थे। उस समय एक मनुष्य, आकान के पाप करने के द्वारा, इस्राएल ऐ नगर के युद्ध में हार गए और कनान देश जाने का मार्ग बन्द किया गया।
एक मनुष्य के पाप करने से, सभी लोगों के जाने का मार्ग बन्द किया गया, और एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से, सभी मनुष्यों को मृत्यु होनी पड़ी। ऐसा इतिहास ठीक उदाहरण है, जिससे हमें महसूस होता है कि एक मनुष्य का आज्ञा मानना कितना महत्वपूर्ण है।
बाइबल कहती है कि आदम आने वाले का चिन्ह है।(रो 5:14) वास्तव में, आदम ऐसा चिन्ह था जो यीशु से बिल्कुल अलग था। आदम ने वर्जित फल खाकर आज्ञा न मानी, जिससे संसार में मृत्यु आई। लेकिन यीशु के अपना प्राण देने तक परमेश्वर की इच्छा पर आज्ञाकारी रहने से सभी मनुष्य अनन्त जीवन पा सके।
“ … अपनी देह में रहने के दिनों में मसीह ने उस से जो उसको मृत्यु से बचा सकता था उच्च स्वर से पुकारकर और आंसू बहा बहा कर प्रार्थनाएं और विनतियां कीं और आज्ञाकारिता के कारण उसकी सुनी गई। पुत्र होने पर भी उसने दुख सह सह कर आज्ञा पालन करना सीखा। वह सिद्ध ठहराया जाकर उन सब के लिए जो उसकी आज्ञा पालन करते हैं अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया, और परमेश्वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक नियुक्त किया गया।” इब्र 5:6–10
यीशु आज्ञाकारी रहने से, सभी मनुष्यों के लिए अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया। वह हमारे जैसे मनुष्य के रूप में आया, और उसने परमेश्वर के आज्ञाकारी रहने का उदाहरण दिखाया। उसने दुख उठाने से पहले, गतसमनी बाग में यह प्रार्थना की कि ‘हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाएऌ तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो’, ताकि वह केवल परमेश्वर की इच्छा का आज्ञाकारी हो सके।
इस तरह, मृत्यु सामने आने पर भी, मसीह ने पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा का पालन किया। जबकि सभी लोगों को एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से मरना पड़ा था, एक मनुष्य के आज्ञा मानने से सभी लोग अनन्त जीवन पा सके।
“अपने में वही स्वभाव रखो जो मसीह यीशु में था, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी परमेश्वर के समान होने को अपने अधिकार में रखने की वस्तु न समझा। उसने अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया कि दास का स्वरूप धारण कर मनुष्य की समानता में हो गया। इस प्रकार मनुष्य के रूप में प्रकट होकर स्वयं को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु वरन् क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया और उसको वह नाम प्रदान किया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि यीशु के नाम पर प्रत्येक घुटना टिके, चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे, और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए प्रत्येक जीभ अंगीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है। … जिस प्रकार तुम सदैव आज्ञा पालन करते आए हो, … मेरी अनुपस्थिति में डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का काम पूरा करते जाओ।” फिलि 2:5–12
परमेश्वर के सभी सच्चे वचन इतने अनमोल हैं कि हमें अपने प्राण देने तक इनका पालन करना चाहिए। यीशु ने 2 हज़ार वर्ष पहले, इस धरती पर आकर आज्ञापालन करने का उदाहरण दिखाया।
जैसे यीशु प्राण देने तक आज्ञाकारी रहा, वैसे ही हमें भी एलोहीम परमेश्वर के सभी वचनों के आज्ञाकारी रहना चाहिए और उद्धार के कार्य में भाग लेना चाहिए। जब हम आज्ञाकारी रहेंगे, तब परमेश्वर हमें बहुत ऊंचा करेगा। परमेश्वर ने यीशु को इतना ऊंचा किया कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। उसी प्रकार वे जो पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं, सब से ऊपर होकर प्रशंसा, आदर और महिमा पाएंगे। इसलिए बाइबल में यह कहा गया है कि जब हम स्वर्ग जाएंगे, तब राजकीय याजक के रूप में सदा राज्य करेंगे।(1पत 2:9 संदर्भ)
यदि हम परमेश्वर के वचन को पूरी रीति से न मान लें, तब हम ऐसी महिमा और सम्मान बिल्कुल नहीं पा सकते। इसलिए बाइबल हमें डरते और कांपते हुए हमारा उद्धार पूरा करने के लिए कहती है।
सबसे उत्तम विश्वास तभी बनता है जब हम पूरी रीति से आज्ञाकारी रहते हैं। लेकिन आदम और हव्वा के जैसे, यदि हम अपने विचार को परमेश्वर के विचार से आगे रखें, तब परमेश्वर के प्रति हमारा विश्वास हमारे मन से हटने लगेगा। अत: हम परमेश्वर की इच्छा को बिना डरे तोड़ देंगे।
हव्वा ने मन में सोचा कि ‘उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य भी है, तो क्या सच में मैं यह खाकर मरूंगी?’, ‘मैं जानती हूं कि परमेश्वर कृपालु है, ऐसी छोटी ग़लती से क्या सच में मरूंगी?…’ इस तरह अपना विचार सामने रखने के कारण, वह परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं कर पायी। और उसके आज्ञा न मानने से, सिर्फ़ एक मनुष्य नहीं, पर सभी मनुष्यों पर मृत्यु लाई गई।
“ … दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच–विचार छोड़कर यहोवा की ओर फिरे, और वह उस पर दया करेगा, हां, हमारे परमेश्वर की ओर, क्योंकि वह पूरी रीति से क्षमा करेगा। यहोवा कहता है, “मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न ही तुम्हारे मार्ग और मेरे मार्ग एक जैसे हैं। क्योंकि मेरे और तुम्हारे मार्गों में और मेरे और तुम्हारे सोच–विचारों में आकाश और पृथ्वी का अन्तर है। … उसी प्रकार मेरे मुंह से निकलनेवाला वचन होगा। वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, वरन् मेरी इच्छा पूरी करेगा और जिस काम के लिए मैंने उसको भेजा है उसे पूरा करके ही लौटेगा।” यश 55:6–11
परमेश्वर का वचन व्यर्थ नहीं है, और परमेश्वर का विचार मनुष्य के विचार से अलग है। इसलिए परमेश्वर ने कहा कि हम अपने सोच–विचार छोड़कर यहोवा की ओर फिरें। हमें अपने उस विचार को छोड़ना चाहिए जो परमेश्वर के वचन से बिल्कुल अलग है। जब हम अपने विचार छोड़ कर परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलेंगे, तब हम अवश्य ही परमेश्वर से आशीष और अनन्त जीवन पा सकेंगे।
जब हव्वा परमेश्वर के वचन से परिपूर्ण थी, तब उसे वर्जित फल देखने में भयानक और बदसूरत लगा। लेकिन जब उसने शैतान की बात सुनी और उसका मन सिर्फ़ अपने विचार से भर गया, तब उसे वर्जित फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य लगा। परमेश्वर और मनुष्य के विचार में इतना ज़्यादा अन्तर होता है। मनुष्य तो आगे की बात नहीं जानता, पर परमेश्वर सारी बातें जानता है जो आगे घटने वाली हैं। इसलिए परमेश्वर वह करने की आज्ञा नहीं देता जो हमारे लिए बुरा है।
जब कोई खुशी के साथ केवल वह काम करता है जो परमेश्वर ने करने की आज्ञा दी, और वह काम बिल्कुल नहीं करता जो परमेश्वर ने मना किया, चाहे वह देखने में अच्छा हो, तब स्वर्गदूत उसके सामने सिर झुकाएंगे। क्योंकि परमेश्वर के आत्मा के अनुसार उसके चलने से, उसका विचार और परमेश्वर का विचार मिलता है, और उसकी इच्छा और परमेश्वर की इच्छा मिलती है, इसी कारण स्वर्गदूत स्वीकार करेंगे कि उससे किए जाते सब कार्य परमेश्वर के वचन ही हैं।
आज्ञा न मानने वाले को मृत्यु दी जाती है, और प्राण देने तक आज्ञा मानने वाले को अनन्त जीवन दिया जाता है। एक आदमी भी महत्वपूर्ण है। जब एक आदमी, पिता और माता की इच्छा पर पूरी रीति से आज्ञाकारी रहे, तो सभी लोग जीवन के मार्ग पर चल सकेंगे, लेकिन एक आदमी के आज्ञा न मानने से सभी लोग ग़लत मार्ग की ओर भटक जाएंगे।
परमेश्वर ने कहा कि हम उसके अधीन रहकर उसकी आज्ञा मान लें। परमेश्वर के ऐसा कहने का मकसद यह नहीं है कि वह हमें अपने अधिकार में लेना चाहता है। परमेश्वर हमारे उद्धार के लिए, हमारी आत्मा की रक्षा के लिए सारी शिक्षाएं देता है।
“तेरा छुड़ानेवाला, इस्राएल का पवित्र अर्थात् यहोवा यों कहता है: “मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिए शिक्षा देता हूं और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग से तुझे ले चलता हूं। भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं पर ध्यान दिया होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरी धार्मिकता समुद्र की लहरों के समान होती, तेरा वंश बालू के समान होता और तेरी निज सन्तान उसके कणों के तुल्य होती, तथा उनका नाम मेरी उपस्थिति से न तो कभी काटा और न ही मिटाया जाता।” ” यश 48:17–19
यशायाह नबी के समय, इस्राएली न परमेश्वर की आज्ञा पर ध्यान देते थे और न ही आज्ञाकारी रहते थे। यह मुसीबत को उनके ऊपर लाने का कारण बना। बाइबल के इतिहास से हम समझते हैं कि सभी मुसीबतें परमेश्वर की आज्ञा न मानने का परिणाम हैं, और सारी आशीषें परमेश्वर की आज्ञा मानने का परिणाम हैं।
परमेश्वर हमें स्वर्ग में, जो अनन्त जीवन का स्थान है, लेकर जाना चाहता है, इसलिए वह प्रत्येक परिस्थिति में हमारी भलाई के लिए शिक्षा देता है, और जो हमें करना है, केवल उसे करने की आज्ञा ही नहीं, परन्तु स्वयं उसे करने के द्वारा उदाहरण देता है। सन्तान की भलाई के लिए, परमेश्वर ने बहुत सी आज्ञाएं दी हैं कि आज्ञाकारी रहो, प्रचार करो, एक दूसरे से प्रेम करो और शैतान का सामना करो।
“जब भी तुम्हारी आज्ञाकारिता पूरी हो जाए तो सब प्रकार की अवज्ञा को दण्डित करने के लिए हम तैयार हैं।” 2कुर 10:6
जबकि सन्तान परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानती है, यदि परमेश्वर आज्ञा न मानने वाले दूसरे लोगों को सज़ा दे, तो परमेश्वर अन्यायी कहलाएगा। अत: स्वर्ग में पहुंचने के लिए जो हमें अपनाना चाहिए, वह आज्ञापालन है। जब हमारी आज्ञाकारिता पूरी हो जाती है, तब परमेश्वर, जो धर्मी और न्यायी है, सुसमाचार का कार्य पूरा करने को तैयार है।
जितना ज़्यादा स्वर्ग जाने की आशा है, उतना ही हमें अपने पिछले दिनों की याद करते हुए, खुद को यह पूछना चाहिए, ‘क्या मैंने अब तक स्वर्गीय पिता और माता की सारी शिक्षाओं का सच्चे दिल से पालन किया है?, या ‘क्या मैं केवल उस शिक्षा का पालन करने में दिलचस्पी लेता था जो मुझे अच्छी लगती थी? और इसे छोड़कर दूसरी शिक्षाओं पर ध्यान नहीं दिया?’ चाहे छोटी बात हो, यदि वह परमेश्वर का वचन ही है, तो हमें इसका पालन करना चाहिए।
परमेश्वर ने शिक्षा दी है कि ‘सर्वदा आनन्दित रहो’, ‘भाइयों और बहनों को आपस में प्रेम करो और मेल–मिलाप से रहो’। तो हमें इस इच्छा पर पूरी तरह से आज्ञाकारी रहना चाहिए। यदि कोई ऐसा सोचे कि ‘मुझे इसका पालन करना मुश्किल लगता है, मैं इसे छोड़कर दूसरी शिक्षाओं का पालन करूंगा’, तो वह आदम और हव्वा के जैसा बनेगा जिन्होंने यह सोच कर वर्जित फल खाया कि ‘उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य भी है’, और यह परमेश्वर के विचार को अपने विचार से बदलने का बहाना है। जब हम अपने विचार को त्याग कर, परमेश्वर की इच्छा पर खुशी के साथ आज्ञाकारी रहें, तभी हम उद्धार पा सकेंगे।
144,000 परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, पृथ्वी पर से छुड़ाए जाएंगे। उनके बारे में परमेश्वर ने भविष्यवाणी की है कि वे मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलेंगे।
“फिर मैंने दृष्टि की, और देखो, वह मेमना सिय्योन पर्वत पर खड़ा था, और उसके साथ एक लाख चवालीस हज़ार व्यक्ति थे … वे सिंहासन के सम्मुख तथा चारों जीवित प्राणियों और प्राचीनों के सम्मुख एक नया गीत गा रहे थे। उन एक लाख चवालीस हज़ार के अतिरिक्त जो पृथ्वी पर से मोल लिए गए थे, कोई भी वह गीत नहीं सीख सकता था। ये वे हैं जिन्होंने अपने आप को स्त्रियों के साथ भ्रष्ट नहीं किया क्योंकि वे कुंवारे हैं। ये वे ही हैं जो मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं। ये परमेश्वर और मेमने के लिए प्रथम फल होने को मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। उन में झूठ नहीं पाया गया और वे निर्दोष हैं।” प्रक 14:1–5
पवित्र लोग परमेश्वर के वचन से खुश रहते हैं, और वे धन्यवादी मन से इसका पूरी रीति से पालन करते हैं। हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि कभी परमेश्वर की आज्ञा मानें, कभी न मानें, इससे हमें कोई मतलब नहीं है, परन्तु हमें मसीह के उदाहरण के जैसे, पूरी रीति से आज्ञाकारी रहना चाहिए। यदि ऐसा न करें, तो हमारी कठोरता और हठीले मन को न छोड़ने के कारण, हमें अनन्त सज़ा मिलेगी।
“तू उसकी कृपा, सहनशीलता और धैर्य–रूपी धन को तुच्छ जानता है, और नहीं जानता कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन–परिवर्तन की ओर ले आती है? परन्तु अपने हठीले और अपरिवर्तित मन के कारण तू परमेश्वर के प्रकोप के दिन के लिए और उसके सच्चे न्याय के प्रकट होने तक, अपने लिए क्रोध संचित कर रहा है।” रो 2:4–5
अब संसार के लोगों में खुद को हर चीज़ के केंद्र में रखने की प्रवृत्ति अधिक है। लोग स्वार्थी बनते जा रहे हैं। वे अपने आप से प्रेम करते हैं, और यदि कोई काम उनके विचार से थोड़ा सा अलग हो, तो वे वह काम करना पसन्द नहीं करते हैं। संसार में कठोरता और पछतावा नहीं करने वाला मन प्रबल होता जा रहा है।
यदि हम कोई भी काम अपने विचार के अनुसार करें, तो शैतान के बहकावे में आकर, बुरी चीज़ देखने में अच्छी लगेगी और सुनने में अच्छी लगेगी। परमेश्वर की शिक्षाएं मानना थोड़ी देर के लिए हमें नुकसान दे सकता है, लेकिन बाद में यह बहुत बड़ी आशीष बनकर हमारे पास लौट आएगा।
जंगल में 40 वर्षों की अवधि के दौरान, इस्राएली जिन्होंने आज्ञा न मानी, प्रतिज्ञा किए हुए कनान देश में प्रवेश नहीं कर सके, लेकिन जंगल में मर गए।
“उसने किनसे शपथ खाई कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश नहीं करने पाओगे? क्या उनसे नहीं जिन्होंने आज्ञा न मानी?” इब्र 3:18
जिस प्रकार आज्ञा न मानने वाले लोगों ने कनान देश में प्रवेश नहीं किया, उसी प्रकार परमेश्वर के विश्राम, स्वर्ग में आज्ञा न मानने वाले लोग नहीं जा सकेंगे। परमेश्वर से संसार विमुख हो रहा है, फिर भी हम अन्त तक, एलोहीम परमेश्वर का पालन करेंगे, और हम ऐसा संकल्प करेंगे कि पहले, मैं ही पूरी ईमानदारी से पूरे संसार में पवित्र आत्मा और दुल्हिन की शिक्षाओं का प्रचार करूंगा।
एक मनुष्य भी महत्वपूर्ण है। यदि हर एक आदमी पूरे संसार को आत्मिक गहरी नींद से जगाएगा, तब परमेश्वर के सभी प्रिय बच्चे ढूंढ़े जाएंगे। एक मनुष्य के आज्ञा न मानने के द्वारा, बहुत लोगों को मृत्यु की ओर ले लिया गया, और एक मनुष्य के आज्ञा मानने के द्वारा, बहुत लोगों को अनन्त जीवन की ओर ले लिया गया। इसलिए मैं निवेदन करता हूं कि आप ऐसा अनुग्रहमय विश्वास रखें कि जब एक मनुष्य परमेश्वर का वचन मानेगा, तब सभी लोग अनन्त जीवन की ओर वापस आ सकेंगे, और आप परमेश्वर की शिक्षाओं के आज्ञाकारी रहें।
जहां कहीं एलोहीम परमेश्वर जाते हैं, हम उनके पीछे हो लेते हैं। मैं आशा करता हूं कि सिय्योन के सदस्य परमेश्वर के हर एक वचन पर खुश और धन्यवादी मन से आज्ञाकारी रहें, और केवल परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए उसके पीछे चलने के द्वारा स्वर्ग का उद्धार पाएं।