शरद ऋतु में, किसान अपनी फसलों को और फलों को काटने के लिए, अपने पसीने की बून्दें गिराते हुए कड़ी मेहनत करते हैं। कड़ी मेहनत करने पर भी, वे अपने खलिहानों में एकत्रित हुईं फसलों के कारण बहुत खुश होते हैं। शरदकाल की कटनी के मौसम के खत्म होते ही, वे एक लम्बा शीतकालीन आराम लेते हैं। अब यह आत्मिक रूप से कटनी करने का समय है; हम आत्माओं को स्वर्गीय खलिहान में इकट्ठा कर रहे हैं और हम महसूस करते हैं कि पिताजी जल्दी ही आ रहे हैं। उनके आने की आस करते हुए, हमें परमेश्वर से मिलने के लिए संपूर्ण रूप से तैयार रहना चाहिए।
जो सांसारिक लालसाओं से भरे हुए हैं वे स्वर्ग की बातों को पसंद नहीं करते, जब कि जो पवित्र आत्मा से भरे हुए होते हैं वे अपनी लालसाओं को स्वर्गीय वस्तुओं की ओर लगाते हैं और सिर्फ उनमें ही दिलचस्पी लेते हैं। क्योंकि उनकी लालसाओं का स्तर अलग अलग है।
जो सांसारिक लालसाओं से भरे हुए होते हैं उनके पास स्वर्ग जाने की आशा नहीं होती; वे केवल दृश्यमान वस्तुओं को देखते हुए, पृथ्वी की वस्तुओं पर अपना मन लगाते हैं। इसलिए जब हम उन्हें स्वर्ग के बारे में आशा रखने के लिए कहते हैं, तो उन्हें वह सुनना अच्छा नहीं लगता। हालांकि, जो स्वर्ग जाने की आशा से भरपूर होते हैं वे परमेश्वर के वचनों को बार बार सुनने पर भी, उसमें अपनी दिलचस्पी नहीं खोते; हर रोज, देर रात तक परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते हुए वे खुशी के साथ उनको स्वीकार करते हैं। वे स्वर्ग में अपनी आशा रखते हैं और उत्सुकता से परमेश्वर के आने की आशा करते हैं। इसी कारण से वे पवित्र आत्मा का कार्य खुशी के साथ कर सकते हैं।
परमेश्वर के आगमन का दिन निकट आ रहा है। अब यह तैयार हो जाने का समय है। मान लीजिए कि एक पिता लम्बे अरसे के बाद घर वापस आ रहे हैं। उनकी सभी सन्तान, अपनी माता के साथ, खुशी के साथ पिता का स्वागत करने के लिए अपने आपको तैयार करती हैं।
उसी तरह से, हमें भी अपने स्वर्गीय पिताजी को ग्रहण करने के लिए तैयार होना चाहिए, जो जल्द ही आ रहे हैं। क्या होगा जब पिताजी लम्बे अरसे के बाद आ रहे हैं, उस समय यदि हम अपने आपको तैयार न करते हुए ऊंघने लगें और सो जाएं? यदि पिताजी हमें ऐसा करते हुए देखेंगे, तो उनको कैसा महसूस होगा? आइए हम नीचे के पद के द्वारा, पिताजी के आगमन के लिए संपूर्ण रूप से तैयार होने के लिए बुद्धि पाएं।
इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध लगने न देता। इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा। “अत: वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर–चाकरों पर सरदार ठहराया कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा की करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकार ठहराएगा। मत 24:42–47
ऊपर का वचन हमें, इन अंतिम दिनों में जीने वालों को दिखाता है कि हमें क्या करना चाहिए। बाइबल की भविष्यवाणियों के बारे में बात न करते हुए भी, विज्ञानी और भविष्यद्वक्ता समेत बहुत से लोग इस बात को मानते हैं कि इस संसार का अंत होने वाला है। यहां, बाइबल हमें कहती है कि हमें तैयार रहना चाहिए, क्योंकि मसीह, मनुष्य का पुत्र जल्दी ही आ रहा है।
मसीह का आगमन पास आ रहा है। परमेश्वर एक बुद्धिमान दास होने के बारे में बात करते हैं, जिसे उसके स्वामी ने अपने घर में दूसरे नौकर–चाकरों को समय पर भोजन खिलाने के लिए उन पर सरदार ठहराया। जो इन वचनों पर विश्वास करता है और पालन करता है वह एक विश्वासयोग्य मसीही है, जो मसीह को ग्रहण करने के लिए तैयार है।
उसके विपरीत, जो परमेश्वर के वचनों की उपेक्षा करता है और उनकी अवज्ञा करता है वह दुष्ट दास है; परमेश्वर उसे बाइबल के द्वारा अपनी इच्छा बताते हैं, लेकिन वह उसका पालन नहीं करता क्योंकि वह उनके वचनों पर विश्वास नहीं करता।
परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे कि मेरे स्वामी के आने में देर है। और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए–पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता हो, तब वह उसे भारी ताड़ना देगा और उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहां रोना और दांत पीसना होगा। मत 24:48–51
दुष्ट दास अपने मन में सोचता है, ‘मेरे स्वामी के आने में देर है।’ वह जब उसने सोचा भी नहीं था उस दिन आने वाले मसीह के द्वारा दंड पाने के योग्य है। हालांकि, बुद्धिमान दास अपने आप से कहता है, ‘मेरा स्वामी जल्दी ही आ रहा है,’ और जब मसीह आते हैं, तो खुशी के साथ उन्हें ग्रहण करने के लिए वह अपने आपको तैयार करता है।
हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि मसीह के आने में देर होगी, लेकिन हमें उनके आने की राह देखते हुए, हमेशा सतर्क और तैयार रहना चाहिए।
यीशु ने अपने स्वर्गारोहण के पहले जो शिक्षा दी थी उसके द्वारा आइए हम जानें कि ‘समय पर भोजन देने’ का अर्थ क्या होता है।
… भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हां प्रभु; तू तो जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” उसने उससे कहा, “मेरे मेमनों को चरा।” उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उनसे कहा, “हां, प्रभु; तू जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ कि उसने उससे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा।” यूह 21:12–17
यीशु ने तीन बार पतरस से कहा, “मेरी भेड़ों को चरा।” उनके वचनों को ध्यान से सोचने के द्वारा हम जान सकते हैं कि चराने के तीन स्तर होते हैं: “मेरे मेमनों को चरा,” “मेरी भेड़ों की रखवाली कर,” और “मेरी भेड़ों को चरा।”
सबसे पहले, हमें सत्य में लाए गए मेमनों को, यथायोग्य और आत्मिक भोजन खिलाना चाहिए। जैसे जैसे, मेमने बड़े होते जाते हैं तो हमें उनकी देखभाल भी करनी चाहिए। यीशु ने कहा, “यदि तुम सोचते हो कि स्थिर हो, तो चौकस रहो कि कहीं गिर न पड़ो।”(1कुर 10:12) इसलिए हमें उन आधी विकसित भेड़ों का अच्छे से ख्याल रखना चाहिए, जो विश्वास में कुछ तौर पर विकसित हो गई हैं। हमें उन विकसित भेड़ों को अब भी भोजन देते रहना चाहिए। इस तरह से, जो परमेश्वर की भेड़ों को समय पर आत्मिक भोजन देता है वही परमेश्वर का विश्वासयोग्य दास है जो परमेश्वर से प्रेम करता है, और उनका आशीर्वाद पाने के योग्य है।
स्वर्ग का राज्य हमारे और भी समीप आता जा रहा है। हमें परमेश्वर के वचनों पर ध्यान देना चाहिए और मसीह को ग्रहण करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार होना चाहिए।
मनुष्य को “परिश्रम करने वाला पशु” कहा जाता है। उसका परिश्रम करने का मूल कारण अपना पेट भरना होता है; और वह, एक परिवार का प्रतिनिधि होने के तौर पर, अपने माता–पिता और सन्तानों को संभालने के लिए काम करता है।
आत्मिक परिश्रम करने का उद्देश्य भी, शारीरिक परिश्रम के समान ही, “खिलाना” है।
बुद्धिमान और विश्वासयोग्य दास ऐसा मनुष्य है जो परमेश्वर से प्रेम रखता है। प्रेम भरे हृदय के साथ, वह परमेश्वर की भेड़ों के लिए प्रार्थना करते हुए उनको जीवन का भोजन, यानी परमेश्वर के वचन खिलाता है। जब मसीह अपने आगमन के समय उसे कड़ी मेहनत करते देखेंगे, तो वह एक सबसे बुद्धिमान मनुष्य माना जाएगा।
यह कोई मुश्किल कार्य नहीं है। चाहे हमारी परिस्थिति कैसी भी हो, हम में से हर कोई यह कार्य कर सकता है। हमें परमेश्वर के अपने प्रेमी जनों को सौंपे इस कार्य को करने के लिए अपना सबसे उत्तम प्रयास करना चाहिए।
हे स्वामियो, अपने अपने दासों के साथ न्याय और ठीक ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है। प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहो। और इसके साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो कि परमेश्वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें… कुल 4:1–3
यीशु ने हमें सतर्क रहने को और खास तौर पर परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए कहा है कि प्रचार का द्वार खुल जाए। जब परमेश्वर की भेड़ें इकट्ठी होती हैं, तो हमें उन्हें भोजन खिलाना चाहिए और उनकी देखभाल करनी चाहिए; यहां तक कि उनके बड़े हो जाने के बाद भी हमें लगातार प्रेम के साथ उन्हें भोजन खिलाते और उनकी देखभाल करते रहना चाहिए। यही परमेश्वर से प्रेम करना है। यही वह रास्ता है जिसके द्वारा हम परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को दिखा सकते हैं।
“रोमियो और जूलियट” शेक्सपियर का एक मशहूर नाटक है। उसमें एक दृश्य है जहां रोमियो के दोस्त उसे ढूंढ़ते हुए आते हैं लेकिन उसे नहीं खोज पाए; क्योंकि जूलियट से मोहब्बत होने के बाद, वह अपने दोस्तों के साथ न रहते हुए, सिर्फ जूलियट को देखने की कोशिश करता रहता था। प्रेम में गिरने के बाद, रोमियो बदल गया था। इस तरह से, प्रेम एक व्यक्ति के साधारण रवैये और व्यवहार में बदलाव लाता है। यदि कोई परमेश्वर से प्रेम करता है, तो उसका रवैया बदल जाता है। प्रचार करना परमेश्वर से प्रेम करने का एक रास्ता है।
मसीह यीशु के अच्छे योद्धा के समान मेरे साथ दु:ख उठा। जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फंसाता… जिसके लिये मैं कुकर्मी के समान दु:ख उठाता हूं, यहां तक कि कैद भी हूं; परन्तु परमेश्वर का वचन कैद नहीं। इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूं, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में है अनन्त महिमा के साथ पाएं। 2तीम 2:3–10
पौलुस ने परमेश्वर के वचनों के द्वारा बहुत सी आत्माओं को बचाने के लिए सब कुछ सहन किया और खुशी के साथ सब पीड़ाओं को सहा। वह बाइबल का एक महान व्यक्ति है जिसने परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को अभ्यास में लाया था। पौलुस के पास ऐसा एक जोशीला हृदय था, और आज बहुत से लोग उसके विश्वास और विचारों के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं। ऐसे उत्साही व्यक्ति को परमेश्वर जीवन का मुकुट देते हैं।
परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा… पर तू सब बातों में सावधान रह, दु:ख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर। क्योंकि अब मैं अर्घ के समान उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है। मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं वरन् उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं। 2तीम 4:1–8
प्रेरित पौलुस सच में एक बुद्धिमान व्यक्ति था। उसने परमेश्वर से प्रेम किया और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए उसने पूरे दिल से अपने आपको समर्पित कर दिया। इसलिए जब उसने अपनी मृत्यु के दिन को पास आते हुए जाना, तो वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सका कि स्वर्ग में उसके लिए एक धार्मिकता का मुकुट तैयार किया गया है।
जब वह अपनी दौड़ को पूरा करने पर था, तब उसने खुशी व्यक्त की कि स्वर्ग में जीवन का मुकुट उसका इंतजार कर रहा है। हमें परमेश्वर के आगमन की राह देखते हुए, समय और असमय तैयार रहकर, सुसमाचार का प्रचार करते हुए उसके उदाहरण का पालन करना चाहिए।
मसीह ने हम से कहा है, “मेरी भेड़ों को चरा,” और हमें प्रार्थना करने को कहा है कि परमेश्वर प्रचार करने के द्वारों को खोल दें, और एक प्रचारक का कार्य करने को कहा है। इस कार्य को किए बिना, हम परमेश्वर के प्रेम को नहीं समझ सकते।
यदि हम 1,44,000 को ढूंढ़ने के प्रयासों में सहभागी नहीं होते, या 1,44,000 किसी और के द्वारा खोजे जाते हैं, तो हम परमेश्वर के प्रेम को महसूस नहीं कर सकते। केवल हमारे खुद के परिश्रम और बलिदान के द्वारा पैदा हुए फल के द्वारा ही हम यह समझ सकते हैं कि प्रत्येक आत्मा कितनी ज्यादा मूल्यवान है, और सच में परमेश्वर के उद्धार देनेवाले प्रेम के लिए उन्हें धन्यवाद दे सकते हैं। आइए हम नीचे की छोटी सी कहानी के द्वारा परमेश्वर के प्रेम के बारे में विचार करें।
एक धनवान किसान था जिसका पुत्र अपने दिन लगभग कुछ भी फलप्रद कार्य न करते हुए बिताता था। वह किसान अपने पुत्र के विषय में चिन्तित था, क्योंकि वह उसकी पूरी सम्पत्ति का वारिस होने वाला था और उसको संभालने वाला था। यदि वह अपनी वर्तमान दशा में ही बना रहे, तो जल्द ही वह अपने पिता की सम्पत्ति को गंवा दे सकता था और निर्धन हो सकता था।
एक दिन पिता ने अपने पुत्र को अपने पास बुलाया और उससे कहा, “यदि तू अपने खुद के पैसे नहीं बनाएगा, तो मैं अपनी सम्पत्ति तुझे नहीं दूंगा। मैंने अपने पूरे जीवन में उस सम्पत्ति को जमा करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की है। मैं वह तुझे दूं और तू उसे गंवा दे, उससे बेहतर है कि मैं उसे किसी और को दे दूं।”
वह अपने पिता के कठोर वचनों को सुनकर हैरान रह गया, और कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सका। तब उसकी माता ने, जो हमेशा उसकी तरफदारी करती थी, उसे चुपके से अपने पास बुलाया और उसे दस सिक्के दिए। उसने उससे पूरा दिन बारह घुमने के लिए कहा और शाम को घर वापस आने पर अपने पिता से ऐसा कहने को बताया कि वे पैसे उसने कमाए हैं।
अगले दिन जैसा उसकी माता ने उसे कहा था, वह बाहर गया और पूरा दिन खेला कूदा। शाम को वह घर वापस आया और अपने पिता को दस सिक्के देते हुए कहा कि वह उसने खुद कमाए हैं। तब उसके पिता ने चिल्लाकर उससे कहा, “क्या सच में ये पैसे तू ने खुद कमाए हैं?” उसने उन सिक्कों को भट्ठी में फेंक दिया। जब पुत्र भावशून्यता से इस बात को देखता रहा, तो उसके पिता ने उस पर दया न करते हुए उसे खूब पीटा। जब पुत्र अपनी माता के पास गया, तो उसने उसे सांत्वना दी और उसे ऐसा कहते हुए पांच सिक्के दिए, “तुम्हारे पिता को इस बात पर विश्वास करने में परेशानी हुई होगी कि तुमने दस सिक्के कमाए, क्योंकि अपने पूरे समय आलसी थे। इसलिए, ऐसा कहना कि इस बार मैं ने पांच सिक्के कमाए।”
अगले दिन भी, वह पूरा दिन खेला कूदा, और शाम को घर वापस आया। उसने अपने पिता को यह कहते हुए कि उसने आज ये कमाए हैं, पांच सिक्के दिए। तब उसके पिता ने ऐसा बोलते हुए उन पैसों को भी भट्ठी में डाल दिया, “ये भी तुम्हारी मेहनत से कमाए पैसे नहीं हैं, है न?” जब उसने अपने पुत्र को भावशून्य दृष्टि से देखते हुए देखा, तो उसे और भी ज्यादा गुस्सा आया और उसने अपने पुत्र को और भी ज्यादा निर्दयी रूप से लकड़ी से पीटा।
वह रोते हुए अपनी माता के पास गया, लेकिन वह घबरा गई थी, और उसने कहा, “तुम्हारे पिता को घोखा देना नामुमकिन है। जाओ और खुद मेहनत करो। यदि तुम कड़ी मेहनत करके खुद पैसे नहीं कमाओगे, तो तुम्हारे पिता अपनी सारी सम्पत्ति किसी और को दे देंगे।”
परिस्थिति की गंभीरता को जानकर, पुत्र अगले दिन काम करने के लिए गया। उसने पूरा दिन काम किया और दो सिक्के कमाए। तब वह खुशी के साथ घर वापस आया और अपने पिता को दो सिक्के दिए। तब पिता ने उन्हें भी भट्ठी में फेंक दिया। वह आश्चर्यचकित हो गया, और उसने हाथ जलने के दर्द के बावजूद जल्दी से उन सिक्कों को भट्ठी में से बाहर निकाल दिया।
तब उसके पिता का चेहरा चमकने लगा। अपने पुत्र की ओर मुस्कुराते हुए उसने कहा, “यह सच में वो पैसे हैं जो तू ने कमाए हैं। कोई शायद ही कभी पसीने से कमाए पैसों का मूल्य कम नहीं समझता।”
उस पिता के अपने पुत्र के प्रति हृदय के द्वारा, हम परमेश्वर के उनकी प्रिय सन्तानों के प्रति हृदय को समझ सकते हैं, कि परमेश्वर ने हमें प्रचार करने का कार्य क्यों सौंपा है।
लोग जिससे वे प्रेम करते हैं उसके लिए सब प्रकार की पीड़ाओं को सहन करते हैं। यदि हम सच में परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, तो हमें उनके प्रति अपने प्रेम को अपने कार्यों में लाना चाहिए। आइए हम आत्माओं की जीवन के मार्ग की ओर अगुआई करते हुए, उन्हें बचाने के संपूर्ण प्रेम का अभ्यास करें।
यह आत्मिक कटनी का समय है। हमने मसीह के प्रेम को समझा है जिन्होंने प्रायश्चित्त के दिन हमारे पापों के लिए प्रायश्चित्त किया; और हमने झोपड़ियों के पर्व पर वर्षा के समान पवित्र आत्मा की आशीष पाई है। अब, आइए हम अपने आपको बहुत से फल पैदा करते हुए, और सिय्योन के भाइयों और बहनों को समय पर भोजन देते हुए मसीह के आगमन के लिए तैयार करें।