संसार में रहते हुए अच्छे शिक्षक से मिलना, सच में बड़ी आशीष की बात है। उसी तौर पर, हम सब से अधिक आशीषित लोग कहलाए जाएंगे, क्योंकि हम एलोहीम परमेश्वर से मिले हैं जो हमारे जीवन के सच्चे शिक्षक हैं और अनन्त स्वर्ग की ओर हमें ले जाते हैं।
हमारे सच्चे शिक्षक, परमेश्वर केवल सन्तान की आत्माओं का उद्धार करने के लिए इस धरती तक भी आए और उन्होंने दुखमय जीवन जिया है। वे सताए गए हैं और उन्हें दुख दिया गया है, फिर भी उन्होंने अपना मुंह नहीं खोला और मनुष्यों के ठट्ठे, अपमान और निन्दा चुपचाप सहे हैं। परमेश्वर के धैर्य और बलिदान के कारण हमारी आत्माएं चंगी हुईं और हम ने उद्धार पाया है। हम परमेश्वर के इस अनुग्रह के लिए आभारी हैं। आइए हम सोचने का समय लें कि मसीह के पीछे चलने वालों के रूप में, हमें किस विश्वास के साथ मसीही जीवन जीना चाहिए।
साधारण रीति से, लोग बड़े मन वालों को ऐसा कहते हैं कि ‘दिल गहरा है’। गहरा दिल वाला हमेशा आत्मसंयम रखने और विचारवान होने के कारण, किसी से भी नहीं चूक जाता है, और उसके साथ रहते हुए बढ़ावा मिलने के कारण, सहजता से उसके बग़ल में हमेशा लोग बसना चाहते हैं।
एक बार मैंने ‘गहरा कुंआ’ नामक एक लेख पड़ा। उसमें लिखा था कि यदि कोई जानना चाहे कि कुंआ कितना गहरा है, तो कुंए के अन्दर पत्थर फेंके, तब तुरन्त उस गहराई को जान सकेगा। वह पत्थर जो छिछले कुंए के अन्दर फेंका गया, उसके कुंए के तल से टकरा जाते ही, शोर मच जाता है। परन्तु वह पत्थर जो गहरे कुंए के अन्दर फेंका गया, उसे तल तक जाने के लिए लंबा समय लगता है, इसलिए कुंए से शोर नहीं, बल्कि गहरी गूंज देर तक रहती है।
उसी तरह से, इंसान के मन की गहराई भी दूसरों की बोली गई बात से नापी जा सकती है। यदि कोई दूसरों की नकारात्मक बात सुनते ही सरलता से उत्तेजित होगा और डगमगाएगा, तो उससे यह प्रमाणित है कि उसके मन की गहराई छिछली है। लेकिन गहरा मन वाला दूसरों की कही गई बातों पर सरलता से प्रतिक्रिया नहीं करता और उसे धीरे धीरे स्वीकार करता है। ऐसे गहरे व बड़े मन के कुंए के बग़ल में, लोग बसने की इच्छा करते हैं और वहां प्यास बुझा कर नया प्रोत्साहन पाते हैं।
गहरा विश्वास लेने के लिए, सब से पहले हमारा मन ही गहरा होना चाहिए, क्योंकि मन, जो गहरा नहीं है, उसमें विश्वास भरना कठिन होता है।
प्राचीन काल में, जिन्होंने परमेश्वर से आशीष पाई थी, उन पूर्वजों का विश्वास भी इस तरह गहरे कुंए के समान था।
“विश्वास के बिना उसे प्रसन्न करना असम्भव है, क्योंकि जो कोई परमेश्वर के पास आता है, उसके लिए यह विश्वास करना आवश्यक है कि वह है, और अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है। विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय तक दिखाई नहीं देती थीं, चेतावनी पाकर भय के साथ अपने परिवार के बचाव के लिए जहाज़ बनाया। इस प्रकार उसने संसार को दोषी ठहराया, और उस धार्मिकता का उत्तराधिकारी हुआ जो विश्वास के अनुसार है। विश्वास ही से इब्राहीम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसे स्थान को चला गया जो उसे उत्तराधिकार में मिलने वाला था। वह नहीं जानता था कि मैं कहां जा रहा हूं, फिर भी चला गया। विश्वास ही से वह प्रतिज्ञा के देश में परदेशी होकर रहा, अर्थात् परदेश में इसहाक और याकूब के साथ जो उसी के समान प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे, तम्बुओं में रहा। वह उस स्थिर नींव वाले नगर की प्रतीक्षा में था जिसका रचने और बनाने वाला परमेश्वर है…।” इब्र 11:6–19
नूह जिसने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार लंबे समय तक जहाज़ बनाया, उसने आसपास में भिन्न प्रकार की निन्दा और ठट्ठे होते हुए भी, अन्त तक परमेश्वर की इच्छा का पालन किया। इससे वह जलमग्न के समय पूरे परिवार को बचा पाया। इब्राहीम भी किसी मामले में भी हमेशा परमेश्वर के वचन के अनुसार पालन करता था, यहां तक कि जब परमेश्वर ने एकलौते पुत्र इसहाक को होमबलि करके चढ़ाने की आज्ञा दी, उसने परमेश्वर की इच्छा सोच कर वचन को माना, जिससे वह विश्वास का पूर्वज कहलाया।
उनका विश्वास ऐसा छिछला नहीं था कि इंसान की बात से हिलाया जाता है। किसी भी तरह की मुश्किल परिस्थिति व मामले में उनका विश्वास गहरे कुंए के जैसा नहीं डगमगाया। इस कारण वे परमेश्वर को सचमुच प्रसन्न कर सकते थे और उनके परिवार वाले भी बचाए गए थे।
उन विश्वास के पूर्वजों के समान, हमें भी गहरा विश्वास रखना चाहिए। जो आसपास के लोगों की छोटी बातों पर डगमगाए जाते और विचलित हो जाते हैं, उनका विश्वास तो छिछला है, और वे स्वयं को भी और दूसरे को भी नहीं सम्भाल सकते। इस्राएली छ: लाख पुरुष जो मिस्र से निकल गए थे, वे अन्त में कनान देश में प्रवेश नहीं कर पाए और जंगल में नष्ट हो गए। यह कारण भी उनके विश्वास की गहराई से संबंधित है।
“हे भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनभिज्ञ रहो कि हमारे सभी पूर्वज बादल की अगुवाई में चले और सब के सब समुद्र के बीच से पार हुए। सब ने उस बादल और समुद्र में मूसा का बपतिस्मा लिया, सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया, और सब ने एक ही आत्मिक जल पिया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे जो उनके साथ चलती थी, और वह चट्टान मसीह था। परन्तु फिर भी उनमें से अधिकांश से परमेश्वर प्रसन्न नहीं हुआ– वे जंगल में मर कर ढेर हो गए।” 1कुर 10:1–5
कनान देश की ओर बढ़ रहे इस्राएलियों में से अधिकांश से परमेश्वर प्रसन्न नहीं हुआ। जब हम इसे इब्रानियों अध्याय 11 के वचन के साथ देखें, तब हम जान सकेंगे कि वे गहरा विश्वास नहीं रखते थे, इसी कारण से उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न नहीं किया। आसपास की परिस्थिति से बहुत आसानी से वे हिल जाते थे, और वे परमेश्वर के विरोध में शिकायत करने और कुढ़ने के कारण नाश किए गए।
“ये बातें हमारे लिए उदाहरण ठहरीं कि हम भी बुरी बातों की लालसा न करें, जैसे कि उन्होंने की थी। और मूर्तिपूजक न बनो जैसे कि उनमें से कुछ थे, जैसा लिखा है, “लोग खाने–पीने को बैठे, और खेलने–कूदने को उठे।” और न हम व्यभिचार करें, जैसे कि उनमें से बहुतों ने किया– और एक दिन में तेईस हज़ार मर गए। और न हम प्रभु को परखें, जैसे कि उनमें से बहुतों ने किया– तथा सर्पों द्वारा नाश हुए। न तुम कुड़कुड़ाओ, जैसे कि उनमें से बहुतों ने किया– और नाश करने वाले के द्वारा नाश किए गए। ये बातें उन पर उदाहरणस्वरूप हुर्इं, और ये हमारी चेतावनी के लिए लिखी गईं जिन पर इस युग का अन्त आ पहुंचा है। अत: जो यह समझता है कि मैं स्थिर हूं, वह सावधान रहे कि कहीं गिर न पड़े।” 1कुर 10:6–12
उस समय, परमेश्वर ने मिस्र देश में दस चमत्कार किए थे और लाल समुद्र को विभाजित किया था।
इस्राएलियों ने अपनी आंखों से परमेश्वर की ऐसी सामर्थ्य को देख लिया था। लेकिन उन्हें गहरा विश्वास नहीं था, इसलिए छोटी सी असुविधा पर उनका विश्वास जल्दी डगमगा जाता था। वे परमेश्वर द्वारा किए गए हर प्रकार के चमत्कार और आश्चर्यकर्म का अनुभव करने पर भी, थोड़ी देर की भूख व प्यास को न सह पाए, और जल्दी ही यह कहते हुए कुड़कुड़ाने लगे कि “तुम तो हमको इस जंगल में इसलिए ले आए हो कि हम परेशान रहें।”
कुड़कुड़ाने वाले, शिकायत करने वाले, परखने वाले और मूर्तिपूजक कनान देश में प्रवेश न कर पाए, बल्कि सब जंगल में नाश हो गए। आज, उनके जैसे हम भी परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा पापमय संसार से छुड़ाए जाकर विश्वास के जंगल पर चल रहे हैं। फिर भी, यदि हम आसपास की अनचाही परिस्थिति या एक अप्रिय बात पर डगमगाते और घबराते हैं, तो हम उन इस्राएलियों के बराबर होंगे। अब भी, परमेश्वर भिन्न परिस्थितियों और मामलों में हमें रखते हुए जांच कर रहा है कि हमारे विश्वास की गहराई कितनी है।
सिय्योन के सभी परिवारों को गहरा विश्वास रखना चाहिए। चाहे उन दिनों जब आप ने शुरू में विश्वास किया, बहुत कुछ कमियां थीं, फिर भी मसीही जीवन में जितना ज्यादा अनुभव बढ़ता जाता है, उतना ही आपका विश्वास गहरा होता जाता है।
हमें ऐसा गहरा कुंआ दिया गया है जो नापा नहीं जाता। यह उद्धार का कुंआ है जहां से जीवन का जल लगातार बह निकलेगा।
“..“…देखो, परमेश्वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूंगा और भयभीत न होऊंगा, क्योंकि यहोवा परमेश्वर मेरा बल और मेरे गीतों का विषय है, और वह मेरा उद्धार बन गया है।” अत: तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतों से जल भरोगे। और उस दिन तुम कहोगे, “यहोवा का धन्यवाद करो, उसके नाम से प्रार्थना करो। सब जातियों में उसके कार्यों का वर्णन करो, इसकी घोषणा करो कि उसका नाम अति महान् है।” भजन गाकर यहोवा की स्तुति करो, क्योंकि उसने प्रतापमय कार्य किए हैं, यह समस्त पृथ्वी पर प्रकट हो। हे सिय्योन के निवासियो, जयजयकार करो और ऊंचे स्वर से आनन्द मनाओ, क्योंकि इस्राएल का पवित्र तुम्हारे मध्य महान् है।” यश 12:1–6
यह उद्धार का कुंआ इतना गहरा होता है कि किसी भी किस्म का सूखा पड़ने पर भी, हम यहां से दिन प्रतिदिन पानी ला सकते हैं। यहां से लाए गए जीवन के जल से हम अपने पूरे मन भरेंगे।
“वह अनोखा दिन होगा जिसे यहोवा ही जानता है। न दिन होगा न रात। परन्तु ऐसा होगा कि संध्या–समय उजियाला होगा। फिर उस दिन यह भी होगा कि जीवन का जल यरूशलेम से बह निकलेगा। उसका आधा भाग पूर्वी सागर की ओर तथा आधा भाग पश्चिमी सागर की ओर बहेगा। वह ग्रीष्म और शीत दोनों ऋतुओं में बहता रहेगा।” जक 14:7–8
यह उद्धार का कुंआ जिससे हर मौसम में लगातार जीवन का जल बह निकल कर, पश्चिमी सागर की ओर तथा पूर्वी सागर की ओर बहता है, यरूशलेम हमारी स्वर्गीय माता है।(गल 4:26) स्वर्गीय माता ने स्वर्ग की खोई हुई सन्तान को ढूंढ़ने के लिए कठोर दुखों को झेला है और संसारी तूफान से थोड़ा सा भी हिले बिना, बहुत ही गहरे कुंए के जैसा सब कुछ को सह लिया है। सचमुच माता ऐसे जीवन के जल का स्रोत है जिससे बार–बार पानी निकालने पर भी सदा के लिए बहता रहता है।
इस युग में, यरूशलेम से लगातार बह निकल रहा जीवन का जल, सभी आत्मिक प्यासों की आत्मा में, जो संसार से आत्मिक प्यास बुझाने के लिए आते हैं, ताज़गी भरता है और उनकी अगुवाई अनन्त स्वर्ग की ओर करता है।
“…भवन की दहली के नीचे से पूर्व की ओर जल बह रहा था, क्योंकि भवन का मुख पूर्व की ओर था। और जल भवन की दाहिनी ओर तथा वेदी की दक्षिणी ओर से नीचे बह रहा था…।जब वह पुरुष हाथ में नापने का फीता लेकर पूर्व की ओर निकला तो उसने एक हज़ार हाथ नापा। वह मुझे जल में से ले गया और जल टखने तक था। उसने फिर एक हज़ार हाथ नापा और मुझे जल में चलाया तो जल घुटनों तक था। उसने फिर से एक हज़ार हाथ नापा और मुझे जल में चलाया, तो जल कमर तक था। उसने फिर एक हज़ार हाथ नापा और पानी बढ़कर ऐसी नदी बन गया कि मैं चल न सका, अर्थात् तैरने योग्य पानी, ऐसी नदी जिसे पार नहीं किया जा सकता था…। “यह जल पूर्वी क्षेत्र की ओर बहता है ओर वहां से अराबा होकर समुद्र की ओर बहता है और समुद्र में मिल जाता है, और समुद्र का जल मीठा हो जाता है। और फिर ऐसा होगा कि जहां जहां यह नदी बहती है, वहां वहां बहुत झुण्ड में रहने वाले हर प्रकार के प्राणी जीवन पाएंगे। वहां अत्यधिक मछलियां पाई जाएंगी, क्योंकि यह जल जहां जहां जाता है वहां का जल मीठा हो जाता है। अत: जहां जहां यह नदी पहुंचेगी वहां वहां सब कुछ जीवित रहेगा…।नदी के तट पर दोनों और खाने के लिए सब प्रकार के वृक्ष उगेंगे। उनके पत्ते मुर्झाएंगे नहीं और उनके फल समाप्त नहीं होंगे। वे हर महीने फलते रहेंगे क्योंकि उनको सींचने वाला पानी पवित्रस्थान से बहता है, उनके फल भोजन के लिए और पत्ते चंगाई के लिए काम आएंगे।” यहेज 47:1–12
यरूशलेम से बह निकलता जीवन का जल बहुत ही गहरी–गहरी नदी बन कर समुद्र में मिल जाता है, और मुर्दा समुद्र को जिन्दा करता है। अभी जब ऐसी भविष्यवाणी के अनुसार पाँच महासागरों और छह महाद्वीपों में बहे यरूशलेम माता के जीवन के जल सब जातियों को जागृत कर रहे हैं, तब हमारे मन के कुंए भी, जो हम प्रतिदिन जीवन के जल से भरते हैं, अधिक गहरे होते जाना चाहिए। यरूशलेम माता की सन्तान के रूप में, यदि हमारे मन स्वर्गीय पिता और माता के जैसे हों, तब हमारे मन के कुंए भी अधिक गहरे हो सकेंगे, और हम गहरा विश्वास रख सकेंगे, और हम अपने कुंए से पानी निकाल कर प्यासी आत्माओं को देने का कर्तव्य पूरा कर सकेंगे।
हमें ऐसा आदमी न होना है जो दूसरे के एक छोटा सा पत्थर फेंकते ही, तुरन्त प्रतिक्रिया करता है और बड़ी हलचल मचाता हुआ अपना छिछला मन दिखाता है, बल्कि एलोहीम परमेश्वर की ऐसी सन्तान बनना है जिन्होंने संसार की सारी जातियों को पुन: जीवित करने के लिए गहरा मन लिया है। यदि हम यरूशलेम माता की शिक्षा के अनुसार पलते–बढ़ते हों, तो हमें माता के जैसे गहरे मन का कुंआ बनना चाहिए, ताकि हम हजारों की भी और दस हजारों की भी प्यास बुझा सकें।
प्रेरित पतरस ने इस पर ज़ोर दिया है कि जो भविष्य में स्वर्गीय रूप में बदल कर ईश्वरीय दुनिया जाएंगे, उन्हें इस धरती पर अपने स्वभाव को परिवर्तित करके ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी होना चाहिए।
“क्योंकि उसने इन्हीं के कारण हमें अपनी बहुमूल्य और उत्तम प्रतिज्ञाएं दी हैं, जिससे कि तुम उनके द्वारा उस भ्रष्ट आचरण से जो वासना के कारण संसार में है, छूट कर ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाओ। इसी कारण से प्रयत्नशील होकर, अपने विश्वास में सद्गुण तथा सद्गुण में ज्ञान, और ज्ञान में संयम, संयम में धीरज और धीरज में भक्ति, तथा अपनी भक्ति में भ्रातृ–स्नेह, और भ्रातृ–स्नेह में प्रेम बढ़ाते जाओ। क्योंकि यदि ये गुण तुम में बने रहें तथा बढ़ते जाएं तो हमारे प्रभु यीशु मसीह के पूर्ण ज्ञान में ये तुम्हें न तो अयोग्य और न निष्फल होने देंगे…।इसी प्रकार हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के अनन्त राज्य में प्रवेश के लिए तुम्हारा बड़ा स्वागत होगा।” 2पत 1:4–11
जो अपने सद्गुण में ज्ञान, संयम, धीरज, भक्ति, भ्रातृ–स्नेह और प्रेम बढ़ाता है, उसका विश्वास गहरा होता जाएगा और वह संसारी चीजों व तूफान से भी नहीं हिल जाएगा। नूह और इब्राहीम जिन्होंने गहरे कुंए के जैसा गहरा विश्वास लिया था, उन विश्वास के पूर्वजों के कार्य को बताते हुए, परमेश्वर ने हम से निवेदन किया है कि ईश्वरीय स्वभाव के सहभागियों का जो गहरा मन है उसे लें।
हमारा मन यरूशलेम माता के गहरे मन के समान होना चाहिए, जिससे कि हम गहरा विश्वास रख सकें और उस शुद्ध जीवन को जीने के द्वारा, जो पिता और माता ने हमें सिखाया है, भला काम करके परमेश्वर के महान् गुणों को प्रकट कर सकें।(1पत 2:9–12 संदर्भ)
आप को छोटी–छोटी बातों पर क्रोधित और गुस्सा नहीं होना चाहिए, कहीं ऐसा मूर्ख न हो कि वह बड़ी इच्छा, जिसे कल आपने ली, आज पूरी करने में चूक जाएं। इसके बजाय, सिय्योन के सभी परिवारों को ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी होने का बड़ा पात्र होना चाहिए, ताकि हम उद्धार के कुंए से बहुत पानी लाएं जो संसार की सारी जातियों की प्यास बुझा सकते हैं।
इसके लिए, सब से पहले हमारे मन में परिवर्तन जरूरी है। आसपास की परिस्थिति व लोगों के परिवर्तित होने का इन्तजार नहीं करेंगे, परन्तु उससे पहले अपने आप को परिवर्तित करने की कोशिश करेंगे। यदि पहले एक आदमी ‘मैं’ बदलता है, तब संसार भी बदलता है। भीतरी स्वभाव के पूर्ण रूप से बदलने तक, आप को कई कठिनाइयों का सामना करना होगा, परन्तु संसार में बिना कोशिश के कुछ भी नहीं मिलता है। मूल्यवान और बहुमूल्य चीज पाने के लिए अनेक कठिनाइयां होती हैं। सो परमेश्वर ने हम से विनय किया है कि ‘जीवन का मुकुट जो तेरे पास है, उसे थामे रह कि तेरा मुकुट छीन न ले’
आशा है कि सिय्योन का परिवार इतना गहरा मन ले कि ईश्वरीय स्वभाव से अपने विरुद्ध फेंके गए पत्थर का भी हमेशा आलिंगन करते हैं, और उद्धार के कुंए से लाए गए जीवन के पानी से संसार को पुन: जीवित करते हैं।