मनुष्य जिसका परमेश्वर इस्तेमाल करते हैं

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परमेश्वर ने कहा है, “जिन्हें नई वाचा सौंपी गई है वे यदि ‘दीनता’ शब्द को अपने मन में अंकित कर लें, तो परमेश्वर का सुसमाचार अत्यन्त समृद्ध हो जाएगा।” नबियों से लेकर नए सदस्यों तक, आइए हम सब दीनता के बारे में सोचें और हम सब उस गुण को धारण करने वाले सुसमाचार के सेवक बन जाएं।

मसीह के जैसा दीनता का गुण धारण करो

… पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे। जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। फिलि 2:1–8

यीशु मसीह ने हमें दीनता का एक उदाहरण दिखाया है। मसीह स्वयं का मानस ही दीनता है। प्रभुओं के प्रभु और राजाओं के राजा परमेश्वर स्वयं इस पृथ्वी पर आए, लेकिन लोगों ने उन्हें नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उनके साथ किया। मसीह पापियों के द्वारा ठट्ठों में उड़ाए गए, तिरस्कृत किए गए, और घालय किए गए। हालांकि, हमारे उद्धार के लिए, हमेशा नम्र बनकर उन्होंने चुपचाप सहन किया। “…अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।” यह वचन दिखाता है कि मसीह ने अपने आपको कितना दीन किया होगा।

यदि हम परमेश्वर की सन्तान हैं, तो हमें परमेश्वर के दीन स्वभाव के सरूप बनना चाहिए। दीन स्वभाव हमारे खोए हुए परिवार को खोजने के लिए बहुत जरूरी है।

हमारे विश्वास का प्रतिफल हमारी आत्माओं का उद्धार है।(1पत 1:9) उद्धार पश्चाताप से आता है, और पश्चाताप दीनता से आता है। इसलिए दीनता से उद्धार पाया जा सकता है। यदि हम अपने आपको दीन नहीं करेंगे, तो विवाद, ईर्ष्या, घृणा और झगड़े होंगे। हम, जो दीन हैं, दुश्मन नहीं बनाते।

बाइबल के इतिहास के द्वारा, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें नहीं चुना जो खुद बुद्धिमान और समझदार बताते हैं, और उन्हें भी नहीं चुना जो खुद को दूसरों से ऊंचा होने का दावा करते हैं। वे लोग परमेश्वर का राज्य बनाने में नहीं, लेकिन अपना खुद का राज्य बनाने के लिए कार्य करते हैं। वे सुसमाचार के लिए परमेश्वर के वचन और उनके रास्ते के अनुसार नहीं, लेकिन अपने खुद के तरीके से कार्य करते हैं; और ऐसा करते हुए वे परमेश्वर की निश्चित योजना का विरोध करते हैं। इसलिए परमेश्वर को उनका प्रयोजन नहीं है।

परमेश्वर ने पतरस, यूहन्ना और याकूब को चुना था। उनको चुनने का कारण यह था कि वे कभी भी अपने आपको ऊंचा नहीं करते थे या ऐसा नहीं सोचते थे कि उन्होंने कुछ अपनी सामर्थ्य से किया है। वे अपना खुद का राज्य स्थापित नहीं करते थे। वे केवल ऐसा सोचते थे, “मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं, इसलिए मैं वैसा ही करूंगा जैसा परमेश्वर मुझे बताते हैं।”

परमेश्वर को ऐसे दीन लोग चाहिए। परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए हमें दीन बनना चाहिए, ताकि हम परमेश्वर के कार्य के लिए उत्तम पात्र बन सकें। परमेश्वर की सच्ची शिक्षाओं का पालन करने वालों के तौर पर, हमारे पास जैसा परमेश्वर को चाहिए वैसा ही दीन स्वभाव होना चाहिए।

हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है कि ज्ञानवानों को लज्जित करे, और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है कि बलवानों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन् जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करने पाए। 1कुर 1:26–29

परमेश्वर दीन लोगों को चुनते हैं। वह उनका इस्तेमाल नहीं करते जो समझदार होने का दावा करते हैं। ऐसे लोग कुछ करने के बाद ऐसा सोचते हैं, “मैंने खुद यह किया है।” वे परमेश्वर के बदले अपनी खुद की धार्मिकता प्रकट करते हैं।

हमारे एक भाई ने एक बार कहा था, “यदि पादरी उपदेश देने में बहुत ही कुशल हो, तो मैं मुश्किल से परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित कर सकता हूं।” मैं उनकी बात से बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था।

मेरा मतलब ऐसा नहीं है कि अपर्याप्त उपदेश देना अच्छा है। मैं कहना चाहता हूं कि हमें किसी का उपदेश सुनते समय, अपना हृदय परमेश्वर पर केन्द्रित करना चाहिए; यदि हम परमेश्वर के बदले पहले पादरी के बारे में सोचने लगे, तो यह बहुत अनुचित है।

हमें केवल परमेश्वर को प्रतिबिंबित करने वाले आईने के जैसा कार्य करना चाहिए। पादरी का बहुत ज्यादा विचार न कीजिए। वह केवल परमेश्वर के वचन बांट रहा है। यदि आप ऐसा करते हैं, तो अब से कृपया अपना ध्यान पादरी से हटाकर परमेश्वर पर केन्द्रित कीजिए। यदि वह एक आईने से बढ़कर कार्य करता है, तो वह आत्मिक रूप से खतरे में है।

क्यों परमेश्वर ने ऐसे लोगों को नहीं चुना जो ज्यादा पढे. लिखे, समझदार या संसार में बहुत विख्यात हैं? यदि ऐसे व्यक्ति को चुना जाए, तो परमेश्वर उनकी प्रसिद्धि के पीछे छिप जाएंगे। वे लोगों के हृदयों में परमेश्वर का नाम लिखने के बजाय, केवल परमेश्वर के द्वारा अपनी खुद की ख्याति कमाना चाहेंगे।

हमें एक आईने के समान होकर परमेश्वर की महिमा को प्रतिबिंबित करना चाहिए। परमेश्वर से भय मानना और उनकी महिमा को प्रकट करना ही हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कौन हैं।

हम पापी से बढ़कर और कुछ भी नहीं हैं। हम आज इस दिन तक इसलिए आए हैं क्योंकि परमेश्वर ने हम पर दया की है और हम पर अपनी करुणा दिखाई है। हम में से कुछ को चर्च के नेता का कर्तव्य दिया गया है। जब हम अपने आत्मिक परिवार की अगुआई करें, तो हमें अपने आपको दीन बनाना चाहिए, उनके प्रति विचारशील बनना चाहिए और उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।

परमेश्वर की सामर्थ्य जानकर, नबूकदनेस्सर दीन बना

“क्या यह बड़ा बेबीलोन नहीं है, जिसे मैं ही ने अपने बल और सामर्थ्य से राजनिवास होने को और अपने प्रताप की बड़ाई के लिये बसाया है?” यह वचन राजा के मुंह से निकलने भी न पाया था कि आकाशवाणी हुई, “हे राजा नबूकदनेस्सर, तेरे विषय में यह आज्ञा निकलती है: राज्य तेरे हाथ से निकल गया, और तू मनुष्यों के बीच में से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; और बैलों के समान घास चरेगा; और सात काल तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि परमप्रधान, मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है और जिसे चाहे वह उसे दे देता है।” उसी घड़ी यह वचन नबूकदनेस्सर के विषय में पूरा हुआ। वह मनुष्यों में से निकाला गया, और बैलों के समान घास चरने लगा, और उसकी देह आकाश की ओस में भीगती थी, यहां तक कि उसके बाल उकाब पक्षियों के परों से और उसके नाखून चिड़ियों के पंजों के समान बढ़ गए। उन दिनों के बीतने पर, मुझ नबूकदनेस्सर ने अपनी आंखें स्वर्ग की ओर उठाईं, और मेरी बुद्धि फिर ज्यों की त्यों हो गई; तब मैं ने परमप्रधान को धन्य कहा, और जो सदा जीवित है उसकी स्तुति और महिमा यह कहकर करने लगा… उसी समय, मेरी बुद्धि फिर ज्यों की त्यों हो गई; और मेरे राज्य की महिमा के लिये मेरा प्रताप और मुकुट मुझ पर फिर आ गया। मेरे मन्त्री और प्रधान लोग मुझ से भेंट करने के लिये आने लगे, और मैं अपने राज्य में स्थिर हो गया; और मेरी और अधिक प्रशंसा होने लगी। अब मैं नबूकदनेस्सर स्वर्ग के राजा को सराहता हूं; और उसकी स्तुति और महिमा करता हूं, क्योंकि उसके सब काम सच्चे, और उसके सब व्यवहार न्याय के हैं; और जो लोग घमण्ड से चलते हैं, उन्हें वह नीचा कर सकता है। दान 4:30–37

यद्यपि बेबीलोन का राजा नबूकदनेस्सर अन्यजाति का था, परमेश्वर ने उसे बहुत से आश्चर्यकर्म दिखाए थे कि वह परमेश्वर को महसूस करे। शद्रक, मेशक और अबेदनगो के साथ जो हुआ, उसके द्वारा परमेश्वर ने उसे अपना अस्तित्व समझाया। हालांकि, जब वह अहंकारी हो गया, तो एक आकाशवाणी हुई कि, “राज्य तेरे हाथ से निकल गया,” और उसे निकाला गया। बाद में वह फिर से दीन बन गया, तब परमेश्वर ने उसके विवेक को लौटाया और उसे फिर से बुद्धि दी।

जब नबूकदनेस्सर ने सोचा कि, ‘मैंने अपनी सामर्थ्य से यह बड़ा साम्राज्य बनाया है और बहुत से पड़ोसी देशों को हराया है,’ उसी क्षण परमेश्वर ने उसे पशु की बुद्धि दी। अपने अहंकार के कारण कि, ‘मैं ने स्वयं सब कुछ किया है,’ उसे अपने सिंहासन से निकाला गया और नीचा किया गया; वह बैलों के समान घास चरने लगा, और उसकी देह आकाश की ओस से भीगती थी, यहां तक कि उसके बाल उकाब पक्षियों के परों से और उसके नाखून चिड़ियों के पंजों के समान बढ़ गए। तब उसने दीनता का महत्व समझा। बाइबल कहती है कि नबूकदनेस्सर ने जब इस बात को पूर्ण रूप से महसूस किया कि ‘जो लोग घमण्ड से चलते हैं, उन्हें परमेश्वर नीचा करते हैं,’ तो उसने स्वर्ग के राजा परमेश्वर की प्रशंसा की थी।

दीनता केवल पुराने नियम के समय में ही नहीं, लेकिन इस युग में भी अति आवश्यक बात है। उद्धार दीनता के साथ ही शुरू होता है। जब हम सुसमाचार का कार्य करते हैं, हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि हम अहंकारी न हो जाएं और ऐसा न सोचें कि, ‘यह मैं ने स्वयं किया है।’

यदि हम ऐसा सोचते हैं, तो हम गलती कर रहे हैं। परमेश्वर किसी भी व्यक्ति के द्वारा जो वह चाहते हैं, वह कार्य कर सकते हैं। हमें केवल परमेश्वर के द्वारा उनके कार्य को पूरा करने के लिए चुना गया है। जिस किसी को परमेश्वर बुलाते हैं, परमेश्वर उसे एक पादरी या ऐल्डर या डीकन बनने के लिए सामर्थ्य देते हैं।

आइए हम दीन हृदय के साथ सुसमाचार का कार्य करें

हम परमेश्वर से बुद्धि मांगते हैं या प्रार्थना करते हैं कि हम बहुत से फल पैदा करें। हमें सबसे पहले दीन होने की कोशिश करनी चाहिए। परमेश्वर ने अपनी कृपा के द्वारा हम पापियों को बुलाया है और हमें इस महिमामय स्थान पर पहुंचाया है। यदि हम सच में परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं, तो हमें परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार स्वेच्छा से अपने भाइयों और बहनों की सेवा करनी चाहिए। यदि हम नम्र हृदय के साथ सुसमाचार का प्रचार करें, तो हम सिय्योन में आशीर्वाद और महिमा पाएंगे।

जब प्रेरित पौलुस सुसमाचार का प्रचार करता था, तो उसके पास भी बड़ी दीनता का स्वभाव था।

उसने मिलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया। जब वे उस के पास आए, तो उनसे कहा: “तुम जानते हो कि पहले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुंचा, मैं हर समय तुम्हारे साथ किस प्रकार रहा– अर्थात् बड़ी दीनता से, और आंसू बहा–बहाकर… प्रे 20:17–19

क्योंकि सब से स्वतंत्र होने पर भी मैं ने अपने आप को सब का दास बना दिया है कि अधिक लोगों को खींच लाऊं। 1कुर 9:19

प्रेरित पौलुस का जन्म रोमन नागरिक के रूप में हुआ था। उन दिनों में विशेष अधिकार पाने के लिए रोमन नागरिकता का उपयोग किया जाता था। वह पढ़ा लिखा था, और उसके पास नियमशास्त्र का संपूर्ण ज्ञान था। विस्तार से कहें, तो पौलुस के पास एक ऐसी पृष्ठभूमि थी जिसके कारण वह स्वयं के बारे में घमण्ड कर सकता था।

हालांकि, उसने ऐसी सांसारिक बातों के लिए कभी भी घमण्ड नहीं किया। उसने अपने आप को सब का दास बनाने तक दीन कर दिया। इसी कारण से जब वह परमेश्वर के शत्रु से परमेश्वर की सन्तान बन गया, तो वह परमेश्वर की कृपा पाया हुआ एक महान प्रेरित बन गया।

इसी प्रकार हे नवयुवको, तुम भी प्राचीनों के आधीन रहो, वरन् तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बांधे रहो, क्योंकि “परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।” इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। 1पत 5:5–6

घमण्ड परमेश्वर का दुश्मन है। यदि हम घमण्डी बन जाते हैं, तो हम उन सब सहायताओं और आशीर्वादों से अलग किए जाएंगे, जो परमेश्वर हमें देना चाहते हैं; हमारी बुद्धि चली जाएगी, और हम और फल उत्पन्न नहीं कर सकेंगे। परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करते हैं, लेकिन दीन लोगों पर ज्यादा अनुग्रह करते हैं।

… वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, “परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है।” याक 4:5–6

हम दीन हैं या नहीं, इसके आधार पर हम ऐसे लोग बन सकते हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं या जो परमेश्वर की कृपा पाने के योग्य हैं। यदि हम परमेश्वर की कृपा पाना चाहते हैं, तो आइए हम हर छोटी बात में परमेश्वर का पालन करें और एक दीन विश्वास धारण करें। जब हम मसीह के दीन स्वभाव के साथ सुसमाचार का प्रचार करते हैं, तो सिय्योन परमेश्वर की कृपा से भर जाएगा।

यदि हम चाहते हैं कि परमेश्वर हम से ज्यादा प्रेम करें और ज्यादा बुद्धि और ज्ञान दें, और यदि हम ज्यादा फल पैदा करने की आशा करते हैं, तो हमें दीन और नम्र बनना चाहिए। तब, नियत समय में परमेश्वर हमें ऊंचा करेंगे।

सभी कार्य जो हम सुसमाचार के लिए करते हैं वे एक समान मूल्यवान हैं। चाहे कोई छोटा सा कार्य हो या कोई बड़ा ही मुश्किल कार्य हो, यदि वह हमारे स्वर्गीय परिवार के लिए हो, तो वह बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे वह कितनी ही छोटी और नगण्य बात हो, परमेश्वर उसको देखते हैं। जो ऐसे ही नगण्य और अनचाहा कार्य स्वेच्छा से करते हैं, परमेश्वर उन पर ज्यादा ध्यान देते हैं और उन्हें ज्यादा फल और प्रचार करने की बड़ी सामर्थ्य देते हैं।

जब हम सुसमाचार के मार्ग पर चलते हैं, तो हमें उसी मार्ग पर चलना चाहिए जिस पर परमेश्वर चले थे। वही सबसे उत्तम और सबसे छोटा रास्ता है। हम सुसमाचार का कार्य अपने स्वयं के प्रयास व परिश्रम के द्वारा पूरा नहीं कर सकते; हम उन्हें तभी पूरा कर सकते हैं जब हम परमेश्वर की सभी शिक्षाओं का पालन करें। केवल वही जो परमेश्वर के वचन का पालन करते हैं और उसे अभ्यास में लाते हैं, परमेश्वर की सभी आशीषों को पा सकते हैं।

चूंकि परमेश्वर ने हमें नम्र बनने के लिए कहा है, हमें दीनता का स्वभाव लेना चाहिए। तब सुसमाचार का सारा कार्य समृद्ध हो जाएगा। हमारे पिता और माता स्वयं हमारे लिए दीनता का उदाहरण दे रहे हैं। हमें भी, अपने पिता और माता के उदाहरण और शिक्षाओं का पालन करना चाहिए। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है कि यदि हम नम्र बनें, तो हम ज्यादा फल पैदा करेंगे। परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास करते हुए, हमें दीनता से परमेश्वर का पालन करना चाहिए।

केवल वे जो बच्चों के समान बनते हैं, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे

हमारे पूर्वज, अय्यूब को भी परमेश्वर ने दीन बनने के लिए कहा था।

चाहे दुर्भाग्य हो तौभी तू कहेगा कि सौभाग्य होगा, क्योंकि वह नम्र मनुष्य को बचाता है। अय 22:29

इस वचन से हम स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि उद्धार दीनता से पैदा होता है। इसके विषय में, यीशु ने इस प्रकार सिखाया है:

उसी घड़ी चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है?” इस पर उसने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया, और कहा, “मैं तुम से सच कहता हूं कि जब तक तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। मत 18:1–4

बच्चों में कोई भी अधिकार की भावना नहीं होती। वे हमेशा कमजोर महसूस करते हैं और अपने माता–पिता का पालन करते हैं। बच्चे अपने माता–पिता पर निर्भर रहते हैं। चाहे वे कुछ भी करें, उन्हें अपने माता–पिता की सहायता चाहिए। जहां कहीं भी वे जाना चाहें, वे अपने माता–पिता को वहां ले जाने को कहते हैं।

छोटे बच्चों की तरह, हमें भी परमेश्वर की आवश्यकता है; हमें हमेशा परमेश्वर को पुकारना चाहिए। ऐसा सोचने के बजाय कि, ‘मैं किसी की सहायता के बिना अच्छे से कर सकता हूं,’ हमें ऐसा सोचना चाहिए, ‘चाहे मैं यह कर सकता हूं, यदि परमेश्वर मुझे इसे और अच्छे से करने के लिए बुद्धि और अच्छा रास्ता दें, तो मैं जो सोचा था उस से भी कहीं अधिक अनुकूल परिणाम पा सकता हूं। मैं पहले परमेश्वर से मांगूंगा।’ यह बच्चे के जैसा मन है।

यीशु ने कहा कि जब तक हम छोटे बच्चों के जैसे नहीं बन जाते, हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। पहले परमेश्वर से मांगना और बाद में कार्य करना; यही वह अनुकूल कार्य है जो दीन व्यक्ति से पैदा होता है।

परमेश्वर को उनका प्रयोजन है जो दीन हैं। चाहे हम कुछ भी करें, हमें दीनता को सबसे बड़ा गुण समझते हुए, सबसे पहले परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। तब हम परमेश्वर की अपार आशीष पाएंगे। मैं आशा करता हूं कि हमारे सभी भाई और बहनें परमेश्वर के वचन का पालन करने में अपने आपको दीन बनाते हुए और सुसमाचार के कार्य के प्रति वफादार रहते हुए, परमेश्वर से बहुतायत से प्रेम पाएं और अधिक फल पैदा करें।