हम पवित्र आत्मा को “परमेश्वर” कहते हैं, और हम यह भी कहते हैं कि हम पर्व के दौरान पवित्र आत्मा पाते हैं। हम कैसे पवित्र आत्मा की परिभाषा कर सकते हैं?
बाइबल में कई उदाहरण हैं कि एक ही शब्द का अलग–अलग अर्थों में इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिए, जब हम नए नियम में शब्द “व्यवस्था” को देखते हैं, व्यवस्था मूल रूप में दस आज्ञाओं को, जो मूसा के समय में दी गई थीं, या उनसे संबंधित विस्तृत व्याख्याओं को संकेत करती है।(रो 7:7; याक 2:11; यूह 8:5, 17) लेकिन, कभी–कभी वह व्यवस्थाओं सहित पंचग्रंथ या संपूर्ण पुराने नियम को भी संकेत करती है।(गल 4:21; लूक 24:44; यूह 12:34) बेशक, वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन विस्तार से कहा जाए तो उनके अर्थ अलग होते हैं।
शब्द “पवित्र आत्मा” के साथ भी ऐसा ही है। मूल रूप से, पवित्र आत्मा उन परमेश्वर को संकेत करता है जिनके पास व्यक्तित्व है, लेकिन हमारे साथ पवित्र आत्मा के उपस्थित होने से एक विशेष सामर्थ्य प्राप्त करने पर हम कहते हैं कि हमने पवित्र आत्मा प्राप्त किया है।
पवित्र आत्मा परमेश्वर हैं जिनके पास एक व्यक्तित्व है
पवित्र आत्मा का मतलब है, “परमेश्वर का आत्मा जो पवित्र है।” कुछ दावा करते हैं कि “आत्मा” कोई व्यक्ति नहीं है, लेकिन वह एक बिजली की लहर या ऊर्जा की तरह एक आकारहीन कार्य–बल है, इसलिए पवित्र आत्मा भी परमेश्वर की सिर्फ एक ऊर्जा शक्ति है। हालांकि, यह आग्रह ऐसा बेतुका परिणाम लाता है कि परमेश्वर और यीशु व्यक्तित्व नहीं हैं, लेकिन सिर्फ एक सक्रिय ऊर्जा है, क्योंकि बाइबल गवाही देती है कि परमेश्वर आत्मा है, और यीशु भी आत्मा है।
परमेश्वर आत्मा है… यूह 4:24
प्रभु तो आत्मा है… 2कुर 3:17
पवित्र आत्मा कभी–कभी शोक करता है, आहें भरता है, विनती करता है और सोचता है। अगर पवित्र आत्मा एक व्यक्तित्व नहीं, लेकिन ऊर्जा की तरह एक सक्रिय बल होता, तो क्या वह शोक कर सकता, आहें भर सकता, या विनती कर सकता या सोच सकता है?
परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो… इफ 4:30
इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है: क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो बयान से बाहर है, हमारे लिये विनती करता है; और मनों का जांचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है। रोम 8:26–27
पवित्र आत्मा पिता परमेश्वर है, और वह पुत्र परमेश्वर है
लोग गलत समझ सकते हैं कि परमेश्वर और पवित्र आत्मा अलग हैं क्योंकि पवित्र आत्मा को परमेश्वर के आत्मा के रूप में लिखा गया है। लेकिन पवित्र आत्मा और परमेश्वर एक ही हैं। जैसे मैं और मेरी आत्मा दोनों अलग–अलग अस्तित्व में नहीं हैं, लेकिन दोनों मैं स्वयं हूं, ठीक वैसे ही परमेश्वर का आत्मा अलग से मौजूद नहीं है, लेकिन वह स्वयं परमेश्वर है।
परन्तु परमेश्वर ने उनको अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया, क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन् परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है। मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा जो उसमें है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा। 1कुर 2:10–11
पवित्र आत्मा परमेश्वर की बातें जानता है, जो केवल परमेश्वर जान सकते हैं। अगर परमेश्वर पवित्र आत्मा से अलग हैं, तो ऐसा नहीं हो सकता।
पिता परमेश्वर, जो पवित्र आत्मा हैं, पुत्र के रूप में इस पृथ्वी पर आए। वह पुत्र परमेश्वर, यीशु हैं।
क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा। यश 9:6
पुरखे भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ। सब के ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य हो। आमीन। रोम 9:5
यीशु के विषय में, जो बालक के रूप में इस पृथ्वी पर जन्मे थे, यह गवाही दी गई कि वह युगानुयुग धन्य परमेश्वर हैं, क्योंकि यीशु मूल रूप से पिता परमेश्वर हैं। अगर यीशु परमेश्वर हैं, तो चूंकि परमेश्वर पवित्र आत्मा हैं, यीशु भी पवित्र आत्मा हैं।
इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है: क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर, जो बयान से बाहर है, हमारे लिये विनती करता है; और मनों का जांचनेवाला जानता है कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है। रोम 8:26–27
फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह ही है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर के दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है। रोम 8:34
बाइबल कहती है कि पवित्र आत्मा हमारे लिए विनती करता है, और यह भी कहती है कि यीशु हमारे लिए विनती करता है। यह इसलिए है कि पवित्र आत्मा यीशु है।
इसी उद्धार के विषय में उन भविष्यद्वक्ताओं ने बहुत खोजबीन और जांच–पड़ताल की, जिन्होंने उस अनुग्रह के विषय में जो तुम पर होने को था, भविष्यद्वाणी की थी। उन्होंने इस बात की खोज की कि मसीह का आत्मा जो उनमें था, और पहले ही से मसीह के दुखों की और उसके बाद होनेवाली महिमा की गवाही देता था, वह कौन से और कैसे समय की ओर संकेत करता था। 1पत 1:10–11
पर पहले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचार–धारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती, क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई, पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे। 2पत 1:20–21
प्रेरित पतरस ने कहा कि मसीह के आने की भविष्यवाणियां, अर्थात् पुराने नियम की भविष्यवाणियां, “मसीह के आत्मा” के द्वारा लिखी गई थीं, और फिर से उसने कहा कि बाइबल “पवित्र आत्मा” के द्वारा उभारे गए नबियों के द्वारा लिखी गई। यह दिखाता है कि पवित्र आत्मा और यीशु का आत्मा दोनों एक ही हैं।
जैसे हमने अभी पढ़ा, पवित्र आत्मा और यहोवा परमेश्वर और यीशु एक ही हैं। भले ही उनका शीर्षक और नाम अलग है, लेकिन वे एक ही परमेश्वर हैं। यह इसके समान है कि पानी, बर्फ और भाप अलग–अलग नामों से बुलाए जाते हैं, लेकिन तीनों का मूल पदार्थ एक है, यानी H₂O।
पवित्र आत्मा के वरदान
जब पवित्र आत्मा, यानी परमेश्वर आते हैं, हम विशेष सामर्थ्यों को प्राप्त करते हैं। ये पवित्र आत्मा के वरदान हैं। बाइबल कहती है कि वही आत्मा हमें बुद्धि की बातें, ज्ञान की बातें, विश्वास, भविष्यवाणी, अनेक प्रकार की भाषा इत्यादि देता है।(1कुर 12:4–11)
लेकिन पवित्र आत्मा के वरदान को प्राप्त करने के विषय में, कभी–कभी बाइबल सिर्फ कहती है कि हम पवित्र आत्मा पाते हैं। इसलिए कुछ लोगों को गलतफहमी हो सकती है कि पवित्र आत्मा सिर्फ सामर्थ्य है। लेकिन जैसे हमने पहले देखा, सामर्थ्य स्वयं पवित्र आत्मा नहीं है। पवित्र आत्मा मूल रूप से परमेश्वर है जो व्यक्तित्व के साथ है; सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी परमेश्वर जो पूरे ब्रह्मांड को समाते हैं, संतों के पास आकर उन्हें विशेष सामर्थ्य देते हैं। इसलिए, ऐसा समझना सही है कि जब हम पवित्र आत्मा प्राप्त करते हैं, हम पवित्र आत्मा के वरदान प्राप्त करते हैं।
वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे। प्रे 2:4
पतरस ये बातें कह ही रहा था कि पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया। और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उंडेला गया है। क्योंकि उन्होंने उन्हें भांति भांति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। प्रे 10:44–46
प्रेरितों ने अन्य भाषाओं में बातें कीं, और जब पतरस ने सुसमाचार का प्रचार किया, कुरनेलियुस के परिवार ने अन्य भाषा बोली; यह इसलिए था क्योंकि उन्होंने पवित्र आत्मा से अन्य भाषा बोलने का वरदान प्राप्त किया था।
यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सामर्थ्य स्वयं ही पवित्र आत्मा नहीं है, लेकिन पवित्र आत्मा के संतों पर आने से पवित्र आत्मा का वरदान, यानी सामर्थ्य प्रकट होती है। इसलिए, “नई वाचा के पर्व मनाकर हम पवित्र आत्मा पाते हैं,” इन शब्दों को हम इस तरह समझ सकते हैं कि, “पवित्र आत्मा, जो अदृश्य है, हम पर आता है और हमें बुद्धि, ज्ञान, विश्वास इत्यादि देता है।”
इस संसार में लोग आमतौर पर “पवित्र आत्मा के वरदान” को अन्य भाषा या चंगाई जैसी चीजें मानते हैं जो दृश्य हैं, लेकिन बाइबल अन्य भाषा और चंगाई से अधिक मसीह को महसूस करने की बुद्धि या ज्ञान की बातें, या विश्वास को प्राथमिकता देती है।(1कुर 12:7–10, 28) और वह कहती है कि पवित्र आत्मा के वरदानों में सबसे बड़ा प्रेम है।
क्या सब अनुवाद करते हैं? तुम बड़े से बड़े वरदानों की धुन में रहो। परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं। यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। 1कुर 12:31–13:3
नई वाचा के पर्व ही वह सत्य है जिसे स्वर्गीय पिता और माता ने उन पापियों को बचाने के लिए, जिनके लिए मृत्यु होना नियुक्त किया गया, प्राण देने तक अपना बलिदान करके महान प्रेम के द्वारा स्थापित किया है। अत: पवित्र आत्मा के वरदान पाने का सबसे निश्चित तरीका पिता और माता के प्रेम को अपने हृदय में गहराई से उत्कीर्ण करना है और नई वाचा के पर्व मनाना है।