विश्वास की इस यात्रा में जिसमें अनन्त स्वर्ग की आशा करते हुए आगे कदम बढ़ाते हैं, हम किस तरह के लोग हैं? क्या हम परमेश्वर के हैं? या क्या हम खुद के हैं? यदि हम पिछले दिनों के बारे में सोचें, तो हमें अवश्य ही लगेगा कि परमेश्वर के होने के बजाय, हम बहुत बार खुद के बनते थे। मन में तो बार–बार हम इच्छा बनाते रहते हैं कि ‘मैं परमेश्वर का होऊंगा!’, फिर भी ऐसा जीवन जीने से हम बार–बार चूक जाते हैं।
इसलिए इस समय, आइए हम परमेश्वर के वचन के द्वारा स्पष्ट रूप से देखें कि क्या हम अब परमेश्वर के होते हुए जी रहे हैं, या फिर खुद के होते हुए जी रहे हैं।
बाइबल सिखाती है कि जो परमेश्वर का है, वह अवश्य ही परमेश्वर की बातें सुनता है। इसलिए जो परमेश्वर की बातें नहीं सुनता है, वह परमेश्वर का नहीं है।
“जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर की बातें सुनता है – तुम इसलिए उन्हें नहीं सुनते क्योंकि तुम परमेश्वर के नहीं हो।”यूह 8:47
जो परमेश्वर का वचन सुनकर उसका पालन करता है, वह परमेश्वर का है। लेकिन जो परमेश्वर के वचन का पालन नहीं करता है, वह ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर के पक्ष में नहीं, परन्तु अपने पक्ष में रहता है।
लोग इसलिए अपने पक्ष में होते हुए जीवन जीते हैं, क्योंकि उनमें अहंकार और हठ का भाव होता है। इसलिए ऐसे हठी और जिद्दी लोगों को परमेश्वर की सजा मिलेगी।
“…तू उसकी कृपा, सहनशीलता और धैर्य–रूपी धन को तुच्छ जानता है, और नहीं जानता कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन–परिवर्तन की ओर ले आती है? परन्तु अपने हठीले और अपरिवर्तित मन के कारण तू परमेश्वर के प्रकोप के दिन के लिए और उसके सच्चे न्याय के प्रकट होने तक, अपने लिए क्रोध संचित कर रहा है।”रो 2:1–5
यदि किसी के स्वभाव में हठ व ज़िद रहती है, तो यह प्रकट करता है कि वह अपने पक्ष में जीवन जी रहा है। चाहे परमेश्वर मानव को स्वर्ग की ओर ले जाने की कोशिश करता हो, यदि लोग परमेश्वर के विचार नहीं, पर अपने विचार पर डटे रहते हुए उसके पीछे–पीछे चलें, तो वे अनन्त स्वर्ग से दूर रहेंगे। ऐसे लोग आखिर में अपने ऊपर विनाश लाएंगे। इसलिए हमें अपनी ज़िद व अहंकार को छोड़कर, खुद को अपने नहीं, पर परमेश्वर के मानते हुए परमेश्वर के वचन के अनुरूप मसीही जीवन जीना चाहिए।
एक बूढ़ी स्त्री दोराहे पर खड़ी होकर अपनी लाठी को बार–बार आकाश की ओर फेंक रही थी। उसी रास्ते से जा रहे एक यात्री को यह देखकर अजीब लगा। उसने बूढ़ी स्त्री से पूछा, “यह आप क्या कर रही हैं? क्यों लाठी को बार–बार आकाश की ओर फेंक रही हैं?”
इस पर बूढ़ी स्त्री ने कहा, “मैं लाठी फेंक कर चुन रही हूं कि मैं किस तरफ जाऊंगी। लेकिन बहुत बार फेंकने पर भी लाठी बार–बार बाईं तरफ संकेत करती है। मैं चाहती हूं कि लाठी दाहिनी तरफ संकेत करते ही दाहिनी तरह जाऊं। लेकिन लाठी बार–बार बाईं तरफ संकेत करती है। इसलिए मैं तब तक इसे फेंकूंगी जब तक यह दाहिनी तरफ संकेत न करेगी।”
यदि उसने दाहिनी तरफ जाने का मन बना लिया था, तो लाठी फेंकने से यह कहीं बेहतर था कि वह पहले से दाहिनी तरफ जाए। तो भी उसने अपने विचार के अनुसार, लाठी को दाहिनी तरफ संकेत कराने की ज़िद पकड़ ली। ऐसी बातें हमारे जीवन में भी घट जाती हैं।
हम तब परमेश्वर के पक्ष में रह सकते हैं जब हम परमेश्वर के वचन का पूरी तरह से पालन करते हैं। यदि हम परमेश्वर के वचनों में जो हमें अच्छा लगता है, केवल उसी का पालन करेंगे, और उन वचनों पर ध्यान न देते हुए जो हमें अच्छे नहीं लगते हैं, अपने विचार पर दृढ़ रहेंगे, तो हम ऐसी मूर्ख स्त्री के समान होंगे, जो अपनी लाठी को दाहिनी तरफ संकेत करने तक फेंकती थी। इसलिए यदि हम जीवन के सत्य का पालन न करें जो परमेश्वर ने हमें अनन्त स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए दिया है, और परमेश्वर के वचन को अपने विचार के अनुसार बदलें तो परमेश्वर का क्रोध हम पर लाया जाएगा।
“तब शमूएल ने कहा, “क्या यहोवा होमबलि और बलिदानों से उतना प्रसन्न होता है जितना अपनी आज्ञाओं के माने जाने से? सुन, आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर और ध्यान देना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। क्योंकि विद्रोह करना शकुन विचारने के बराबर पाप है और अनाज्ञाकारिता मूर्तिपूजा के समान अधर्म है। इसलिए कि तू ने यहोवा के वचन को अस्वीकार किया है। उसने भी राजा होने के लिए तुझे अस्वीकार किया है।”1शम 15:22–23
परमेश्वर ने कहा है कि आज्ञापालन बलिदान से उत्तम है और हठ करना मूर्तिपूजा के समान है। परमेश्वर उन्हें अनुग्रह से परिपूर्ण कर देता है जो आज्ञापालन करते हैं। लेकिन ऐसे लोग जो अपनी ज़िद पकड़ते हुए आज्ञापालन नहीं करते हैं और जो परमेश्वर के पक्ष में नहीं, पर सिर्फ अपने पक्ष में जीवन जीते हैं, वे शाऊल की तरह निश्चित तौर पर दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम पाएंगे।
इस्राएली ही इसका स्पष्ट उदाहरण हैं। मिस्र से निकल कर कनान की ओर जाते समय, अधिकांश इस्राएली परमेश्वर के पक्ष में नहीं, पर सिर्फ अपने पक्ष में जीवन जीते थे। इसी कारण वे परमेश्वर की अगुवाई की हर एक बात पर शिकायत करते थे। वे खाना न होने की वजह से कुड़कुड़ाए थे और पानी न होने की वजह से कुड़कुड़ाए थे। परन्तु परमेश्वर ने उन्हें चट्टान से पानी निकालकर पिलाया और 40 वर्षों तक आकाश से रोटी बरसाई।
परमेश्वर ने पहले से सब कुछ तैयार करके रखा था। फिर भी उन्होंने परमेश्वर की इच्छा का एहसास नहीं किया, और सब कुछ विश्वास भरी नजरों से नहीं, लेकिन अपने सोच विचार से देखा। इसी कारण आखिर में परमेश्वर का क्रोध उन पर लाया गया, और वे कनान में न पहुंच पाकर, जहां वे जाने को बहुत उत्सुक थे, जंगल में नाश हो गए।
“हे भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनभिज्ञ रहो कि हमारे सभी पूर्वज बादल की अगुवाई में चले और सब के सब समुद्र के बीच से पार हुए। सब ने उस बादल और समुद्र में मूसा का बपतिस्मा लिया, सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया, और सब ने एक ही आत्मिक जल पिया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे जो उनके साथ चलती थी, और वह चट्टान मसीह था। परन्तु फिर भी उनमें से अधिकांश से परमेश्वर प्रसन्न नहीं हुआ– वे जंगल में मर कर ढेर हो गए।”1कुर 10:1–5
परमेश्वर उन अधिकांश लोगों से प्रसन्न नहीं हुआ जो परमेश्वर के पक्ष में नहीं थे। इसलिए सभी हठी व स्वार्थी लोग जंगल में नाश हो गए। पुराने समय में हुई ऐसी घटना हमारे लिए एक चेतावनी है कि हमें अपने अन्दर खुद को त्याग देना चाहिए।
याजक या पदवालों के चयन के लिए, परमेश्वर ने ऐसी पूर्व शर्त तय की है कि वह अपनी बात पर आग्रह न करे। (तीत 1:7 संदर्भ) ऐसे ही, परमेश्वर ऐसे लोगों को परमेश्वर के सेवकों के रूप में बुलाता है जो परमेश्वर का कार्य परमेश्वर की इच्छा के अनुसार करता है, न कि अपनी ज़िद से।
“तो भक्तों को प्रभु परीक्षा में से निकालना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड के लिए रखना जानता है, विशेषकर उनको जो अपनी देह को भ्रष्ट अभिलाषाओं में लिप्त रखते और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं। ये उद्दण्ड स्वेच्छाचारी लोग महिमामय प्राणियों का भी अपमान करने से नहीं डरते, जबकि स्वर्गदूत, शक्ति व सामर्थ्य में श्रेष्ठ होते हुए भी, प्रभु के सम्मुख उन पर भला–बुरा कहकर दोष नहीं लगाते। ये लोग मूढ़ पशुओं और विवेकहीन प्राणियों के सदृश हैं जो पकड़े और मार डाले जाने के लिए उत्पन्न हुए हैं। ये जिन बातों को जानते भी नहीं, उनकी निन्दा करते हैं। इनका विनाश भी पशुओं की भांति होगा।”2पत 2:9–12
परमेश्वर ने कहा है कि वह उन लोगों को ‘जो हठी हैं और परमेश्वर से नहीं डरते हैं’, न्याय के दिन दण्ड देगा। यह उनके लिए चेतावनी होगी जो अपने पक्ष में जीवन जीते हैं। इसलिए आइए हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हुए परमेश्वर के पक्ष में रहने की पुरजोर कोशिश करें, और हर बात पर सोचें कि परमेश्वर कौन सी बात से प्रसन्न होता है और परमेश्वर की प्रजा के रूप में हमारे लिए कैसा व्यवहार करना उचित है।
हम परमेश्वर की इच्छा और शिक्षा के अनुसार, जो बाइबल ने सिखाई है, पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। लेकिन संसार के लोग परमेश्वर की शिक्षा से इनकार करते हुए अपने विचारों पर हठी रहते हैं। मनुष्य के ज्ञान व पहले से बनी हुई धारणा परमेश्वर के पास जाने में लोगों के लिए बाधा बनती है।
भले ही परमेश्वर का वचन हमारे विचार के विपरित हो, परन्तु हमें इसका पालन करना चाहिए। यह एक ऐसा माध्यम है जिससे हम परमेश्वर के पक्ष में रह सकते हैं। हमें सब कुछ छोड़ना चाहिए जो परमेश्वर के वचन के विपरित है, और केवल परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार परमेश्वर का सही रूप से आदर करना चाहिए।
आइए हम उत्पत्ति ग्रंथ के द्वारा ऐसे परमेश्वर से मिलें जो मनुष्य के साधारण विचार के विपरित है।
“फिर परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपनी समानता के अनुसार बनाएं। और वे समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों पर तथा घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी और हर एक रेंगनेवाले जन्तु पर जो पृथ्वी पर रेंगता है, प्रभुता करें।” और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा। अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने उसको सृजा। उसने नर और नारी करके उनकी सृष्टि की…।”उत 1:26–27
जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की, उसने कहा, “हम बनाएं”, और अपने स्वरूप के अनुसार पुरुष और स्त्री को बनाया। इससे हम आसानी से समझ सकते हैं कि परमेश्वर के स्वरूप में सिर्फ नर का स्वरूप नहीं, लेकिन नारी का स्वरूप भी है।
साधारण लोग समझते आए हैं कि परमेश्वर एक है। लेकिन इसके विपरित बाइबल में परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाएंगे”। क्या ये दोनों परस्पर विरोधी नहीं हैं? संसार के बहुत से लोग बाइबल देखते हुए भी, हठ करते हैं कि पिता परमेश्वर को छोड़ कोई परमेश्वर नहीं। जब मैं यह सुनता हूं, तो मुझे संदेह होता है कि वे बाइबल को कैसे पढ़ते हैं?
परमेश्वर ने मानव का उद्धार करने के लिए बाइबल दी है। उसके पहले पृष्ठ में स्पष्ट रूप से ऐसा लिखा हुआ है कि केवल पिता नहीं, पर माता परमेश्वर भी मौजूद है। बहुत लंबे समय से लोग परमेश्वर को ‘पिता’ कहकर बुलाते आए हैं जो नर स्वरूप है।
“अत: तुम इस प्रकार प्रार्थना करना: ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र माना जाए। ”मत 6:9
यीशु ने हमें सिखाया है कि स्वर्ग में परमेश्वर हमारा पिता है। यीशु की इस शिक्षा के द्वारा, बहुत से लोग जल्दबाजी में ऐसा निर्णय कर लेते हैं कि परमेश्वर सिर्फ पिता के रूप में है, और वे ऐसा रूढ़ विचार रखते हैं कि माता परमेश्वर कभी नहीं हो सकती।
वास्तव में, 2 हज़ार वर्ष पहले, यीशु ने प्रभु की प्रार्थना में केवल पिता का वर्णन किया है। इसका कारण था कि पवित्र आत्मा के अन्तिम युग में माता परमेश्वर के प्रकट होने की भविष्यवाणी है।
“परन्तु ऊपर की यरूशलेम स्वतन्त्र है, और वह हमारी माता है।”गल 4:26
माता का वर्णन स्पष्ट रूप से बाइबल में लिखा है। फिर भी आज, लोग अपने कठोर और हठीले मन के कारण माता परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, जिससे वे परमेश्वर का क्रोध और अधिक कमा रहे हैं। भले ही उन्होंने बाइबल के द्वारा माता परमेश्वर को देख लिया है, फिर भी वे तो केवल पिता परमेश्वर को मानते हैं, लेकिन माता परमेश्वर से इनकार करते हैं। वे उस बूढ़ी स्त्री के समान हैं, जो अपनी लाठी को दाहिनी तरफ संकेत करने तक फेंकती थी।
उद्धार पाने के लिए हमें ऐसी ज़िद को छोड़ना चाहिए। पृथ्वी के सभी जीवों में ऐसा कोई नहीं है जिसका अस्तित्व पिता और माता के बिना हो सकता है। केवल बाइबल नहीं, लेकिन सारी रचनाएं हमें दिखाती हैं कि पिता परमेश्वर का और माता परमेश्वर का अस्तित्व है। फिर भी, लोग अपनी ज़िद पर अड़े रहने के कारण परमेश्वर को नहीं ढूंढ़ पाते।
“आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुनने वाला भी कहे, “आ!” जो प्यासा हो, वह आए। जो चाहता है, वह जीवन का जल बिना मूल्य ले।”प्रक 22:17
बाइबल के पहले पृष्ठ में, जिन्होंने अपने स्वरूप के अनुसार नर और नारी को बनाया, वे पिता परमेश्वर थे जो पुरुष का मॉडल था, और माता परमेश्वर थी जो स्त्री का मॉडल थी। और बाइबल के आखिरी पृष्ठ में, जो हमें जीवन का जल पाने के लिए बुला रहे हैं, वे भी पवित्र आत्मा और दुल्हिन हैं। पवित्र आत्मा अन्तिम दिनों में प्रकट हुए पिता परमेश्वर है। तो क्या उसकी दुल्हिन माता परमेश्वर नहीं है?
आज संसार के लोग आत्मिक सूखे की मार से तड़प रहे हैं। क्योंकि वे जीवन का जल देने वाले पवित्र आत्मा और उसकी दुल्हिन, स्वर्ग की माता को नहीं जानते। पवित्र आत्मा और दुल्हिन के पास आए बिना भी, यदि हम जीवन का जल पा सकते, तो परमेश्वर को पवित्र आत्मा और दुल्हिन के रूप में आने की जरूरत नहीं होती और वे जीवन का जल पाने के लिए हमें बुलाते नहीं।
बाइबल में स्पष्ट रूप से लिखा है कि पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर का अस्तित्व है और जब हम पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर के पास आएं, तब उद्धार पा सकेंगे। इसलिए सारी रचनाओं और बाइबल के द्वारा दिखाई गई परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान लगाते हुए, हमें पूरी तरह परमेश्वर की इच्छा का पालन करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम परमेश्वर के पक्ष में रह सकें।
“…क्योंकि हमारे युद्ध के हथियार शारीरिक नहीं परन्तु गढ़ों को ध्वस्त करने के लिए ईश्वरीय सामर्थ्य से परिपूर्ण हैं। हम परमेश्वर के ज्ञान के विरुद्ध उठने वाली कल्पनाओं और प्रत्येक अवरोध का खण्डन करते हैं, और प्रत्येक विचार को बन्दी बना कर मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। जब भी तुम्हारी आज्ञाकारिता पूरी हो जाए तो सब प्रकार की अवज्ञा को दण्डित करने के लिए हम तैयार हैं।”2कुर 10:3–6
परमेश्वर का वचन सच्चा और विश्वासयोग्य है, इसमें झूठ नहीं है। वचन पर कोई तर्क नहीं किया जा सकता। क्योंकि परमेश्वर के वचन लोगों के तर्कों का खण्डन करते हैं और प्रत्येक विचार को बन्दी बना कर मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। इसलिए जबकि वचन माता परमेश्वर की साक्षी देता है, तो हमें पूर्ण रूप से अपने विचार को छोड़ कर, उस वचन का आज्ञाकारी होना चाहिए।
हम परमेश्वर को इसलिए पिता कहकर बुला सकते हैं, क्योंकि हम स्वर्ग के परिवार के सदस्य हैं। जब बच्चे घर वापस आते हैं, तब वे सबसे पहले माता को ढूंढ़ते और बुलाते हैं। माता के द्वारा प्रेम का एहसास करना मनुष्य का मूल स्वभाव है जो परमेश्वर ने दिया है। संसार के लोग तो बच्चों को ढूंढ़ने के लिए इस धरती पर आई माता परमेश्वर के प्रेम को न जानते हुए मसीह के प्रेम के बारे में बहुत कुछ बातें बताते हैं, लेकिन हम माता को जाने बिना, जो प्रेम और जीवन है, सम्पूर्ण प्रेम में नहीं बने रह सकते।
हमारे आसपास अब भी ऐसी बहुत सारी हठी आत्माएं हैं जो माता परमेश्वर को न जानने के कारण माता का इनकार करती हैं। परमेश्वर उनके लिए भी, जगत की उत्पत्ति से अब तक, माता परमेश्वर की साक्षी देता आया है। आइए हम उनकी मदद करें कि वे अपनी ज़िद छोड़कर परमेश्वर के पक्ष में हो सकें और उद्धार पा सकें।
यीशु ने हमसे निवेदन किया हैै कि जाओ और सब जातियों के लोगों को चेले बनाओ। हम इस निवेदन का पालन करें, ताकि सारे संसार के लोगों को माता की गोद में ले आएं। इस आज्ञा का पालन करने के द्वारा हम परमेश्वर के पक्ष में हो सकेंगे, और सिर्फ हम नहीं, पर समस्त मनुष्य जाति माता परमेश्वर को जानेंगी और उसके प्रेम व उद्धार की प्रशंसा करेंगी। मैं आशा करता हूं कि आप पिता और माता परमेश्वर का प्रचार करने का पवित्र दायित्व संभाल कर स्वर्ग की आशीष पाएं।