हम स्वर्ग के अनंत जीवन की आस लगाते हुए परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। हालांकि, बिना परिश्रम के हम अनंत जीवन नहीं प्राप्त कर सकते; बिना श्रम के हमें अनंत जीवन का मुकुट नहीं दिया जा सकता। अंत तक परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहने का दृढ़ संकल्प लेते हुए जब हम विश्वास करते हैं, तब हम जीवन का मुकुट प्राप्त कर सकते हैं।
इस संसार में बहुत से लोग भक्ति का भेष तो धरते हैं, पर उसकी भीतरी शक्ति को नकार देते हैं। वे धर्म के दिखावटी रूप का पालन तो करते हैं, किन्तु वास्तव में वे विश्वास नहीं रखते और आसानी से गिर जाते हैं। जब मेंह बरसता है, और बाढ़ें आती हैं, और आन्धियां चलती हैं – जब मुसीबतें आती हैं, वे बालू पर बने घर के जैसे आसानी से गिर जाते हैं।
लेकिन, जो अपने विश्वास को चट्टान पर मजबूत बनाते हैं, वे हमेशा “अंत तक परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहने का” संकल्प करते हैं। भले ही मुसीबतों के तूफान उनकी ओर चलते हैं, उनका विश्वास नहीं डगमगाता, क्योंकि वे सिर्फ परमेश्वर पर निर्भर होते हैं। वे जितनी ज्यादा कठिनाइयों और पीड़ाओं का सामना करेंगे, उनका विश्वास उतना ज्यादा मजबूत बनेगा; वे जीवन का मुकुट प्राप्त करेंगे और उनके नाम सर्वदा चमकेंगे।
प्रकाशितवाक्य के द्वारा परमेश्वर हमसे कहते हैं कि परमेश्वर की इच्छा क्या है जिसे वह अंत के दिनों में रहने वाले हम लोगों से पूरा करने का आग्रहपूर्वक अनुरोध करते हैं।
जो दु:ख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर… प्राण देने तक विश्वासी रह, तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।प्रक 2:10
ऊपर के वचन प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल के द्वारा कहे गए हैं, जिन्होंने हमारे दुश्मन शैतान को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया; वह हमें इस पृथ्वी पर शैतान से युद्ध करने और उस पर विजयी होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, ताकि हम अपने स्वर्गीय घर पहुंच सकें। यह एक आज्ञा है जो स्वर्गदूतों के दल के कमांडर, प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने स्वर्ग की सेनाओं को दी है।
अगर एक सेना का कमांडर हमला करने का आदेश देता है, तो उसके सैनिकों को हमला करना चाहिए, और अगर वह पीछे हटने के लिए कहता है, तो उन्हें सही क्रम में पीछे हटना चाहिए। यीशु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल हैं और असंख्य स्वर्गदूतों के प्रधान सेनापति हैं, और हम उनके सैनिक हैं।
यीशु के क्रूस पर चढ़ने से पहले रात को जब पतरस ने लोगों को जबरदस्ती यीशु को पकड़ते हुए देखा, वह क्रोधित हुआ, और उसने यीशु को बचाने की कोशिश में उनमें से एक का कान काटा। यीशु ने तुरंत उसे रोका और उससे कहा, “क्या तू नहीं समझता, कि मैं स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर सकता हूं?”(मत 26:53)
एक पलटन रोम की सेना का सबसे बड़ा यूनिट था; उसमें कम से कम हजार पुरुष होते थे। तो बारह पलटन 12,000 पुरुषों से भी ज्यादा होगी। ऊपर की आयत हमें दिखाती है कि एक बार जब यीशु आदेश दें तो स्वर्गदूतों की ऐसी बड़ी सेना आकर उनकी रक्षा करेगी।
पुराने नियम के समय में, एलीशा ने अपनी चारों ओर स्वर्गदूतों की सेना को देखा। जब अराम के राजा की सेना ने दोतान शहर को, जहां एलीशा रहता था, चारों तरफ से घेरा, तब एलीशा का सेवक गेहजी डर गया, और उसने जो देखा था उसे बताया। फिर एलीशा ने उससे कहा, “मत डर, क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उनसे अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं।”(2रा 6:16) और उसने प्रार्थना की, “हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके।”
एलीशा की प्रार्थना के बाद, गेहजी की आंखें खोली गईं, और उसने स्वर्ग की सेनाओं को उनकी रक्षा करते देखा। वह स्वर्ग की बड़ी सेना निरंतर यीशु के पीछे चलती है और उनके आदेशों का पालन करने के लिए तैयार रहती है। यीशु, जो प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल हैं, आज हमें आदेश देते हैं कि “प्राण देने तक विश्वासी रहो।”
प्राण देने तक विश्वासी रहने का मार्ग क्या है? आइए हम देखें कि परमेश्वर हमसे किस प्रकार का विश्वास चाहते हैं।
क्योंकि यह उस मनुष्य की सी दशा है जिसने परदेश जाते समय अपने दासों को बुलाकर, अपनी संपत्ति उनको सौंप दी। उसने एक को पांच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उनकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया… ‘हे स्वामी, तू ने मुझे पांच तोड़े सौंपे थे, देख, मैं ने पांच तोड़े और कमाए हैं।’ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो।’ तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा, ‘हे स्वामी, मैं… जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया।’… ‘हे दुष्ट और आलसी दास…’ मत 25:14–30
जिसे पांच तोडे. मिले थे, उसने पांच तोड़े और कमाए, और जिसे दो तोड़े मिले थे, उसने दो और कमाए। इन मनुष्यों को परमेश्वर ने यह कहते हुए सराहा, “धन्य! हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास!” परंतु, जिसके पास एक तोड़ा था, वह परमेश्वर से फटकारा गया, ‘हे दुष्ट और आलसी दास!’ क्योंकि उसने जो उसे मिला था उसके साथ कुछ नहीं किया, पर उसे मिट्टी में छिपा दिया। परमेश्वर ने विश्वासयोग्य दास और दुष्ट दास के बीच यह फर्क किया।
वह दुष्ट दास एक तोडे. के द्वारा अपने साथ कुछ नहीं लाया; जब परमेश्वर उससे आत्मिक लेखा लेने लगे, तब उसके पास से वह तोड़ा भी ले लिया गया और उसे बाहर के अंधेरे में डाल दिया गया। हमें उस दुष्ट दास के जैसे नहीं होना चाहिए जिससे परमेश्वर ने वह तोड़ा छीन लिया जो उसने छिपाया था।
जो प्राण देने तक विश्वासी रहते हैं, वे सुसमाचार के कार्य में उस मनुष्य की तरह सहभागी होते हैं जिसे पांच तोड़े मिले। दोनों जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सुसमाचार का प्रचार करते हैं, वे फल पैदा करने के कार्य में सहभागी होते हैं; वे विभिन्न तरीकों से सुसमाचार के कार्य में सहायता करते हैं। परमेश्वर की विश्वासयोग्य संतान के रूप में, वे हमेशा प्रार्थना करते हैं और यत्न से फल पैदा करने का कार्य करते हैं जिससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं। यह परमेश्वर की दृष्टि में सराहनीय है, और परमेश्वर उन्हें ज्यादा फल फलने की अनुमति देते हैं।
अत: वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर–चाकरों पर सरदार ठहराया कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे कि मेरे स्वामी के आने में देर है, और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए–पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता हो, तब वह उसे भारी ताड़ना देगा…मत 24:45–51
परमेश्वर स्वर्ग से आते समय जब अपनी संतान को उनके लोगों को बडे. उत्साह के साथ वचन देते देखेंगे, तब वह उन्हें अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएंगे और उनके सभी क्लेशों में शांति देंगे; उनमें से हर एक परमेश्वर से प्रशंसा और इनाम प्राप्त करेगा।
फिर दुष्ट दास का क्या होगा? वह खाने और पीने जैसे सांसारिक सुखों में रहते हुए स्वामी के सौंपे हुए कार्य का अनादर करता है; वह परमेश्वर के वचन और भविष्यद्वाणी को तुच्छ मानता है। वह उन भाइयों और बहनों के प्रोत्साहित करने वाले शब्दों को स्वीकार नहीं करता जो सुसमाचार का प्रचार करने में उसकी मदद करना चाहते हैं। बल्कि, उनका मजाक उड़ाता है और ऐसा दुष्ट काम करता है जो क्षमा के लायक नहीं है। इस जीवन के अल्पकालिक सुखों में लिप्त होकर वह सुसमाचार के मूल्य को महसूस नहीं करता और अपनी आत्मा की परवाह नहीं करता जो सदा के लिए आग और गन्धक की झील में तड़पती रहेगी।
परमेश्वर ने हमें यह चेतावनी का दृष्टांत दिया, क्योंकि वह नहीं चाहते कि हम उस दुष्ट दास की तरह बनें। वह आग्रहपूर्वक हमें ऐसे बुद्धिमान और विश्वासयोग्य दास बनने के लिए निवेदन करते हैं जो परमेश्वर के आते समय सराहे जाएंगे: “मेरी संतान, बुद्धिमान और विश्वासयोग्य है! तुम राज–पदधारी याजक बनने के योग्य हो।”
जीवन के वचन की घोषणा करने के द्वारा आत्माओं को बचाना हमारे प्रचार का लक्ष्य है। यह सिर्फ परमेश्वर का एक संदेश देने से पूरा नहीं होता। जब हम मसीह की सुगंध फैलाते हैं, तब हमारे संदेश देने से भी पहले, कुछ हमें पहचान जाते हैं कि हम परमेश्वर के भेजे हुए हैं और हमारे पीछे चलते हैं। हम सब स्वर्ग का इंतजार कर रहे हैं। आज हमें बहुत फल फलने के लिए ज्ञान को खोजने की जरूरत है, ताकि हम सभी खोए हुए भाइयों और बहनों को ढूंढ़कर जल्दी स्वर्ग के राज्य में वापस जा सकें।
“यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है।” नीत 9:10
यहां पर बुद्धिमान और विश्वासयोग्य दास बनने के दो व्यावहारिक तरीके हैं: पहला तरीका बहुत फल फलने के लिए यत्न से सुसमाचार का प्रचार करना है, और दूसरा तरीका परमेश्वर से डरना और सही तरीके से उनकी आराधना करना है। पहला तरीका विश्वासयोग्य बनने के लिए है, और दूसरा तरीका बुद्धिमान बनने के लिए है। ज्ञान कोई मानव का उत्पाद नहीं, परंतु परमेश्वर का बहुमूल्य उपहार है।
ऐसा नहीं था कि सुलैमान को राजा बनते ही बुद्धि मिली। उसकी बुद्धिमानी एक काबिलियत थी जो उसे एक हजार होमबलि चढ़ाने पर परमेश्वर से मिली थी। उसने स्वास्थ्य, शक्ति और लंबा जीवन जैसी अपनी आशीष के लिए नहीं, पर अपने लोगों का सही मार्गदर्शन करने के लिए परमेश्वर से बुद्धि मांगी। सुलैमान की विनती से परमेश्वर प्रसन्न हुए, और उन्होंने उसे धन और सम्मान के साथ ही बुद्धि भी दी। इस प्रकार सुलैमान ने, जो सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में माना जाता है, परमेश्वर से अपनी सारी बुद्धि प्राप्त की।
… वहां की वेदी पर सुलैमान ने एक हज़ार होमबलि चढ़ाए। गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, “जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग।”… तू अपने दास को… समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं… मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूं, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूं; यहां तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा…1रा 3:3–14
जैसे ऊपर लिखा है, परमेश्वर का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है। ‘परमेश्वर के प्रति, चर्च और सुसमाचार के प्रति विश्वासयोग्य रहने का क्या तरीका है?’ अगर हम आग्रहपूर्वक इसके लिए परमेश्वर से प्रार्थना करेंगे, तो वह हमें हमारी जरूरत के अनुसार बुद्धि देंगे।
मैं तेरे कामों को जानता हूं कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं।प्रक 3:15–16
जो गुनगुना है उसे अपने विश्वास और कामों में कोई उत्साह नहीं होता। अगर वह फल पैदा करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाता, तो वह अपनी आत्मा को खोने के खतरे में है। सिय्योन की सभी संतान को बड़ी उत्सुकता से फल पैदा करने के लिए परमेश्वर की बुद्धि की खोज करनी चाहिए।
विशेष रूप से पादरी, ऐल्डर और डीकन जैसे अगुवों में सुसमाचार के कार्य के लिए और बहुत फल पैदा करने के लिए ज्यादा उत्सुकता होनी चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे भाइयों और बहनों की देखभाल भी करें और खुद के फल भी पैदा करें। भले ही वे लगातार भाइयों और बहनों की देखभाल करते हैं, फिर भी फल पैदा न करने के कारण वे उदास हो सकते हैं। अगर वे सिर्फ भाइयों और बहनों पर ध्यान देते हैं जो पहले से ही सिय्योन आ चुके हैं, वे आरामपसंद और सुस्त हो सकते हैं और फल पैदा करने की लापरवाही कर सकते हैं। जब चर्च के सभी अगुवे फल पैदा करने का एक अच्छा उदाहरण दिखाएंगे, तो परमेश्वर प्रसन्न होंगे और उन सब पर बहुतायत से आशीष उंडेल देंगे।
जिसे पांच तोड़े मिले थे, उस मनुष्य ने पांच तोड़े और कमाए। अगर उसने अपने तोड़ों को सिर्फ छिपाया होता, तो वह कुछ भी नहीं कमा पाता। उसे अपने स्वामी की इच्छा पता थी, और उन्हें प्रसन्न करने के लिए उसने बहुत मेहनत की, ताकि वह लाभ प्राप्त कर सके। चूंकि उसमें अपने स्वामी को प्रसन्न करने का ईमानदार जोश था, इसलिए उसे “बुद्धिमान और विश्वासयोग्य दास” कहा गया और उसे महान आशीष और इनाम मिला।
विश्वासयोग्य दास और दुष्ट दास दोनों सुसमाचार के कार्य के लिए परमेश्वर के बुलाए गए सेवक थे। परंतु दोनों के सोचने का तरीका भी और काम करने का तरीका भी अलग–अलग था; विश्वासयोग्य दास बहुत लगन और उत्साह से काम करता था, लेकिन दुष्ट दास आलस्य में अपना दिन बेकार गंवाता था, और आखिर में उसका बहुत बुरा अन्त हुआ।
हमारे स्वामी के वापस आने का समय करीब आ गया है। परमेश्वर की खुशी और इच्छा के अनुसार आइए हम अधिक लगन से सुसमाचार के कार्य के लिए अपने आपको समर्पित करें। परमेश्वर की खुशी ही हमारी खुशी है, है न? क्या ऐसा कोई है जो उदास है? एक बार फिर से, आइए हम अपने हृदय में सुसमाचार की आग जलाएं।
आइए हम सिर्फ दूसरों के प्रचार में आगे बढ़ने का इंतजार न करें, लेकिन पहले खुद को जलाने के द्वारा दूसरों के लिए अच्छा उदाहरण स्थापित करें। अगर हम परमेश्वर की आग के द्वारा जलाए जाएंगे, तो हमारे चारों तरफ भी सब जल जाएंगे। आइए हम सुसमाचार के कार्य के प्रति हमारे जोश की ज्वाला को दुनिया भर के सारे चर्च ऑफ गॉड में जलने दें और बहुत फल पैदा करते हुए अंत तक परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहें।
हमें अपने उत्साह को नहीं खोना चाहिए। बिना उत्साह के कुछ भी पूरा नहीं हो सकता। आइए हम बाहर की प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में शिकायत न करें। “हमारे सदस्यों की संख्या बहुत थोड़ी सी है,” या “हमारे पास थोड़े ही प्रचारक हैं,” या “हमारे पास क्षेत्रीय समस्या है।” ये स्थितियां सुसमाचार के कार्य के लिए बिल्कुल भी रुकावट नहीं होतीं।
अगर किसी का हृदय आग से जल रहा है, तो उसकी गर्मी दूसरे में भी, आसपास के चर्चों में भी और सभी चर्चों में भी जलती है। समस्या नकारात्मक विचार है – “वह नामुमकिन है।” ऐसी नकारात्मक सोच सिर्फ हमारे उत्साह को नहीं, पर दूसरों की उत्सुकता को भी ठंडा करती।
प्रेरित यूहन्ना ने दर्शन में देखा कि 1,44,000 सिय्योन पर्वत पर खडे. हैं। परमेश्वर ने यह भविष्यवाणी की और उसकी पूर्णता का दर्शन दिखाया। वह कभी भी नाकाम नहीं हो सकता। परमेश्वर ने हम से वादा किया है कि वह हमें पूंछ नहीं, किन्तु सिर ठहराएंगे। इसलिए आइए हम परमेश्वर पर गर्व और विश्वास करें। एक व्यक्ति की नकारात्मक सोच बहुत दुष्ट दासों को बना सकती है। सिय्योन अच्छे और विश्वासयोग्य दासों को प्रशिक्षित करने की जगह है।
हम सब को किसी भी तरीके से स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार के कार्य में सहभागी होना चाहिए। सुसमाचार के याजक के रूप में, हमें तीव्र उत्साह के साथ अपना कर्तव्य निभाते हुए प्राण देने तक विश्वासी रहना चाहिए। परमेश्वर के सच्चे, बुद्धिमान और विश्वासयोग्य पुत्र और पुत्रियों के रूप में, आइए हम बहुतायत में अच्छे फल पैदा करके परमेश्वर की महिमा करें।