मत्ती में परमेश्वर का वर्णन “हमारे पिता”(मत 6:9) के रूप में किया गया है। गलातियों में परमेश्वर को “हमारी माता” के रूप में बताया गया है(गल 4:26)। 2कुरिन्थियों में हमें परमेश्वर के बेटे और बेटियां कहा गया है(2कुर 6:19)। हम बाइबल के इन सभी वचनों को एक साथ रखकर देखें तो हम जान सकते हैं कि हम स्वर्ग की संतान हैं और स्वर्गीय परिवार के सदस्य हैं जिनके पास पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर हैं।
जो भी हो, चूंकि स्वर्ग में पाप करने के कारण हमें इस पृथ्वी पर निकाल दिया गया है, इसलिए हमें यह याद नहीं है। हमारे लिए जो तीसरे आयाम में रहते हैं, यह याद करना बहुत मुश्किल है कि आत्मिक दुनिया में क्या हुआ था। “हमारे पिता और माता” केवल नाम मात्र के लिए नहीं हैं। वे वास्तव में हमारे पिता और माता हैं। परमेश्वर बाइबल की गवाहियों के द्वारा यह सत्य हमें स्पष्ट रूप से सिखाते हैं।
मातृ–पितृ भक्ति माता–पिता के प्रति संतान का मूल कर्तव्य है। पृथ्वी की वस्तुएं स्वर्ग की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब हैं। इसलिए, सांसारिक परिवार के द्वारा, हम आत्मिक परिवार के बारे में समझ सकते हैं। बाइबल हमें उनके बहुत से उदाहरण दिखाती है जिन्होंने परमेश्वर, यानी आत्मिक माता–पिता के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास किया। उनमें से मरियम मगदलीनी के मामले के द्वारा, आइए हम परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति के सद्गुण को सीखें।
जब मरियम मगदलीनी ने संगमरमर के पात्र से इत्र यीशु पर उंडेला, तब यीशु ने कहा कि जहां कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके काम का वर्णन भी किया जाएगा। आइए हम लूका के सुसमाचार के वचनों के द्वारा पुष्टि करें कि क्यों यीशु ने ऐसा कहा।
फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की कि वह उसके साथ भोजन करे, अत: वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई, और उसके पांवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई उसके पांवों को आंसुओं से भिगोने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी, और उसके पांव बार–बार चूमकर उन पर इत्र मला। यह देखकर वह फरीसी जिसने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान जाता कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है, क्योंकि वह तो पापिनी है।” यीशु ने उसके उत्तर में कहा… “किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पांच सौ और दूसरा पचास दीनार का देनदार था। जब उनके पास पटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया। इसलिए उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा?” शमौन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में वह, जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।” उसने उससे कहा, “तू ने ठीक विचार किया है।” और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा, “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तू ने मेरे पांव धोने के लिये पानी न दिया, पर इसने मेरे पांव आंसुओं से भिगोए और अपने बालों से पोंछा। तू ने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूं तब से इसने मेरे पांवों का चूमना न छोड़ा। तू ने मेरे सिर पर तेल नहीं मला, पर इसने मेरे पांवों पर इत्र मला है। इसलिये मैं तुझ से कहता हूं कि इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिसका थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।” और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।”… लूक 7:36–49
लूका रचित सुसमाचार में दर्ज किया गया है कि स्त्री ने आंसुओं से यीशु के पांव भिगोए, और अपने बालों से उन्हें पोंछा, और उन पर इत्र उंडेला। मत्ती में यीशु ने घोषित किया, “जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।”
जब यीशु बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर में था। तो एक स्त्री संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था तो उसके सिर पर उंडेल दिया। यह देखकर उसके चेले रिसियाए और कहने लगे, “इसका क्यों सत्यानाश किया गया? इसे तो अच्छे दाम पर बेचकर कंगालों को बांटा जा सकता था।” यह जानकर यीशु ने उनसे कहा, “स्त्री को क्यों सताते हो? उसने मेरे साथ भलाई की है। कंगाल तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदैव न रहूंगा। उसने मेरी देह पर जो यह इत्र उंडेला है, वह मेरे गाड़े जाने के लिये किया है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।” मत 26:6–13
यीशु के वचनों के अनुसार, मरियम मगदलीनी का यह सुंदर कार्य सभी चारों सुसमाचार में दर्ज किया गया है। यूहन्ना रचित सुसमाचार में यह दृश्य दर्ज किया गया है कि जब मरियम ने यीशु के पास आकर अपने आंसुओं से यीशु के पांव भिगोए, अपने बालों से उन्हें पोंछा और उन पर इत्र उंडेला, तब यीशु के बगल में बैठे यहूदा इस्करियोती ने यह देखकर क्रोधित हो गया। उसका तर्क यह था कि वह इत्र एक वर्ष के वेतन के जितना महंगा होता है तो उसे यीशु के पांवों पर व्यर्थ गंवाने के बदले बेचकर वह पैसा कंगालों को देना चाहिए था। हालांकि, बाइबल बताती है कि उसने ऐसा इसलिए नहीं कहा कि उसे कंगालों की चिंता थी, लेकिन इसलिए कि वह पैसा लेना चाहता था जो इत्र बेचकर मिल सकता था(यूह 12:1–8)।
जैसे यीशु को यहूदा इस्करियोती के मन की बात मालूम थी, ठीक वैसे यीशु ने मरियम मगदलीनी के मन पर दृष्टि की। इसी कारण यीशु ने कहा कि जहां कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके काम का वर्णन भी किया जाएगा।
जब वे आए, तब उसने एलीआब पर दृष्टि करके सोचा, “निश्चय यह जो यहोवा के सामने है वही उसका अभिषिक्त होगा।” परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, “न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके कद की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है। 1शम 16:6–7
लोग दूसरों का बाहरी रूप देखकर न्याय करते हैं, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि हमेशा हमारे मन पर रहती है। जब मरियम मगदलीनी ने यीशु पर इत्र उंडेला, तब उसके मन में उन परमेश्वर के प्रति एक अनोखी मातृ–पितृ भक्ति भावना थी जो हम नश्वर पापियों को बचाने के लिए स्वयं स्वर्ग से इस पृथ्वी पर शरीर में आए। मरियम ने सोचा कि लोग हर एक दिन यीशु को सर्वाधिक श्रेष्ठ सेवा प्रदान करें, तो भी यह पर्याप्त नहीं होगा, लेकिन इसके बजाय लोगों ने उनकी निन्दा और ठट्ठा किया, और इन सब के बावजूद यीशु ने अपना उद्धार का हाथ हमारे हाथ पर से नहीं हटा लिया और लगातार हमारा मार्गदर्शन किया। मरियम ने अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर के इस अनुग्रह को समझा, इसलिए उसने यीशु पर बहुत बहुमूल्य इत्र उंडेल दिया।
यीशु की ओर देखते हुए बहाए गए मरियम के आंसुओं में उसका पश्चाताप और एहसास समाया हुआ: ‘यह जानते हुए भी कि दुखभरा जीवन आपका इंतजार कर रहा है, आप मुझ जैसे पापी के लिए इस पृथ्वी पर आए? क्या अब आप मेरे लिए ऐसा दर्दभरा जीवन जी रहे हैं?’ यीशु ने उसके मन के अन्दर ऐसे सुंदर विचारों को पढ़ा, इसलिए उन्होंने कहा, “सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा।”
परमेश्वर हमारे स्वर्गीय पिता और हमारी स्वर्गीय माता हैं, और हम परमेश्वर के बेटे और बेटियां हैं, क्योंकि आत्मा स्वयं ही गवाही देता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। जब स्वर्गीय परिवार के सभी सदस्य इस तरह ईमानदारी से पश्चाताप करें और परमेश्वर के प्रति सच्ची मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करें, तो परमेश्वर अवश्य ही आनन्द के साथ हमारे मनों को स्वीकार करेंगे।
इस पृथ्वी पर आने से पहले, हमने स्वर्ग में परमेश्वर को “पिता” और “माता” कहते हुए खुशीमय जीवन जिया था। हालांकि, हमने शैतान से लुभाए जाकर पाप किया था, और हमें पाप का वस्त्र पहनकर नश्वर जीवों के रूप में इस पृथ्वी पर गिरा दिया गया। हम गंभीर पापियों के लिए, स्वर्गीय पिता और माता ने स्वर्ग की सारी महिमा को पीछे छोड़ा और स्वर्गदूतों से भी खुद को छोटा बनाकर इस पृथ्वी पर आए, और उन्होंने अनन्त स्वर्ग के राज्य में वापस जाने का मार्ग हमारे लिए खोल दिया और हमारे लिए अभी भी बलिदान के मार्ग पर चल रहे हैं। इस क्षण भी, शैतान इस तथ्य को महसूस करने में और परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करने में बाधा डालने की कोशिश करता है।
अवश्य ही, हमें पृथ्वी पर अपने माता–पिता के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करना चाहिए। शारीरिक माता–पिता के प्रति अपनी मातृ–पितृ भक्ति के द्वारा, हमें सही तरह से समझना चाहिए कि हमें अपने आत्मिक माता–पिता के प्रति कैसा होना चाहिए, ताकि हम मरियम मगदलीनी के समान पूरी तरह से पश्चाताप कर सकें और स्वर्गीय पिता और माता के प्रति अधिक समर्पित और आज्ञाकारी बन सकें।
भले ही मरियम मगदलीनी के पास बहुत सी मुश्किलें थीं, लेकिन उसने यीशु के पांवों को आंसुओं से भिगोने और अपने बालों से उन्हें पोंछने के बाद स्वेच्छा से पात्र तोड़कर इत्र को उन पर उंडेला, क्योंकि उसने महसूस किया कि परमेश्वर ने उसे गंभीर पापों से बचाने के लिए मानव शरीर पहनना चुन लिया। हमें भी मरियम के आंसुओं, यीशु पर उंडेले गए उसके इत्र और उसके सुन्दर मन को अपने हृदय पर गहराई से उकेरना चाहिए और स्वर्गीय पिता और माता के प्रति अपनी मातृ–पितृ भक्ति का पूरी तरह से अभ्यास करना चाहिए और उन्हें महिमा और धन्यवाद देना चाहिए।
“मैं क्या लेकर यहोवा के सम्मुख आऊं, और ऊपर रहनेवाले परमेश्वर के सामने झुकूं? क्या मैं होमबलि के लिये एक एक वर्ष के बछड़े लेकर उसके सम्मुख आऊं? क्या यहोवा हजारों मेढ़ों से, या तेल की लाखों नदियों से प्रसन्न होगा? क्या मैं अपने अपराध के प्रायश्चित्त में अपने पहिलौठे को या अपने पाप के बदले में अपने जन्माए हुए किसी को दूं?” हे मनुष्य, वह तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले? मी 16:6–8
परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करना कुछ विशेष नहीं है। बाइबल कहती है कि परमेश्वर हजारों मेढ़ों से या तेल की लाखों नदियों से प्रसन्न नहीं होते, और वह सबसे अधिक प्रसन्न तब होते हैं जब हम न्याय से काम करें, कृपा से प्रीति रखें और परमेश्वर के साथ नम्रता से चलें। इसलिए परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का सबसे बड़ा कार्य, जो हम सब कर सकेंगे, यही होगा कि दुनिया को बचाने के परमेश्वर के कार्य में हम पूर्ण रूप से भाग लें।
आइए हम सोचें कि पिता के कार्य में मदद करने के लिए और उस क्रूस के बोझ को हल्का करने के लिए जो माता अकेले उठा रही हैं, हमें क्या करना चाहिए, ताकि हम परमेश्वर की संतान के रूप में परमेश्वर के प्रति अपनी मातृ–पितृ भक्ति को पूरा कर सकें। इसी कारण परमेश्वर ने हमें सुसमाचार के प्रचार का कार्य सौंपा है और हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया है(1थिस 2:4, 2कुर 3:6)।
“बुद्धि के राजा,” सुलैमान ने एक सबसे महान शिक्षा छोड़ी। वह जो सभी युगों और देशों में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, आखिर में इस निष्कर्ष तक पहुंचा;
बुद्धिमानों के वचन अंकुश के समान होते हैं, और सभाओं के प्रधानों के वचन गाड़ी हुई कीलों के समान हैं, क्योंकि एक ही चरवाहे की ओर से मिलते हैं… सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कत्र्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा। सभ 12:11–14
जब सुलैमान पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर सभोपदेशक की पुस्तक लिख रहा था, तब वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य आत्मिक माता–पिता यानी परमेश्वर की भक्तिपूर्वक सेवा करना और उनकी सारी आज्ञाओं का पालन करना है। बाइबल के द्वारा सुलैमान ने आखिरकार सिखाया कि स्वर्गीय संतानों को स्वर्गीय पिता और माता के प्रति अपनी मातृ–पितृ भक्ति को पूरा करना चाहिए।
लोग भूल चुके हैं कि स्वर्गदूतों की दुनिया में क्या हुआ था, और वे जीवन के कारण और उद्देश्य को जाने बिना सिर्फ तीसरे आयाम की इस पृथ्वी की चीजों को सब कुछ मानकर जीवन जीते हैं। वे रोटी, कपड़े और मकान के लिए तरसते हैं और सांसारिक धन–सम्पत्ति और सम्मान का पीछा करते हुए हर दिन बिताते हैं, और जब वे मरते हैं, वे परमेश्वर के न्याय के आसन के सामने खड़े होते हैं।
सभोपदेशक की पुस्तक के द्वारा सुलैमान ने हमें सिखाया है कि भले ही उसने संसार की समस्त धन–संपत्ति और सम्मान का आनन्द उठाया, लेकिन सब कुछ हवा का पीछा करने जैसा व्यर्थ है, और हमारे पास अनन्त दुनिया है जहां हम वापस जाएंगे। उस अनन्त दुनिया पर शासन करने वाले अपने आत्मिक पिता और माता, यानी परमेश्वर का भय मानना और उनकी आज्ञाओं का पालन करना मनुष्य का मूलभूत कर्तव्य है। अन्तिम दिन में परमेश्वर छिपी हुई सब चीजों को प्रकट करेंगे और हर व्यक्ति को उनके कामों के अनुसार प्रतिफल देंगे और उनका न्याय करेंगे और इसके साथ परमेश्वर अपना सभी कार्य समाप्त करेंगे।
यीशु ने भी, जो पुत्र के रूप में इस पृथ्वी पर आए, प्राण देने तक परमेश्वर की इच्छा का पालन करके परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का नमूना दिखाया। यीशु की शिक्षाओं में से, आइए हम परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति के बारे में उनकी शिक्षा देखें।
जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने सदूकियों का मुंह बन्द कर दिया, तो वे इकट्ठे हुए। उनमें से एक व्यवस्थापक ने उसे परखने के लिए उससे पूछा, “हे गुरु, व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?” उसने उससे कहा, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।” मत 22:34–38
“तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।” यीशु के इन वचनों का मतलब है कि परमेश्वर हमारे पिता और माता हैं, इसलिए हमें उनकी संतानों के रूप में उनके प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करना चाहिए। यीशु ने कहा कि यही बड़ी और मुख्य आज्ञा है।
जैसे कि सुलैमान ने अपने निष्कर्ष में कहा था, बड़ी और मुख्य आज्ञा यह है, अपने सारे मन से परमेश्वर के प्रति अपनी मातृ–पितृ भक्ति को पूरा करना। पहले, हम परमेश्वर को एक परम जीव के रूप में सोचा करते थे जो हमसे पूरी तरह अलग है। लेकिन परमेश्वर ने नई वाचा, यानी अपने मांस और लहू के माध्यम से हमारे साथ एक अटूट संबंध बनाया। इसलिए हम परमेश्वर के बेटे और बेटियां बने हैं, और परमेश्वर हमारे पिता और माता बने हैं। हम सभी को परमेश्वर की संतानों के रूप में परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करना चाहिए।
पृथ्वी पर बच्चों को अपने माता–पिता का पालन करते देखना बहुत ही मनभावना लगता है, है न? माता–पिता के प्रति एक आज्ञाकारी पुत्र की कहानी, चाहे वह प्राचीन समय की हो, पीढ़ियों से सुनी और सुनाई जा रही है, और वह अब भी बहुत से लोगों के मन को भाती है और उन्हें अच्छा सबक सिखा देती है।
आइए हम भी मातृ–पितृ भक्ति की उन खूबसूरत कहानियों के नायक बनें, जो स्वर्ग में स्वर्गदूतों को सुनाई जाएंगी। परमेश्वर, जो युगानुयुग महिमा पाने के योग्य हैं, इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में आए और अपनी संतानों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया, ताकि हम पापों की क्षमा पा सकें और उद्धार पा सकें। चूंकि हमने अब यह सब सुना है, हमें परमेश्वर का भय मानना चाहिए और परमेश्वर के वचन मानने चाहिए। यह हम सभी का कर्तव्य है।
प्रथम चर्च के बहुत से संतों ने परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास किया। उनमें से एक प्रेरित पौलुस था, जिसने देर से महसूस किया और विशेष रूप से परमेश्वर के प्रति मातृ–पितृ भक्ति का अच्छे से अभ्यास किया। आइए हम देखें कि कैसे उसने मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास किया।
कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं।” परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामथ्र्य, न ऊंचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी। रो 8:35–39
परमेश्वर संसार में किसी भी चीज से अधिक हमसे प्रेम करते हैं और हमारी चिंता करते हैं। हमारे माता–पिता के अलावा कोई भी ऐसा नहीं है जो हमसे अधिक हमसे प्रेम करते हैं। प्रेरित पौलुस ने दृढ़ता से यह सोचते हुए सुसमाचार का प्रचार किया कि किसी भी प्रकार की कठिनाई या परिस्थिति उसे परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती। चूंकि किसी एक मन फिराने वाले पापी के लिए, उन निन्यानबे धर्मियों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं है, स्वर्ग में कहीं अधिक आनन्द मनाया जाता है, इसलिए पौलुस ने सुसमाचार का मिशन पूरा करने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास किया ताकि वह स्वर्गीय पिता और माता को खुशी दे सकें।
सिय्योन के भाइयो और बहनो! मैं आपसे बार बार निवेदन करता हूं कि आप परमेश्वर से प्रेम करके, उनका भय मानकर और उनकी सभी आज्ञाओं का पालन करके सबसे समझदार और सबसे उचित जीवन जीएं। मैं विश्वास करता हूं कि जब हम ऐसा करें, तब मरियम मगदलीनी के ईमानदार आंसुओं के जैसे हमारे हृदय के आंसू परमेश्वर के पांवों को भिगोएंगे। मुझे आशा है कि हम जितना जल्दी हो सके अपने खोए हुए भाइयों और बहनों को खोजकर, पिता और माता को हर दिन खुशी दें और उनके प्रति सच्ची मातृ–पितृ भक्ति का अभ्यास करें।