सहानुभूति, खुद को दूसरे की स्थिति में रखने की क्षमता
यदि आप किसी के साथ वास्तविक बातचीत करना चाहते हैं, तो पहले सहानुभूति रखें। जिस पल आप दूसरे व्यक्ति की कही बातों पर सहानुभूति दिखाते हैं, तो उसका मन खुल जाता है।
कोरिया में, एक वाक्यांश, “क्या तुम्हें दर्द होता है? मुझे भी दर्द होता है,” एक बार शहर में चर्चा का विषय बन गया था। किसी धारावाहिक में एक मुख्य पात्र का हृदयस्पर्शी वाक्यांश जिसने न सिर्फ दूसरे व्यक्ति के दर्द को समझा, बल्कि उसके साथ दर्द तो बांट भी लिया, उसने दर्शकों को एक बड़ी प्रतिध्वनि दी।
दरअसल, इस वाक्यांश को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा गया है। जब लोग किसी अन्य व्यक्ति को इंजेक्शन लेते हुए, गिरते हुए या घुटने छीलते हुए देखते हैं, तो वे ऐसा मुंह बना लेते हैं जैसे कि उन्हें दर्द हो रहा है। न केवल दर्द बल्कि हंसी, जंभाई और खुजली भी संक्रामक हैं। हम दूसरों की भावनाओं को इस तरह से क्यों महसूस करते हैं जैसे कि वे हमारे ही हैं? इसका कारण सहानुभूति है।
सहानुभूति दूसरों की भावनाओं, विचारों, आग्रह और इत्यादि जैसी बातों को समझने या उस तरह से महसूस करने की क्षमता है। सहानुभूति-क्षमता हमारे मस्तिष्क में दर्पण न्यूरॉन्स से आती है। दर्पण न्यूरॉन्स हमें दूसरों के कृत्यों पर प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित करते हैं जैसे कि हम उन कृत्यों को कर रहे हैं। ये न्यूरॉन्स हमें दूसरों के कृत्यों की नकल या सहानुभूति महसूस कराते हैं। दूसरे शब्दों में, यह दूसरों के साथ अवरोध को समाप्त करते हैं।
सहानुभूति संवाद का अनिवार्य गुण है; यह एक लुब्रिकेंट की तरह है जो मानव संबंधों को कोमल बनाता है। सहानुभूति के बिना, हम न तो दिल से दिल तक की बातचीत कर सकते हैं और न ही कोई संतोषजनक निष्कर्ष निकाल सकते हैं। जब सहानुभूति का बंधन बनता है, तो विश्वास का निर्माण किया जा सकता है, और आपसी समझ और अच्छा संचार प्राप्त किया जा सकता है।
विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, जेरेमी रिफकिन ने कहा, “यह उस उत्कृष्ट सहानुभूति के कारण है जो मानव जाति आज की सभ्यता को प्राप्त करने में सक्षम हुई है, और यह क्षमता भविष्य में एक प्रमुख क्षमता के रूप में उभरेगी।” अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन ने कहा, “आधुनिक समाज में, भावनात्मक लब्धि[EQ], जिससे दूसरों के साथ भावनात्मक रूप से संवाद किया जाता है, बुद्धि लब्धि[IQ] की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। और EQ की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता सहानुभूति है।”
इस युग में घट रही सहानुभूति
जैसा कि अर्थशास्त्री जेरेमी रिफकिन ने कहा, यदि आज की मानव सभ्यता सहानुभूति-क्षमता के कारण प्राप्त करने में सक्षम हुई है, तो इसका मतलब यह हो सकता है कि सहानुभूति की घटती हुई क्षमता सभ्यता के पतन का कारण बन सकती है। मनोरोगियों की बढ़ती संख्या, यादृच्छिक बड़ी संख्या में लोग की ओर लक्ष्य साधता घृणा अपराध, और स्कूली हिंसा जैसी बातें सहानुभूति की कमी से निकटता से संबंधित हैं। कुछ हमलावरों के पास एक भयानक अपराध करते हुए भी कोई दया, अपराध की भावना, या बिल्कुल भी अफसोस न होने का कारण यह है कि उनके पास सहानुभूति की क्षमता नहीं होती।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इंटरनेट का विकास एक कारण है जो सहानुभूति-क्षमता को कम करता है। इंटरनेट और मोबाइल फोन के माध्यम से ऑनलाइन संवाद तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन बहुत से लोग कहते हैं कि उन्हें आपसी संबंधों में कठिनाई होती है। संवाद में बातचीत की सामग्री महत्वपूर्ण है, लेकिन आवाज और एक दूसरे की आंखों के माध्यम से संवाद जैसे अशाब्दिक तत्व भी महत्वपूर्ण है। लेकिन ऑनलाइन टेक्स्ट पर आधारित संचार से संवाद या सहानुभूति करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को पूरी तरह से परखा नहीं जा सकता।
दूसरी ओर, कुछ लोग परिवार के खराब कार्य पद्धति की ओर इशारा करते हैं। घर एक ऐसी जगह है जहां सहानुभूति का एक मजबूत और स्वस्थ बंधन कहीं और से अधिक होना चाहिए। मगर, वास्तव में, परिवार के सदस्यों के बीच भावनात्मक आदान-प्रदान का अवसर कम हो रहा है क्योंकि परिवार छोटा हो रहा है और कामकाजी जोड़े बढ़ रहे हैं। ऐसे और अधिक विभिन्न विश्लेषण हैं, लेकिन सच बात तो यह है कि सहानुभूति की बढ़ती आवश्यकता दिखाती है कि हमारे समाज में सहानुभूति की क्षमता का अभाव है।
सहानुभूति की कमी वाले लोग दूसरों की भावनाओं को पढ़ने में विफल होते हैं, और इसलिए वे उन लोगों को अनुचित प्रतिक्रिया दिखाते हैं जिनके साथ वे बात करते हैं, और सामने वाले व्यक्ति को लगता है कि वह दीवार से बात कर रहा है। उनके लिए किसी और की गलतियों को माफ करना या सहन करना भी मुश्किल होता है क्योंकि उनके पास दूसरों को समझने के लिए एक संकीर्ण दृष्टिकोण होता है। उनके पास मजबूत आत्म केन्द्रित धारणा होती है कि, ‘मैं मैं हूं और तुम तुम हो,’ और यह उनके सामाजिक जीवन और मानव संबंधों को नुकसान पहुंचाती है।
सहानुभूति-क्षमता को कैसे बढ़ाएं
अपनी माता की आंखों में आंखें डालने और उसके साथ मुस्कुराहट साझा करने से एक बच्चे के दर्पण न्यूरॉन्स सक्रिय हो जाते हैं और उसकी सहानुभूति की क्षमता विकसित होती है। तो यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे में सहानुभूति की एक अच्छी क्षमता हो, तो बचपन में ही अपने बच्चे को यह कहते हुए कि “मैं समझ गई,” “तुम्हें बुरा लगा होगा,” अधिक सहानुभूति दिखाना चाहिए। यहां तक कि अगर कोई पर्याप्त रूप से सहानुभूति न पाते हुए बड़ा हुआ हो, तो उसके प्रयासों के द्वारा उसकी सहानुभूति की क्षमता सुधारी जा सकती है क्योंकि मस्तिष्क परिवर्तित होता रहता है।
सहानुभूति सुनने से शुरू होती है। जब आप किसी अन्य व्यक्ति की बात सुनते हैं, तो आपको उस पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है ताकि आप समझ सकें कि वह क्या कह रहा है, और आपको उसके चेहरे के भाव, आंखों और इशारों पर भी विचार करने की आवश्यकता होती है। कई लोग जिन्हें आपसी संबंधों में कठिनाई होती है, उन्हें लगता है कि वे बात करने में अच्छे नहीं हैं। लेकिन, समस्या ठीक से बातचीत न करने के कारण नहीं, बल्कि अक्सर सुनने की अक्षमता के कारण होती है। अच्छी तरह से सुनने के लिए, आपको अपने विचारों और पूर्वाग्रहों को पीछे छोड़कर, दूसरे व्यक्ति के द्वारा कही गई बातों को ध्यान से सुनने की जरूरत है।
दूसरे व्यक्ति की बात ध्यान से सुनने के बाद, आपको उसके दृष्टिकोण से सोचना चाहिए। अपने आपको दूसरे व्यक्ति की स्थिति में रखना सहानुभूति की क्षमता का सार है। दूसरों की स्थिति में रहकर सोचने की कोशिश करना आवश्यक है। एक इंडस्ट्रियल डिजाइनर, पैट्रिशिया मूर ने इस विचार से अपने बीस वर्ष की आयु में तीन साल के लिए एक बुजुर्ग महिला का वेश पहना, कि उसे उन सभी असुविधाओं का अनुभव करना चाहिए ताकि वह उन उत्पादों को डिजाइन करने में सक्षम हो सके जो हर किसी के लिए सुविधाजनक हों। इस अवसर के द्वारा, उसने दाहिने और बाएं हाथ की कैंची, लो फ्लोर बस, और रबर से बने बर्तन का हैंडल जैसे अभिनव डिजाइन का आविष्कार किया और अब वह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध डिजाइनर बन गई है।
लोग आमतौर पर अपनी पीड़ा को बड़ा और दूसरों की पीड़ा को छोटा मानते हैं। ‘ऐसा कैसे हो सकता है कि वह कठिन प्रयास नहीं करता है?’ ‘मुझे नहीं लगता कि यह कोई ऐसी बात थी जिससे उसकी भावनाओं को इतनी चोट पहुंचेगी!” ऐसा सोचते हुए, लोग दूसरों की परिस्थिति और अवस्था के बारे में सोचने के बजाय दूसरों की आलोचना करते हैं। जैसे कि एक रोते हुए बच्चे से जिसके छोटे भाई-बहन ने उसका खिलौना ले लिया हो, ऐसा कहना कि, “इसमें रोने की कोई बात नहीं है,” या उस जीवनसाथी से जो कहता है, “मैं बीमार हूं” या मैं बुरे दौर से गुजर रहा हूं,” कुछ ऐसी बात कहना कि, “अगर तुम बीमार हो, तो डॉक्टर के पास जाओ,” “सिर्फ तुम ही नहीं हो जो बुरे दौर से गुजर रहे हो। मैं भी परेशान हूं!”
आइए हम याद रखें कि जो बात हमें मामूली लगती है वह किसी और के लिए एक गंभीर बात हो सकती है। सहानुभूति दूसरे व्यक्ति के साथ बिना शर्त सहमत होना नहीं, बल्कि यह सोचते हुए कि, ‘वह ऐसा महसूस कर सकता है,’ उस व्यक्ति के मन को समझना है।
Eसहानुभूति दूसरे व्यक्ति के मन को खोल देता है
“हनी, मैं इन दिनों कुछ कठिन समय से गुजर रही हूं। मैं काम के बोझ से दबी रहती हूं और मेरे बॉस मुझे तंग करते हैं।”
“यही तो सामाजिक जीवन है।”
“मुझे पता है, लेकिन मैं इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकती जब लोग मेरे साथ लापरवाही बरतते हैं सिर्फ इसलिए कि वे उच्च पदों पर होते हैं।”
“इसे भूल जाओ।”
“अगर फिर से ऐसा होता है, तो मैं कुछ कह दूंगी।”
“यदि इससे तुम्हारा रिश्ता खराब हो जाता है, तो क्या होगा?”
“मुझे परवाह नहीं है।”
“अगर तुम्हें अपनी नौकरी पसंद नहीं है, तो इसे छोड़ दो और रोना बंद करो।”
“क्या?”
लोगों द्वारा की जाने वाली आम गलतियों में से एक यह है कि वे दूसरे व्यक्ति की कही बातों का न्याय करते हैं कि वे सही हैं या गलत हैं, या एक समाधान सुझाने की कोशिश करते हैं। ऊपर के उदाहरण में, पत्नी अपने पति से केवल सांत्वना और सहानुभूति चाहती थी। यहां तक कि अगर पति चाहता था कि उसकी पत्नी काम न करे, तो भी ऊपर की स्थिति में यह बात महत्वपूर्ण थी कि पति इसे समझे कि पत्नी कैसा महसूस करती है, और उसकी भावनाओं का सम्मान करे।
“हनी, मैं इन दिनों कुछ कठिन समय से गुजर रही हूं। मैं काम के बोझ से दबी रहती हूं और मेरे बॉस मुझे तंग करते हैं।”
“मुझे लगता है यह सच में कठिन है क्योंकि तुम आमतौर पर उन चीजों के बारे में बात नहीं करती थी।”
“वह मेरे साथ लापरवाही बरतते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक बॉस हैं।”
“सच में? ऐसी स्थिति में मुझे भी गुस्सा आएगा।”
“अगर फिर से ऐसा होता है, तो मैं कुछ कह दूंगी।”
“ऐसा लगता है कि तुमने काफी लंबे समय से इसे अपने मन में दबाए रखा है। यह कितना मुश्किल रहा होगा।”
“केवल आप ही हैं जो मुझे समझते हैं।”
“हां, इसे अपने तक ही न रखो। जब भी तुम कठिन समय से गुजरो, तो बस मुझसे बात करो।”
“धन्यवाद। मुझे अब बेहतर महसूस हो रहा है कि मेरे सीने से बोझ उतर गया।”
अपने पति की सहानुभूति से सांत्वना मिली पत्नी अगले दिन हल्के मन से काम पर जाएगी। लोग तार्किक रूप से सही बात करने वाले लोगों की तुलना में उन लोगों को पसंद करते हैं जो उनकी कही बातों के साथ सहानुभूति रखते हैं, और इनके सामने वे अपने मन को खोल देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब दूसरे लोग उनके मन को समझते और सहानुभूति दिखाते हैं तो वे सम्मानित महसूस करते हैं। गलतियां निकालने और समाधान प्रदान करने की कोशिश करने के बजाय, यदि आप केवल पर्याप्त सहानुभूति दिखाएं, तो वे अपने आप अपनी समस्या का हल कर सकेंगे और सही मार्ग ढूंढ़ लेंगे। अपने बच्चे को अनुशासित करते समय, आपको सबसे पहले अपने बच्चे के साथ सहानुभूति रखने की कोशिश करनी चाहिए और उसे सही और गलत के बीच पहचान करने में मदद करनी चाहिए।
सहानुभूति में लोगों को प्रेरित करने की शक्ति है। मरीजों को उस डॉक्टर पर भरोसा होता है जो उनके दर्द के साथ सहानुभूति रखते हैं, और छात्र उस शिक्षक का अनुसरण करते हैं जो उनके मन को समझते हैं। जिन उत्पादों को उपभोक्ताओं से सहानुभूति नहीं मिलती, वे बिक्री के लिए आगे नहीं बढ़ते, और वह भाषण जो दर्शकों के साथ सहानुभूति नहीं रख सकता, केवल एक शोर है। यदि एक ही व्यक्ति हो जो उन्हें समझता है, तो लोग पीड़ा पर जीत प्राप्त करने और जीने के लिए साहस हासिल करते हैं। यदि आप मानते हैं कि आप अकेले नहीं हैं लेकिन आपके पास कोई है जिससे आप अपने दिल की बात कह सकते हैं, तो आप सबसे खुश व्यक्ति हैं।
इस युग में मशीनों के विकास से कंप्यूटर और रोबोट हमारे जीवन की कई चीजों को हल कर सकते हैं। हालांकि, दूसरों के साथ सहानुभूति रखना एक विशेष क्षमता है, जिसकी अल्फागो(गूगल डीपमाइंड द्वारा विकसित एक AI गो प्रोग्राम) भी नकल नहीं कर सकता। जब से हम पैदा हुए हैं तब से मस्तिष्क में दर्पण न्यूरॉन्स हमें बताते हैं कि हमें एक दूसरे को सहानुभूति दिखानी चाहिए और मदद करनी चाहिए।
यदि हम एक दूसरे को उस दर्पण से देखें जो हमारे भीतर है, तो हम एक दूसरे को समझेंगे और परिवार के सदस्यों के बीच समझने में कोई बात मुश्किल नहीं होगी। और साथ ही एक और बात याद रखना है! जितना अधिक आप इस दिल को छू लेने वाली क्षमता का उपयोग करेंगे, उतना ही यह बढ़ता है।