चरवाहा और भेड़

उलानबतार, मंगोलिया से बी. जारगालसेखान

90,326 बार देखा गया

हम, मंगोलवासियों में से ज्यादातर पशुपालन का काम करते हैं। एक बड़े से चरागाह में, गाय, घोड़े, भेड़, बकरी, और ऊंट जैसे पांच प्रकार के मवेशियों को हम एक साथ पालते हैं। उन में से हम भेड़ों का पालन सबसे ज्यादा करते हैं। एक परिवार के पास एक हजार से भी ज्यादा भेड़ें होती हैं। प्रत्येक भेड़ का रंग अलग अलग होता है, जैसे कि सफेद, काला, भूरा, चितकबरा, इत्यादि।

मेरा जन्म एक चरवाहे के घर में हुआ था। जब तक मैं विश्वविद्यालय के लिए उलानबतार में नहीं आया था, मैं ने अपना बचपन बयानमोन्ख जिले के हेन्ती आइमाक गांव में बिताया था। आमतौर पर मैं स्कूल की वजह से अपने माता–पिता से अलग रहता था; हालांकि गर्मी की छुट्टियों में, मैं अपने गांव में वापस आता था और चरवाहे का काम करनेवाले अपने माता–पिता का अनुकरण करते हुए, चरागाह में भेड़ों की देखभाल करता था। ऐसी जीवनशैली और अनुभव के कारण, मैं परमेश्वर की महान योजना को समझ सका जिन्होंने परमेश्वर और हमारे बीच के संबंध की तुलना चरवाहे और भेड़ के बीच के संबंध से की है और झूठे नबियों की तुलना भेड़ियों से की है।

भेड़ बसंत ऋतु में बच्चे पैदा करती है। और यही वह समय है जब चरवाहे सबसे ज्यादा व्यस्त हो जाते हैं। एक परिवार में जिसके पास बहुत सी भेडें. हैं, पांच सौ से भी ज्यादा भेड़ें अपने बच्चों को जन्म देती हैं। उस समय, चरवाहों को अपनी नींद कम कर देनी चाहिए और उनकी जांच करने के लिए बार–बार बाड़े के अंदर और बाहर जाना चाहिए। क्योंकि वे नहीं जानते कि भेड़ कब अपने बच्चे को जन्म देगी, और उन्हें यह भी चिंता होती है कि कहीं नए जन्मे बच्चे सर्दी में जम न जाएं।

चरवाहे जैसे अपने बच्चों से प्रेम करके उनकी देखभाल करते हैं, वैसे ही अपनी भेड़ों की देखभाल करने के लिए भी मेहनत करते हैं। ज्यादातर सभी चरवाहे झुण्ड में सभी माता भेड़ों को और उनके बच्चों को याद रखते हैं। यदि कोई ऐसी माता भेड़ हो जो अपने बच्चे को अपरिचित समझकर उसकी देखभाल न करती हो, तो चरवाहा उन दोनों को चार या पांच दिन के लिए एक अलग तबेले में रखता है। तब ज्यादातर सभी माता भेड़ें अपने बच्चों की देखभाल करती हैं और उन्हें दूध पिलाती हैं। यदि कोई माता भेड़ अंत तक अपने बच्चों की उपेक्षा करे, तो वह मेमना मर जाता है। ऐसी हालत में, चरवाहा खुद मेमने को दूध पिलाता है और उसका पालन करता है।

हर सुबह, चरवाहे भेड़ों के झुण्ड को घर से पांच से छह किलोमीटर(तीन से चार मील) दूर स्थित चरागाह में ले जाते हैं। भेड़िए चरवाहों और भेड़ों के शत्रु हैं। भेड़िए साये की तरह झुण्ड का पीछा करते हैं। जब चरवाहा अपने झुण्ड को लेकर अपने घर से निकलता है, उसी क्षण से लेकर, भेड़ियों का एक झुण्ड टीले और पहाड़ियों पर चढ़ते हुए, दूर से उनका पीछा करता है। यदि कोई भेड़ रास्ते में अपने बच्चे को जन्म दे और उस कारण चरागाह में रह जाए, तो भेड़िए तुरन्त ही उसकी ओर दोड़ते हैं और शिकारी पक्षी भी मेमने पर आक्रमण करते हैं। इसी कारण से, चरवाहा हर समय उनका बहुत ज्यादा ध्यान रखता है।

जब चरवाहा भेड़ों के झुण्ड से दूर हो जाता है, तो भेड़िए तुरन्त ही आकर भेड़ों पर आक्रमण करते हैं। वे कभी भी केवल एक भेड़ का शिकार नहीं करते। वे कुछ भेड़ों की पूंछ को काटते हैं, कुछ की जांघ को, और कुछ की पीठ पर काटते हैं। भेड़िए लगभग पचास से साठ भेड़ों को निर्दयतापूर्वक काटते हैं। उसके अलावा, माता भेड़िए अपने बच्चों को शिकार करना सिखाने के लिए उन्हें घायल भेड़ों से खेलने देती हैं। भेड़ियों से हर जगह काटे जाकर, भेड़ें बड़ी ही मुश्किल से चलती हैं, और दर्द से रोती हैं। शिकारी पक्षी आकर घायल भेड़ों के मांस और आंखों में चोंच मारते हैं।

वैसे भी भेड़ों की नजर कमजोर होती है। उससे बुरा यह होता है, कि यदि वे अंधी हो जाएं, तो चाहे चरवाहा उनके पास जाता है, वे चरवाहे को भेड़िया समझकर उससे बचकर भागने की कोशिश करती हैं। फिर भी, वे खड़ी तो नहीं रह सकतीं। घायल भेड़ों को देखकर, चरवाहा अत्यन्त दुखी आवाज से उन्हें पुकारता है। चूंकि वे बचपन से चरवाहे की आवाज को पहचानती हैं, जब वे उसकी आवाज सुनती हैं, तो वे चिंतामुक्त महसूस करती हैं और दयनीय ढंग से रोती हैं। चरवाहे के हाथों में उठाए जाकर, पहाड़ से नीचे उतरते समय, भेड़ कमजोर और कांपती हुई आवाज के साथ मिमियाती है, जैसे कि चोट लगने और व्यथित होने के बावजूद उसे आराम मिला हो।

जब गर्मियां आती हैं, चरवाहे भेड़ों के झुण्ड को जिसे वे पसंद करती हैं वैसे पर्याप्त पानी और घास से संपन्न अच्छे चरागाहों में ले चलते हैं, और वे स्वयं भी वहां एक तम्बू लगाकर उनके साथ रहते हैं। क्योंकि भेड़ों को जुलाई और अगस्त में अच्छे से खाकर मांसल और मोटा–ताजा हो जाना चाहिए ताकि वे शरद ऋतु, सर्दी, और बसंत ऋतु का अच्छी तरह से सामना कर सकें और मंगोल की असाधारण रूप से लंबी और बहुत ठंडी सर्दियों को पार कर सकें।

एक हजार भेड़ों की देखभाल करना आसान काम नहीं है। हर रोज, चरवाहा तितर बितर भेड़ों को ढूंढ़ने के लिए मैदानों और पहाड़ों पर जाता है। भेड़ों को ढूंढ़ने के लिए, वह मार्ग पर चलने वाले हर एक व्यक्ति को भेड़ के बारे में पूछता है। जब वह किसी एक को ढूंढ़ लेता है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता और उसके चेहरे पर एक बहुत बड़ी मुस्कान आती है।

चरवाहा भेड़ों से बहुत ज्यादा प्रेम करता है। वह भेड़ों पर से अपनी नजरें कभी भी नहीं हटाता। भेड़ एक बहुत ही शांत प्राणी है। मंगोल के लोग एक शांत व्यक्ति को भेड़ कहते हैं।

चाहे भेड़ों को हानि पहुंचाई जाए या चोट लगे, वे बिना किसी प्रकार का हंगामा किए सहन करती हैं। वे विश्वसनीय भी होती हैं। बकरियां चरवाहे के मार्गदर्शन का पालन न करके जैसा उन्हें अच्छा लगता है वैसा करके हानिकारक मार्ग पर चलती हैं, लेकिन भेड़ें चरवाहे की आवाज को सुनती हैं और जहां चरवाहा ले चलता है वहां जाती हैं। इस तरह से, भेड़ें हमेशा चरवाहे का पालन करती हैं और उसके प्रेम में बढ़ती जाती हैं।

जैसे एक चरवाहा भेड़ों को ऐसी जगहों में ले जाता है जहां सबसे अच्छा पानी और चरागाह हो, वैसे स्वर्गीय पिता और माता सबसे अच्छे चरागाह, यानी जीवन के वचनों का भोजन दे रहे हैं और हमारा पालन कर रहे हैं। जैसे एक चरवाहा मेमनों के पैदा होने और बाड़े की देखभाल करने के लिए देर रात तक या बड़ी भोर के समय नहीं सोता, वैसे हमारी माता, जो हमें जन्म देती हैं, देर रात और बड़ी भोर को भी हमारे लिए प्रार्थना करती हैं।

चरवाहा अपनी नजरें झुण्ड पर रखता है और भेड़ों का साये के समान पीछा करने वाले भेड़ियों से उनकी रक्षा करने के लिए हमेशा भेड़ों के साथ रहता है। यह बिल्कुल हमारी माता के समान है जो हमें अपनी आंखों का तारा बनाकर रखती हैं ताकि हम भेड़ों का रूप धरनेवाले भेड़ियों जैसे झूठे भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा घायल न हो जाएं। जैसे वह भेड़ जो किसी पक्षी के उसकी आंखों में चोंच मारने के कारण नहीं देख सकती, चरवाहे के करीब आने पर भी उसे भेड़िया समझती है और भय से कांपती है, वैसे वह सन्तान जिनकी आंखें आत्मिक रूप से बंद हैं, माता के आने पर भी उन्हें नहीं पहचान पातीं। हालांकि, स्वर्गीय माता भेड़िए जैसे शैतान से घायल हुई आत्माओं को गले से लगाती हैं, उनका इलाज करती हैं, और उनका जीवन बचाने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करती हैं।

जब चरवाहा अपनी खोई हुई भेड़ को ढूंढ़ लेता है तो उसकी खुशी का वर्णन नहीं किया जा सकता। यह वैसी ही खुशी है जो अपनी खोई हुई सन्तानों को ढूंढ़ने के बाद माता को महसूस होती है।

चरवाहा अपने जीवन की खुशी, क्रोध, दुख, और प्रसन्नता अपनी भेड़ों के साथ बांटता है। जब भेड़ें स्वस्थ हैं और उन्होंने अच्छा भोजन किया है, तो चरवाहा सच में खुश होता है। जब भेड़ें बीमार होती हैं, चरवाहे का दिल टूट जाता है। जब भेड़ों को चराने के लिए कोई चरागाह न हो, तो चरवाहा उसे लेकर चिन्ता करता है। चूंकि मैं चरवाहों के मन को थोड़ा और करीब से जानता हूं, मैं समझता हूं कि हमारी आत्माओं के चरवाहे, हमारे पिता और माता, हम से कितना ज्यादा प्रेम करते हैं। मैं एक विश्वसनीय पुत्र बनूंगा जो जहां कहीं हमारे चरवाहे, स्वर्गीय पिता और माता मुझे एक भेड़ के समान लेकर जाते हैं, वहां उनका पालन करता है। पिता और माता, मैं आपसे प्रेम करता हूं।