
कुछ लोगों का समूह यीशु के पास आया जो मंदिर में लोगों को उपदेश दे रहे थे। शास्त्री और फरीसी व्यभिचार के अपराध में एक स्त्री को पकड़ लाए।
उन्होंने यीशु से कहा, “व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों पर पथराव करें। अब बता तेरा क्या कहना है?”
वे यीशु को परखने के लिए यह पूछ रहे थे, ताकि वे यीशु पर दोष लगाने के लिए कोई बात पाएं। चूंकि वे यीशु को जवाब देने को मजबूर कर रहे थे, यीशु ने अपना मुंह खोला,
“तुम में से जो पापी नहीं है, वही सबसे पहले इस स्त्री को पत्थर मारे।”
जब लोगों ने यह सुना, तो उनके विवेक में अपराध बोध हुआ, और वे एक एक करके चले गए, और केवल यीशु और स्त्री ही रह गए।
यीशु ने धीमी आवाज में स्त्री से कहा,
“मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूंगा। जाओ और अब फिर कभी पाप मत करना।”
स्त्री अपने पाप के कारण मृत्यु के खतरे में पड़ी, लेकिन वो मरने से बाल–बाल बच गई। सिर्फ एक चीज जो यीशु ने उस स्त्री से मांगी, वह यह थी कि वह फिर कभी पाप न करे।
जो चीज परमेश्वर आज हमसे मांगते हैं, वह भी उससे कुछ अलग नहीं है। हमने स्वर्ग में गंभीर पाप किए थे, और उस पाप के कारण हमें नरक की पीड़ा से गुजरना पड़ा था, लेकिन परमेश्वर ने हमें दण्ड दिए बिना पश्चाताप करने के लिए समय दिया है। इसलिए आज हम उस दण्ड से बच सके हैं जो हमारे लिए पूर्वनिर्धारित किया गया था, और उद्धार के अवसर को पा सके हैं। यदि हम परमेश्वर के अनुग्रह को भूलकर जीवन की व्यवस्था और नियम का उल्लंघन करें और लगातार पाप करते रहें, तो हम स्वर्ग के राज्य की आशीष से वंचित हो जाएंगे जो परमेश्वर ने हमारे पास फिर से लौटा दी है।
जब पाप का छल हमारे मनों को हिलाता है, या जब हमारे पापमय स्वभाव अनजाने में प्रकट होते हैं, तब आइए हम मसीह के निवेदन को स्मरण रखें जिन्होंने हमें गंभीर पापों के लिए दण्ड नहीं दिया, लेकिन उद्धार का अवसर प्रदान किया है, ताकि हम पाप से दूर हटकर पवित्र विश्वास के साथ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।