आत्मिक रूप से अपरिपक्व शिशु से परमेश्वर की संपूर्ण सन्तान बनने तक
ओसाका, जापान से माछमोतो मिवा

पहले मैंने दाई के रूप में कार्य किया। जापान में दाई गर्भधारण, प्रसव, प्रसव–उपरान्त देखभाल और नवजात शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल के बारे में विशेष ज्ञान रखने वाली होती है।
वह मेरी मां थी जिसने मेरे एक दाई बनने के निर्णय पर बहुत ज्यादा प्रभाव डाला था। जब मैं उन्हें अपनी चार सन्तानों को बड़ा करने के लिए मेहनत से काम करते हुए देखती थी, तो मैं हमेशा सोचती थी कि,
‘आखिर उन्हें अपने लिए भी समय न निकालकर अपने परिवार के लिए क्यों जीना पड़ता है? क्या मैं कभी भी अपनी मां जैसी बन सकूंगी?’
मैंने एक मां की भूमिका के बारे में गहराई से सोचना शुरू किया, और उससे मैंने तय किया कि मैं एक दाई बनूंगी।
मैंने अपने स्कूल के दिनों में सत्य ग्रहण किया, और उसके बाद मुझे अपने उन सभी प्रश्नों का उत्तर मिल गया जो अपनी मां को देखकर मेरे मन में पैदा होते थे। मांओं के मनों में समाया हुआ प्रेम और बलिदान दिखाता है कि किस तरह स्वर्गीय माता अपने बच्चों को प्रेम देती और बलिदान करती हैं।
एक दाई के रूप में काम करने के दौरान मैंने परमेश्वर की सामथ्र्य, प्रेम और बलिदान को सबसे अधिक महसूस किया। विशेषकर मैंने नियोनेटल इंटेन्सिव केयर यूनिट(एनआइसीयू) में अपरिपक्व शिशु की देखभाल करते समय बड़ा एहसास प्राप्त किया। एनआइसीयू में आनेवाला प्रत्येक शिशु बहुत छोटा होता है। कुछ अत्यंत अपरिपक्व शिशु का वजन तो केवल 400 ग्राम है।
पूरी तरह तैयार हुए बिना, संसार में समय से पहले पैदा हुए शिशुओं के शरीर में इन्ट्रावेनस इंजेक्शन और मुंह में एक वेंटीलेटर से जुड़ी नली लगानी पड़ती है। वे खुद सांस नहीं ले सकते या दूध का एक घूंट भी नहीं पी सकते। विशेषकर, अत्यंत अपरिपक्व शिशु अक्सर जोखिम में पड़ते हैं, और दुर्भाग्य से उनमें से कुछ शिशुओं की मृत्यु हो जाती है।
अपरिपक्व शिशु के जीवन के जोखिम में पड़ने का कारण यह है कि जो शिशु के जीवित रहने के लिए सबसे अनुकूल और उपयुक्त परिस्थिति प्रदान करती है, वह जगह मां का गर्भ है; इसलिए वे उस गर्भ से बाहर रहने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। गर्भ में शिशु हर प्रकार के हानिकारक कीटाणु और जीवाणु से सुरक्षित रहते हैं। वे एम्नियोटिक तरल में अपने शरीर का तापमान बरकरार रखते हैं, और नाभि रज्जु से ऑक्सीजन और पोषण प्राप्त करते हैं। गर्भ में रहने के दौरान जन्म के बाद कुछ समय तक संक्रमणों से बचे रहने के लिए वे अपने आपको सशक्त बनाते हैं, फिर चाहे वे कमजोर हों। इसी वजह से यदि शिशु समय से पहले अपरिपक्व अवस्था में पैदा होते हैं, तो वे स्वयं की रक्षा करने में बेहद कमजोर और दुर्बल होते हैं।
उन बेहद कमजोर और अत्यंत अपरिपक्व शिशुओं की देखभाल करना सच में मुश्किल था। मुझे दिन–रात बड़े ध्यान से उनकी देखभाल करनी पड़ती थी, क्योंकि यदि उनके साथ कुछ समस्या हो जाती, तो उनका जीवन खतरे में आ सकता था या उनमें गंभीर विकलांगता हो सकती थी।
मैं उनकी बहुत देखभाल करती थी, शायद इसलिए जब शिशु जो वेंटीलेटर के सहारे ही जीवित थे, उनमें से कोई शिशु वेंटीलेटर के बिना सिर्फ अपनी शक्ति से रोता था, तो मुझे अवर्णनीय खुशी की अनुभूति होती थी। वैसा ही अनुभव मुझे उस समय भी होता था जब कोई शिशु जिसे पहले नाक की नली से दूध दिया जाता था, स्वयं बोतल से दूध चूसने के लिए सक्षम हो जाता था, और उस समय भी जब शिशु जो खुद ही मल–त्याग नहीं कर सकता था, मल–त्याग करने में सफल होता था। मैं उन्हें स्वस्थ होते हुए देखकर बहुत खुश थी, और उनके माता–पिता कितने खुश होंगे, इसकी कल्पना मैं पूरी तरह से कर सकती थी।
गर्भ में शिशु कैसे विकसित होते हैं, यह देखकर मैं समझ सकी कि हमारी आत्माएं कैसे विकसित होती हैं। जिस प्रकार शिशु गर्भ में अपनी मां से आ रहे ऑक्सीजन और पोषण से जीवित रह सकता है, उसी प्रकार हमारी आत्माएं भी स्वर्गीय माता की छाया में जीवित रह सकती हैं। हम इतने कमजोर हैं कि हम स्वर्गीय माता के बिना एक क्षण के लिए भी जीवित नहीं रह सकते।
भले ही संतान इस संसार में कमजोर और निर्बल होकर जी रही हों, फिर भी माता उन कमजोरों पर पूरा ध्यान देती हैं और प्रेम से उनकी बड़ी बारीकी से देखभाल करती हैं। जब हम परमेश्वर के लोगों के रूप में संपूर्ण, स्वस्थ और मजबूत बन जाएंगे, तो माता को किसी भी अन्य व्यक्ति से ज्यादा खुशी होगी। इसलिए मैंने स्वयं से वादा किया है कि मुझे बचाने वाले स्वर्गीय पिता और माता के लिए मैं शारीरिक और आत्मिक दोनों रूप से स्वस्थ बनूंगी। और केवल मैं ही नहीं, बल्कि ओसाका सिय्योन के सभी सदस्य माता को प्रसन्न करने वाला परिपक्व विश्वास धारण करेंगे और बहुत सी बहुमूल्य आत्माओं को बचाने के लिए आगे बढ़कर प्रयास करेंगे।