मुझमें आए अच्छे बदलाव

बदलाव की योजना

11,517 बार देखा गया

किसी विज्ञान कथा फिल्म या कहानी में, हम अक्सर ऐसे किरदारों को देख सकते हैं जो अपनी मनमानी से किसी दूसरे की इच्छाओं को नियंत्रित करते हैं। क्या होगा यदि ऐसा असलियत में हो, और हमारी इच्छाएं किसी अनजान शक्ति के द्वारा नियंत्रित की जाती हों?

अन्य दूसरे दिनों की तरह, आज भी रंजय कुमार ऑफिस में पांच मिनट देर से पहुंचा। वह पूरी सुबह नींद में रहता है, और लंच का समय आते ही उसे स्फूर्ति का एहसास होने लगता है। लंच करने के बाद, वह एक कॉफी शोप में जाकर एक कप कॉफी पीता है जिसका दाम एक समय के भोजन के दाम के बराबर है। जैसे ही वह ऑफिस से घर वापस आता है, वह स्वयं को सोफा पर पटकता है और टीवी चालू करता है। वह देर रात तक कुछ नाश्ता करते हुए टीवी देखता रहता है।

ऊपर दी गई दिनचर्या की सूची में कितनी चीजें रंजय कुमार की इच्छा से होती थीं? उत्तर है, कुछ भी नहीं। इसका कारण यह है कि रंजय कुमार की संकल्प–शक्ति किसी और चीज के द्वारा नियंत्रित की जाती है।

अध्याय 1. आदतें कैसे कार्य करती हैं

रंजय कुमार की संकल्प–शक्ति को किसी और ने नहीं बल्कि उसकी खुद की आदतों ने नियंत्रित कर रखा है। लोग हर दिन ज्यादातर समय अपनी आदतों के लिए व्यतीत करते हैं। ये आदतें स्वतंत्र विचारों के आधार पर किए जानेवाले तर्कसंगत व्यवहार नहीं हैं, लेकिन ये ऐसे सहज व्यवहार हैं जो अनजाने में किए जाते हैं। रंजय कुमार ऑफिस में देर से पहुंचता है, झपकी मारता है, कॉफी खरीदता है, नाश्ता खाता है और टीवी देखता है। ये सभी ऐसे आदेश हैं जो उसकी आदतें उसके मस्तिष्क को देती हैं। यानी ये सब उसकी इच्छा से नहीं किए जाते।

आदतें आपके मस्तिष्क के कारण बनती हैं जिसमें अपनी ऊर्जा को बचाने की सहज वृत्ति होती है। खासकर जब आप कुछ नई चीज का अनुभव करते हैं, तो आपका मस्तिष्क बहुत सी ऊर्जा खर्च करता है। इस प्रक्रिया में, चूंकि आपके मस्तिष्क के पास एक समय में काम करने की क्षमता की सीमा होती है, इसलिए आपका मस्तिष्क बहुत ज्यादा थक जाता है। इसलिए, जब आप किसी काम को लगातार करते हैं, तो आपका मस्तिष्क उसका एक “पैटर्न” बनाकर याद रखता है ताकि ऊर्जा बचाई जा सके। यही आदत है।

एक आदत का बनना और और पैदा होना तीन चरणों में होता है: सिगनल, फल और नियमित कर्म। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जिसने खाना खा लिया है, अपने सूखे और चिपचिपे मुंह को ठीक करने के लिए कॉफी शोप ढूंढ़ता है(सिगनल)। वह कॉफी पीता है और अपने सूखे मुंह से छुटकारा पाता है(फल)। चूंकि उसे एक संतोषजनक फल मिला, इसलिए वह उसी क्रम को कुछ बार दोहराता है(नियमित कर्म), और उसका मस्तिष्क उसे एक पैटर्न के रूप में स्वीकार करता है और उसे एक आदत बनाता है।

जैसे–जैसे इन कार्यों का सिलसिला बार–बार दोहराया जाता है, उसका स्वतंत्र विचार मस्तिष्क की प्रक्रिया के कारण अचेत कार्यों के अधीन होने लगता है, और इस तरह से आदत सुदृढ़ बनती जाती है। इसलिए, खाना खाने के बाद उसका मुंह चाहे सूखा न हो, फिर भी उसके पैर कॉफी पीने के लिए जाते हैं।

सभी के पास ऐसी आदतें होती हैं जिन्हें वे खुद भी नहीं जानते हैं। हमें इस बात पर खास ध्यान देना चाहिए कि ये आदतें हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं। यदि हमारे पास अच्छी आदतें हैं, तो इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है। लेकिन हमारी बुरी आदतों के कारण यदि हमारा जीवन बिगड़ता है, तो हमें उन आदतों को सुधारना चाहिए। लेकिन अपने मस्तिष्क में बैठ गई आदतों को एक ही बार में बदलना नामुमकिन है। चूंकि हमारा शरीर परिचित माहौल और दिनचर्या को निपटाने और वर्तमान स्थिति में ही रहने की कोशिश करता है, इसलिए वह कभी भी किसी बदलाव को पसंद नहीं करता। इसलिए भले ही बहुत से लोग यह जानते हैं कि उनमें किस बात की कमी है, लेकिन वे यह कहते हुए अपने व्यवहार की तर्कसंगत व्याख्या करते हैं कि, “चूंकि मैं ऐसे ही रहा हूं, अब मैं उसे बदल नहीं सकता!” और वे हार मान लेते हैं। लेकिन यदि वे समझ लें कि आदतें कैसे कार्य करती हैं, तो वे एक नई आदत को आसानी से बना सकते हैं।

अध्याय 2. कैसे अपनी आदतों को बदलें

किसी आदत को बदलना आसान नहीं है, लेकिन वह उतना मुश्किल भी नहीं है। यदि आप किसी बुरी आदत के तीन चरण, यानी सिगनल, फल और नियमित कर्म को पहचानकर उन्हें बदल दें, तो आप आदत को बदल सकते हैं।

सबसे पहले सिगनल का परिवेश बदल दीजिए। यदि आप बुरी आदत की ओर ले जाने वाले परिवेश को बदल दें, तो आप कुछ अंश तक अनचाहे सिगनल को रोक सकते हैं। दूसरा, पता लगाइए कि उस अनचाही आदत से आपको क्या फल पाने की लालसा है, और उस फल को पाने के लिए कुछ और काम या व्यवहार कीजिए। तब ऐसा होगा कि आपको बुरी आदत से कुछ भी फल पाने की लालसा न होगी। तीसरा, अपने शरीर के लिए लाभप्रद व्यवहार करने के द्वारा, अपने आपको अधिक संतोषजनक फल दीजिए। वह फल जितना ज्यादा संतोषजनक होगा, आप उतना ही उसे दोहराएंगे।

रंजय कुमार अपनी बुरी आदत को सुधारने का निश्चय करता है। सबसे पहले, वह महंगी कॉफी खरीदने से दूर रहता है ताकि वह पैसे की बचत कर सके। इसके लिए, वह ऐसे रास्ते से जाता है जहां कॉफी शोप नहीं है, ताकि उसे कोई सिगनल न मिल सके। और वह सोचता है कि उस उच्च गुणवत्ता की कॉफी से उसे क्या फल मिलता है। ‘क्या कॉफी केवल उसके सूखे मुंह को गीला करने के लिए थी? या फिर क्या उसे केवल कॉफी पसंद थी?’ अंत में जो फल उसे पता चला, वह आश्चर्यजनक था। अनपेक्षित ढंग से, कॉफी उसके लिए कुछ भी नहीं थी। कॉफी पीते समय बस वह मानसिक तनाव से मुक्ति पाना चाहता था। इतना ही नहीं, कॉफी उसका पसंदीदा पेय भी नहीं था। इसलिए उसने कॉफी के बदले जौ की चाय पीने का सोचा, जो वही फल मिलने के लिए सस्ती भी है और स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी है।

टीवी देखते समय नाश्ता खाने से उसे क्या फल मिलता था? उसे केवल चबाने के लिए कुछ चाहिए था। इसलिए रंजय कुमार ने बिस्कुट खाना छोड़ दिया जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं था, और उसके बदल वह नए सिगनल के रूप में फल तैयार करता है। और जब कभी उसका मन कुछ चबाने का करता है, तो एक जैसा नतीजा पाने के लिए वह फल खाता है।

और टीवी देखने के दौरान कसरत करने का सिगनल मिलने के लिए, उसने सोफा के बगल में डंबल्स रख दिए। जब कभी वह डंबल्स को देखता है, वह उनसे कसरत करता है। स्वाभाविक रूप से, कसरत करने का समय बढ़ गया और मूल्यवान फल के रूप में उसने अच्छा स्वास्थ्य पाया।

और ऑफिस में देरी से पहुंचने और वहां जाकर झपकी मारने की आदत का क्या हुआ? आश्चर्यजनक रूप से बहुत सी आदतें बिना किसी विशेष प्रयास के ही बदल गईं। देरी से पहुंचना अब अत्यधिक कम हो गया, और सुबह के समय में ऑफिस के कामों पर एकाग्र होने की शक्ति भी बढ़ गई। केवल एक आदत को बदलने से उसकी दूसरी आदतों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसे आदतों की शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया1 कहा जाता है।

1. आदतों की शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया: वर्ष 2006 में मीगन ऑटन और केन चेंग नामक ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया और इसके लिए उन लोगों को बुलाया गया जो बिना काम किए आलस्य करते थे, और उनमें कसरत करने की आदत डाल दी गई। तब उनमें बदलाव आए; वे स्वस्थ भोजन खाने लगे और अपने कार्य के प्रति सकारात्मक रवैया रखने लगे, और वे कम शराब पीने और कम कैफीन लेने लगे और बिना सोचे–समझे खरीदारी न करने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधर गई। इसका कोई ठोस कारण नहीं है, लेकिन उनके अन्य व्यवहारों में भी शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया हुई होगी।

यदि आप अपनी आदतों के सिगनलों को और फलों को अच्छी तरह खोज लें और उनके बुरे प्रभाव के चक्र को बदल दें, तो थोड़े ही समय में आपका जीवन अद्भुत ढंग से बदल जाएगा।

तब, किसी एक आदत को पूरी तरह से बदलने में कितना समय लगेगा?

अध्याय 3. एक आदत बनाने में कितना समय लगता है?

वर्ष 2009 में मौजूदा आदत को तोड़ने और नई आदत बनाने में कितना समय लगता है, इसके विषय में युनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में एक प्रयोग किया गया। प्रयोग का नियम बहुत आसान था: लोगों ने उन आदतों को कागज पर लिखा जिन्हें वे बदलना चाहते थे, और हर रात को यह जांचा कि आज उन्होंने उस आदत को बदलने के लिए प्रयास किया या नहीं। प्रयोग में भाग लेनेवालों को इस बात का ध्यान रखना था कि वे एक दिन भी छोड़े बिना हर रोज उसे जांचें। “आज मैं थक गया हूं,” या “किसी अपरिहार्य परिस्थिति के कारण आज मैं वह नहीं करता,” ऐसे–ऐसे बहाने नहीं चलने वाले थे।

प्रयोग में यह निष्कर्ष आया कि कोई नई आदत बनाने में औसत 66 दिन लगते हैं। अपनी गलत जीवनशैली को रोकने से और अपरिचित नए व्यवहार को दोहराने से होने वाली तकलीफ को सहते हुए प्रयोग में भाग लेनेवालों ने हर रात को टिप्पणी लिखी। इस छोटी अवधि के दौरान, उन्होंने कई सालों या दसियों सालों से अपनाए गए अपने दिमागी पैटर्न को एक नई दिशा में पूरी तरह बदलने में सफलता प्राप्त की।

यह प्रयोग कोरिया के एक टीवी प्रोग्राम में भी दिखाया गया था।

एक विश्वविद्यालय की छात्रा ने, जो 20 सालों तक अस्तव्यस्त कमरे में रही थी, 66 दिनों तक एक दिन भी छोड़े बिना अपना कमरा साफ किया। परिणामस्वरूप, कुछ समय के बाद, वह खुद–ब–खुद कमरे की सफाई करने लगी।

एक माध्यमिक स्कूल के छात्र ने जिसे स्कूल में अच्छे नंबर नहीं मिलते थे, ज्यादा देर तक पढ़ाई करने की कोशिश की। शुरुआत में, मेज–कुर्सी पर बैठना और किताब का एक पेज भी पलटना बहुत मुश्किल लगता था। लेकिन 66 दिनों के बाद, आश्चर्यजनक रूप से स्कूल से घर आकर वह कंप्यूटर के सामने नहीं, पर मेज–कुर्सी पर बैठता था, और अगली परीक्षा में उसने ज्यादा नंबर प्राप्त किए।

प्रयोग में भाग लेनेवालों ने जो नई आदतों के आदी हो गए थे, कहा कि, “अब मैं तो ऐसा करने के बाद ज्यादा सहज और आरामदायक महसूस कर रहा हूं। ऐसा न करने पर मुझे असहज और तकलीफदेह महसूस होता है।”

उनके मस्तिष्क ने बिल्कुल नई आदतें बनाई थीं। उस प्रयोग में भाग लेनेवालों के समान, जो कोई 66 दिनों तक मजबूत संकल्प–शक्ति के साथ कोशिश करता है, वह एक अच्छी आदत बना सकता है, और इस बात को विज्ञान भी समर्थन देता है।

अध्याय 4. आदत आत्मा का दर्पण हैl

जब नया साल आता है, तो बहुत से लोग लक्ष्य बनाते हैं और उन्हें पूरा करने का संकल्प करते हैं, लेकिन उनमें से ज्यादा लोग थोड़े दिन बीतने पर अपने संकल्प पर दृढ़ नहीं रह सकते। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे अपनी आदतों के विषय में कुछ भी नहीं जानते हैं। आत्मिक लक्ष्यों को पूरा करने में असफल होने का कारण भी एक ही है। आत्मिक रूप से बुरी आदतें आपको अपनी आत्मा की भलाई के लिए काम करने से रोकती हैं। अभी आपको अपनी आत्मिक आदतों को देखना चाहिए और उन बुरी आदतों को सुधारना चाहिए जो आपको परमेश्वर से दूर ले जाती हैं। “क्या मुझे कुड़कुड़ाने की आदत है? क्या मैं अनजाने में किसी से घृणा करता हूं? या मुझे किसी से ईष्र्या या जलन होती है?” यदि इसका जवाब “हां” है, तो आप कम से कम दिन में 10 मिनट तक परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करके, मुस्कुराहट के साथ भाई–बहनों का अभिवादन करके, नया गीत सुनकर, सोने से पहले परमेश्वर से प्रार्थना करके और ऐसे ही अन्य तरीकों से सिगनलों को बदल दीजिए। तब, आपको पहले से ज्यादा संतोषजनक फल प्राप्त होंगे।

बाइबल सिखाती है कि, “भक्ति की साधना कर(1तीम 4:6–9)।” कोई चीज जो आज तक असफल रही है, क्या वह कल सफल होगी? कुछ भी जादू के समान नहीं होता है। लेकिन यदि आप अपनी आदतों को समझें और उन्हें बदलने की कोशिश करना चाहें, तो आपको वह नए साल के पहले दिन से नहीं, बल्कि आज ही से करना चाहिए। अपनी बुरी आदतों को तोड़ने के लिए और परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार नई आदतों को उत्पन्न करने के लिए, आपके पास मजबूत संकल्प–शक्ति होनी चाहिए। जब आप छोटी सी चीजों का अभ्यास करने का संकल्प करें, तो बुरी आदतें जो आप पर नियंत्रण रखती हैं, वे कमजोर हो जाएंगी। निस्संदेह, इस प्रक्रिया में कुछ परेशानियां होंगी, लेकिन यदि आप हार न मानें, तो बहुत जल्द ही नए आत्मिक पैटर्न का जन्म होगा।

आपमें से कुछ शायद इस तरह कोशिश करने की हिम्मत भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि आपका जीवन परमेश्वर की शिक्षाओं से बहुत अलग है। यह फिर भी ठीक है। आप निराश न होकर कम से कम एक चीज के लिए प्रयास कीजिए। यदि आप हिम्मत बांधकर केवल एक कदम आगे बढ़ाएंगे और किसी एक व्यवहार में बदलाव लाएंगे, तो वह एक शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया को शुरू करेगा और दूसरी आदतों को भी बदलेगा। आदतों की शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया आपका इंतजार कर रही है।

आइए अब से हम आदतों के द्वारा नियंत्रित न किए जाएं, बल्कि अपनी आदतों को नियंत्रित करें। तब, स्वर्ग का राज्य और भी अधिक पास आ जाएगा।

संदर्भ
चाल्र्स डुहिग, आदत की शक्ति: जीवन और व्यवसाय में हम जो करते हैं वह क्यों करते हैं, रैंडम हाउस ट्रैड पेपरबैक, 2012
केबीएस(कोरिया प्रसारण प्रणाली), आदतों को बदलने के बारे में रिपोर्ट, 2009