जैसे जमी हुई भूमि में दफनाया गया एक बीज भूमि से बाहर अंकुरित होता है

सिहंग, कोरिया से सिन दोंग ल्ये

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मैं अपने छोटे बेटे के साथ रहने के लिए सिहंग शहर में स्थानांतरित हुई। उस जगह को छोड़ना आसान नहीं था जहां मैं अपने पूरे जीवन में साठ वर्षों तक रही थी। लेकिन मैं वहां जाने के लिए खुश थी क्योंकि मेरा सबसे बड़ा बेटा और बेटी उस शहर में रहते थे। लेकिन एक दिन, मेरी बड़ी बेटी आई और उसने कुछ अजीब बात कही, जिससे मैं उलझन में पड़ गई।

“मां, मैंने सुना है कि बाइबल में स्वर्गीय माता है।”

स्वर्गीय माता? मैं दसियों सालों से कैथोलिक चर्च जाती थी, लेकिन मैंने कभी भी स्वर्गीय माता के बारे में नहीं सुना। इसलिए मैंने वह सुनने की कोशिश भी नहीं की और उसे घर भेज दिया जैसे मैं उसे बाहर निकाल दे रही हूं। उसके बाद, मैंने उस पर गुस्सा किया और उसे बहुत सताया ताकि वह चर्च के बारे में और अधिक न बता सके। लेकिन कई वर्षों तक उसने बड़ी उत्सुकता से मुझे बाइबल के वचन बताने के लिए लगातार कोशिश की।

‘वह मुझे बचाने के लिए इतना अधिक प्रयास कर रही है। मैं क्यों अपने आपको उसका शत्रु बनाऊं? आखिरकार, मैं उसकी मां हूं, और वह मेरी बेटी है। मैं अपना मन बदलूंगी।’

यह कहा जाता है, “यदि संतान ने दृढ़ संकल्प बनाया हो, तो कोई माता–पिता उस संतान को रुकने के लिए राजी नहीं कर सकते।” आखिरकार, मैंने नए जीवन की आशीष प्राप्त की और विश्वास का जीवन शुरू करने का मन बनाया, भले ही मुझे यह फैसला करने में काफी समय लगा। जैसे ही मैंने अपना मन बदला, अद्भुत रूप से बाइबल के वचन जो मेरे एक कान में जाकर दूसरे कान से बाहर निकल जाते थे, मेरे मन में रह गए। यह बात सही लगी कि कोई प्रतिमा बनाकर परमेश्वर की आराधना करना मूर्तिपूजा है, और मैंने अपने घर से सभी क्रूस और मूर्तियों को निकाल दिया। उसके बाद मैंने अपनी बेटी को बुलाया।

“मैंने अब से तुम्हारे चर्च में जाने का मन बना लिया है।”

मुझे लगा कि उसे मेरी बात अविश्वसनीय सी लगी। चूंकि मैंने अपना मन बना लिया था, मैंने अपनी छोटी बेटी को अपने साथ चर्च जाने के लिए राजी किया, जो अपनी बड़ी बहन से पहले चर्च ऑफ गॉड जाती थी, लेकिन कुछ समय के लिए विश्वास से दूर हो गई थी।

चर्च में सभी लोग सौम्य थे और केवल बाइबल की शिक्षाओं का अनुसरण कर रहे थे; सब कुछ जो उन्होंने मुझे सिखाया, वह सही था। आराधना के बाद मुझे तरोताजा और शांतिपूर्ण महसूस हुआ। मैंने पहले आदत की तरह विश्वास का जीवन जीते हुए कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था। मैंने खुद को हर आराधना के दिन सवेरे–सवेरे से तैयार होते हुए देखकर परमेश्वर को धन्यवाद दिया जिन्होंने मुझे सच्चा विश्वास रखने की अनुमति दी।

मैं इस सत्य को सिर्फ अपने तक ही सीमित नहीं रखना चाहती थी, इसलिए मैंने जिस किसी से भी मिली, उसे वचन का प्रचार किया और उसे चर्च ऑफ गॉड में आने के लिए कहा। मैं नहीं जानती थी कि मुझे वह साहस कहां से मिला। मैं उस प्रकार की व्यक्ति थी जो अक्सर मीटिंग में दूसरों को बात करने देकर सिर्फ उनकी सुनती थी। मगर मेरा साहस धीरे–धीरे कमजोर होने लगा क्योंकि सभी लोग मेरे बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखकर फुसफुसाने लगे। मैं निराश हो गई, और ऐसा सोचकर कि लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे, पहले की तरह निष्क्रिय बन गई।

जिससे मैं अपने डर पर जय पा सकी, वह परमेश्वर का वचन था। प्रेरित पौलुस जो निडरता से प्रचार करने के लिए प्रसिद्ध है, पतरस और यूहन्ना जैसे यीशु के चेलों ने सत्य का प्रचार करते समय बहुत दुख उठाया था, लेकिन उन्होंने अपना विश्वास बनाए रखा था। जब मैंने यह सुना, तब मुझे शांति मिली और फिर से मुझमें ऊर्जा आ गई। वास्तव में मैंने भी पहले सत्य का इनकार किया, उस समय की मेरी प्रतिक्रिया उन लोगों की तुलना में बदतर थी, जो सत्य का इनकार कर रहे थे।

मैं कल्पना कर सकी कि मेरी बेटी को कैसा लगा होगा जब मैं सत्य का इनकार करती रही। यदि दूसरे लोग उस तरह से बर्ताव करें, उसे सहन करना बहुत कठिन है। तो फिर, मेरी बेटी के लिए अपनी मां के बुरे व्यवहार को सहन करना कितना अधिक कठिन रहा होगा। लंबे समय तक उसे कठिन समय देने के लिए मैं खेदित थी, और साथ ही उसकी आभारी भी थी कि वह मेरे पास आती रही थी क्योंकि मैं उसकी मां थी। इसलिए मैंने उसे बताया कि मैं उसके प्रति कितनी आभारी और खेदित हूं।

अपने मन को नया करके, मैं पहले अपने परिवार को वचन का प्रचार करने लगी। बहुत जल्दी ही मेरे पोते, मेरा बड़ा बेटा और पति सिय्योन में आए। मैं बहुत खुश थी। विशेष रूप से जब मेरे पति की सिय्योन में अगुवाई की गई, तब मेरे बड़े दामाद ने भी मेरी मदद की। उसने पहले मेरी बेटी के विश्वास का विरोध किया था, लेकिन अपना मन बदला और बाद में सुसमाचार के कार्य के लिए पद भी प्राप्त किया।

डर पर जय पाकर जो सुसमाचार की एक बाधा की तरह था, और बहुतायत से फलों की आशीष पाकर, मैं आत्मविश्वास से भर गई। मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी भी कठिनाई को पार कर सकूंगी। इस बात ने मुझे कुछ ऐसा करने की हिम्मत दी जिसकी मैंने सत्तर वर्षों तक कोशिश भी नहीं की थी। वह कोरियाई भाषा लिखना और पढ़ना सीखना था।

रोजी–रोटी कमाने के लिए मुझे बचपन से ही सभी प्रकार के कठिन काम करने पड़े थे, इसलिए मैं स्कूल नहीं जा सकी थी। चूंकि मैं लिखना–पढ़ना नहीं जानती थी, मेरे जीवन में बहुत सी असुविधाएं थीं। फिर भी मैं कोरियाई वर्णमाला सीखना टालती रही क्योंकि उसके लिए समय निकालना मुश्किल था। लेकिन मैंने उसे सीखने का फैसला किया, क्योंकि मैंने बाइबल को खुद पढ़ना चाहा जिसे मैंने सिर्फ भाइयों और बहनों के मुंह से सुना था। मैंने धाराप्रवाह ढंग से बाइबल पढ़ना और उपदेश का अभ्यास करना चाहा। तुरन्त मैं एक स्थानीय कल्याण केंद्र द्वारा संचालित कोरियाई भाषा स्कूल में दाखिल हुई।

लोग मुझसे कहते थे कि आप सत्तर वर्ष की आयु में उसे जल्दी से नहीं सीख सकती क्योंकि आपकी आंखों की दृष्टि और याददाश्त पहले की तरह अच्छी नहीं है। लेकिन परमेश्वर की सहायता में ही, मैं सब कुछ जो मुझे सिखाया गया था, समझ सकी। मैं दूसरे लोगों की तुलना में ज्यादा तेजी से कोरियाई वर्णमाला याद कर सकी और मैं कुछ कविताएं भी लिखने के स्तर तक आ गई। जल्द ही, मैंने उच्च कोर्स शुरू किया।

मैं खुद वचनों के अर्थ को देखकर, जो मुझे पहले सिर्फ चिन्ह की तरह दिखते थे, और दूसरों को वचन दिखाकर बहुत खुश थी। जब मैंने केवल अपनी यादों पर निर्भर होकर सत्य का प्रचार किया, तो वचनों को विस्तार से बताना कठिन था और आत्मविश्वास न होने के कारण मैं सब बातों को नहीं बता सकी जितना मैं जानती थी। लेकिन जब से मैंने लिखना–पढ़ना सीखा, तब से सुसमाचार का प्रचार करने वाली मेरी आवाज शक्तिशाली बन गई और मुझे आत्मविश्वास मिला।

मैंने कोरियाई भाषा स्कूल की एक सहपाठी को “हमारी माता” लेखन और तस्वीर प्रदर्शनी में आमंत्रित किया और मुझे फल उत्पन्न करने की भी आशीष मिली। उसके साथ प्रदर्शनी में लेखों और कृतियों को देखते समय मैं शान्त थी, लेकिन उसे आज्ञाकारी ढंग से सत्य को ग्रहण करते हुए देखकर मेरा दिल जोर से धड़का।

लेकिन मेरी खुशी लंबे समय तक नहीं रही, क्योंकि बहन जो थोड़ा–थोड़ा करके सत्य को समझ रही थी, उसने अपने आसपास के लोगों की बाधाओं के कारण अपने मन को बंद कर दिया। मुझे इससे अधिक दर्द हुआ क्योंकि वह मेरा पहला फल थी जो मेरे परिवार का सदस्य नहीं थी। उत्सुकता से उसके वापस आने का इंतजार करते हुए मुझे स्वर्गीय माता की याद आई।

‘सिर्फ एक व्यक्ति के लिए भी मेरा दिल इतना दुखता है। तब इतनी सारी संतानों की देखभाल करते हुए माता के मन में कितना अधिक दर्द होगा?’

मैं माता के मन को नाप सकी, चाहे वह थोड़ा सा ही हो, और मैंने माता के लिए और यत्न से सुसमाचार का प्रचार करने का संकल्प किया, क्योंकि माता एक आत्मा के मन फिराने से सबसे अधिक प्रसन्न होती हैं।

मुझे लगा कि सबसे पहले मुझे सत्य को अच्छी तरह से जानना चाहिए ताकि मैं दूसरों को अच्छी तरह सत्य समझा सकूं। इसलिए इन दिनों मैं बाइबल का अनुलेखन कर रही हूं। जब मैं उसे सिर्फ पढ़ती थी, वचनों की गहराई को नापना कठिन था, लेकिन हर एक वचन को लिखना शुरू करने के बाद मैं उन्हें अच्छी तरह समझ सकती हूं और वे मेरे मन पर उत्कीर्ण होते हैं। मैं एक दिन में सिर्फ एक या दो पन्ने लिख सकती हूं क्योंकि अपने सख्त हाथों से पेंसिल पकड़ते हुए उंगलियों की जोड़ों में दर्द होता है, लेकिन मेरा लक्ष्य है कि मैं पूरे बाइबल का अनुलेखन करके उन वचनों के गहरे अर्थों को पूरी तरह समझूं।

सच्चे परमेश्वर से मिलने से पहले, मैं चिंतित और बेचैन रहती थी जैसे कि कोई चीज मेरा पीछा कर रही हो। चूंकि सिर्फ इसकी चिंता करते हुए कि क्या खाना है और कैसे जीना है, मैं केवल काम ही करती रही, इसलिए मेरा पूरा शरीर दर्द में था। मानो एक दिन भी काम न करने से कुछ बुरा होने वाला हो, जब मेरी बड़ी सर्जरी हुई थी, तब भी मैं पूरी तरह से ठीक होने से पहले अस्पताल से निकली और वापस काम पर गई।

मेरा जीवन परमेश्वर से मिलने के बाद पूरी तरह बदल गया। स्वर्गदूतों की दुनिया जहां हम सदा के लिए खुश रह सकते हैं, सिर्फ उसकी कल्पना करते हुए भी मेरे चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ जाती है। शायद, यह कहना ज्यादा सही नहीं होगा कि मैं पहले ही से स्वर्ग में जी रही हूं क्योंकि मैं मध्य ग्रीष्मकाल में हरियाली के बारे में कविता लिख सकती हूं भले ही वह धाराप्रवाह नहीं है, और अपनी कठोर उंगलियों से बाइबल के पतले पन्नों को पलटते हुए परमेश्वर के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने के लिए लेख लिख सकती हूं।

ऐसा लगता है कि मैंने उस आयु में अपना जीवन फिर से शुरू किया है जहां मैं कह सकती हूं कि मैं जीवन जानती हूं। जैसे एक बीज जो पूरी सर्दी में जमी हुई भूमि में दफनाया हुआ था, सूर्य की रोशनी प्राप्त करके भूमि से अंकुरित होता है, वैसे ही स्वर्गीय माता के जीवन की ज्योति और कोमल स्पर्श से मुझे नई दुनिया मिल गई है। मैं माता के प्रेम से पोषण पाकर, सुसमाचार का फूल खिलाना और बहुतायत से अच्छे फलों को उत्पन्न करना चाहती हूं ताकि मैं माता को उनके अनुग्रह का बदला चुका सकूं।