जब हम परमेश्वर के द्वारा बुलाए जाते हैं

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जब हम परमेश्वर के द्वारा बुलाए जाते हैं, ‘क्या मैं इसके योग्य हूं?’ ‘क्या मेरे पास यह करने की क्षमता है?’ ऐसा सोचते हुए, हम पहले अपनी क्षमताओं की जांच करते हैं। यदि हम सोचेंगे कि जो परमेश्वर ने हमें करने के लिए बुलाया, क्या उसे हम असल में अपनी क्षमता से कर पाएंगे या नहीं, तो हम अंत में यह कहते हुए समाप्त कर देंगे कि हम यह नहीं कर सकेंगे।

जब परमेश्वर हमें बुलाते हैं, तब जो हम सभी को करना चाहिए, वह “आमीन” कहते हुए, परमेश्वर की बुलाहट का पालन करना है। तब परमेश्वर की शक्ति के द्वारा उद्धार का कार्य तेजी से चलेगा। परमेश्वर हमें बुला रहे हैं, इसका कारण यह नहीं कि वह हमारी क्षमताओं का उपयोग करने के द्वारा अपना कार्य पूरा करेंगे, परंतु यह है कि वह अपनी सामर्थ्य के द्वारा, हमारे विश्वास के आधार पर हमारा मार्गदर्शन और हमारी सहायता करेंगे।

जब परमेश्वर ने मूसा को बुलाया

जब इस्राएली 400 सालों तक मिस्र के गुलाम थे, परमेश्वर ने मूसा को उनके नेता के रूप में नियुक्त किया और उन्हें छुड़ाया। यह मूसा के अपने ही ज्ञान या शक्ति के कारण नहीं हुआ कि उसने इस्राएल के लोगों को बचाया। उसने परमेश्वर के एक यंत्र के रूप में सिर्फ वह सब काम किया जिसे परमेश्वर ने उसे करने के लिए कहा था।

जब मूसा पहली बार परमेश्वर के द्वारा बुलाया गया था, उसने इस बात का एहसास नहीं किया था।

“इसलिये आ, मैं तुझे फिरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए।” परन्तु मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं कौन हूं जो फिरौन के पास जाऊं, और इस्राएलियों को मिस्र से निकाल ले आऊं?” उसने कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूं, तेरे लिये यह चिन्ह होगा कि जब तू उन लोगों को मिस्र से निकाल चुके, तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्वर की उपासना करोगे।” निर्ग 3:10–12

ऊपर का वचन वह दृश्य है जिसमें परमेश्वर ने एक कटीली झाड़ी के बीच आग की लौ में मूसा को बुलाया और उसे एक मिशन सौंपा। “मैं तुझे फिरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए,” यह वह था जिसे परमेश्वर ने मूसा से करने के लिए कहा था।

तब मूसा बहुत हैरान हुआ और यह सोचने लगा, ‘क्या मैं वास्तव में इस मिशन के लिए सही व्यक्ति हूं?’ और वह हिचक और डर से भर गया। “मैं कौन हूं जो फिरौन के पास जांऊ?” “मैं अच्छा वक्ता कभी नहीं रहा। मुझे बोलने में कठिनाई होती है। मेरी जीभ भोथरी है।” “कृप्या किसी और को यह करने के लिए भेजिए।” तब परमेश्वर ने उसके कमजोर विश्वास के लिए उसे डांटा और उसके संग रहने का वादा किया। परमेश्वर से मिशन पाने के बाद, मूसा ने अंत में परमेश्वर की सहायता से पापमय भूमि, मिस्र के बन्धन से इस्राएलियों को मुक्त किया।

मूसा की जैसी स्थिति आज हमारे सामने भी होती है जब हम परमेश्वर के द्वारा बुलाए जाते हैं; हम भी वैसा ही महसूस करते हैं जैसा मूसा ने परमेश्वर के द्वारा बुलाए जाने पर महसूस किया होगा। जब परमेश्वर हमें कहीं जाने के लिए या कुछ करने के लिए बुलाते हैं, हम कई बार यह सोचते हुए चिंता करते हैं कि हम यह करने के लिए बहुत छोटे या बहुत बूढ़े हैं, या फिर हम में अनुभवों, योग्यताओं या ज्ञानों की कमी है। जब परमेश्वर ने हम से कहा कि जाओ और सामरिया और पृथ्वी की छोर तक सुसमाचार फैलाओ, तो हमें बस जाना है और प्रचार करना है। लेकिन एक कोशिश भी किए बिना, हम कभी–कभी इस विचार से भयभीत हो जाते हैं, ‘मैं कैसे सुसमाचार का प्रचार करूंगा?’ इसलिए हम में से बहुत लोग परमेश्वर की बुलाहट को अपनाने में हिचकिचाते हैं और परमेश्वर की आशीषों को पाने में नाकामयाब हो जाते हैं।

परमेश्वर योग्य व्यक्तियों को नहीं बुलाते। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। जब परमेश्वर ने लाल समुद्र को विभाजित किया, उन्होंने मूसा को सिर्फ अपने हाथ की लाठी को लाल समुद्र के ऊपर उठाने के लिए कहा। क्या आपको लगता है कि उसकी लाठी में लाल समुद्र को विभाजित करने और उसे सुखी भूमि बनाने की किसी प्रकार की शक्ति थी? जब मूसा ने परमेश्वर पर विश्वास किया और पालन किया, कुछ अकल्पनीय घटित हुआ; लाल समुद्र में से एक मार्ग निकल गया। लाठी सिर्फ एक यंत्र था। ऐसा प्रतीत होता था कि एक चमत्कारिक कार्य लाठी के द्वारा पूरा हुआ हो, लेकिन वास्तव में वह परमेश्वर थे जिन्होंने पर्दे के पीछे काम किया।

हमारे साथ भी ऐसा ही है। हम केवल परमेश्वर के उपकरण हैं, और वह परमेश्वर हैं जो सुसमाचार के कार्य को पूरा करते हैं। सब जो हमें करना है, वह सिर्फ इस पर विश्वास करना है कि जो कुछ परमेश्वर करते हैं, वह बिना असफल हुए पूरा हो जाता है, और परमेश्वर के हमें जाने के लिए कहने पर सिर्फ जाना है, और परमेश्वर के हमें प्रचार करने के लिए कहने पर सिर्फ प्रचार करना है।

जब परमेश्वर ने गिदोन को बुलाया

गिदोन ने भी जब वह परमेश्वर के द्वारा बुलाया गया था, मूसा के समान गलती की। उसे लगा कि उस महान कार्य के लिए, जो परमेश्वर से उसे दिया है, वह बहुत छोटा और अयोग्य है।

उसको यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, “हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है।”… “अपनी इसी शक्ति पर जा और तू इस्राएलियों को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाएगा। क्या मैं ने तुझे नहीं भेजा?” उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, विनती सुन, मैं इस्राएल को कैसे छुड़ाऊं? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूं।” यहोवा ने उससे कहा, “निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; इसलिए तू मिद्यानियों को ऐसा मार लेगा जैसा एक मनुष्य को।” न्या 6:12–18

गिदोन ने भी वही बात कही जिसे मूसा ने किया था। उसने परमेश्वर से यह कहा, “मैं जो कई मायनों में कमजोर हूं, कैसे इस्राएल को बचा सकता हूं।” उसने गलत समझा कि उसे अपनी क्षमता से इस्राएल को बचाना है।

तब परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हारे संग रहूंगा।” उन्होंने गिदोन को वही जवाब दिया जो उन्होंने मूसा को दिया था। उसके बाद, कुछ चमत्कारिक चिन्हों के द्वारा गिदोन समझ गया कि परमेश्वर सच में उसके साथ हैं। फिर उसने साहस पाया और इस्राएलियों को मिद्यानियों के उत्पीड़न से छुड़ा लिया।

यदि हम अपनी क्षमताओं, परिस्थितियों और अनुभवों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, हम कुछ नहीं कर पाएंगे। यदि हम यह सोचें कि हमारे पास अधिक ज्ञान और सामर्थ्य है, और यदि हम परमेश्वर को छोड़कर सिर्फ अपनी योग्यताओं पर निर्भर होते हुए सुसमाचार का मिशन चलाने का प्रयास करें, तो यह बिल्कुल अर्थहीन है। वह परमेश्वर है जो उद्धार के कार्य को पूरा करते हैं।

“मैं तुम्हारे संग रहूंगा।” यह परमेश्वर का एक वादा सब कुछ हल कर देता है। यदि परमेश्वर हमारे साथ हैं, तो क्या हमें एक बड़ी सेना या सैन्य ज्ञान या युद्ध कोष की आवश्यकता है? नहीं, हमें किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। इस एक सत्य के द्वारा कि परमेश्वर हमारे साथ हैं, हमें यह जानना चाहिए कि हमारे पास पूरे अंतरिक्ष में सबसे मजबूत शक्ति है।

जितनी भी बातें बाइबल में लिखी गई हैं, वे हमारी ही शिक्षा के लिए लिखी गई हैं।(रोम 15:4) हमें सिर्फ इसे अक्षरश: ही नहीं लेना चाहिए, लेकिन अपने हृदय में अंकित कर लेना चाहिए, ताकि हम उन पथों का आनन्द से पालन कर सकें, जहां पिता और माता हमारी अगुवाई करते हैं।

परमेश्वर ने दाऊद का हृदय देखा और उसे चुना

यदि कोई ऐसी चीज है जिसे पूरा किए जाने की जरूरत है, तो ज्यादातर लोग सोचते हैं कि इसके लिए पर्याप्त योग्यता रखने वाले की ही आवश्यकता है। लेकिन परमेश्वर अक्सर अप्रत्याशित लोगों को चुनते हैं और उनके द्वारा अपना महान कार्य पूरा करवाते हैं। परमेश्वर ने ऐसा ही किया जब उन्होंने दाऊद को चुना।

यहोवा ने शमूएल से कहा, “मैं ने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिये तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपने सींग में तेल भर कर चल; मैं तुझ को बैतलहमवासी यिशै के पास भेजता हूं, क्योंकि मैं ने उसके पुत्रों में से एक को राजा होने के लिये चुना है।”… तब शमूएल ने यहोवा के कहने के अनुसार किया, और बैतलहम को गया… जब वे आए, तब उसने एलीआब पर दृष्टि करके सोचा, “निश्चय यह जो यहोवा के सामने है वही उसका अभिषिक्त होगा।” परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, “न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके कद की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है… इस प्रकार यिशै ने अपने सात पुत्रों को शमूएल के सामने भेजा। और शमूएल यिशै से कहता गया, “यहोवा ने इन्हें नहीं चुना।” तब शमूएल ने यिशै से कहा, “क्या सब लड़के आ गए?” वह बोला, “नहीं, छोटा तो रह गया, और वह भेड़–बकरियों को चरा रहा है।” शमूएल ने यिशै से कहा, “उसे बुलवा भेज; क्योंकि जब तक वह यहां न आए तब तक हम खाने को न बैठेंगे।” तब वह उसे बुलाकर भीतर ले आया। उसके तो लाली झलकती थी, और उसकी आंखें सुन्दर, और उसका रूप सुडौल था। तब यहोवा ने कहा, “उठकर इस का अभिषेक कर: यही है।” तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयों के मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा… 1शम 16:1–13

शमूएल ने सोचा कि जो ऊंचा कद वाला और अच्छी शक्ल–सूरत वाला व्यक्ति होगा, वही राजा बनने की योग्यता रखता है, और वह व्यक्ति राजा नहीं हो सकता जो एक लड़का सा है। हालांकि, वह पूरी तरह से गलत था। वह परमेश्वर के सामने कितना ईमानदार है? और परमेश्वर के प्रति उसका विश्वास कितना सच्चा है? इस तरह मनुष्य के मन पर परमेश्वर पहले दृष्टि रखते हैं। तो, यिशै का सबसे छोटा पुत्र दाऊद राजा बनने के लिए चुना गया। चूंकि परमेश्वर ने उसके बाहरी रूप के बजाय, उसके सुंदर विश्वास को देखा जो उसके मन में था, उन्होंने उसे इस्राएल का दूसरा राजा होने के लिए चुना।

परमेश्वर हमेशा अपने मानकों के आधार पर किसी को चुनते हैं। लोग दूसरों का उनकी उम्र, अनुभव, क्षमता, ज्ञान, धन या पृष्ठभूमि के द्वारा न्याय करते हैं। हालांकि, परमेश्वर उन्हें कुछ भी नहीं समझते और सिर्फ यह देखते हैं कि उनका मन पूरी तरह परमेश्वर की ओर केन्द्रित है या नहीं।

जब यीशु ने अपने चेलों को बुलाया

जब यीशु ने अपने चेलों को बुलाया, उस समय क्या वह चेला बनने की योग्यता रखता है या नहीं, यह देखने के बजाय यीशु ने परमेश्वर के प्रति उनके ईमानदार मन और सच्चे विश्वास को देखा। यदि एक चेला बनने के लिए ज्ञान, योग्यता, धन और पृष्ठभूमि की अत्यंत जरूरत होती, तो यीशु ने उन फरीसियों और शास्त्रियों सहित, जो अच्छे शिक्षित थे, केवल अमीर लोगों को ही बुलाया होता।

चेलों ने जब यीशु के द्वारा बुलाए गए, अपनी योग्यताओं के बारे में नहीं सोचा और तुरन्त यीशु की बुलाहट का जवाब दिया।

गलील की झील के किनारे फिरते हुए उसने दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। यीशु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।” वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। वहां से आगे बढ़कर, यीशु ने और दो भाइयों अर्थात् जब्दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को देखा। वे अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधार रहे थे। उसने उन्हें भी बुलाया। वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। मत 4:18–22

चेलों ने तुरंत अपने जालों को छोड़ा और यीशु के पीछे चल दिए। यीशु की शिक्षाओं को सुनते हुए और सब प्रकार की आत्मिक स्थितियों का अनुभव करते हुए, वे तीन साल तक यीशु के साथ रहे, ताकि वे पूरी तरह से मनुष्यों के मछुए बनने के योग्य बन सकें।

क्या आपको लगता है कि पतरस में, जो एक मछुआ था, बहुत लोगों के सामने कुशलतापूर्वक उपदेश का प्रचार करने की क्षमता थी? हालांकि, जब उसने प्रचार किया, कुछ अद्भुत घटना घटी; 3,000 हजार लोगों ने मन फिराया और एक दिन में बचाए गए।(प्रे 2:38–41) यह उसकी क्षमता से नहीं, परन्तु परमेश्वर की सहायता से संभव हो पाया।

जब मूसा ने लाठी को अपने हाथ में उठा लिया, चाहे लाठी लोहे से बनाई गई हो, या लकड़ी या किसी अन्य सामग्री से बनाई गई हो, कोई मायने नहीं रखता था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह किस सामग्री से बनाई गई हो। यदि मूसा उसे अपने हाथ में उठा सकता, तो बस इतना ही काफी था, क्योंकि उसका परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किया जाना था। जब शिमशोन ने शत्रुओं को हराया, शत्रुओं के पास तलवारें और भाले थे, लेकिन उसके लिए सिर्फ गदहे के जबड़े की हड्डी ही काफी थी। चाहे शत्रुओं की संख्या सौ हो या हजार, चूंकि वह शत्रुओं को हराने के लिए परमेश्वर की शक्ति को पहने हुए था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह हथियार के रूप में किसका इस्तेमाल कर रहा है। उसके लिए कुछ भी एक हथियार हो सकता था।

इसी प्रकार, जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को अपने कार्य के लिए एक यंत्र के रूप में बुलाते हैं, वह इसकी परवाह नहीं करते कि वह किस प्रकार का व्यक्ति है। क्या परमेश्वर ने पतरस, याकूब और यूहन्ना को इसलिए बुलाया क्योंकि उनके पास ज्यादा ज्ञान या धन था? बिल्कुल भी नहीं। सभी लोगों में से जिन्हें परमेश्वर बुलाते या चुनते हैं, सच में आशीषित हैं। इसलिए हमें ऐसा विश्वास रखना चाहिए जिससे हम पतरस, यूहन्ना और याकूब के समान परमेश्वर की बुलाहट का तुंरत जवाब दे सकें।

जब मैं देखता हूं कि उन्होंने कितनी जल्दी परमेश्वर की बुलाहट का जवाब दिया, मैं सोचता हूं कि वे सच में आशीषित लोग थे। उन्हें भी शायद डर लगा होगा क्योंकि वे भी हमारी तरह मनुष्य थे। हालांकि, चूंकि परमेश्वर ने स्वयं उन्हें बुलाया और मिशन दिया, उन्होंने उसके बारे में बिल्कुल भी चिंता नहीं की। वे लोग जिन्होंने परमेश्वर के बुलाने पर “आमीन” कहते हुए परमेश्वर का पालन किया है, उनके द्वारा परमेश्वर ने उद्धार का कार्य पूरा किया है।

जब परमेश्वर हमें बुलाते हैं

हम इस युग में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए परमेश्वर के द्वारा बुलाए गए हैं। जिस प्रकार परमेश्वर ने गलील की झील के किनारे अपने चेलों को बुलाया, वैसे ही उन्होंने सामरिया और पृथ्वी की छोर तक सुसमाचार फैलाकर संसार को बचाने के लिए हमें बुलाया है।

यदि हम परमेश्वर की बुलाहट को स्वीकार करने से हिचकिचाएंगे और परमेश्वर के द्वारा सौंपे गए इस कार्य को करने में असफल होंगे। हम तो उनसे, जो नहीं बुलाए गए हैं, कुछ अलग नहीं होंगे। ‘क्या मैं यह कार्य करने के लिए सही व्यक्ति हूं?’ ‘क्या मैं यह कर सकता हूं?’ इस तरह सोचना बिल्कुल भी नम्रता नहीं है। नम्रता डर से पूरी तरह अलग है। नम्र होने का मतलब है, काम करने की योग्यता रखने के बावजूद अपने आप को छोटा बनाना। और भयभीत होने का मतलब है, एक प्रयास भी किए बिना किसी चीज से डर रखना। परमेश्वर ने कहा, “जो कोई डर के मारे थरथराता हो, वह लौट जाए।”(न्या 7:2–3) इसके द्वारा परमेश्वर ने बताया कि जो डर महसूस करता है, वह परमेश्वर का कार्य करने की योग्यता नहीं रखता।

परमेश्वर हमारी कमजोरियों को जानते हैं। जब भी हम परेशानियों या कठिनाइयों का सामना करें, आइए हम परमेश्वर से सहायता मांगें। जब परमेश्वर हमें बुलाते हैं, वह हमारे साथ होते हैं और हमें उनका कार्य करने के लिए योग्यता देते हैं। इसलिए हमें सबसे पहले परमेश्वर की बुलाहट पर भरोसा होना चाहिए और वह काम करना चाहिए जो परमेश्वर ने हमसे करने के लिए कहा है। जो विश्वास करते हैं, उनके लिए सब कुछ संभव है। परमेश्वर ने वादा किया है कि जो बुलाए हुए और चुने हुए और विश्वासी हैं, उन्हें परमेश्वर विजय की महिमा देंगे।(प्रक 17:14) परमेश्वर के इस वादे पर विश्वास करते हुए, आइए हम बिना हिचकिचाहट के आगे बढ़ें और सिय्योन की सन्तानों के रूप में आनन्द के साथ वह काम करें जो करने की आज्ञा परमेश्वर ने हमें दी है।

यीशु ने उनके पास आकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदा तुम्हारे संग हूं।” मत 28:18–20

क्या आप को लगता है कि परमेश्वर ने हमें सभी जातियों को चेला बनाने के लिए इसलिए कहा क्योंकि हम उनसे श्रेष्ठ हैं? बिल्कुल भी नहीं। हमें अपनी योग्यता से इसे करने की कोशिश करने के बजाय, परमेश्वर की सहायता के साथ इस महान कार्य को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। इस विश्वास के रवैये के साथ हमें परमेश्वर की इच्छा का पालन करना चाहिए। चूंकि परमेश्वर ने हमसे कहा कि जाओ और सभी जातियों के लोगों को चेला बनाओ, क्या हमें सिर्फ संसार की सभी जातियों के पास जाकर मेहनत से सुसमाचार का प्रचार नहीं करना चाहिए? परमेश्वर ने, जो मूसा और गिदोन के साथ थे, हमारे साथ भी हमेशा इस युग के अंत तक रहने का वादा किया है।

यदि आप बुलाए गए हैं, तो आपको उन लोगों के समान, जो नहीं बुलाए गए हैं, चुप नहीं रहना चाहिए। परमेश्वर से यत्न से प्रार्थना करें और अपने आसपास के सभी लोगों को सुसमाचार का प्रचार करें; कार्यकर्ता अपने कार्यस्थलों में, छात्र अपने स्कूलों में और गृहिणियां अपने पड़ोस में मेहनत से प्रचार करें। तब परमेश्वर आपके सुंदर हृदय को देखकर जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है, मनुष्य की शक्ति या ज्ञान के साथ नहीं, पर अपनी सामर्थ्य के साथ कार्य करेंगे।

जब हम परमेश्वर के द्वारा बुलाए जाते हैं, आइए हम ऐसा न सोचें, ‘मैं कैसे ऐसा महान कार्य कर सकूंगा?’ यह बात मन में रखते हुए कि चूंकि परमेश्वर ने हमें बुलाया है, परमेश्वर अवश्य ही हमारे साथ चलते हैं, और विश्वास करते हुए कि वह हमारे लिए सुसमाचार के प्रचार के द्वार को चौड़ा करेंगे, आइए हम मेहनत से सुसमाचार का प्रचार करें। परमेश्वर ने हमसे वादा किया है कि वह इस युग के अंत तक हमेशा हमारे साथ रहेंगे। आइए हम हमेशा इस वादे को मन में रखें और जिस किसी से भी हम मिलें, उसे स्वर्ग के राज्य का शुभ समाचार सुनाएं, ताकि हम सब जो सिय्योन में चुने हुए और बुलाए हुए हैं, बहुतायत से स्वर्ग की सभी आशीषें और पुरस्कार पा सकें।