परमेश्वर केवल विश्वास के द्वारा दिखाई देते हैं

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जब हम परमेश्वर के वचन का प्रचार करते हैं, तब हम अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो कहते हैं कि अगर हम उन्हें परमेश्वर दिखाएं, तो वे परमेश्वर पर विश्वास करेंगे। और वे यह भी कहते हैं, “अगर मैं परमेश्वर को नहीं देख सकता, तो कैसे मैं उन पर विश्वास कर सकता हूं?”

एक ऐसी कहावत है: “देखना ही विश्वास करना है।” एक बार एक व्यक्ति ने कहा, “मुझे परमेश्वर दिखाओ। चूंकि यह कहा गया है कि देखना ही विश्वास करना है, यदि मैं परमेश्वर को देख सकूंगा, तो उन पर विश्वास करूंगा।” आपको क्या लगता है, परमेश्वर ने उससे क्या कहा?

“मुझ पर विश्वास करो, तो तुम मुझे देखोगे।”

परमेश्वर ने नहीं कहा, “देखना विश्वास करना है,” लेकिन कहा, “अगर तुम विश्वास करोगे, तो तुम सब कुछ देखोगे।” जैसे बाइबल कहती है, “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है”(इब्र 11:1), अगर हम परमेश्वर पर विश्वास करें, तो हम उन्हें देख सकते हैं। लोग परमेश्वर को इसलिए नहीं देख सकते और उन पर संदेह करते हैं क्योंकि वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते।

ऐसे बहुत से लोग हैं जो कहते हैं, “अगर मैं परमेश्वर को देख सकूंगा तो परमेश्वर पर विश्वास कर सकूंगा।” भले ही परमेश्वर उनके ठीक बगल में हैं, उनसे बात कर रहे हैं और उन्हें सीधे सिखा रहे हैं, फिर भी ऐसे अविश्वासी हृदय के साथ, वे बिल्कुल भी परमेश्वर को नहीं देख सकते। परमेश्वर पर विश्वास करने पर ही, हम बाइबल की भविष्यवाणी की बातें और दूसरी शिक्षाएं भी देख सकते हैं और उनकी पुष्टि कर सकते हैं। स्वर्ग का राज्य ऐसी जगह है जिसकी हम सिर्फ तब ही आशा कर सकते हैं जब हमारे पास सही विश्वास हो।

परमेश्वर इस पृथ्वी पर शरीर में आए और अपने आपको लोगों के सामने दिखाया, लेकिन लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया। 2,000 वर्ष पहले जो हुआ, उसके द्वारा आइए हम यह देखने के लिए खुद को फिर से जांचें कि आज हमारा विश्वास किस प्रकार का है।

लोग जो देखते हुए नहीं देखते

ज्यादातर लोग सोचते हैं कि वे परमेश्वर पर तभी विश्वास कर सकेंगे जब परमेश्वर दिखाई देनेवाले रूप में उनके सामने प्रकट हों और उन्हें बहुत सी चीजें दिखाएं। दरअसल, यह पूरी तरह से उल्टा है; जब उनके पास विश्वास हो, तब वे सब कुछ देख सकते हैं।

2,000 वर्ष पहले परमेश्वर इस पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में आए। वह उन बहुत से लोगों के सामने प्रकट हुए जिन्होंने कहा कि अगर वे परमेश्वर को देख सकेंगे तो परमेश्वर पर विश्वास करेंगे, और उन्होंने बाइबल के सभी वचन बताए जो उन दिनों के धार्मिक नेता नहीं सिखा सकते थे। भले ही लोगों ने अपनी आंखों से परमेश्वर को देखा जो इस पृथ्वी पर आए, लेकिन उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया।

परन्तु मैं ने तुम से कहा था कि तुम ने मुझे देख भी लिया है तौभी विश्वास नहीं करते। यूह 6:36

… परन्तु मैं जो सच बोलता हूं, इसीलिये तुम मेरा विश्वास नहीं करते। यूह 8:44–45

यीशु ने खुद को उनके सामने दिखाया, लेकिन उन्होंने विश्वास नहीं किया। इसलिए यीशु ने कहा, “तुम ने मुझे देख भी लिया है तौभी विश्वास नहीं करते।” परमेश्वर स्वयं शरीर में उनके सामने प्रकट हुए जिन्होंने कहा था कि वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि वे उन्हें देख नहीं सकते। वह परमेश्वर यीशु थे। परमेश्वर जिन्होंने आकाश और पृथ्वी को बनाया था, इस पृथ्वी पर बाइबल की भविष्यवाणियों के अनुसार आए; वह लोगों के सामने प्रकट हुए और उन्हें सत्य का प्रचार किया, फिर भी उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया।

परमेश्वर उनकी आंखों में कभी नहीं दिखते जो उन पर विश्वास नहीं करते। इसलिए बाइबल कहती है, “वे देखते हुए नहीं देखते”।(यश 6:9–10; मत 13:14–15) क्या इसका मतलब यह नहीं कि परमेश्वर को देखने के बावजूद, वे उन्हें नहीं पहचानते और उन पर विश्वास नहीं करते?

“मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। मैं और पिता एक है।” यहूदियों ने उस पर पथराव करने को फिर से पत्थर उठाए। इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैं ने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं; उन में से किस काम के लिए तुम मुझ पर पथराव करते हो?” यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिए हम तुझ पर पथराव नहीं करते परन्तु परमेश्वर की निन्दा करने के कारण; और इसलिए कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।” यूह 10:29–33

उन दिनों में भले ही यहूदियों ने स्वयं अपनी आंखों से देखा कि परमेश्वर ने उनके सामने प्रकट होकर उन्हें प्रचार किया और सीधे उनसे बातचीत की, फिर भी उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया। भले ही परमेश्वर ने उन्हें बहुत से अच्छे काम दिखाए और उन्हें सत्य बताया, लेकिन उन्होंने परमेश्वर पर इसलिए विश्वास नहीं किया क्योंकि वे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं चाहते थे। चूंकि उनके पास विश्वास नहीं था, इसलिए वे यीशु की असली पहचान को नहीं जान सके। परमेश्वर को आमने सामने देखने के बावजूद, उन्होंने यह कहते हुए उन पर पथराव करने की कोशिश की, “तू मनुष्य होकर अपने आपको परमेश्वर बनाता है।”

यह हमें दिखाता है कि देखना विश्वास करना नहीं है, लेकिन जब हम परमेश्वर पर विश्वास करें तब हम उन्हें देख सकते हैं। अगर हमारे पास अविश्वासी हृदय है, तो भले ही हम परमेश्वर को सौ बार देखें और उनकी शिक्षाएं हजार बार सुनें, लेकिन हम परमेश्वर को ग्रहण नहीं कर सकते। देखना विश्वास करना नहीं है, लेकिन विश्वास करना ही देखना है। हमारे परमेश्वर वह नहीं हैं जिन्हें हम देखने के बाद विश्वास कर सकते हैं, लेकिन वह हैं जिन्हें हम विश्वास करने के बाद देख सकते हैं।

चेलों का विश्वास और एहसास

चेलों में से जो 2,000 वर्ष पहले यीशु के पीछे चले, कुछ ने विश्वास से उन्हें देखा, लेकिन कुछ ने नहीं। पतरस और यूहन्ना के पास बड़ा विश्वास था। उनकी आंखों में यीशु इस पृथ्वी पर आए परमेश्वर के रूप में दिखे ।

आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था… और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। यूह 1:1–14

प्रेरित यूहन्ना ने जिसने यूहन्ना की पुस्तक लिखी, दृढ़ता से यीशु पर उन परमेश्वर के रूप में विश्वास किया जिन्होंने आदि में सब वस्तुओं की सृष्टि की थी। प्रेरित पतरस के पास भी ऐसा ही विश्वास था।

“… जो बातें मैं ने तुम से कहीं हैं वे आत्मा हैं, और जीवन भी हैं। परन्तु तुम में से कुछ ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।” क्योंकि यीशु पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं; और कौन मुझे पकड़वाएगा… इस पर उसके चेलों में से बहुत से उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले। तब यीशु ने उन बारहों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किसके पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं; और हम ने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।” यूह 6:63–69

इस अध्याय का पहला भाग “पांच रोटियों और दो मछलियों का चमत्कार” है, जिसमें यीशु ने पांच रोटियों और दो मछलियों से पांच हजार लोगों को खिलाया। जिन्होंने यह अद्भुत चमत्कार देखा, उन्होंने यीशु को राजा भी बनाने की कोशिश की। वे यीशु से चमत्कारों की अपेक्षा करते हुए उनके पीछे चलते रहे, लेकिन यीशु ने सिर्फ उन्हें परमेश्वर का वचन सिखाया। थोड़े समय के बाद 5,000 लोगों की भीड़ उल्टे मुड़ गई और फिर यीशु की शिक्षाएं नहीं सुनीं।

उन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया और सिर्फ यीशु के दिखाए चमत्कार पर ध्यान केंद्रित किया। इसलिए भले ही वे यीशु के चमत्कार को देखकर चकित हुए, तौभी उन्हें यह महसूस नहीं हुआ कि यीशु जिन्होंने चमत्कार किया, परमेश्वर हैं।

मगर पतरस सहित बारह चेले लगातार यीशु का पालन करते रहे। इस दृश्य में हमें यीशु के सवाल पर दिए गए पतरस के जवाब पर ध्यान देने की जरूरत है: “हम ने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।” चूंकि पतरस ने यीशु पर विश्वास किया, वह पहचान सका कि यीशु कौन हैं। “हम किसके पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं,” उसके यह कहने का मतलब था, “हमने पहले से जाना कि आप कौन हैं, और हम आप पर विश्वास करते हैं।”

पहली चीज जो हमें करनी है, वह है विश्वास करना। जब हम परमेश्वर पर विश्वास करें, तो हम उन्हें देख सकते हैं। परमेश्वर उनकी दृष्टि में अदृश्य हैं जो विश्वास नहीं करते। भले ही यीशु उन्हें पानी पर चलने का चमत्कार दिखाएं और एक मरे हुए व्यक्ति को फिर से जीवित करने का चमत्कार दिखाएं, फिर भी ऐसे अविश्वासी लोग बिल्कुल भी उन पर विश्वास नहीं करेंगे।

जो यीशु पर विश्वास किए बिना सिर्फ उन्हें देखते रहे, वे अन्त तक यीशु के चेलों के रूप में नहीं रह सके। बारह चेलों में से ऐसा व्यक्ति यहूदा इस्करियोती था। दूसरे ग्यारह चेलों की तरह, उसने यीशु के साथ रहते हुए बहुत सी शिक्षाएं सुनी थीं और यीशु का हर एक काम देखा। लेकिन उसने आखिर में यीशु को चांदी के 30 टुकड़ों के लालच में आकर गिरफ्तार करवा दिया। यह एक स्पष्ट प्रमाण है कि उसे यीशु पर विश्वास नहीं था। भले ही लोग कितने ही लंबे समय तक उनका पालन करते हों, लेकिन जो विश्वास नहीं करते थे, उनकी दृष्टि में यीशु परमेश्वर के रूप में बिल्कुल नहीं दिखते थे।

यीशु पर विश्वास करने से पहले और विश्वास करने के बाद प्रेरित पौलुस

सिर्फ जब हमारे पास विश्वास हो, हम सब कुछ देख सकते हैं। प्रेरित पौलुस जब यहूदी धर्म में था, उसने चर्च ऑफ गॉड को सताया और मसीह का विरोध किया। वह एक हिंसक पुरुष था, जिसने संतों को गिरफ्तार किया और उन्हें जेल में डाला और स्तिफनुस पर पथराव करके मार डालने में अगुवा रहा।

मैं तो पहले निन्दा करनेवाला, और सतानेवाला, और अन्धेर करनेवाला था; तौभी मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैं ने अविश्वास की दशा में बिन समझे बूझे ये काम किए थे। 1तीम 1:13

पौलुस भी, जब उसने यीशु पर विश्वास नहीं किया, यह नहीं पहचान सका कि यीशु कौन हैं? क्या वह मसीह हैं या एक नासरी कहा जानेवाला मनुष्य है? कोई भी परमेश्वर पर विश्वास किए बिना परमेश्वर को नहीं देख सकता। विश्वास के बिना, हम परमेश्वर को देखते हुए भी नहीं देख सकते और उनसे सत्य के जीवन देनेवाले वचनों को सुनते हुए भी सुन या समझ नहीं सकते।

दमिश्क की ओर जाने वाले मार्ग पर पौलुस ने मसीह की महिमा की ज्योति देखी। तब उसने अपने पापों से पश्चाताप किया और यीशु पर विश्वास किया। चूंकि उसने विश्वास किया, उसने महसूस किया कि यीशु एक बढ़ई नहीं, लेकिन मूल रूप से परमेश्वर हैं। तब से पौलुस यीशु की सभी शिक्षाओं की गवाही देते हुए प्रचार करने लगा कि यीशु मसीह हैं। इस पर विश्वास करने और जानने के बाद कि यीशु सच में परमेश्वर थे, उसने अपना जीवन सुसमाचार का प्रचार करने के लिए समर्पित किया।

जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो; जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी… फिलि 2:5–6

पुरखे भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ। सब के ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य हो। आमीन। रोम 9:5

फिलिप्पियों और रोमियों की पुस्तक को प्रेरित पौलुस ने पवित्र आत्मा से पे्ररित होने के बाद लिखा। जब उसने यीशु पर विश्वास नहीं किया, तब उसने यीशु को सिर्फ एक बढ़ई और यूसुफ और मरियम के बेटे के रूप में माना। लेकिन जब उसने यीशु पर विश्वास किया, तब वह उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में पहचान सका। पौलुस यह भी महसूस कर सका कि उसने परमेश्वर को सताया है और उन्हें विधर्मी का उपनाम दिया है। इसी कारण उसने खुद को “पापियों में सबसे बड़ा” कहकर संबोधित किया।(1तीम 1:15)

सिर्फ जब उसके पास विश्वास था, तब वह सब कुछ ठीक से देख सका; वह समझ सका कि क्यों यीशु ने गदही के बच्चे पर सवार होकर यरूशलेम में प्रवेश किया, क्यों उन्होंने चेलों के साथ अंतिम भोज में फसह का पर्व मनाते हुए नई वाचा स्थापित की, और क्यों वह तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठे। जब उसने यीशु पर परमेश्वर के रूप में विश्वास किया और उनकी ओर देखा, तो वह देख सका कि सब कुछ जो यीशु ने किया था, वह बाइबल की भविष्यवाणी के ठीक अनुसार था।

बाइबल की शिक्षाएं भी ऐसी ही हैं। सिर्फ जब हम उन पर विश्वास करें, हम उन्हें सही तरह से समझ सकते हैं। अगर हम बाइबल को केवल कहानी, इस्राएल के इतिहास का रिकार्ड या कुछ लोगों के जीवन के कहानी–संग्रह के रूप में देखें, तो बाइबल की 66 पुस्तकें कभी भी आत्मिक दुनिया देखने के लिए हमारी आंखें नहीं खोलेंगी। जब पौलुस के पास विश्वास था, तभी वह बाइबल समझ सका और परमेश्वर को देख सका। यीशु पर विश्वास करने से पहले, उसने उन्हें सिर्फ एक कुपन्थ के नेता के रूप में माना, लेकिन यीशु पर विश्वास करने के बाद, उसने उन्हें मसीहा के रूप में स्वीकार किया और यह कहते हुए, “यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिए जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिए मरते हैं,”(रो 14:8) उत्साही विश्वास के साथ सुसमाचार का प्रचार करके मसीह के जीवन का अनुसरण किया।

पवित्र आत्मा और दुल्हिन पर विश्वास करो और उद्धार पाओ

परमेश्वर इस पृथ्वी पर शरीर में आए और खुद को मानवजाति के सामने प्रकट किया। जैसा उन्होंने प्रथम आगमन के समय किया था, वैसा ही द्वितीय आगमन के समय भी किया है। हालांकि परमेश्वर खुद को लोगों के सामने प्रकट करते हैं, लेकिन लोग उन पर विश्वास नहीं करते।

आज इस युग में स्वर्गीय पिता और माता हमें बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं। वे ठीक हमारे समान मनुष्य के रूप में हैं और हमारे साथ एक ही जगह पर एक ही हवा में सांस लेते हैं। इसलिए लोग उन्हें साधारण लोग समझते हैं। जो विश्वास के साथ परमेश्वर को देखते हैं और जो विश्वास के बिना परमेश्वर को देखते हैं, उन दोनों की दृष्टि में बड़ा अंतर है। विश्वास जरूरी है। सिर्फ परमेश्वर पर विश्वास करने पर हम उन्हें देख सकते हैं। प्रथम चर्च के प्रेरित लोगों से यह कहते रहते थे कि अगर वे उद्धार पाना चाहते हैं तो उन्हें पहले परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए।

और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनो, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं?” उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” प्रे 16:30–31

बाइबल कहती है कि अगर हम विश्वास करेंगे, तो उद्धार पाएंगे। विश्वास के साथ परमेश्वर की ओर देखिए। जब आपके पास विश्वास होगा, तब आप परमेश्वर को देख सकते हैं। अगर आप संदेह करें, आप न तो परमेश्वर को देख सकते हैं और न ही सत्य को पहचान सकते हैं। वे जो विश्वास नहीं करते, चाहे परमेश्वर ठीक उनके बगल में हों, फिर भी वे अविश्वासी यहूदा इस्करियोती के समान परमेश्वर को देख नहीं सकते, और भले ही परमेश्वर हर दिन उन्हें अद्भुत चमत्कार दिखाते हों, लेकिन वे सिर्फ चमत्कारों को ही देखते हैं और उनमें परमेश्वर को बिल्कुल खोज नहीं सकते।

यद्यपि लोगों ने परमेश्वर को देखा जो शरीर में आए, लेकिन उन्होंने कहा, “क्यों परमेश्वर ऐसी चीज नहीं कर सकते? क्या उन्हें अपनी शक्ति से यह और वह नहीं करना चाहिए?” “क्रूस पर से उतर आए तो हम उस पर विश्वास करेंगे,”(मत 27:42) लेकिन परमेश्वर ऐसा कभी नहीं करते। क्योंकि चमत्कारों पर आधारित विश्वास बिल्कुल भी सच्चा विश्वास नहीं है।

जब हमारे पास विश्वास है, तो हम देख सकते हैं कि क्यों परमेश्वर ने इस तरह से काम किया है। अगर हम विश्वास करें कि मसीह जो इस पृथ्वी पर शरीर में आए हैं, स्वयं परमेश्वर हैं, और अगर हम सब कुछ जो उन्होंने किया उसकी जांच करें, तो हम समझ सकते हैं कि उन्होंने बाइबल में नबियों की सभी भविष्यवाणियों और गवाहियों के अनुसार जीवन जिया।

चूंकि परमेश्वर ने हमारी आंखें और कान खोले हैं और हमारे मन में समझने की शक्ति दी है, इसलिए हम उन पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर को ग्रहण करने में सक्षम हुए हैं जो इस पृथ्वी पर पवित्र आत्मा और दुल्हिन के रूप में आए हैं। जब हम विश्वास की आंखों से पवित्र आत्मा और दुल्हिन को देखें, तो हम महसूस कर सकेंगे कि जिस प्रकार यीशु के सब काम संयोग से नहीं हुए थे, उसी प्रकार पवित्र आत्मा और दुल्हिन के कहे हुए सब वचनों में और उनके सब कामों में मानवजाति के उद्धार के लिए उनकी महान इच्छा शामिल है।

अब हमें “देखना विश्वास करना है,” इस कहावत को इस तरह बदलना चाहिए, “विश्वास करना देखना है।” जैसे 2,000 वर्ष पहले प्रेरित विश्वास के साथ चिल्लाए, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा,” ठीक वैसे इस युग में आइए हम नई वाचा के सेवकों के रूप में निडरता से प्रचार करें, “पवित्र आत्मा और दुल्हिन पर विश्वास कीजिए, तो आप उन्हें देख सकेंगे और उद्धार पाएंगे।”

जब हम विश्वास करें, तब हम सब कुछ देख सकते हैं और स्वर्ग के द्वार हमारे लिए खोले जाएंगे। अगर हम परमेश्वर की सभी शिक्षाओं पर विश्वास करें और विश्वास की दुनिया में हर चीज को देखें, तो हम इस बात की पुष्टि कर सकेंगे कि परमेश्वर सच में अस्तित्व में हैं और परमेश्वर ने हमें निश्चय ही उद्धार की प्रतिज्ञा दी है।

अब भी हमारे चारों ओर बहुत सारे लोग हैं जो अंधकार में हैं और देखते हुए भी नहीं देख सकते। आइए हम उन सभी से कहें, “विश्वास कीजिए तो आप परमेश्वर को देखेंगे।” स्वर्गीय पिता और माता हमें बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं और उन्होंने नई वाचा के सत्य को पुन:स्थापित किया है और हमें एक पवित्र आज्ञा दी है जिसमें उनका प्रेम समाया हुआ है, कि हम अपने सभी खोए हुए भाइयों और बहनों को खोजें और एक साथ स्वर्ग में वापस जाएं। मैं चाहता हूं कि सिय्योन में सभी सदस्य पिता और माता की इस आज्ञा को मानें और जहां कहीं भी वे जाएं वहां उनके पीछे हो लें।