जो परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए गए हैं

22,476 बार देखा गया

इस संसार में लोग अपने तरीके से और अपने विचार से जीवन जीते हैं। कोई कहता है कि यह सही है, और कोई कहता है कि वह सही है। राजनैतिक समाज में, सत्ताधारी दल और विरोधी दल विभिन्न विचारों को लेकर एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। कभी–कभी लोग अपनी आवाज को ऊंचा करके, अपने पड़ोसी के विरोध में खड़े हो जाते हैं। यहां तक कि एक पति और पत्नी भी अपनी अलग–अलग जीवनशैली के कारण एक दूसरे से झगड़ते हैं।

वे सभी अपने आप को सही बताते हैं, तो कौन सही और गलत का न्यान करेगा? बाइबल से देखें तो, केवल परमेश्वर अकेले ही हैं जो अंत में सही और गलत के बीच अंतर कर सकते हैं। इसलिए, बाइबल में अंतिम न्याय के बारे में लिखा गया है।

अब, सिय्योन की सन्तान यरूशलेम की ओर दौड़ आ रही हैं। यीशु के प्रथम आगमन के समय में, सत्य का प्रचार करने वाले सभी प्रेरितों को सताया गया, और प्रथम चर्च, यानी चर्च ऑफ गॉड की निन्दा की गई। आज के दिनों में भी वैसा ही है। तब, आइए हम बाइबल से देखें कि कौन है जो परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराया गया है।

एक व्यक्ति जो एक ज्योतिषी के द्वारा योग्य ठहराया गया

चीन में सोंग राजवंश के समय में बंमुन्गोंग नामक एक व्यक्ति रहता था। जब वह छोटा था, तो वह एक ज्योतिषी के पास गया और उससे अपना भविष्य पूछा।

“क्या मैं प्रधान मंत्री बन सकूंगा?” उस ज्योतिषी ने उसके चेहरे को ध्यान से देखा और कहा कि वह प्रधान मंत्री नहीं बन सकेगा। तब उसने ज्योतिषी से पूछा कि क्या वह एक डॉक्टर बन सकेगा। चूंकि उन दिनों में डॉक्टर का काम घटिया माना जाता था, उस ज्योतिषी ने संदिग्ध रूप से उसकी ओर देखा और पूछा कि क्यों उसने प्रधान मंत्री की नौकरी को ऐसे डॉक्टर की नौकरी में बदल दिया है जो सम्मानित भी नहीं है।

“मैंने सोचा था कि यदि मैं प्रधान मंत्री बनूंगा तो मैं लोगों को दुर्भाग्यों से बचा सकूंगा। हालांकि, आपने कहा कि मैं उसके लिए लायक नहीं हूं। इसलिए मुझे ऐसा विचार आया कि डॉक्टर बन कर पीड़ा भुगत रहे किसी मरीज़ की देखभाल करते हुए मैं लोगों के कुछ काम आ सकूंगा। इसी कारण से मैंने आप से पूछा कि मैं डॉक्टर बन सकूंगा या नहीं।”

तब उस ज्योतिषी ने अपने घुटने पर हाथ मारा और ऐसा कहते हुए अपने शब्द वापस लिए कि वह एक प्रधान मंत्री बन सकेगा। इस बार, बंमुन्गोंग ने संदिग्ध रूप से उसकी ओर देखा और उससे इसका स्पष्टीकरण मांगा कि, “आप अपनी पहले की भविष्यवाणी को बदल क्यों रहे हैं? पहले आप ने कहा था कि मैं प्रधान मंत्री नहीं बन सकूंगा और अभी आप कह रहे हैं कि मैं बन सकूंगा। आपकी भविष्यवाणी अविश्वसनीय है।”

तब उस ज्योतिषी ने कहा कि, “किसी व्यक्ति का नसीब तय करने के पीछे बहुत से कारण होते हैं। उनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण है वह मन है। तुम्हारे सितारों के अनुसार, प्रधान मंत्री बनना तुम्हारे नसीब में नहीं है। हालांकि, तुम्हारी मानसिकता को देखते हुए, तुम वह बनने के लिए योग्य हो। पहले मैं तुम्हारे मन को जांचने तक दूरदर्शी नहीं था। तुम सच में प्रधान मंत्री बनोगे।”

‘लोग जो धार्मिकता जानते हैं’ परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए जाते हैं

बंमुन्गोंग एक ज्योतिषी के द्वारा जिसने उसका मन पढ़ लिया था, प्रधान मंत्री बनने के योग्य ठहराया गया था। हमारे बारे में क्या है? हमें किसके द्वारा योग्य ठहराया जाना चाहिए? बाइबल हमें इसके विषय में उत्तर देती है।

हे मेरी प्रजा के लोगो, मेरी ओर ध्यान धरो; हे मेरे लोगो, कान लगाकर मेरी सुनो; क्योंकि मेरी ओर से व्यवस्था दी जाएगी, और मैं अपना नियम देश देश के लोगों की ज्योति होने के लिए स्थिर करूंगा। मेरा छुटकारा निकट है; मेरा उद्धार प्रगट हुआ है; मैं अपने भुजबल से देश देश के लोगों का न्याय करूंगा… हे धर्म के जाननेवालो, जिनके मन में मेरी व्यवस्था है, तुम कान लगाकर मेरी सुनो; मनुष्यों की नामधराई से मत डरो, और उनके निन्दा करने से विस्मित न हो। क्योंकि घुन उन्हें कपड़े के समान और कीड़ा उन्हें ऊन के समान खाएगा; परन्तु मेरा धर्म अनन्तकाल तक, और मेरा उद्धार पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा। यश 51:4–8

‘हे धर्म के जाननेवालो,’ ‘जिनके मन में मेरी(परमेश्वर की) व्यवस्था है,’ यहां पर “वे” कौन हैं? वे सिय्योन के लोग हैं जहां परमेश्वर ने नई वाचा की व्यवस्था की स्थापना की है। हम ही सिय्योन के लोग हैं। सब के न्यायी परमेश्वर ने हमें योग्य ठहराया है। यह कितना विश्वसनीय और वास्तविक है!

हम किसी एक ज्योतिषी के द्वारा किसी एक देश का प्रधान मंत्री बनने के लिए नहीं, लेकिन परमेश्वर के द्वारा ऐसे राज–पदधारी याजक बनने के लिए योग्य ठहराए गए हैं जो स्वर्ग के राज्य में सदाकाल तक राज्य करेंगे। हालांकि, यशायाह ने यह भी भविष्यवाणी की है कि जो योग्य ठहराए गए हैं वे उनसे जिन्हें योग्य ठहराया नहीं गया, निन्दित होंगे। यह भविष्यवाणी पूरी होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं।

दुष्टता से धार्मिकता की निन्दा होती है

जहां तक इस संसार के धर्मियों की बात है, तो वे सभी लोगों के द्वारा योग्य ठहराए नहीं गए हैं। प्राचीन चीन के कन्फ्यूशियस ने एक महान मनुष्य की व्याख्या दी थी।

एक दिन, झीगोंग नामक कन्फ्यूशियस के शिष्य ने उससे पूछा कि, “गुरु जी, महान व्यक्ति कौन है? यदि पूरा गांव किसी व्यक्ति की प्रशंसा करे, तो क्या वह महान कहलाया जा सकता है?” तब कन्फ्यूशियस ने अपना सिर हिलाते हुए उत्तर दिया कि, “नहीं, यदि किसी व्यक्ति की आदरणीय व्यक्तियों के द्वारा प्रशंसा की जाए, तो शायद वह एक महान व्यक्ति हो सकता है। हालांकि, उसकी दुष्ट लोगों के द्वारा प्रशंसा की जाए, तो वह महान नहीं कहलाया जा सकता। इसलिए, यदि पूरा गांव किसी व्यक्ति की प्रशंसा करे, तो भी शायद वह प्रशंसनीय नहीं हो सकता।”

झीगोंग ने फिर से उसे पूछा, “तब, महान व्यक्ति कौन है?” कन्फ्यूशियस ने उत्तर दिया कि, “वह जो दुष्टों से नहीं, लेकिन आदरणीय व्यक्तियों से प्रशंसा पाता है, सच में एक महान व्यक्ति है।”

लगता है कि कन्फ्यूशियस के समय में भी महान लोगों को बदनाम किया जाता था। परमेश्वर ने हम से कहा है कि, “मनुष्यों की नामधराई से मत डरो, और उनके निन्दा करने से विस्मित न हो।” यदि दुष्ट लोग हमारे बारे में बुरी बातें करते हैं, तो निश्चय ही हम धर्मी जन हैं। कोई भी धर्मी जन हमारे बारे में बुरी बातें नहीं करता। महान परमेश्वर, सुंदर स्वर्गदूत और महान विश्वास के हमारे पूर्वज, जिन्हें धर्मी कहा गया है, नई वाचा का पालन करने के लिए और जोश के साथ प्रचार करने के लिए हमारी प्रशंसा करते हैं। हालांकि, दुष्ट लोग हर प्रकार के झूठ बोलकर हमेशा हमारी निन्दा करते हैं।

इस दृष्टिकोण से देखें तो हम मान सकते हैं कि जो बात कन्फ्यूशियस ने कही थी वह ध्यान देने योग्य है। उसने कहा था, ‘एक महान व्यक्ति आदरणीय व्यक्तियों से योग्य ठहराया हुआ होता है लेकिन दुष्टों से अयोग्य ठहराया हुआ होता है।’ निस्संदेह रूप से ये शब्द सिय्योन के भाइयों और बहनों पर लागू होते हैं।

सत्य परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराया जाता है, लेकिन लोगों के द्वारा नकार दिया जाता है

आइए हम और देखें कि परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए हुए जन कौन हैं। हम नए नियम की बहुत सी शिक्षाओं के द्वारा उन लोगों को खोज सकते हैं।

… क्योंकि जो अपनी बड़ाई करता है वह नहीं, परन्तु जिसकी बड़ाई प्रभु करता है, वही ग्रहण किया जाता है। 2कुर 10:17–18

क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारेलगाया गया है, और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है। दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे; क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टों का मार्ग नष्ट हो जाएगा। भज 1:1–6

हमें परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराया जाना चाहिए। केवल उस सिय्योन के लोग, जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया है, परमेश्वर की सराहना या स्वीकृति के लिए योग्य ठहरते हैं।

दुष्ट लोग उनकी प्रशंसा नहीं करते जो सही करते हैं, लेकिन उनकी प्रशंसा करते हैं जो उनके साथ मिलकर दुष्ट कार्य करते हैं। वे झूठी शिक्षाओं को और उनका पालन करने वाले चर्चों को स्वीकृति देते हैं और उनकी सराहना करते हैं। इसलिए वे जो सही कार्य करते हैं और धार्मिकता के मार्ग पर चलते हैं, हमेशा दुष्टों के द्वारा अटकाए जाते हैं।

बाइबल की सभी 66 पुस्तकों में कहीं भी ऐसा लेख नहीं है जो कहता हो कि सत्य को सभी लोगों की स्वीकृति मिलती है। दुष्टों के द्वारा उसकी निन्दा की जाती आ रही है। जब नहेम्याह परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हुए मंदिर का निर्माण कर रहा था, तो तोबियाह और सम्बल्लत जैसे दुष्ट लोग उसे रोकने के लिए उठ खड़े हुए थे। जिन्होंने मंदिर के निर्माण कार्य में साथ दिया, वे उसके कारण खुश हुए क्योंकि वह तो परमेश्वर की इच्छा थी। हालांकि, दुष्ट लोगों ने लगातार मंदिर की दीवार बनाने से उनको रोका ताकि वह अपनी ऊंचाई तक न पहुंच सके।

2,000 साल पहले इस पृथ्वी पर आए यीशु के साथ भी ऐसा ही हुआ था। उनके चेले और नीकुदेमुस और अरिमतियाह के युसुफ समेत सभी धर्मी लोग यीशु की शिक्षाओं से हैरान थे और वे सच में उनका पालन करना चाहते थे। लेकिन उन प्रधान याजकों और शास्त्रियों और फरीसियों ने क्या किया, जिनकी यीशु ने, “तुम पर हाय!” कहते हुए निन्दा की थी? उन सब ने यीशु को अस्वीकार किया और उन पर दोष लगाया। उन्होंने उन पर यह कहते हुए दोष लगाया कि, “वह लोगों को भटका रहा है।” यहां तक कि उन्होंने यह कहते हुए यीशु को पत्थर से मारने की भी कोशिश की कि, “…क्योंकि तू मनुष्य होकर अपने आपको परमेश्वर बताता है।”

प्रथम चर्च के संतों ने भी ऐसे कष्ट उठाए थे। वे सताए जाते थे और परेशान किए जाते थे; वे दुष्टों के द्वारा निन्दित किए जाते थे। परमेश्वर और धर्मियों की आत्माओं की नजर में, वे सब महान और योग्य थे। न तो प्रथम चर्च के समय में ऐसा हुआ था और न ही नूह या अब्राहम के समय में ऐसा हुआ था, कि धर्मियों की दुष्टों के द्वारा सराहना की गई हो। इस तरह से, बाइबल का इतिहास हमें दिखाता है कि सत्य को परमेश्वर के द्वारा योग्य और दुष्टों के द्वारा अयोग्य ठहराया जाना चाहिए।

परमेश्वर ने हमें मनुष्यों की नामधराई से न डरने को और उनके निन्दा करने से विस्मित न होने के लिए कहा है। क्योंकि यह नामधराई परमेश्वर से नहीं, लेकिन दुष्टों से होती है। हम परमेश्वर और धर्मियों की आत्माओं के द्वारा योग्य ठहराए गए हैं, लेकिन दुष्टों के द्वारा बदनाम किए गए हैं। यह साबित करता है कि हमारे पास धर्मी और महान कहलाए जाने के सभी गुण हैं और यह भी कि हम सत्य के मार्ग का पालन करते हैं। परमेश्वर धर्मियों के मार्ग का ध्यान रखते हैं, लेकिन दुष्टों का मार्ग नष्ट हो जाएगा; यह परमेश्वर की इच्छा है।

परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए गए ‘नई वाचा के सेवक’

कौन हमें योग्य ठहराता है? यह बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए गए लोग परमेश्वर के नियत पर्वों के नगर सिय्योन में हैं; वे जहां कहीं भी मेमना जाता है वहां उनके पीछे हो लेते हैं और परस्पर मिलकर एकता से रहते हैं और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में आनन्दित होते हैं।

अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो। 2तीम 2:15

हम परमेश्वर के द्वारा उनके सेवक बनने के लिए योग्य ठहराए गए हैं और बुलाए गए हैं। आइए हम देखें कि हमें क्या करने के लिए बुलाया गया है।

यह नहीं कि हम अपने आप से इस योग्य हैं कि अपनी ओर से किसी बात का विचार कर सकें, पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है, जिसने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन् आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है। 2कुर 3:5–6

हम नई वाचा के नियमों और विधियों का पालन करते हैं और उनकी घोषणा करते हैं। जो परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए गए हैं, वे नई वाचा के सेवक हैं।

आज के अनगिनत चर्च नई वाचा का पालन नहीं करते। वे परमेश्वर के नियमों और विधियों से बहुत दूर हैं; वे ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ तो कहते हैं, लेकिन अपने ही कार्यों से उनको अस्वीकार करते हैं।

वे उन शास्त्रियों और फरीसियों के समान, सत्य के विरुद्ध हैं, जिन्होंने 2,000 साल पहले यह कहते हुए यीशु का विरोध किया था कि, “तू एक साधारण मनुष्य होते हुए अपने आपको परमेश्वर बताता है,” और “जो यीशु पर विश्वास करते हैं वे सब विधर्मी हैं।” हमें न तो उन लोगों की नामधराई से जिन्हें परमेश्वर ने योग्य नहीं ठहराया है, डरने की आवश्यकता है और न ही उनके निन्दा करने से विस्मित होने की आवश्यकता है। चाहे वे हमें विधर्मी कहते हैं, परमेश्वर हमें योग्य ठहराते हैं। यीशु और सभी चेले जिन्होंने उनका पालन किया, वे सभी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सके। जो महत्वपूर्ण है, वह मनुष्य के द्वारा नहीं, लेकिन परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराया जाना है।

जब हम इसे पूर्ण रूप से समझते हैं, तो हम खुशी के साथ विश्वास के मार्ग पर चल सकते हैं। हम परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए गए हैं, लेकिन दुष्टों के द्वारा अयोग्य ठहराए गए हैं। हम कितने ज्यादा धन्य हैं!

नई वाचा परमेश्वर की गवाही है

परमेश्वर हमें बताते हैं कि उनकी गवाही क्या है।

जब हम मनुष्यों की गवाही मान लेते हैं, तो परमेश्वर की गवाही तो उससे बढ़कर है; और परमेश्वर की गवाही यह है कि उसने अपने पुत्र के विषय में गवाही दी है। जो परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है वह अपने ही में गवाहीरखता है… और वह गवाही यह है कि परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है, और यह जीवन उसके पुत्र में है। जिस के पास पुत्र है, उसके पास जीवन है; और जिसके पास परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है… 1यूह 5:9–13

परमेश्वर ने हम से कहा है कि यदि यीशु हम में वास करें और हम यीशु में, तो हमारे पास अनन्त जीवन है, और उन्होंने हमें अगली आयत के द्वारा यीशु में बने रहने का रास्ता सिखाया है।

यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा। क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है, और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उस में। जैसा जीवते पिता ने मुझे भेजा, और मैं पिता के कारण जीवित हूं, वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा। यूह 6:53–57

यीशु ने फसह की रोटी और दाखमधु के द्वारा अपने मांस और लहू की प्रतिज्ञा की है। इसलिए, यदि कोई रोटी न खाए और दाखमधु न पीए, तो चाहे वह अपने आपको मसीही कहता हो, वह कभी भी परमेश्वर के द्वारा योग्य नहीं ठहराया जा सकता।(मत 7:21–23)

परमेश्वर की प्रतिज्ञा में यकीन करना यही मसीही विश्वास है। यीशु ने प्रतिज्ञा की है कि जो नई वाचा के फसह को मनाते हैं, परमेश्वर उन्हें अनन्त जीवन देंगे और उनमें स्थिर बने रहेंगे। इसलिए, जब तक कोई फसह का पर्व नहीं मनाता, तब तक न तो वह यीशु में बना रह सकता और न ही यीशु उस में। इसे देखते हुए, हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर उन्हें जो नई वाचा मनाते हैं, यानी चर्च ऑफ गॉड के संतों को योग्य ठहराते हैं।

जो अंतिम दिनों में पृथ्वी पर से छुड़ाए जाते हैं, वे वही लोग हैं जो मेमने के साथ परमेश्वर के नियत पर्वों के नगर सिय्योन में हैं। वे वही संत हैं जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते हैं और यीशु पर विश्वास रखते हैं।(प्रक 14:1–3, 12) परमेश्वर उन्हें योग्य ठहराते हैं और उन्हें बचाते हैं।

परमेश्वर के वचनों से सब बातों का न्याय करना

हमें सब बातों का न्याय दुष्टों के वचनों से नहीं, लेकिन परमेश्वर के वचनों के मानक से करना चाहिए। जब घर में अलग–अलग विचार हो, या जब हम सिय्योन में किसी भाई और बहन के साथ किसी चीज के बारे में चर्चा करते हों, हमें परमेश्वर के वचनों को हमारा मानक बनाना चाहिए और परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए। तब वह सच में एक अच्छा परिणाम लाएगा। क्योंकि परमेश्वर हमें सत्य सिखाते हैं और उसमें हमारी अगुआई करते हैं, ताकि हम सभी उत्तम वस्तुएं पा सकें, जैसे कि अनन्त जीवन, अनन्त खुशी, शान्ति… अपने विचारों पर ध्यान न देते हुए, आइए हम परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करें, और सत्य और झूठ के बीच भेद करने के लिए केवल परमेश्वर के वचनों को ही हमारा मानक बनाएं।

एक व्यक्ति जो धर्मियों के द्वारा योग्य लेकिन दुष्टों के द्वारा अयोग्य ठहराया जाता है, वह सच में धर्मी मनुष्य है। इस बात को सोचते हुए, आइए हम हमेशा परमेश्वर के वचन और न्याय पर ध्यान लगाएं; आइए हम दुष्ट लोग हमारे विषय में जो कहते हैं उससे प्रभावित न होते हुए, केवल सत्य का पालन करें। आज भी ऐसी बहुत सी आत्माएं हैं जिन्होंने सत्य को ग्रहण नहीं किया है। आइए हम सत्य और झूठ के बीच अन्तर करने में उनकी मदद करते हुए, उनका सिय्योन की ओर मार्गदर्शन करने के लिए एक साथ जोर लगाएं।