जहां कहीं सिय्योन के सदस्यों ने एकजुट होकर पूरे जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार किया है, वहां अनुग्रहपूर्ण फल पैदा किए जा रहे हैं।
यदि हम आत्मिक फल पैदा करना चाहें, तो परमेश्वर की इच्छा को सब से ऊपर मान कर पालन करना जरूरी है। परमेश्वर ने हमें, जो ज्यादा फल पैदा करने की याचना करते हैं, सिखाया है कि हम तभी ज्यादा अच्छा फल पैदा करेंगे जब हमारा स्वभाव ऐसा बदल जाए जो परमेश्वर की दृष्टि में पूर्ण है। इस शिक्षा को मन से लगाते हुए, आइए हम वचन के द्वारा पढ़ें कि हम अच्छे फल कैसे पैदा कर सकते हैं।
दाखलता के दृष्टान्त के द्वारा, यीशु ने हमें फल पैदा करने का रहस्य बताया है। उसने सिखाया है कि जो परमेश्वर में बने रहता है, वह ज्यादा फल पैदा कर सकता है।
“…तुम मुझ में बने रहो और मैं तुम में। जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाखलता हूँ, तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते…।मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत फल लाओ, तभी तो तुम मेरे चेले हो।”यूह 15:1–8
ज्यादा फल पैदा करना, परमेश्वर की दृष्टि में बहुत सुन्दर बात है। ऊपर बताया गया है कि जब हम ज्यादा फल पैदा करते हैं, तब परमेश्वर महिमा पाता है।
फल पैदा करने के लिए, हमारे लिए सामरिया और पृथ्वी के छोर तक सुसमाचार का प्रचार करने का प्रयास करना जरूरी है। परमेश्वर का सुसमाचार दोषहीन है और संसार के सभी लोगों का उद्धार करने का अधिकार रखता है। लेकिन यदि सुसमाचार के सेवक का स्वभाव मसीह की शिक्षाओं के अनुरूप नहीं हो और स्वभाव पर सांसारिक गंदगी लगी हो, तो सुसमाचार लोगों को अनुग्रहपूर्ण रीति से नहीं सुनाया जा सकता।
आइए हम सोचें कि हम सुसमाचार के सेवकों को, कैसा रवैया अपनाना चाहिए, ताकि सुनने वाले अनुग्रहपूर्ण रीति से सुन सकें। यदि साफ पानी को गंदे बर्तन में रखा गया हो, तो कोई प्यासा भी इसे साफ पानी नहीं समझेगा और उसे पीने का मन नहीं करेगा। सुसमाचार सब से उत्तम गुणों वाला है। परन्तु यदि हम, प्रचारक, सुसमाचार के योग्य जीवन न जीए, तो क्या सुनने वाले इसे गुणवान समझेंगे?
अब, आइए हम अपने आप को ऐसी डालियां बनने के लिए तैयार करें जो परमेश्वर की दृष्टि में बहुत से सुन्दर फल पैदा करती हैं। आइए हम स्वभाव के गुणों में से, जो हमें रखना चाहिए, धीरज के गुण के बारे में सोचें।
बीज बोने वाले के दृष्टान्त के द्वारा, यीशु ने विश्वास के प्रकार के बारे में समझाया है, और इस तथ्य को प्रकाशित किया है कि धीरज के द्वारा ही फल पैदा किया जाता है।
“दृष्टान्त यह है: बीज परमेश्वर का वचन है…।अच्छी भूमि के बीज वे हैं जो वचन सुनकर अपने शुद्ध और अच्छे हृदय में उसे दृढ़ता से रखते और वे बड़े धैर्य से फल लाते हैं।”लूक 8:11–15
जो मार्ग के किनारे की भूमि या पथरीली भूमि, कंटीली झाड़ी जैसे मन में बीज बोता है, वह फल नहीं ला सकता। अच्छी भूमि जैसे मन में बीच बोने वाला ऐसा आदमी है जो वह वचन सुनकर अपने शुद्ध और अच्छे हृदय में उसे दृढ़ता से रखता और बड़े धैर्य से फल लाता है। तीस गुणा, साठ गुणा, सौ गुणा फल लाने के लिए, हमारे लिए अच्छी भूमि जैसे मन रखना आवश्यक है।
“…परन्तु अपने धीरज द्वारा तुम अपने प्राणों को बचाए रखोगे।”लूक 21:10–19
“…क्योंकि तुम्हें धैर्य की आवश्यकता है कि तुम परमेश्वर की इच्छा पूर्ण करके जिस बात की प्रतिज्ञा की गई थी उसे प्राप्त कर सको।”इब्र 10:32–36
धीरज बांधने के द्वारा अच्छा परिणाम निकल आता है। यदि एक किसान ने बीज बोया, लेकिन तुरन्त फल न फलने के कारण खेत की मिट्टी को पलट दे, तो वह कैसे फल पा सकेगा? बिल्कुल नहीं। फल पाने के लिए, किसान तब तक अधिक धीरज रखता है जब तक बीज अंकुरित होकर फूल न खिलाए और फल न लाए। उसी तरह से हमें भी धीरज रखना चाहिए। इसलिए धीरज अति आवश्यक गुण है जिससे अच्छी भूमि पर गिरे बीज ज्यादा फल ला सकते हैं।
जो प्रतिज्ञा परमेश्वर ने हम से की है, वह अनन्त जीवन है।(1यूह 2:25) यह प्रतिज्ञा पाने के लिए भी हमें धीरज की आवश्यकता है। आशा है कि आप परमेश्वर की ऐसी सन्तान बनें जो धीरज का गुण रखते हैं और सुसमाचार के सुन्दर फल लाने के द्वारा परमेश्वर को बड़ी महिमा दें और अनन्त जीवन के सहभागी हों।
धीरज करने की बातें तो अनेक हैं। खास कर, वह धीरज, जिससे क्रोध पर नियंत्रण हो सकता है, प्रेम और शांति का सुन्दर फल लाता है। सिय्योन के सदस्यो, आइए हम धीरज धर कर क्रोध पर काबू पाएं, ताकि परिवार में भी और चर्च में भी शांति बनाए रख सकें। यदि हम धीरज को अपना पूरा कार्य करने देते हैं, तब परमेश्वर और ज्यादा फल हमें देंगा।
“शीघ्र क्रोध करने वाला मनुष्य मूर्खता का काम करता है, और धूर्त मनुष्य से घृणा की जाती है।”नीत 14:17
“जो क्रोध करने में विलम्ब करता है, वह बड़ा समझदार है, परन्तु जो शीघ्र क्रोध करता है, वह मूर्खता को बढ़ाता है।”नीत 14:29
“विलम्ब से क्रोध करने वाला तो वीर योद्धा से, और अपनी आत्मा को वश मे करने वाला नगर के जीतने वाले से भी उत्तम है।”नीत 16:32
नीतिवचन हमें बार बार समझाता है कि जल्दी क्रोध करने वाला मनुष्य मूर्ख है। ऐसा मनुष्य जिसे जल्दी क्रोध आता है, वह मूर्खतापूर्ण काम कर जाता है, और बाद में अपने किए पर पछताता और अफसोस करता है। अपने क्रोध पर काबू पाने में हमें धीरज और संयम की आवश्यकता है, जिससे परमेश्वर को अपार महिमा चढ़ा सकते हैं।
परमेश्वर क्रोध करने में देरी करता है। परमेश्वर दाखलता है, हम डालियाँ हैं। यदि हमें जल्दी गुस्सा करने की आदत है, तो हम कैसे परमेश्वर में बनी डालियाँ हो सकेंगे?। परमेश्वर ने कहा कि जो मुझ में बना रहता है, वह बहुत फल फलता है। इसलिए यदि हम फल फलने की आशा करते हैं, तो ईश्वरीय स्वभाव में सम्मलित होकर क्रोध पर काबू रखना बहुत जरूरी है। जब भी आपको क्रोध आए, तब दस तक गिनती गिनें। ऐसा नहीं हो सकता कि हमें कभी गुस्सा नहीं आता। लेकिन गुस्सा आते समय, धैर्यपूर्ण व्यक्ति ही, जो पल भर के क्रोध से ऊपर उठता है और क्रोध पर काबू पाता है, सब से ज्यादा समझ बूझ रखता है।
परमेश्वर हम से चाहता है कि हम ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी हो जाएं।(2पत 1:4) ऐसा डरावना वचन है कि जो ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी नहीं होता है और बदसूरत व सांसारिक स्वभाव को नहीं त्यागता है, वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा।
“…मैं तुम से कहता हूं कि हर एक जो अपने भाई पर क्रोधित होगा वह न्यायालय में दण्ड के योग्य ठहरेगा, और जो कोई अपने भाई को निकम्मा(मूल शब्द राका : इब्रानी की गाली) कहेगा वह सर्वोच्च न्यायालय में दोषी ठहरेगा, और जो कोई कहेगा, ‘अरे मूर्ख’, वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।”मत 5:21–22
बाइबल ने कहा कि जो भाई पर क्रोध करता है और गाली देता है, उसे नरक की यातनाएं भोगनी पड़ेगी। परमेश्वर ने सचमुच हमारे उद्धार के लिए यह वचन कहा है। परमेश्वर हमारे उद्धार के लिए हमारे हृदय को और पूर्ण बनाना चाहता है। उसकी इच्छा को महसूस करके, हम उसके वचन पर आज्ञाकारी रहें।
अब ऐसा समय आ गया है जब स्वर्ग के परिवार वालों को एक दूसरे से प्रेम करते हुए अपने स्वभाव को ईश्वरीय स्वभाव के अनुरूप बदलना है। उग्र और चंचल स्वभाव के लोग स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश नहीं कर सकते।
“क्रोधी मनुष्य के साथ संगति न कर, और न तत्काल क्रोध करने वाले के साथ चल, कहीं ऐसा न हो कि तू उसकी चाल सीखे और तू स्वयं फन्दे में फंस जाए।”नीत 22:24–25
“अति क्रोधी मनुष्य अवश्य दण्ड भोगेगा, यदि तू उसे बचाए, तो उसे बार–बार बचाना पड़ेगा।”नीत 19:19
परमेश्वर ने कहा कि अक्सर गुस्सा करने वाले और जल्दी क्रोध करने वाले को कभी सुधारा न जा सकेगा, तो उसके साथ चलना भी मत!। क्योंकि यद्यपि हम क्रोधी मनुष्य को कठिन समस्या से निपटने में मदद करते हैं, तो भी वह इसे भूल कर बाद में, हम पर क्रोध करेगा और दुबारा गलत करेगा। जब मनुष्य को क्रोध आता है तो ज्ञान का अभाव हो जाता है और विवेक खोकर मूर्खतापूर्ण काम कर जाता है।
सीरिया का सेनापति, नामान आसपास के लोगों की सलाह से मूर्ख होते–होते बच गया।
“…तब नामान अपने घोड़ों और रथों सहित आकर एलीशा के घर के द्वार पर खड़ा हुआ। तब एलीशा ने एक दूत से संदेश भेजा, “जा, यर्दन में सात बार स्नान कर, तब तेरा शरीर चंगा हो जाएगा और तू शुद्ध हो जाएगा।” परन्तु नामान अत्यन्त क्रोधित हुआ और यह कहते हुए चला गया…तब उसके सेवकों ने पास आकर उस से कहा, “हे हमारे पिता, यदि नबी तुझे कोई कठिन कार्य करने को कहता तो क्या तू न करता? तो जब वह कहता है कि स्नान करके शुद्ध हो जा तो इसे कितना और न मानना चाहिए।” अत: उसने जाकर परमेश्वर के जन के वचन के अनुसार यर्दन में सात बार डुबकी लगाई, और उसकी देह छेटे बच्चे की देह के समान हो गई और वह शुद्ध हो गया।”2रा 5:1–14
कोढ़ रोग को चंगा करने के लिए नामान इस्राएल गया। परन्तु एलीशा नबी तो उससे मिलने बाहर भी नहीं निकला और अन्दर बैठ कर उसने सिर्फ वचन सौंपा। इस पर नामान का क्रोध फूटने लगा और वह मुंह मोड़ कर वापस चला गया। छोटी बात पर क्रोध करने के कारण, वह विवेक खोकर भूल गया कि वह क्यों आया है। सौभाग्य से उसके विवेकी सेवकों ने उसे समझा–बुझाया, और वह वचन पर आज्ञाकारी रहा। उसके परिणाम– स्वरूप उसका कोढ़ चंगा हो गया। आवेश में मनुष्य विवेक खोता है। इसलिए परमेश्वर इस पर जोर देते हुए कि क्रोधी मनुष्य मूर्ख है, सन्तान को शिक्षा दे रहा है।
आसानी से क्रोध करने की खराब आदतों को, इस पल से छोड़ देना अच्छा है। ये वचन याद करते हुए कि “तू अपने पड़ोसी से प्रेम करना”, “तुम एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखो”, आइए हम प्रेम के द्वारा क्रोध को स्वयं से दूर रखें।
राजा शाऊल इसका अच्छा उदाहरण देता है कि क्रोध से ऐसा मूर्खतापूर्ण काम किया जाता है जो कभी वापस नहीं किया जाता।
“…जब दाऊद पलिश्ती को मारकर लौट रहा था तब स्त्रियां इस्राएल के सब नगरों से निकलकर वाद्ययंत्रों और डफ की ताल में आनन्द के साथ नाचती–गाती हुई शाऊल राजा से भेंट करने आ निकलीं। वे स्त्रियां नाचती और यह गीत गाती गईं: “शाऊल ने मारा हज़ारों को, दाऊद ने मारा लाखों को।” तब शाऊल अति क्रोधित हुआ क्योंकि यह कहावत उसको बहुत बुरी लगी। उसने कहा, “दाऊद को तो उन्होंने लाखों का श्रेय दिया है, परन्तु मुझ को केवल हज़ारों का। अब उसको राज्य के अतिरिक्त और क्या मिलना शेष रह गया है?” उस दिन से शाऊल दाऊद को सन्देह की दृष्टि से देखने लगा। दूसरे ही दिन ऐसा हुआ कि परमेश्वर की ओर से एक दुष्टात्मा शाऊल पर प्रबलता से उतरी…”1शम 18:5–10
इस्राएलियों ने शाऊल की तुलना में दाऊद को और ज्यादा प्रशंसा दी थी। इस पर शाऊल को बुरा लगा और वह क्रोध से अंदर ही अंदर आग–बबूला हो उठा। यदि राजा के अधीन सेनापति कुशल है, तो राज्य की शक्ति प्रबल होती है, जिससे आखिर में राजा को सम्मान मिलता है। लेकिन शाऊल ईष्र्या से जल कर क्रोधित हुआ।अत: दुष्टात्मा शाऊल पर प्रबलता से उतर गई।
अन्त में शाऊल परमेश्वर के अनुग्रह से दूर हो गया और बुरी तरह मर गया। बाइबल में लिखा है कि परमेश्वर शाऊल को इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त करके पछताया।(1शम 15:35) क्रोध मूलत: इस दुर्भाग्य का कारण बना।
परमेश्वर ने कहा कि प्रेम धैर्यवान और दयालु है, और वह ईष्र्या नहीं करता और सत्य से आनन्दित होता है। जब सिय्योन में भाई और बहनें कामयाब होते हैं, तब हमें साथ में आनन्दित होना है, और जब वे बढ़िया काम करते हैं, तब हमें साथ में दिल से बधाई देनी चाहिए। यदि सदस्यों में कोई कामयाब हो, तो क्या इससे पिता और माता की महिमा न होगी?
परमेश्वर की सन्तान को अच्छे विश्वास के साथ अच्छा व्यक्तित्व रखना चाहिए। जैसे माता ने शिक्षा दी है, हमें समुद्र जैसा मन रखना चाहिए जिससे हम अपने भाइयों की गलतियों को ढंक सकें।
“यहोवा यों कहता है: “एदोम के तीन क्या, वरन् चार अपराधों के कारण मैं उसे दण्ड दिए बिना न छोडू़ंगा, क्योंकि उसने तलवार से अपने भाई को खदेड़ा है, और तनिक भी तरस न खाया वरन् उसका क्रोध लगातार भड़कता रहा, और उसने अपना रोष सदा बनाए रखा।””आम 1:11
परमेश्वर उससे प्रसन्न नहीं है जो आसानी से क्रोध करता है। उस पर परमेश्वर का प्रकोप और दण्ड पड़ता है। आइए हम अपने मन की सारी सांसारिक मलिनता को समाप्त करें। संसार में कोई लोग दूसरे के दुखों से सुखी होते हैं। लेकिन हम तो ऐसा नहीं करेंगे। हम सब स्वर्ग के एक परिवार से हैं और मसीह में एक बनें हैं। स्वर्ग के परिवार मेंभाइयों और बहनों पर बिल्कुल क्रोध करने की शिक्षा नहीं है, पर सिर्फ एक दूसरे से पे्रम करने की शिक्षा है।
“हे मेरे प्रिय भाइयो, यह तो तुम जानते ही हो। अत: प्रत्येक व्यक्ति सुनने के लिए तो तत्पर, बोलने में धीरजवन्त, और क्रोध करने में धीमा हो। क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर की धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता।”याक 1:19–20
परमेश्वर ने कहा है कि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर की धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता। इसलिए प्रेम क्रोध नहीं करता।(1कुर 13:5) मैं आशा करता हूं कि आप स्वर्गीय पिता और माता की शिक्षा के अनुसार स्वर्ग की आशा रखें और ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी होने के लिए, अपने विश्वास में सद्गुण तथा सद्गुण में ज्ञान, और ज्ञान में संयम, संयम में धीरज और धीरज में भक्ति, तथा अपनी भक्ति में भ्रातृ–स्नेह, और भ्रातृ–स्नेह में प्रेम बढ़ाने में प्रयत्नशील रहें।(2पत 1:4–8)
कुछ समय पहले एक वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान ने 12 प्रेमी–प्रेमिकाओं पर अध्ययन किया। गहराई से इश्क़ में डूबे प्रेमी–प्रेमिका में क्या शारीरिक परिवर्तन होता है, इस विषय पर शोध करने के बाद यह रोचक परिणाम निकला कि जब वे इश्क़ लड़ाते हैं, प्रेमी का पुरुष–हार्मोन तेजी से कम होने लगता है, लेकिन इसके विपरित प्रेमिका का पुरुष–हार्मोन बढ़ने लगता है। शोधकर्ता का कहना था कि यह इस क्रम का लक्षण है कि एक दूसरे के समान होने के लिए शरीर स्वभावत: परिवर्तित हो जाता है। जब हम प्रेम करते हैं, तब एक दूसरे के समान होने के लिए हमारे शरीर में भी परिवर्तन होता है।
क्रोधी स्वभाव को त्याग कर दूसरे की दृष्टि से दृष्टि मिलाना प्रेम है। अपनी शैली, अपने दावे और अपने विचार से अलग होने के कारण, हमें दूसरे पर कभी क्रोध नहीं करना चाहिए। यदि अपने ख्.याल पर दावा करते हैं, तब हमें क्रोध आता है और हम अलगाव की भावना से ग्रस्त हो जाएंगे। लेकिन इसके विपरित खुद पर नियंत्रण करके दूसरे के ख्.याल को ग्रहण करते हैं तब एकता की भावना पनपने लगेगी। तभी हम इस वचन पर आज्ञाकारी हो सकेंगे कि एक दूसरे से प्रेम कर।
हम भाई और बहनें हैं जिन्हें स्वर्गीय पिता और माता ने अपना बलिदान करके ढूंढ़ा है। यदि कोई भाई या बहन कुछ करना न जाने, तब हमें उन्हें सिखाना है, ताकि वे हम से और उन्नत हो सकें। यदि वे हम से अच्छा करें, तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा और प्रशंसा देनी चाहिए। मैं आप से ऐसे सुन्दर परिवार वाले होने का निवेदन करता हूं जो ऐसा स्वभाव रखकर, जो परमेश्वर में है, निष्कलंक और निर्दोष होते हैं।
जब कोई क्रोधित होता है, तब वह परमेश्वर से दूर हो जाता है और उसमें दुष्टात्मा समाती है। परन्तु जो क्रोध पर काबू पाकर मुस्कराता है, वह परमेश्वर में बना रहता है और ऐसा पूर्ण मनुष्य बन कर, जो परमेश्वर चाहता है, ज्यादा फल पैदा कर सकता है। सिय्योन के सदस्यों से आशा करता हूं कि धीरज और प्रेम सिद्ध करके बहुत से सुन्दर फल पैदा करें।