क्या होगा अगर एक मसीही इस सोच में डूबा रहे, “सब कुछ शांत और सुरक्षित है”? वह एक सच्चा मसीही कहलाने के योग्य नहीं है, भले ही वह एक मसीही की तरह बाहरी रूप से कार्य करता है। कुछ लोग उत्पीड़न और कठिनाइयों का सामना करने पर जोश से भरा हुआ विश्वास रखते हैं, परंतु वे जब अनुकूल परिस्थितियों में हैं, परमेश्वर में अपना विश्वास खो देते हैं।
बाइबल उन परमेश्वर के द्वारा लिखी गई पुस्तक है जिन्होंने हम मनुष्यों की सृष्टि की, और यह स्पष्ट रूप से हमारे हृदय और मन का वर्णन करती है। जैसे कि परमेश्वर हमारा हृदय जानते हैं, उन्होंने बाइबल की 66 पुस्तकों में सभी शिक्षाएं और चेतावनियां लिखी हैं ताकि शैतान की चाल से हम भरमाए न जाएं, लेकिन हमारी अगुवाई उद्धार की ओर हो। परमेश्वर के वचन कभी–कभी हमें डांटते हैं और कभी–कभी हमें जगाते हैं कि हम आलस्य में लिप्त न रहें।
जब हम परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह हमारा विचार है। विचार कार्य को निर्धारित करता है। यिर्मयाह नबी हमें सिखाता है कि हम अपने विचार के अनुसार आशीष या विपत्ति पा सकते हैं।
मैं ने तुम्हारे लिये पहरुए बैठाकर कहा, ‘नरसिंगे का शब्द ध्यान से सुनना!’ पर उन्होंने कहा, ‘हम न सुनेंगे।’ इसलिये, हे जातियो, सुनो, और हे मण्डली, देख, कि इन लोगों में क्या हो रहा है। हे पृथ्वी, सुन; देख, कि मैं इस जाति पर वह विपत्ति ले आऊंगा जो उनकी कल्पनाओं का फल है, क्योंकि इन्होंने मेरे वचनों पर ध्यान नहीं लगाया, और मेरी शिक्षा को इन्होंने निकम्मी जाना है। यिर्म 6:17–19
परमेश्वर कहते हैं कि सब कुछ हमारे विचार का फल है। हमें जांचना चाहिए कि हमारे पास किस प्रकार का विचार है, है न? जो आशीष पाता है उसके पास आशीष पाने के योग्य विचार है, और जो विपत्ति से गुजरता है उसके पास विपत्ति पाने के योग्य विचार है। अगर हमारा विचार हमेशा परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होगा, हम परमेश्वर से आशीष पाएंगे जो हमारे विचार का फल है।
हम अभी भविष्यवाणी के उस समय में हैं जब दुल्हा अपने आने में देर कर रहा है। मुझे डर है कि कुछ लोग इस विचार से परेशान होंगे कि दुल्हा शायद बहुत देर से आएगा, या कुछ लोग इस विचार से मनमाने ढंग से रहेंगे कि कोई कल नहीं होगा। परमेश्वर ने हमसे बार बार कहा है कि हम जो हमें करना चाहिए उसे आगे बढ़ाते हुए महिमामय दिन को प्राप्त करें। चाहे मसीह एक साल के बाद आएं, या फिर दो साल के बाद आएं, या कल या किसी दूसरे दिन आएं, हमें इस विचार के साथ कार्य करना चाहिए कि वह आज आ सकते हैं। यह परमेश्वर की शिक्षा है और वह रवैया है जो हमें ग्रहण करना चाहिए।
यह विचार कि वह देर से आएंगे, हमारे विश्वास और आशा को नष्ट कर देता है। यह नींद की दवा की तरह है जो हमारी आत्माओं को सुलाती है। यह बहुत ही खतरनाक विचार है। तब आइए हम बाइबल के द्वारा देखें कि आत्मिक रूप में “जागते रहो” का मतलब क्या है, और अपने आपको तैयार करें कि हम उन परमेश्वर को ग्रहण करें जो ऐसे दिन आएंगे जब हम उनकी बाट न जोहते हों।
परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे कि मेरे स्वामी के आने में देर है, और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए–पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता हो, तब वह उसे भारी ताड़ना देगा और उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहां रोना और दांत पीसना होगा। मत 24:48–51
बाइबल कहती है कि स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब दास उसकी बाट न जोहता हो, और ऐसी घड़ी जिसे दास न जानता हो। उस समय पर दुष्ट दास का रोना और दांत पीसना उसके विचार का फल है।
कुछ लोग मसीह को ग्रहण करने के लिए तैयार हैं, चाहे वह दो साल के बाद आएं, या एक साल के बाद आएं, या कल या अभी इस समय आएं। ऐसे लोगों के लिए, परमेश्वर ने आशीष तैयार रखी है जो उनके विचार का फल है।
इसके विपरीत, कुछ सोच सकते हैं कि उनके आने में बहुत देर होगी, और वे अपने कर्तव्य की उपेक्षा करते हैं और आशीष पाने वाली चीजों को टाल देते हैं। जब मसीह आएंगे, तब ऐसे दासों के बारे में जो भविष्यवाणी है वह पूरी हो जाएगी– “उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उसकी बाट न जोहता हो, और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता हो, तब वह उसे भारी ताड़ना देगा और उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहां रोना और दांत पीसना होगा।”
ऊपर की बातें अंतिम दिनों में घटित होंगी जब मसीह आएंगे। यीशु ने युग के अंत के चिन्ह बताकर, पहले ही इन बातों को हमें दिखाया है।(मत 24:3) यह वचन न तो प्रथम चर्च के संतों के लिए है और न ही पुराने नियम के प्रचीन काल के लोगों के लिए है। यह वचन हमारे लिए है जो अंतिम दिनों में रहते हैं।
ऐसे लोग हो सकते हैं जिनके पास वही विचार है जो दुष्ट दास के पास था। उनके चेहरे उनके विचारों को नहीं बताते। क्योंकि वे सोचते हैं कि ‘उनके आने में देर होगी,’ वे निजी चीजों में लिप्त हो जाते हैं और पियक्कड़ों के साथ खाते और पीते हैं। ईसाई के रूप में वे अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं, और अंत में वे उन स्वामी के द्वारा दण्ड पाएंगे जो ऐसे दिन आएंगे जब वे उनकी बाट जोहते न रहेंगे।
उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। दो स्त्रियां चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। इसलिये जागते रहो… मत 24:40–42
इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा। मत 24:44
बाइबल निरंतर हमें कहती है, “जागते रहो!” “तुम तैयार रहो।” यह इसलिए है क्योंकि मनुष्य का पुत्र ऐसी घड़ी आएगा जब हम उसकी बाट न जोहते हों। फिर, जागते रहने का क्या मतलब है?
अत: वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर–चाकरों पर सरदार ठहराया कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकारी ठहराएगा। मत 24:45–47
यीशु के शब्दों में, ऐसा नहीं लगता कि जागते रहना और तैयार होना मुश्किल है। “समय पर उन्हें भोजन देने” का मतलब उत्सुकता से प्रचार करना, आग्रहपूर्वक प्रार्थना करना, परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन यत्न से करना, और प्रेम में एक दूसरे की सेवा करना है।
विश्वासयोग्य दास और दुष्ट दास के दृष्टांत के द्वारा, हम समझ सकते हैं कि अलग विचार अलग परिणाम लाते हैं: एक ने समय और असमय बहुत मेहनत की, और दूसरे ने सिर्फ तभी काम किया जब उसे लगा कि स्वामी जल्दी आने वाला है। वह समय के बारे में चिंतित था, काम के बारे में नहीं।
वह दास जो जागते रहता है और तैयार रहता है, मूल रूप से दुष्ट दास की सोच से अलग है। दास जो जागते रहता है और तैयार रहता है, यह सोचता है, ‘यह मेरे पिता का कार्य है और मेरा मिशन है। फिर, मैं कैसे समय का इंतजार कर सकता हूं? जब तक मेरी जान है, तब तक मैं इस काम के लिए पूरी कोशिश करूंगा।’ वह लगातार काम करता है और अंत तक इस विचार से धैर्य बनाए रखता है, ‘यह सुसमाचार मेरे पिता का कार्य है, और मेरी माता का कार्य है, और मेरा कार्य है।’ इस बीच, वह दुष्ट दास कुछ समय तक कुछ माहौल के कारण दिखावे के लिए कार्य करता है। वह तभी काम करता है जब कोई कहता है कि मसीह का आना निकट है। हालांकि, वह जल्दी ही थक जाता है और आखिर में रुक जाता है।
इस दृष्टांत के द्वारा, हमारे परमेश्वर, जो हमारे हृदय के विचारों और रवैयों को जानते हैं, स्पष्ट रूप से हमारी मानसिक स्थिति का वर्णन करते हैं जो अंतिम दिनों में सुसमाचार के कार्य में भाग लेते हैं। तब, किस प्रकार का विचार हमें करना चाहिए, और किस प्रकार का फल हमें प्राप्त करना चाहिए?
हमारे पिता सुसमाचार का प्रचार करने के लिए, 37 वर्षों तक मनुष्य का रूप धारण करके बलिदान के मार्ग पर चले। अगर हम उस मार्ग पर नहीं चलेंगे और लड़खड़ाएंगे, तो हम कैसे अपने स्वर्गीय पिता के कदमों पर पूरी तरह चल पाएंगे?
लोग जिन्होंने सत्य को अभी तक ग्रहण नहीं किया है, वे सत्य को ग्रहण करने के बाद सुसमाचार के कार्य में भाग ले सकते हैं। लेकिन जो सत्य में पहले बुलाए गए हैं और सुसमाचार का कार्य कर रहे हैं, उन्हें अंत तक अपनी पूरी शक्ति के साथ दौड़ने की जरूरत है।
जैसे शैतान ने अय्यूब की परीक्षा ली, वह कभी–कभी हमारी परीक्षा लेने के लिए हमें अत्यंत बुरी स्थिति में डालता है। कभी–कभी हमें जरूरतमंद परिस्थितियों में सांसारिक नौकरी करना है। जो भी स्थिति हो, अगर हम अपनी जगह पर उत्सुकता से प्रचार करेंगे, तो परमेश्वर सुसमाचार के लिए हमारी परिस्थिति को बेहतर बनाएंगे। अंत में, शैतान ने अय्यूब के स्थिर विश्वास के सामने हार मान ली, और परमेश्वर ने अय्यूब को इतनी आशीष दी कि जितना उसके पास पहले था, उसका दुगना उसे दिया गया।
जब अय्यूब ने अपने मित्रों के लिये प्रार्थना की, तब यहोवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अय्यूब के पास पहले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया। तब उसके सब भाई, और सब बहिनें, और जितने पहले उसको जानते पहिचानते थे, उन सभों ने आकर उसके यहां उसके संग भोजन किया… यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हजार भेड़ बकरियां, छ: हजार ऊंट, हजार जोड़ी बैल, और हजार गदहियां हो गईं। अय 42:10–12
तू ने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिये मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूंगा… प्रक 3:10–12
हम कमजोर और दुर्बल मनुष्य हैं। अगर हम लगातार अपने मन को परमेश्वर परलगाएंगे, भले ही हमारी परिस्थितियां नामुमकिन और आशाहीन लगती हों, परमेश्वर सुसमाचार का मार्ग खोलेंगे।
आइए हम यह सोचते हुए खुद को देखें कि परमेश्वर उस दिन आएंगे जब हम उनकी बाट न जोहते हों और ऐसी घड़ी जिसे हम न जानते हों: ‘अगर मसीह आज आएंगे, तो मुझे क्या करना चाहिए? अगर कल आएंगे, मैं कैसे उन्हें ग्रहण करूं? क्या अभी मैं पूरी तरह तैयार हूं? क्या मैं परमेश्वर की दी हुईं सारी आज्ञाओं का पालन कर रहा हूं? जहां कहीं परमेश्वर जाते हैं, क्या मैं उनके पीछे चलता हूं? क्या मैं मेहनत से सुसमाचार का प्रचार कर रहा हूं? क्या मैं परमेश्वर की आज्ञाओं को अपने पूरे हृदय, पूरे मन और पूरी आत्मा से मना रहा हूं?’
यह सोचकर कि ‘वह आज आ सकते हैं,’ आइए हम विचार करें कि हमें जागते रहने के लिए क्या करना चाहिए। तब परमेश्वर हमें बुद्धि देंगे और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हमारे मार्ग खोलेंगे।
यह दुनिया और इसमें सब कुछ परमेश्वर के हाथों में हैं। देखने में ऐसा लगता है कि मनुष्य चीजों का नियंत्रण करता है, परंतु भीतरी रूप से परमेश्वर सारा नियंत्रण करते हैं। सब कुछ परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है। कभी–कभी हम अपने आसपास के लोगों के द्वारा सताए जाते हैं। हालांकि, यह भी परमेश्वर की अनुमति के द्वारा होता है जो जानते हैं कि अगर सताव या कठिनाई नहीं होगी, हम आलसी और आत्मसंतुष्ट बनेंगे। इसलिए, परमेश्वर हमें हर बात में धन्यवाद देने के लिए कहते हैं।(1थिस 5:16–18)
चूंकि परमेश्वर जानते हैं कि अगर हम अच्छे परिवेश में हैं, हम शारीरिक विचारों में लिप्त होंगे, वह हमें कठिनाइयों से गुजरने की अनुमति देते हैं। चाहे जो भी हमारी परिस्थिति हो, अगर हम सिर्फ सुसमाचार का प्रचार करने की कोशिश करेंगे, तो परमेश्वर हमारे लिए अच्छा मार्ग खोलेंगे और उन सभी कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए हमारी मदद करेंगे।
हमारी बहनों में से एक बहन अस्पताल में अपने बच्चे की देखभाल कर रही थी। उस अस्पताल में, वह दूसरी माताओं से मिली, और उसने उनमें से कुछ की सत्य में अगुवाई की। हमारे विचार में, ऐसा लगता है कि एक अस्पताल प्रचार करने के लिए अच्छी जगह नहीं है। परंतु बहन ने कहा, “अस्पताल भी परमेश्वर के वचन को सुनाने के लिए अच्छी जगह थी।”
जब उसका बच्चा सो रहा था, बहन ने उनको नई वाचा के बारे में बताया जिसे परमेश्वर ने हमारी अगुवाई उस स्वर्ग में करने के लिए स्थापित किया, जहां पीड़ा न रहेगी, और न शोक, न विलाप रहेगा। तब उनमें से एक ने बहुत ही आश्चर्यचकित होकर पूछा, “क्या यह सच में बाइबल में है?” और उसने बाइबल के द्वारा सत्य का पता लगाया। फिर उसने कहा, “यह बहुत ही रहस्यमय और अनुग्रहपूर्ण है,” और अपने बच्चे के अस्पताल छोड़ने की बात से अधिक सत्य का अध्ययन करने में रूचि दिखाई।
भले ही बहन प्रतिकूल परिस्थिति में थी, फिर भी उसने यह सोचा, ‘मैं कैसे उद्धार की ओर उनकी अगुवाई कर सकती हूं? माता के रूप में अपने कर्तव्य को न भूलते हुए, कैसे खाली समय में अच्छा फल पैदा कर सकती हूं?’ और उनको ईमानदार और उत्सुक हृदय के साथ प्रचार किया।
जब हम सिर्फ ऐसे कर्तव्य की भावना से प्रचार करते हैं – ‘मुझे प्रचार करना है क्योंकि वे मुझ पर दबाव डालते हैं,’ तब हम ‘लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे?’ यह सोचकर दूसरों की प्रतिक्रिया के बारे में चिंतित हो जाते हैं और फिर हम बहुतायत में फल उत्पन्न नहीं कर सकते। हालांकि, अगर हम उनकी आत्माओं के प्रति ऐसा दया भाव रखते हुए प्रचार करते हैं, ‘मैं कैसे उन्हें मरने के लिए छोड़ सकता हूं?
शायद मैं उन्हें दुबारा नहीं देख सकता। अभी परमेश्वर ने मुझे उनसे मिलने की अनुमति दी है। मुझे परमेश्वर के दिए हुए इस मौके को लेकर उन्हें उद्धार का शुभ संदेश बताना चाहिए,’ तो हम उनको सत्य बताने के लिए खुले मन से उनके पास जा सकते हैं और उद्धार की ओर उनकी आत्माओं की अगुवाई कर सकते हैं। सब कुछ हमारे सोचने के तरीके पर निर्भर है।
बेशक हमारे हृदय आत्माओं को बचाने की उत्सुकता से हमेशा भरे रहने चाहिए। समय पर उन्हें भोजन देना क्या हमारा कर्तव्य नहीं है?
अत: वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर–चाकरों पर सरदार ठहराया कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मत 24:45–46
हमें परमेश्वर के हृदय के साथ सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए जो समय और असमय सभी मनुष्यों की आत्माओं से पे्रम करते हैं। हमें उस दास की तरह नहीं होना चाहिए जिसने यह सोचा कि उसके स्वामी को आने में देर होगी और खुद से कहा, ‘अगर मैं इसे आज नहीं करूंगा तो किसी और समय पर करूंगा।’ ऐसे विचार में लिप्त होने के बाद, उसने पियक्कड़ों के साथ खाया और पिया, और उसका स्वामी ऐसे दिन आया जब उसने उसकी बाट न जोहता था, और ऐसी घड़ी जिसे वह न जानता था।
विश्वासयोग्य दास और दुष्ट दास के दृष्टांत को समझ लीजिए: पहला पूरी तरह से मसीह के वचनों पर आज्ञाकारी रहा, और दूसरे ने सिर्फ अपने सुख व विलास के लिए जीवन जिया।
एक बार फिर, आइए हम स्मरण करें कि मसीह ऐसे दिन आएंगे जब हम उनकी बाट न जोहते हों। सब कुछ हमारे विचार से आता है। हमें सकारात्मक विचार और अच्छा विश्वास रखना चाहिए जो अनुग्रहपूर्ण परिणामों को जन्म देता है।
इसके बाद वे दूसरी कुंवारियां भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे!’ उसने उत्तर दिया, ‘मैं तुम से सच कहता हूं, मैं तुम्हें नहीं जानता।’ इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को। मत 25:11–13
मत्ती 24:42 में हमारे पिता हमसे कहते हैं, “जागते रहो”, और मत्ती 25:13 में वह फिर से हमसे कहते हैं, “जागते रहो।” बार–बार वह कहते हैं कि वह ऐसे दिन आएंगे जब हम उनकी बाट न जोहते हों, और ऐसी घड़ी जिसे हम न जानते हों।
जागते रहने का सुरक्षित मार्ग है, कार्य करना। क्या कोई मनुष्य सोते समय कार्य कर सकता है? जब हम कार्य करते हैं, हम सतर्क रह सकते हैं। जो यत्न से कार्य करते हैं, वे चाहे रात को भी कार्य करते हों, ऊंघते नहीं। लेकिन उनका क्या होगा जो कार्य नहीं करते? वे सब ऊंघने वाले हैं।
तोड़ों के दृष्टांत में हम देख सकते हैं कि वह कौन है जो जागता रहता है।(मत 25:14–30) उस दास ने जिसे पांच तोड़े दिए गए, पांच तोड़े और कमाने के विचार से हर दिन कड़ी मेहनत की। इसके परिणाम में, वह पांच तोड़े और कमाकर स्वामी के पास लाया, और उसने यह प्रशंसा पाई, “धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा; मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊंगा। अपने स्वामी के आनन्द में सहभागी हो!” जिसके पास दो तोड़े थे, उसने सोचा कि वह दो तोड़े और कमा सकता है। वह दास जिसे एक तोड़ा मिला था, उसके अन्दर डर का भाव था, और उसने सिर्फ अपना एक तोड़ा वापस किया।
“उनके आने में देर होगी। मुझे अभी कड़ी मेहनत करने की जरूरत नहीं है।” ऐसा विचार दुखद परिणाम लाता है। “जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा; और उसके पास बहुत हो जाएगा: परंतु जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है, ले लिया जाएगा।” दुष्ट दास से एक तोड़ा छीन लिया गया, क्योंकि उसके पास ऐसा परिणाम पाने के योग्य विचार था।
व्यापार लाभ बनाने का काम है। इस दृष्टांत में स्वामी ने हर एक दास को व्यापार करने के लिए कुछ तोडे. दिए। यहां “व्यापार करने” का मतलब “आत्माओं को बचाना” है। परमेश्वर ने हमें आत्माओं को बचाने के लिए तोडे. दिए हैं। पहले दो दास जानते थे कि उनके स्वामी को लाभ चाहिए, और उन्होंने स्वामी की इच्छा के अनुसार किया, परंतु तीसरे दास ने ऐसा नहीं किया। परमेश्वर ने तीसरे दास को दुष्ट और आलसी कहा, और उन्होंने कहा, “उससे वह तोड़ा ले लो जो उसके पास है।”
जिसे पांच तोड़े मिले थे, वह पांच और तोड़े लाया, और जिसके पास दो तोडे. थे, वह चार तोडे. वापस लाया, परंतु जिसको एक तोड़ा दिया गया था, उसने कुछ भी प्राप्त नहीं किया। उसके विरुद्ध परमेश्वर की सजा क्या थी? हमें जानना चाहिए कि हमारे विचारों का फल कैसे आत्मिक दुनिया में प्रकट किया जाएगा।
अगर हम सब कुछ परमेश्वर के राज्य और उनके धर्म के लिए करेंगे, तो चाहे वह एक छोटी चीज हो, हमें निश्चित रूप से अच्छा परिणाम मिलेगा। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, हम हमेशा मुसीबत में होंगे। इसको याद रखकर, आइए हम सिर्फ परमेश्वर के राज्य और उनके धर्म के लिए काम करें।
उसी समय मीकाएल नामक बड़ा प्रधान, जो तेरे जातिभाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है, वह उठेगा। तब ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्पन्न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ न होगा; परन्तु उस समय तेरे लोगों में से जितनों के नाम परमेश्वर की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वे बच निकलेंगे। जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिये, और कितने अपनी नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिये। तब सिखानेवालों की चमक आकाशमण्डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे। दान 12:1–3
“जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे।” यह वचन संक्षेप में स्वर्ग की महिमा का वर्णन करता है। परमेश्वर सब कुछ देखते हैं जो हम करते हैं: हम कितना सहन करते हैं, हम कितनी ईमानदारी से प्रार्थना करते हैं, और हम कितनी निष्ठा से एक आत्मा बचाने के लिए प्रयास करते हैं।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए छह अरब लोगों में से एक लाख चौवालीस हजार जनों को ढूंढ़ना बहुत आसान होगा। हालांकि, परमेश्वर ने हमें प्रचार का मिशन सौंपा है, जिसके द्वारा वह हमें सुधारते हैं और हमारी आत्माओं को जगाते हैं ताकि हम परमेश्वर के करीब जाएं और स्वर्गीय पिता और माता के हृदय को समझें।
“परमेश्वर प्रेम हैं।” जिन्होंने कभी सुसमाचार का प्रचार नहीं किया, वे परमेश्वर के प्रेम को पूरी तरह महसूस नहीं कर सकते। जब हम परमेश्वर की ओर एक के बाद एक आत्मा की अगुवाई करते हैं, तब हम पिता और माता के प्रेम को समझते हैं जो उन्होंने हमें प्रदान किया है। जब हम खुद को देखें, कभी–कभी हम परमेश्वर के वचनों को समझने में नाकाम होते हैं और प्रलोभन में गिरते हैं। अभी, हम महसूस कर सकते हैं कि हमारे पिता और माता हमसे कितना ज्यादा प्रेम करते हैं, और हम परमेश्वर के प्रति और अधिक आज्ञाकारी बनने का संकल्प करते हैं। सुसमाचार का प्रचार किए बिना, हम हमारे प्रति परमेश्वर के प्रेम की सीमा को नहीं समझ सकते।
अभी, आइए हम प्रार्थना करें और हमारे चारों ओर देखें। बहुत लोग हैं जो हमारे प्रचार का इंतजार कर रहे हैं। वे हमारे दोस्त हो सकते हैं, या पुराने सहपाठी, या पड़ोसी। अगर हम उन्हें भूल जाएं, तो वे छोड़े जाएंगे। हालांकि, अगर हम उन्हें बचाने का फैसला करेंगे और प्रचार करेंगे, वे सब बच सकते हैं।
जब हम उस तरीके से प्रचार करेंगे, तो सुसमाचार का कार्य अनुग्रहपूर्वक पूरा होगा। हमें जागृत और तैयार रहना चाहिए ताकि चाहे पिता कल आएं या आज ही आएं, हम उनका स्वागत कर सकें।
भाइयो और बहनो! आइए हम यत्न से सुसमाचार का प्रचार इस विचार के साथ करें – ‘मैं जागृत रहने का एक उदाहरण स्थापित करूंगा।’ तब दुनिया भर में हमारे सभी भाई और बहनें जागते रहेंगे और आशीषित परिणाम प्राप्त करेंगे, ताकि वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहें। और आइए हम 1,44,000 के रूप में हमेशा तैयार रहें कि जब पिता आएं, हम उनका खुशी से स्वागत करें।