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जब इस्राएल की सेना पलिश्तियों के बड़े सैन्य बल से डरकर कांप रही थी, तब शाऊल का पुत्र योनातान अपने पिता से बिना कुछ कहे एक युवा सैनिक को लेकर पलिश्तियों के डेरे के पास चला गया।
“आओ, हम उनके पास जाएं! परमेश्वर अवश्य ही हमें विजय दिलाएंगे। हमारा उद्धार करने से परमेश्वर को कुछ भी रोक नहीं सकता, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता है कि हमारे पास बहुत से सैनिक हैं या थोड़े से सैनिक।”
“आगे चलिए, मैं आपका पालन करूंगा।”
“यदि पलिश्ती लोग हमसे कहते हैं, ‘तुम वहीं रुको जब तक हम तुम्हारे पास आते हैं,’ तो हम उसी स्थान पर रुक जाएंगे और उनके पास ऊपर नहीं चढ़ेंगे। परन्तु यदि वे यह कहते हैं, ‘हमारे पास चढ़ आओ,’ तो हम उनके पास चढ़ जाएंगे, क्योंकि यह हमारे लिए एक चिन्ह होगा कि परमेश्वर हम लोगों को उन्हें हराने देंगे।”
जब योनातान और एक युवा सैनिक ने अपने को पलिश्तियों की चौकी पर प्रकट किया, तब पलिश्ती रक्षकों ने उन्हें देखकर कहा,
“हमारे पास चढ़ आओ! तब हम तुम्हें कुछ सिखाएंगे!”
योनातान ने युवा सैनिक से कहा,
“मेरे पीछे–पीछे चढ़ आओ। क्योंकि परमेश्वर उन्हें इस्राएलियों के हाथ में कर देंगे।”
परमेश्वर की सहायता से योनातान और युवा सैनिक ने पलिश्ती के सैनिकों से लड़कर विजय पाई, तब पलिश्ती लोग डर के मारे कांपने लगे।
इस्राएल के सैनिकों की संख्या बहुत कम थी और उनके पास कोई अच्छा हथियार भी नहीं था, इसलिए इस्राएलियों के लिए ऐसी पलिश्ती सेना को हराना असंभव था जिसके पास बहुत बड़ा सैन्य बल था। लेकिन योनातान के लिए पलिश्तियों का सैन्य बल कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि उसके पास दृढ़ विश्वास था कि परमेश्वर उसके साथ हैं। योनातान को पक्का विश्वास था कि विजय सैन्य बल पर नहीं, बल्कि परमेश्वर की सहायता पर निर्भर है, और उसी विश्वास के द्वारा उसने विजय की आशीष प्राप्त की।
इस युग में स्वर्ग के सैनिकों और शैतान के बीच हो रहे आत्मिक युद्ध का परिणाम भी ऐसा ही है। जब हम विश्वास करें कि उद्धार का कार्य केवल परमेश्वर पर निर्भर है, तो किसी प्रतिकूल एवं कठिन परिस्थितियों में भी कोई समस्या नहीं होगी। यह विश्वास जिससे हम परमेश्वर की सहायता पर निर्भर करते हुए असंभव चीजों में संभावना को देखते हैं, शैतान पर विजय पाने की शक्ति है।