बाइबल के द्वारा अपने बारे में गवाही दी

लूका 24:13–27

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उस दिन जब यीशु जी उठे, दो चेले यरूशलेम से इम्माऊस नामक एक गांव को जा रहे थे। यीशु स्वयं उनके पास आए और उनके साथ–साथ चलने लगे। फिर भी वे उन्हें पहिचान न सके।

“तुम एक दूसरे से किन बातों की चर्चा कर रहे हो?”

यीशु के इस सवाल पर वे चलते हुए रुक गए। वे बड़े दुखी दिखाई दे रहे थे। उनमें से क्लियोपास नाम के एक व्यक्ति ने कहा,

“क्या आप यरूशलेम में रहकर भी यह नहीं जानते कि वहां इन दिनों क्या–क्या हुआ है?”

यीशु ने उनसे पूछा, “कौन सी बातें?”

“सब यीशु के बारे में हैं! वह एक महान नबी थे। प्रधान याजकों और हमारे सरदारों ने उन्हें मृत्यु दण्ड देने के लिए सौंप दिया। और उन्होंने उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। परन्तु हमें आशा थी कि यही इस्राएल को छुटकारा देंगे। इन सब बातों के अलावा इस घटना को हुए तीसरा दिन है, और हम में से कई स्त्रियां भोर को यीशु की कब्र पर गई थीं। किन्तु उन्हें उसका शव नहीं मिला। वे लौटीं और हमें बताया कि उन्होंने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया है जिन्होंने कहा था कि वह जीवित हैं । फिर हमारे साथियों में से कुछ कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियों ने बताया था, उन्होंने वहां वैसा ही पाया। उन्होंने उनका शव नहीं देखा।”

तब यीशु ने उनसे कहा, “हे निर्बुद्धियो, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियो! क्या अवश्य न था कि मसीह ये दुख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करें?”

तब यीशु ने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्रशास्त्र में से अपने विषय में लिखी बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।

वह जिन पर उन्होंने उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास किया था, बहुत दुख उठाने के बाद मर गए। उनकी मृत्यु के तीन दिन बाद उनका शव नहीं मिल सकता था। उनके चेले नहीं जानते थे कि ये सब बातें क्यों हुई हैं, और वे बस बेहद निराश थे।

वे जो बाइबल पर विश्वास करने में धीमे थे, उन्हें जगाने के लिए यीशु ने एक चीज को चुना। वह कुछ चिन्ह या चमत्कार नहीं, बल्कि बाइबल थी। यीशु के लिए यही अपने बारे में विस्तार से समझाने का सबसे अच्छा और स्पष्ट रास्ता था।

बाइबल उद्धारकर्ता के बारे में गवाही देती है (यूह 5:39)। उद्धारकर्ता से मिलने का रास्ता आपसे दूर नहीं है।