‘द प्रिन्स ऑफ़ ईजिप्त’ कार्टून में ऐसी बातचीत है, “मरुस्थल में सोने से कहीं अधिक पानी मूल्यवान है, और भटकती भेड़ के लिए राजा से कहीं अधिक चरवाहा मूल्यवान है।” यह बात सच्च है। यदि कोई भेड़ भटकती है, तो उस भेड़ के लिए सब से आवश्यक क्या होगा? चरवाहा है, जो उसका मार्गदर्शन कर सकता है।
जब सूखे में एक बूंद पानी भी नहीं रहता, तो सोने की क्या जरूरत है? और अधिकार का क्या मतलब है? सब बेकार है। जीवित प्राणी पानी के बिना नहीं रह सकता।
हमारा आत्मिक जीवन भी वैसा ही है। यदि हमें परमेश्वर के सत्य का वचन, यानी जीवन का जल, प्रदान नहीं किया जाए, तो हम आत्मिक सूखे में भूखे-प्यासे होंगे, अत: अनन्त विनाश पाएंगे। आज, पूरा विश्व आत्मिक सूखे में पड़ा है, लेकिन जो स्वर्गीय यरूशलेम माता को स्वीकार करते हैं, वे जीवन का जल पा सकेंगे। आइए हम इस तथ्य को बाइबल के द्वारा पुष्ट करें।
पुराने नियम के समय, आमोस नबी ने भविष्यवाणी की कि भविष्य में यहोवा के वचन सुनने का अकाल पूरे विश्व में पड़ेगा।
“प्रभु यहोवा की यह वाणी है: “देखो, ऐसे दिन आनेवाले हैं जबकि मैं इस देश में अकाल भेजूंगा। यह अकाल रोटी या पानी का नहीं वरन् यहोवा के वचन सुनने का होगा। और लोग समुद्र से समुद्र तक और उत्तर से पूर्व तक मारे मारे फिरेंगे। वे इधर-उधर यहोवा का वचन खोजेंगे, परन्तु उसे न पाएंगे। उस दिन सुन्दर कन्याएं और जवान पुरुष प्यास के मारे मूर्छित हो जाएंगे।” आम 8:11-13
अकाल एक तबाही है जो पानी के न होने के कारण मच जाती है। पानी के बिना संसार में कोई भी जीव अपना जीवन जारी नहीं रख सकता।
परमेश्वर का वचन मनुष्य को अनन्त जीवन देता है, और वह आत्मिक पानी है जो हमारे उद्धार के लिए दिया जाता है। अब, परमेश्वर के वचन सुनने की भूख और प्यास पूरे देशों पर आ पड़ी है, और केवल परमेश्वर ही इस भूख और प्यास का समाधान कर सकता है। यह असली पानी की प्यास नहीं, पर आत्मिक प्यास है। मसीह को, जो जीवन का जल देने के लिए आया, उसे स्वीकार न करने के कारण और उसका वचन न सुनने के कारण आत्मिक अकाल हुआ है।
बहुतेरे लोग जीवन का जल ढूंढ़ न सकने के कारण भटक रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ‘जीवन के जल के स्रोत’ परमेश्वर को पहचाना नहीं है।(यिर्म 2:13) यदि परमेश्वर को पहचान कर स्वीकार करें, तो अनन्तकाल तक भूखे प्यासे न होंगे। परमेश्वर मानव जाति को जीवन का जल बिना मूल्य दे रहा है।
“और वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; फिर न कोई मृत्यु रहेगी न कोई शोक, न विलाप और न पीड़ा रहेगी। पहिली बातें बीत गई हैं। तब जो सिंहासन पर बैठा था, उसने कहा, “देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं!” फिर उसने कहा, “लिख, क्योंकि ये वचन विश्वसनीय और सत्य हैं।” उसने मुझ से फिर कहा, “हो चुका। मैं अलफा और ओमेगा, आदि और अन्त हूं। जो प्यासा हो उसे मैं जीवन के जल के सोते से मुफ़्त पिलाऊंगा।” ” प्रक 21:4-6
“आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुनने वाला भी कहे, “आ!” जो प्यासा हो, वह आए। जो चाहता है, वह जीवन का जल बिना मूल्य ले।” प्रक 22:17
जो जीवन का जल दे सकता है, वह केवल परमेश्वर है। प्रेरित यूहन्ना के द्वारा लिखित प्रकाशितवाक्य के अन्तिम भाग में, यह दृश्य दिखाई देता है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा और दुल्हिन के रूप में आकर लोगों को जीवन का जल देने के लिए बुला रहे हैं।
‘तीन रूप एक हैं’ के सिद्धांत के अनुसार, पवित्र आत्मा सर्वशक्तिमान पिता परमेश्वर है। तब पवित्र आत्मा के साथ आकर जीवन का जल देने वाली दुल्हिन कौन है? हम आत्मिक अकाल के ज़माने में रहते हैं, इसलिए मरुस्थल में पानी ढूंढ़ने की तरह, जीवन का जल देने वाले पवित्र आत्मा और दुल्हिन को ढूंढ़ना, हमारे लिए अति अनिवार्य कर्तव्य है।
जीवन का जल देने वाले परमेश्वर को पहचानने के द्वारा ही, हम उसके पास जाकर जीवन का जल मांग सकते हैं। यीशु 2 हज़ार वर्ष पहले जीवन का जल लेकर आया था। जब यीशु ने सामरी स्त्री से, जिससे कुएं के पास मिला था, बातचीत की, उसने इस पर जोर दिया था।
“अत: वह सामरिया के सूखार नामक एक नगर में आया, … इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने आई। यीशु ने उस से कहा, “मुझे पानी पिला।” … इसलिए उस सामरी स्त्री ने उस से कहा, “यह कैसी बात है कि तू यहूदी होते हुए भी, मुझ से पानी मांगता है? मैं तो सामरी स्त्री हूं!” यहूदी तो सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते। यीशु ने उत्तर देते हुए उस से कहा, “यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती और यह भी कि वह कौन है जो तुझ से कहता है, ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।” स्त्री ने उस से कहा, “महोदय, तेरे पास जल भरने को कुछ नहीं है, और कुआँ गहरा है, तो वह जीवन का जल तेरे पास कहां से आया? … यीशु ने उत्तर देते हुए उस से कहा, “प्रत्येक जो इस जल में से पीता है, वह फिर प्यास होगा, परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, अनन्तकाल तक प्यासा न होगा, परन्तु वह जल जो मैं उसे दूंगा उसमें अनन्त जीवन के लिए उमण्डने वाला जल का सोता बन जाएगा।” स्त्री ने उस से कहा, “महोदय, यह जल मुझे भी दे, जिस से कि मुझे फिर प्यास न लगे, और न ही जल भरने यहां तक आना पड़े।” यूह 4:5-15
शारीरिक विचार के द्वारा, सामरी स्त्री ने शुरू में यीशु के वचन को गलत समझा था। आज, पानी इतना हमारे निकट होता है कि जैसे घर में नल खोलते, पानी निकलता है, लेकिन पुराने ज़माने में लोगों को घर के बाहर दूर दूर जाकर कुएं से पानी ले आना पड़ता था। वह स्त्री पानी लाने के कारण हुई शरीर की थकावट दूर करना चाहती थी, इसलिए जब यीशु ने उसे कहा कि मैं अनन्तकाल तक प्यासा न होने का पानी दूंगा, तब उसने यह सोच कर यीशु से पानी मांगा कि यह शारीरिक जल है। लेकिन जब बाद में स्त्री को महसूस हुआ कि यीशु जीवन का जल देने वाला मसीह है, तो वह बहुत चकित होते हुए अपना घड़ा छोड़ कर दौड़ी कि नगर में लोगों को यह बात सुनाए।(यूह 4:16-30)
विषय जिस पर हमें ध्यान देना है, वह यीशु का कथन है, “यदि तू जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है, ‘मुझे पानी पिला, … ’” उस समय में अधिकांश यहूदियों ने यह नहीं जाना कि यीशु जीवन के जल का स्रोत, परमेश्वर है, जिससे वे यीशु को अस्वीकार करते थे। यदि वे यह जानते कि यीशु कौन है, तो वे यीशु से जीवन का जल मांगते। लेकिन वे यीशु से, जो मनुष्य बन कर आया, ठोकर खाकर उसे परमेश्वर के रूप में स्वीकार नहीं कर सके। और यीशु का जन्म बढ़ई के ग़रीब परिवार में हुआ था, और 30 वर्ष की उम्र का जवान आदमी था। इन सब चीजों के कारण उन्हें लगता था कि यीशु निम्न वर्ग का आदमी है, और वे हमेशा ठोकर खाते थे। इसलिए उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाकर, हिम्मत से हर प्रकार के ठट्ठे और दोष लगाए थे।
लेकिन जिन्होंने सामरी स्त्री के समान अनन्त जीवन के वचन के द्वारा पहचाना कि यीशु कौन है और उसे स्वीकार किया, वे जीवन का जल पाकर आत्मिक रूप से कभी प्यासे न हुए।
आज भी वैसा ही है। आइए हम यीशु के कथन पर ध्यान दें, “यदि तुम यह जानती कि वह कौन है, तो तुम अवश्य ही जीवन का जल, यानी अनन्त जीवन के लिए उमण्डने वाला जल का सोता उस से मांगती” पवित्र आत्मा के युग में पवित्र आत्मा और दुल्हिन जीवन का जल देते हैं। दुल्हिन स्वर्गीय यरूशलेम है जो हमारी माता है।
“ … उनमें से एक ने मेरे पास आकर कहा, “यहां आ, मैं तुझे दुल्हिन अर्थात् मेमने की पत्नी दिखाऊंगा।” तब वह मुझे आत्मा में एक विशाल और ऊंचे पर्वत पर ले गया और उसने पवित्र नगरी यरूशलेम को स्वर्ग में से परमेश्वर के पास से नीचे उतरते हुए दिखाया।” प्रक 21:9-10
“परन्तु ऊपर की यरूशलेम स्वतन्त्र है, और वह हमारी माता है।” गल 4:26
बाइबल दिखाती है कि स्वर्गीय माता यरूशलेम पूरे विश्व के प्यासे लोगों को बुलाकर जीवन का जल देगी। ज़कर्याह नबी ने भी नबूवत की कि मूल स्रोत जहां से जीवन का जल बह निकलता है, यरूशलेम है।
“वह अनोखा दिन होगा जिसे यहोवा ही जानता है। न दिन होगा न रात। परन्तु ऐसा होगा कि संध्या-समय उजियाला होगा। फिर उस दिन यह भी होगा कि जीवन का जल यरूशलेम से बह निकलेगा। उसका आधा भाग पूर्वी सागर की ओर तथा आधा भाग पश्चिमी सागर की ओर बहेगा। वह ग्रीष्म और शीत दोनों ऋतुओं में बहता रहेगा।” जक 14:7-8
यहां पर, ‘उस दिन’ पवित्र आत्मा के अन्तिम युग को संकेत करता है जिसमें हम जी रहे हैं। आज, यरूशलेम माता से हर क्षण, हर पल जीवन का जल बह निकल कर प्यासे लोगों को बचा रहा है।
परमेश्वर के अनुग्रह से, हम ने पिता और माता को, जो प्यासे मनुष्यों को निरंतर जीवन का जल देते हैं, स्वीकार किया है और उनसे मिले हैं। जीवन के जल के स्रोत, पवित्र आत्मा और दुल्हिन के समीप जाकर, हम ने नई वाचा का सत्य पाया है, जिससे हम ने अनन्त जीवन और उद्धार का आश्वस्त वादा भी पाया है। हम जीवन का जल बिना मूल्य पी रहे हैं, जिसे सुन्दर कुमारियां और जवान पुरुष पूरे संसार मे मारे मारे फिरकर ढूंढ़ते हुए भी नहीं पा सकते।
दूसरे लोग जीवन का जल पाने के लिए इधर-उधर फिरते रहते हैं, लेकिन उन्हें अब तक नहीं मिला है, क्योंकि वे नहीं जानते कि जीवन के जल का स्रोत, जिससे हम सदा तक जी सकेंगे, यरूशलेम माता है। प्यास गंभीर होते हुए भी, यदि वे जीवन का जल नहीं पाते, तो आखिर में उनके साथ क्या होगा? वे आत्मिक प्यास से तड़पते हुए अनन्त विनाश की सजा से नहीं बच पाएंगे।
यदि हम तक परमेश्वर के जीवन का जल नहीं बहा होता, तो हम भी उनके जैसी स्थिति में होते। जब हम इसे सोचते हैं, हमें पवित्र आत्मा और दुल्हिन को, जिन्होंने उद्धार के मार्ग पर हमारी अगुवाई की, धन्यवाद देना चाहिए, और हमें सारी जातियों के लोगों को जीवन के जल के स्रोत, यरूशलेम माता की घोषणा जल्द से जल्द करनी चाहिए। हमारे घोषणा करने के द्वारा ही, वे जान जाएंगे कि वे कहां जाकर जीवन का जल पाएंगे, और वे उद्धार के मार्ग पर चल सकेंगे।
जीवन के जल का स्रोत, जो हमें जानना है और जिसके पास जाना है, यरूशलेम है। आइए हम प्रकाशितवाक्य के द्वारा, यरूशलेम के बारे में जानें।
प्रेरित यूहन्ना ने प्रकाशन से देखा कि जीवन के जल की नदी परमेश्वर के सिंहासन से निकलती है।
“फिर उसने मुझे जीवन के जल की नदी दिखाई, जो स्फटिक के समान स्वच्छ थी और जो परमेश्वर और मेमने के सिंहासन से निकलकर, नगर के मुख्य मार्ग के बीच बहती है। नदी के दोनों किनारों पर जीवन का वृक्ष था, जिसमें बारह प्रकार के फल लगते थे। वह प्रति माह फलता था, और इस वृक्ष की पत्तियां जाति-जाति की चंगाई के लिए थीं। फिर वहां कोई शाप न रहेगा, पर इस नगर में परमेश्वर और मेमने का सिंहासन होगा और उसके दास उसकी सेवा करेंगे। वे उसके मुख को देखेंगे और उसका नाम उसके मस्तकों पर होगा। फिर कोई रात न होगी। उन्हें न दीपक न सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उन्हें प्रकाश देगा, और वे युगानुयुग राज्य करेंगे।” प्रक 22:1-6
ज़कर्याह नबी ने भविष्यवाणी की कि जीवन का जल यरूशलेम से बह निकलेगा, और यूहन्ना ने जीवन के जल को परमेश्वर के सिंहासन से बह निकलते देखा। इसलिए ‘परमेश्वर का सिंहासन’ भी यरूशलेम को संकेत करता है।(यिर्म 3:17)
प्रेरित यूहन्ना के जैसा, यहेजकल नबी ने भी प्रकाशन से वैसे ही दृश्य को देखा, और व्यक्त भी किया कि जीवन का जल भवन(पवित्रस्थान) से बह निकलेगा।
“तब वह मुझे भवन के द्वार पर लौटा ले आया और देखो, भवन की दहली के नीचे से पूर्व की ओर जल बह रहा था … पानी बढ़कर ऐसी नदी बन गया कि मैं चल न सका, अर्थात् तैरने योग्य पानी, ऐसी नदी जिसे पार नहीं किया जा सकता था। … नदी के दोनों तटों पर बहुत से वृक्ष थे। तब उसने मुझ से कहा, “यह जल पूर्वी क्षेत्र की ओर बहता है ओर वहां से अराबा होकर समुद्र की ओर बहता है और समुद्र में मिल जाता है, और समुद्र का जल मीठा हो जाता है। और फिर ऐसा होगा कि जहां जहां यह नदी बहती है, वहां वहां बहुत झुण्ड में रहने वाले हर प्रकार के प्राणी जीवन पाएंगे। वहां अत्यधिक मछलियां पाई जाएंगी, क्योंकि यह जल जहां जहां जाता है वहां का जल मीठा हो जाता है। अत: जहां जहां यह नदी पहुंचेगी वहां वहां सब कुछ जीवित रहेगा। … नदी के तट पर दोनों ओर खाने के लिए सब प्रकार के वृक्ष उगेंगे। उनके पत्ते मुर्झाएंगे नहीं और उनके फल समाप्त नहीं होंगे। वे हर महीने फलते रहेंगे क्योंकि उनको सींचने वाला पानी पवित्रस्थान से बहता है; उनके फल भोजन के लिए और पत्ते चंगाई के लिए काम आएंगे।” यहेज 47:1-12
पवित्रस्थान, परमेश्वर का सिंहासन और यरूशलेम, जहां से जीवन का जल बह निकलता है, सब एक ही जन को संकेत करते हैं, सिर्फ व्यक्त करने के शब्द अलग हैं। ये सब जीवन के जल का स्रोत, स्वर्गीय माता यरूशलेम को संकेत करते हैं।
प्रकाशितवाक्य और यहेजकल ग्रंथ एक ही आवाज़ से साक्षी देते हैं कि जहां जहां यह नदी पहुंचेगी वहां वहां सब कुछ जीवित रहेगा। तो जीवन का जल, जो यरूशलेम से बहता है, कितना मूल्यवान है! जीवन का वृक्ष प्रति माह फलता है और इस वृक्ष की पत्तियां जाति-जाति की चंगाई के लिए हैं। जैसे जीवन का जल मानव समाज के अंदर बहता है, जो समुद्र को दर्शाता है, हर प्रकार के प्राणी जीवन पाते हैं।
बाइबल हमें सिखाती है कि जीवन के जल का स्रोत कौन है। संसार माता को सिर्फ मामूली स्त्री समझता है, लेकिन जो माता को पहचानते हैं, वे सब विभिन्न देशों से जीवन का जल मांगने के लिए यरूशलेम माता की बांहों में दौड़ते आ रहे हैं। परमेश्वर ने कहा, “जो कोई उस जल में से पीएगा, वह अनन्तकाल तक प्यासा न होगा” सच में, हम आशीषित लोग हैं और भविष्यवाणी किए गए मुख्य पात्र हैं।
सारी मानव जाति यह जीवन का जल पाना तो चाहती है, लेकिन अब तक नहीं जान पाई है कि जीवन का जल देने वाली यरूशलेम माता कौन है, जिसके कारण वह बहुत पास होते हुए भी, उसे ढूंढ़ने के लिए दूर दूर जाकर भटके रहे हैं। यदि लोग यह जानते कि वह कौन है, तो माता से जीवन का जल मांगते अर्थात् अनन्त जीवन की आशीष व सत्य मांगते।
आइए हम लोगों को यरूशलेम माता के बारे में सुनाएं, तब निश्चय आश्चर्यजनक बदलाव होगा। जो लोग अब तक ख़ामोश हैं और बदलते नहीं, नए सिरे से बदल जाएंगे।
एक बार, यह अंतरराष्ट्रीय समाचार प्रसारित किया गया था कि एक ऐतिहासिक स्थल पर 2 हज़ार वर्ष के एक बीज से, जब पानी मिला, कली निकल गई। वह बीज 2 हज़ार वर्ष तक ख़ामोश था, लेकिन जब उसे पानी मिला, अपनी भूमिका निभाने लगा। मुझे इस पर आश्चर्य हुआ कि बीज बहुत लंबे समय से पानी की प्रतिक्षा करते हुए सो रहा था।
इसी प्रकार, संसार में भी अनेक लोग हैं जो पानी की प्रतिक्षा कर रहे हैं। हमें उन लोगों तक जीवन का जल पहुंचाना चाहिए। यदि हम जाकर उन पर थोड़ा सा भी जीवन का जल छिड़कें, तो अवश्य ही, वे अंकुराएंगे, फूल खिलाएंगे और फल फलाएंगे। संसार के बहुतेरे लोगों के पास जाएं, जो जीवन के जल का इन्तजार कर रहे हैं, और जीवन की नई वाचा का सत्य सुनाएं, तो वे सब पश्चात्ताप करते हुए वापस आएंगे।
परमेश्वर ने कहा है कि जहां जहां जीवन का जल बहता है, वहां वहां सभी प्राणी जीवन पाएंगे। वास्तव में, सिय्योन के परिवार सत्य सुनकर लगातार वापस आ रहे हैं। जो पहले प्रेरित पौलुस के समान सत्य नहीं जानते थे और चर्च ऑफ गॉड पर अत्याचार करते थे, वे भी जीवन के सत्य की ज्योति पाकर पूरी तरह से पश्चात्ताप करते हुए यरूशलेम माता की बांहों में पहुंचाए जा रहे हैं।
आइए हम यरूशलेम के नबी बनें, जो परमेश्वर के वचन पर विश्वास करते हैं और यरूशलेम की महिमा को पूरे विश्व में प्रसारित करते हैं। आशा है कि आप महानबी बनें जो माता का, जो असीमित जीवन का जल प्रदान कर रही है, प्रेम और अनुग्रह लेकर पूरे विश्व में सभी लोगों को बचाते हैं और सत्य की ओर उनकी अगुवाई करते हैं।