इस युग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य

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हर कोई सहज रूप से मूल्यवान और अर्थपूर्ण कार्य करना चाहता है। बाइबल में लिखा गया है कि, “जैसे मनुष्यों के लिए एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है।”(इब्र 9:27) इन शब्दों से, बाइबल मनुष्य को सलाह देती है कि वह इस संसार में जीते समय परमेश्वर की धार्मिकता को खोजे और नए सिरे से जन्मे मनुष्य के समान एक नया जीवन जीए।

तब, हमारे जीवन में सबसे ज्यादा अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण कार्य क्या है? मुझे विश्वास है कि सिय्योन के लोग इसका उत्तर पहले से जानते हैं। एलोहीम परमेश्वर स्वयं इस पृथ्वी पर आए, हमें उदाहरण दिया और सबसे मूल्यवान कार्य सौंपा।

अब, आइए हम इस पर विचार करने का समय लें कि परमेश्वर के द्वारा हमें सौंपा गया कार्य कितना मूल्यवान है। स्वर्ग की सन्तान होने के नाते हमें बिना किसी हिचकिचाहट के इस युग में परमेश्वर के द्वारा दिए गए कार्य को सिद्ध करके परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहिए।

“तीन सवाल”

महान रूसी लेखक, लियो टॉल्स्टॉय द्वारा लिखित एक कहानी है जिसका शीर्षक है, “तीन सवाल” मैं आपके लिए उस कहानी का सार संक्षेप में दोहराऊंगा।

किसी राज्य में एक राजा हुआ करता था। अपने राज्य का प्रशासन चलाने के दौरान उसके मन में ये तीन सवाल आए: पहला सवाल था–किसी कार्य को करने का सबसेउचित समय कब होता है? दूसरा सवाल था–मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है? तीसरा सवाल था–सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है? राजा ने अपने अधिकारियों को बुलाया कि वे उसे इन सवालों का उत्तर दें, लेकिन इसे लेकर उनका मत बंटा हुआ, और उनमें से कोई भी वह उत्तर न दे सका जिससे राजा को संतुष्टि हो।

राजा परेशान हो गया और एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास गया जो एकांत में जीवन जीता था। उसने उस बुद्धिमान व्य्क्ति को समझाया कि वह क्यों उसके पास गया था, और उससे अपने तीन सवालों के उत्तर पूछे। हालांकि, उस बुद्धिमान व्यक्ति ने राजा की बात को अनसुना कर दिया और खेत जोतना जारी रखा। राजा ने हार नहीं मानी, और वह उसकी बगल में उसके उत्तर की प्रतीक्षा करते हुए खड़ा रहा। अचानक ही जंगल से एक युवक बाहर निकला, जिसके कपड़े फट गए थे, और जिसका सारा शरीर लहू–लुहान था। चौंककर राजा ने अपने कपड़े फाड़कर पट्टियां बनाईं, उस युवक के घावों पर बांधीं और उसकी अच्छे से देखभाल की।

कुछ देर बाद, उस युवक को होश आया, और उसने राजा से कहा कि वास्तव में राजा से उसकी दुश्मनी थी और उसे मार डालने के लिए झाड़ियों में छिपकर बैठा था, लेकिन राजा के रक्षकों ने उसे पकड़ लिया और बुरी तरह से मारपीट की। उसने कहा कि वह राजा की दयालुता से द्रवित हो गया था जो राजा ने उस दिन उस पर दिखाई थी, और वह अपने हृदय की गहराई से राजा का सदैव आभारी रहेगा और उसे एक विश्वस्त दास के रूप में अपना तन–मन सब कुछ समर्पित करने का संकल्प किया।

तब वह बुद्धिमान व्यक्ति ने, जो उस समय तक चुप था, राजा से कहा कि उसे पहले से तीन सवालों के उत्तर मिल गए हैं। राजा को समझ में नहीं आया कि बुद्धिमान व्यक्ति ने क्यों ऐसा कहा। इसलिए राजा ने उससे पूछा कि उसके ऐसा कहने का क्या मतलब है।

तब बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा कि, “सबसे उचित समय अभी, यह क्षण है। यदि हमारे पास ‘अभी’ जैसा कोई क्षण नहीं होता, तो हम अपने भविष्य के बारे में सोच नहीं सकते और उसे बना भी नहीं सकते। इसलिए किसी भी कार्य के लिए सबसे उचित समय कल नहीं, लेकिन अभी, यही क्षण है।” जब राजा ने उस लहू से तरबतर युवक की देखभाल की थी जो झाड़ियों से बाहर निकला था, वह कुछ ऐसी बात थी जिसमें विलंब नहीं किया जा सकता था। इस तरह से, “किसी कार्य को करने का सबसे उचित समय कब होता है?” राजा के इस सवाल के प्रति बुद्धिमान व्यक्ति का उत्तर यह था, “किसी परिस्थिति में तुरन्त ही कार्य करना।”

राजा इससे बहुत ज्यादा सहमत हुआ। और “मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है?” राजा के इस दूसरे सवाल के प्रति बुद्धिमान व्यक्ति ने उत्तर दिया कि, “सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो इस समय आपके सामने है।” उस समय, राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह युवक था जो राजा के सामने था। उसी तरह से, हमारे लिए वह व्यक्ति सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जो इस समय हमारे सामने है, यानी वह व्यक्ति जो एक ही जगह में हमारे साथ बात कर रही है।

तब राजा ने फिर से सवाल पूछा, “सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है?” बुद्धिमान व्यक्ति ने उत्तर दिया, “उस व्यक्ति को जिसे आप सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण समझते हैं, निरन्तर प्रेम और करुणा देना ही इस संसार में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।”

सबसे उचित समय

यह कहानी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि इस संसार में सबसे अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण कार्य उस व्यक्ति को, जो मेरे सामने है, प्रेम देना है। चाहे यह एक छोटी सी कहानी हो, यह हमें बताती है कि हमें क्या करना चाहिए।

“सबसे उचित समय कब होता है?” “सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है?” और “सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है?” आइए हम मान लें कि ये तीन सवाल हम से किए गए हैं, और उनके उत्तर के बारे में सोचें। सबसे पहले, हमारे लिए सुसमाचार का कार्य करने का सबसे उचित समय कब है? वह इसी समय है।

विलंब निरर्थक है। जब नया साल आता है, तो लोग नई योजनाएं और संकल्प बनाते हैं, लेकिन उनकी दृढ़ता उसी समय डगमगाने लगती है जब वे सोचते हैं कि वे यह कल से शुरू करेंगे। समय “वर्तमान समयों” से बना हुआ होता है। कल का दिन आज के दिन की निरंतरता है। इसलिए सब कुछ के लिए सबसे उचित समय अभी, यह क्षण है। खासकर, किसी का जीवन बचाने और उसे प्रेम देने जैसा कार्य कल या परसों के लिए या अगले सप्ताह के लिए या अगले साल के लिए नहीं टाला जाना चाहिए। वह कार्य अब इसी समय किया जाने वाला सबसे त्वरित कार्य है।

अत: उसने कहा, “एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पाकर लौट आए। उसने अपने दासों में से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं और उनसे कहा, ‘मेरे लौट आने तक लेन–देन करना।’… जब वह राजपद पाकर लौटा, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने दासों को जिन्हें रोकड़ दी थी, अपने पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन–देन से क्या–क्या कमाया। तब पहले ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरी मुहर से दस और मुहरें कमाई हैं।’ उसने उससे कहा, ‘धन्य, हे उत्तम दास! तू बहुत ही थोड़े में विश्वासयोग्य निकला अब दस नगरों पर अधिकार रख।’ दूसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, तेरी मुहर से पांच और मुहरें कमाई हैं।’ उसने उससे भी कहा, ‘तू भी पांच नगरों पर हाकिम हो जा।’ तीसरे ने आकर कहा, ‘हे स्वामी, देख तेरी मुहर यह है, जिसे मैं ने अंगोछे में बांध रखा था।’… उसने उससे कहा, ‘हे दुष्ट दास’… और जो लोग निकट खड़े थे, उसने उनसे कहा, ‘वह मुहर उससे ले लो, और जिसके पास दस मुहरें हैं उसे दे दो।’ उन्होंने उससे कहा, ‘हे स्वामी, उसके पास दस मुहरें तो हैं।’ ‘मैं तुमसे कहता हूं कि जिसके पास है, उसे दिया जाएगा; और जिसके पास नहीं है, उससे वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा।’…” लूक 19:12–27

ऊपर के दृष्टान्त में, स्वामी ने अपने हर एक दास को एक–एक मुहर दी, और अपने दासों को उसके लौट आने तक इनसे कोई व्यापार करने की आज्ञा दी। उसी प्रकार से, परमेश्वर ने हम में से हर एक को सुसमाचार, यानी बहुमूल्य मुहर सौंपी है, और हमसे कहा है कि उसके द्वारा संसार में सबसे मूल्यवान कार्य करो। हमारा कार्य है कि हम संसार के सभी लोगों को सुसमाचार का प्रचार करें और उसके द्वारा सबसे ज्यादा अर्थपूर्ण और बहुमूल्य कार्य करें।

जब वह स्वामी लौटा, तो उसने उस दास की सराहना की जिसने एक मुहर से दस और मुहरें कमाई थीं, और उसकी भी सराहना की जिसने एक मुहर से पांच और मुहरें कमाई थीं। हालांकि, उसने उस दास को डांटा जो अपनी एक मुहर को वापस ले आया था। उसने उस मुहर का इस्तेमाल नहीं किया जो उसे दूसरों की भलाई करने के लिए दी गई थी। उसने इस तथ्य की उपेक्षा की कि, ‘अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करने का सबसे उचित समय अभी है,’ और उसे कल पर टाल दिया। जब कल आया, तब उसने उसे अगले दिन के लिए विलम्बित कर दिया। केवल इसी रीति से वह अपने कर्तव्य को विलम्बित करता गया, और उसके स्वामी के लौटने तक उसने कुछ भी नहीं किया।

वह व्यक्ति जो चीजों को कल पर टाल देता हो, ऐसी ही मूर्खता कर सकता है। हमें इसे समझना चाहिए, और हमें सौंपे गए कार्य को ईमानदारी के साथ अभी इसी समय करना चाहिए। सुसमाचार का प्रचार करने का सबसे उचित समय यही क्षण है।

सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति

तब, इस संसार में मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है? वह व्यक्ति है जो इस समय मेरे सामने है और जिसे मुझे बचाना है। क्योंकि परमेश्वर ने उस आत्मा को यहां मेरे साथ होने दिया है कि मैं उसे अपने साथ स्वर्ग ले जा सकूं, और उसके द्वारा मेरा विश्वास परखा जाकर खरा और शुद्ध हो।

हो सकता है कि वह व्यक्ति मेरा पति हो या पत्नी, मेरे माता–पिता हों या सन्तान, मेरा भाई हो या बहन, मेरा रिश्तेदार हो या पड़ोसी या दोस्त हो। उसे परमेश्वर का प्रेम देना और उसकी आत्मा को बचाना ही सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

उक्त कहानी में, राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज उस लहूलुहान हुए व्यक्ति को बचाना था जो अकेले छोड़ दिए जाने पर मरने वाला था। हमारे आसपास कहानी के युवक की तरह ऐसी बहुत सी आत्माएं हैं जो अकेले छोड़ दिए जाने पर लहू बहकर मर जाएंगी। हमें उनके प्रति उदासीन नहीं बनना चाहिए। परमेश्वर ने कभी भी ऐसी दीन आत्माओं को नहीं छोड़ा।

क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया है। लूक 19:10

परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए इस पृथ्वी पर आए थे। इससे बड़ा प्रेम और कोई नहीं है। परमेश्वर ने हमें सुसमाचार का प्रचार करने का कार्य दिया है, ताकि हम परमेश्वर के कदमों पर चलते हुए यह सीख सकें कि सच्चा प्रेम क्या है।

प्रचार के कार्य की शुरुआत दूसरों की देखभाल करने की भावना से होती है। यदि हम आत्मकेन्द्रित होकर सिर्फ यह सोचें कि ‘लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे,’ और दूसरों के उद्धार की परवाह न करके आलस्य में समय गंवाएं, तो हम सुसमाचार के फल नहीं फल सकते।

लोग कहते हैं कि वह व्यक्ति जो केवल अपने बारे में सोचता है, एक दुर्भाग्यशाली व्यक्ति है, और वह व्यक्ति जो सिर्फ अपने बारे में नहीं, बल्कि दूसरों के बारे में भी सोचता है, एक भाग्यशाली व्यक्ति है। निकट–दृष्टि वाले व्यक्ति को लगता है कि दूसरों के लिए बलिदान करने से मेरा नुकसान होता है। हालांकि, यदि हम इसके बारे में गहराई से सोचें, तो हम समझ सकेंगे कि दूसरों के लिए स्वयं का बलिदान करने से हम परमेश्वरका प्रेम और आशीर्वाद पा सकते हैं और परमेश्वर के उन लोगों के रूप में बदल जा सकते हैं जो इस पृथ्वी पर जीते समय लोगों से स्तुति और सम्मान पाते हैं।

आइए हम परमेश्वर की इच्छा का और भी अधिक ईमानदारी से पालन करते हुए बहुत सी आत्माओं को जीवन के सत्य की ओर ले आएं। सबसे उचित समय यही समय है, और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो इस समय मेरे सामने खड़ा है।

संसार में सबसे महत्वपूर्ण कार्य

इस संसार में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य उस व्यक्ति को बचाना है जो इस समय मेरे सामने खड़ा है। यदि हम अपने सामने खड़े उस सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को प्रेम और कृपा दें, उसे उद्धार की ओर ले जाएं और उसके हृदय में स्वर्ग की अनन्त आशा भर दें, तो इस संसार में इससे ज्यादा महान और सुंदर प्रेम और कोई नहीं होगा।

आसान शब्दों में कहें, तो वह “प्रचार करना” है, यानी पाप के कारण मर रही आत्माओं को परमेश्वर के जीवन के शब्दों से बचाना है। परमेश्वर, जो राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु हैं, खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने के लिए इस पृथ्वी पर आए थे।

वह सबसे महत्वपूर्ण और उत्तम कार्य जिसे परमप्रधान परमेश्वर ने पृथ्वी पर रहते समय किया था, आज हमें सौंपा गया है। हर किसी को यह मूल्यवान कार्य नहीं दिया गया है; परमेश्वर ने यह कार्य केवल उन्हें सौंपा है जिन्हें वह योग्य ठहराते हैं और प्रिय जानते हैं।(1थिस 2:4)

चाहे एक आत्मा को परमेश्वर का प्रेम देकर बचाना मुश्किल हो, लेकिन यह सबसे ज्यादा मूल्यवान कार्य है। इसलिए प्रेरित पौलुस ने इस कार्य को सबसे उत्तम समझा और कहा कि वह इस कार्य के लिए जंजीर से जकड़ा हुआ है।(फिलि 3:8; इफ 6:20) पौलुस के समान, हमें भी मानवजाति को बचाने के कार्य में, जिसका हमारे पिता और माता नेतृत्व कर रहे हैं, अपना सारा मन और बुद्धि लगा देनी चाहिए, ताकि पिता और माता अत्यन्त प्रसन्न हो सकें।

परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य की सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा… पर तू सब बातों में सावधान रह, दु:ख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर। क्योंकि अब मैं अर्घ के समान उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है। मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं वरन् उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं… परन्तु प्रभु मेरा सहायक रहा और मुझे सामर्थ्य दी, ताकि मेरे द्वारा पूरा पूरा प्रचार हो और सब अन्यजातिय सुन लें… 2तीम 4:1–8, 17–18

समय और असमय तैयार रहने का अर्थ है कि परमेश्वर का काम अब इसी क्षण करना। बाइबल हमें सिखाती है कि यह समय सबसे उचित समय है, इसलिए इसी समय हमें सुसमाचार के प्रचार का कार्य करना चाहिए और अपनी सेवा को पूरा करना चाहिए। यह इस संसार में सबसे ज्यादा फलप्रद और अर्थपूर्ण जीवन है।

प्रेरित पौलुस के बारे में सोचिए जिसने अपने जीवन के अंत में बिना किसी अफसोस के धार्मिकता के मुकुट की आशा की और परमेश्वर की बांहों में चला गया! कितना अद्भुत जीवन था! पौलुस के समान, हमें भी ऐसा ही अद्भुत जीवन जीना चाहिए। इस संसार में सब कुछ क्षणिक है, लेकिन परमेश्वर के राज्य में सब चीजें अनन्त हैं। आइए हम उस अनन्त दुनिया की अनन्त खुशी के बारे में सोचते हुए, अपना विश्वास बनाए रखें और सुसमाचार के प्रचार की अपनी सेवा को ईमानदारी से पूरा करें।

मानवजाति का भविष्य हमें सौंपा गया है

सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण समय अभी, यही क्षण है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति जिसे हमें परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए, इसी समय मेरे सामने खड़ा व्यक्ति है। और इस संसार में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य उस व्यक्ति को उद्धार का सुसमाचार जानने देना और बचाना है। यही एक बड़ा कारण है कि परमेश्वर स्वर्ग की महिमा को छोड़कर और अपना सिंहासन पीछे छोड़कर, इस पृथ्वी पर आए।

2,000 साल पहले, यीशु ने स्वर्ग जाने से पहले अपने चेलों को यह कहा, “जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ,” और इस संसार का सबसे उत्तम कार्य उन्हें सौंपा। जैसा कि यीशु ने कहा है, आइए हम बहुत सी खोई हुई आत्मओं को उद्धार की ओर और पूरी मानव जाति को स्वर्ग के राज्य की ओर ले जाएं। यदि हर कोई उद्धार पाए और अनन्त स्वर्गीय घर में प्रवेश करे, तो इससे अधिक और क्या खुशी की बात होगी?

यही वह रास्ता है जिस पर हमें चलना चाहिए। हमें उद्धार देने के लिए, हमारे पिता पृथ्वी पर आए और सुसमाचार के मार्ग पर चले, और उन्होंने हमें हमारी स्वर्गीय यरूशलेम माता की गवाही दी और नई वाचा के सत्य के द्वारा हमारे लिए स्वर्ग के सभी आशीर्वाद और महिमा को तैयार किया। स्वर्ग की उस अनन्त महिमा के लिए, अभी इसी क्षण, आइए हम सामरिया और पृथ्वी की छोर तक जाएं और नई वाचा के सुसमाचार का उत्सुकता से प्रचार करें, ताकि हम सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को बचा सकें, और जिसकी परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी है उस सबसे ज्यादा अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण कार्य को पूरा कर सकें।

सब कार्यों के लिए सबसे उचित समय कल का दिन या अगला साल नहीं है, लेकिन अभी है। यदि यह क्षण नहीं है, तो अगला क्षण भी नहीं है। इन्हीं वर्तमान क्षणों के संचयन से आज का दिन बनता है, और “आज” के दिनों के संचयन से हमारा भविष्य बनता है। यदि हम अक्सर चीजों को कल के दिन पर टालते रहें, तो हम परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में असफल हो जाएंगे, और जब परमेश्वर वापस आएंगे, तब हम उस मूर्ख दास के समान केवल एक मुहर वापस लाएंगे।

आइए हम इस समय अपने आसपास के लोगों पर ध्यान दें, जो हमारे लिए संसार में सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं। वह व्यक्ति जिसे हमें अभी बचाना है, हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है। यदि हम हमेशा समय और असमय तैयार रहकर, उन्हें परमेश्वर का प्रेम दिखाने की कोशिश करें, तो हम निश्चय ही अच्छा परिणाम पाएंगे। इस समय, यानी सबसे उचित समय, आइए हम सबसे ज्यादा अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण सेवा को ईमानदारी से पूरा करें और बहुत से अच्छे फल उत्पन्न करें, ताकि हम परमेश्वर से बहुतायत से प्रेम पा सकें।