अगर हमें परमेश्वर का प्रेम महसूस नहीं होगा, तो विश्वास के जीवन में, हम न तो हमेशा खुश रह सकते हैं और न ही परमेश्वर को धन्यवाद और महिमा दे सकते हैं।
2,000 वर्ष पहले, जब प्रेरितों को यीशु मसीह का प्रेम समझ में आया जिन्होंने क्रूस पर मर जाने तक अपना बलिदान किया, तब प्रचार फला–फूला, और सुसमाचार बहुत तेज़ रफ्तार से पूरे विश्व में फैल कर अनेक लोगों को सुनाया जा सकता था। इन अंतिम दिनों में भी, जब हम स्वर्गीय माता के प्रेम और स्वर्गीय पिता की इच्छा को समझेंगे, तब हम अपने सभी खोए हुए भाइयों और बहनों की अगुवाई सिय्योन की ओर कर सकेंगे।
लंबे समय पहले, एक माता थी। उसका एक छोटा बेटा था जो गंभीर बीमारी से पीड़ित था। माता ने कई दिन पूरी ईमानदारी से उसकी देखरेख की और उसे बचाने के लिए पूरी कोशिश की। एक दिन, एक यात्री ने उसके घर में आकर उससे एक ग्लास पानी मांगा। वह यात्री के लिए पानी और थोड़ा खाना तैयार करने रसोईघर गई। जब वह वापस आई, उसे पता चला कि वह यात्री उसके प्यारे बेटे को लेकर भाग गया था।
मानो सब कुछ चला गया हो, गहरे दुख में डूबे हुए, वह पागलों की तरह अपने बेटे का नाम पुकारते हुए हर जगह उसकी तलाश कर रही थी। जब रात और गहरा गई, माता अपने खोए बेटे के लिए और बहुत चिंतित हो गई। बेटे से मिलने की प्रबल इच्छा के साथ अपने खोए बेटे को ढूंढ़ने के लिए वह चलती रही। पर ऐसा हुआ कि अचानक उसका पैर फिसल गया और वह एक बड़ी झील में गिर गई। फिर झील का देवता प्रकट हुआ और उसने माता से कहा,
“अगर तुम मुझे अपनी दो सुन्दर और चमकदार आंखें दो, मैं तुम्हें इस झील को पार करने दूंगा।”
सिर्फ अपने खोए हुए बेटे को ढूंढ़ने के लिए आतुर होकर, उसने अपनी दोनों आंखें उखाड़ कर झील के देवता को दे दीं, ताकि वह झील पार कर सके।
अपनी दृष्टि खोने के बाद, वह वहां गई जहां उसके पैर उसे ले गए। वह लगातार चलती रही, और दुर्भाग्य से फिसल कर खड़ी चट्टान के नीचे गहरी घाटी में गिर पड़ी। बदकिस्मती से गहरी घाटी में उसके चारों ओर कंटीली झाड़ी थी। उसकी जान बची रही, फिर भी कदम उठाते ही, उसका पूरा शरीर कांटों के कारण कट गया और खून से भर गया। उसने वहां से बाहर निकलने का संघर्ष किया, लेकिन नहीं आ सकी। उस समय, कंटीली झाड़ी का देवता प्रकट हुआ और उसने माता से कहा,
“मैं इस भारी ठंड के मौसम में जम गया हूं। मैंने सुना है कि माता का हृदय गर्म होता है। अगर तुम मुझे अपने गर्म हृदय से गले लगाओ और मेरे शरीर को पिघलाओ, तो मैं तुम्हें इस कांटों की झाड़ी से बाहर जाने दूंगा।”
फिर माता ने सोचा कि उसे किसी भी तरह यहां से बाहर निकलना है, ताकि वह अपने बेटे को ढूंढ़ सके। उसने कंटीली झाड़ी के देवता के सुझाव को स्वीकार किया। उत्तरी ठंडी हवा और भयंकर बर्फ का तूफान चलते हुए भी, माता ने कंटीली झाड़ी को अपने गर्म हृदय से गले लगाया। उसका शरीर कांटों के कारण बेधा गया और उससे खून रिस गया। फिर भी माता ने लंबे समय तक कंटीली झाड़ी को अपनी छाती से लगाए रखा; क्योंकि जब तक वह उसे पिघला न दे, तब तक वह अपने बेटे को ढूंढ़ने के लिए वहां से बाहर नहीं जा सकती थी।
काफी देर के बाद जमी हुई कंटीली झाड़ी धीरे–धीरे पिघलने लगी, और सर्दी के मौसम के बावजूद उसमें कलियां निकलने लगीं। फिर कंटीली झाड़ी ने पीछे हट कर माता के लिए रास्ता खोल दिया। पूरा शरीर घायल होते हुए भी, जैसे तैसे करके वह मुश्किल से कंटीली झाड़ी से बच निकली और रास्ते पर जल्दी से चलने लगी। इसकी परवाह न करते हुए कि वह अंधी हो गई और उसका शरीर कट गया था, अपने बेटे का नाम पुकारते हुए वह एक एक कदम बढ़ा रही थी।
कुछ समय के बाद, वह एक कब्र पर पहुंच गई। फिर कब्र की देवी ने उसे रुकने के लिए कहा। कब्र की देवी देखने में बदसूरत और घिनौनी चुड़ैल थी। उसने कहा,
“तुम मेरी अनुमति के बिना नहीं जा सकती। अगर तुम मुझे अपनी जवानी और सुंदरता दो, तो मैं तुम्हें जाने दूंगी।”
यह सोचकर कि उसकी जवानी और सुंदरता उसके बेटे के बिना व्यर्थ हैं, माता ने अपनी जवानी उस देवी को दी और वह खुद बदसूरत हो गई।
वह अपने पैरों की ताकत गंवा चुकी थी, और उसका पूरा शरीर झुर्रीदार था। इस प्रकार सब कुछ खो देने के बाद ही, माता फिर से अपने प्यारे बेटे से मिल सकी जिसे वह ढूंढ़ रही थी।
यह पुरानी कहानी माता के प्रेम और बलिदान के बारे में बहुत अच्छे से बताती है। माता का प्रेम शर्त रहित है। इसलिए कहा जाता है कि सारी मानव जाति जन्म से माता से प्यार करती है।
माता का प्रेम ऐसा है। सिर्फ ‘माता’ यह शब्द कहने पर, हमारा दिल पसीजता है और हमारी आंखें आंसू से भर जाती हैं। यह शायद माता के प्रेम के कारण होगा। सभी मानव जाति माता से प्रेम करती हैं और उनके दिल में हमेशा माता जगह करती है। क्योंकि उन्होंने माता से प्रेम सीखा और प्रेम जाना है।
हमारे आत्मिक पिता और माता हमेशा हमारे साथ रहते हैं और लगातार हमसे प्रेम करते हैं। हालांकि, क्या होगा अगर हम पिता और माता जो हमें इतना महान प्रेम दिखाते हैं, उनके प्रेम को महसूस नहीं करेंगे? हम न तो दूसरों को प्रेम का प्रचार करने के लिए सक्षम होंगे और न ही अंत तक बलिदान के मार्ग का अनुसरण कर सकेंगे।
नई वाचा परमेश्वर के प्रेम पर केंद्रित करती है। हमारी स्वर्गीय माता हमें अपने बलिदान का महान प्रेम बिना मूल्य देती हैं। अगर हम स्वर्गीय माता के बिना शर्त के प्रेम को समझते हैं, तो हम नई वाचा के सिद्धान्त पर पहुंच सकते हैं।
बच्चों के प्रति शारीरिक माता–पिता के प्रेम के द्वारा, परमेश्वर हमें स्वर्गीय पिता और माता के प्रेम को जानने देते हैं।
… उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं…रो 1:18–20
… क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।रप्रक 4:10–11
जब परमेश्वर ने सारी चीजों की सृष्टि की, उन्होंने उन्हें अपनी इच्छा से बनाया। फिर क्यों एक माता प्रेम से भरी है? क्यों एक माता अपने बच्चों के लिए खुद को समर्पित करती है और उनके लिए सारी चीजों में खुद को बलिदान करती है? माता बनाने में परमेश्वर की क्या इच्छा है?
वह माता है जो अपनी खोई हुई संतान ढूंढ़ने के लिए खुशी से अपनी आंखें और जवानी देती है। हमारे लिए इस प्रकार के आत्म बलिदान के प्रेम के साथ, हमारी स्वर्गीय माता पाप से भरी इस अंधेरी दुनिया में आईं। हमारी सांसारिक माताओं के भक्तिपूर्ण प्रेम के द्वारा, हम देख सकते हैं कि हमारी आत्मिक माता हमसे कितना प्रेम करती हैं।
क्या होगा अगर कोई आपसे कहे, “क्या आप अपनी माता के लिए अपनी जवानी को बुढ़ापे में बदलेंगे?” या “क्या आप अपनी माता के लिए अपनी आंखें निकालेंगे?” फिर, क्या आप जवाब दे सकते हैं, “मैं ऐसा करूंगा।”? भले ही आप जवाब दें, ‘हां,’ तो भी असल में आपको ऐसा करना पड़े तो सच में ऐसा करने की हिम्मत कर सकेंगे?
हम अच्छी तरह से जानते हैं कि पतरस और दूसरे चेलों ने ऐसी परिस्थिति में क्या किया। उन्होंने कहा, “चाहे प्रभु के लिए साथ मरना भी पड़े, फिर भी प्रभु को नहीं छोड़ेंगे!” मगर, मृत्यु के सामने उन्होंने क्या किया? उन्होंने यीशु का इन्कार किया और उन्हें छोड़ दिया, है न?
तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम सब ठोकर खाओगे,”… पतरस ने उससे कहा, “यदि सब ठोकर खाएं तो खाएं, पर मैं ठोकर नहीं खाऊंगा।”… पर उसने और भी जोर देकर कहा, “यदि मुझे तेरे साथ मरना भी पड़े तौभी तेरा इन्कार कभी न करूंगा।” इसी प्रकार और सब ने भी कहा… इस पर सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।मर 14:27–50
संतान इसी तरह से करती हैं। चाहे संतान अपने माता–पिता के प्रति कितनी ही समर्पित क्यों न हों, तो भी अपना प्राण देने तक नहीं कर सकतीं। हालांकि, माता–पिता के पास इतना प्रेम होता है कि वे सब कुछ अपने बच्चों के लिए कर सकते हैं।
स्वर्ग का महिमामय सिंहासन त्यागकर, हमारी माता एक पापी का रूप धारण करके अपनी खोई हुई संतान को ढूंढ़ने आई हैं। हमें अपनी आत्मिक माता के ऐसे महान प्रेम और बलिदान को गहराई से समझना चाहिए। जब तक हम माता के प्रेम और बलिदान को नहीं समझेंगे, हमारे बीच ईर्ष्या और बैर उत्पन्न हो सकता है। हालांकि, जब हम बहुत छोटी सी चीज में भी माता के प्रेम को समझेंगे और महसूस करेंगे, हमारे पास बड़ा विश्वास होगा।
चूंकि हमारी माता हमारे साथ हैं, हम उनके प्रेम में बडे. हो सकते हैं और खतरे या दुर्घटना से सुरक्षित हो सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए।
कुछ दिन पहले, मैंने उस व्यक्ति से किसी की मौत के बारे में सुना जो उसके अंतिम संस्कार पर गया था। कैंसर से लंबी जंग लड़ने के बाद 40 वर्ष की उम्र में उसका निधन हो गया। उसके शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था। मैंने उन लोगों को जो उसके अंतिम संस्कार में गए थे, यह कहते हुए सुना कि उसकी मृत्यु के बाद सिर्फ मुट्ठी भर राख रह गई; इतने व्यर्थ नतीजे के लिए, उसने 40 वर्ष तक खाना खाया, अच्छा कपड़ा पहिना, संघर्ष किया, परिश्रम किया, और वह धन और प्रतिष्ठा के लिए लड़ता रहा। जब उन्होंने मुट्ठी भर राख को देखा, मन में लगा कि जीवन कितना व्यर्थ ही है।
और उन्होंने कहा कि उन्हें महसूस हुआ कि शारीरिक वस्तुएं सचमुच व्यर्थ ही व्यर्थ हैं और कुछ नहीं है, और उन्होंने कहा, “यह कितने धन्यवाद की बात है कि हम परमेश्वर को जान कर विश्वास कर रहे हैं, क्या साठ वर्ष की जिन्दगी क्या बीस या तीस वर्ष की जिन्दगी, सभी एक जैसी हैं, वे आखिर में मुट्ठी भर राख में बदल जाती हैं, फिर भी आसपास में बहुतेरे लोग सिर्फ नाश होने वाली शारीरिक वस्तुओं के लिए बहुत प्रयास और परिश्रम कर रहे हैं।” यह सोच कर उन्होंने परमेश्वर को सच्चे मन से धन्यवाद दिया।
सिर्फ एक मुट्ठी भर राख इस पृथ्वी पर छोड़ने के लिए, लोग कड़ी मेहनत करते हैं और अन्त में मर जाते हैं। सन्तान मूर्खतापूर्वक वैसा व्यर्थ जीवन बिता रही हैं। इसलिए परमेश्वर ने अपनी सन्तानों को बचाने के लिए बाइबल के वचनों के द्वारा जोर देते हैं कि इस संसार की सारी चीजें व्यर्थ हैं।(सभ 1:1–10) हमने परमेश्वर से ऐसी बहुमूल्य शिक्षा प्राप्त की है। फिर, क्या हमारे लिए यह सही है कि हम इस जीवन की व्यर्थ बातों के लिए अपना जीवन खर्च करें जो राख में नष्ट होने वाला है?
यशायाह अध्याय 53 देखकर, आइए हम पिता और माता जिन्होंने मनुष्य के रूप में इस धरती पर आकर सन्तानों के लिए खुद को बलिदान किया है, उनके पवित्र प्रेम को मन में रखें।
समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया?… उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते… परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएं। हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।यश 53:1–9
हमारे पिता और माता इस पृथ्वी पर ऐसे रूप में आए जिसे लोग नहीं चाहते; उन्होंने अपनी जवानी और सुंदरता अपनी खोई हुई संतान के लिए दे दी। हमारी माता का रूप, जो इस समय हमारे साथ हैं, उस माता के समान है जिसने अपनी सारी सुंदरता और जवानी कब्र की देवी को दी।
चूंकि हमारी माता ने काफी पीड़ाओं को सहा है, इसलिए अब हम यहां हैं। हालांकि, हम वह महसूस नहीं करते। किसके बलिदान और प्रेम के द्वारा आज चर्च ऑफ गॉड इतना विकसित हुआ है? हमारी माता के बलिदान और प्रेम के द्वारा, हम संसार के लोगों के जैसे मुट्ठी भर राख होने के लिए आशा रहित जिन्दगी नहीं जीते, बल्कि सच्ची आशा और बहुमूल्य उम्मीद में खुशी की जिन्दगी जी सकते हैं।
चाहे ज़माना उलट रहा हो और नैतिकता व सदाचार टूट रहा हो, तो भी माता का प्रेम अपरिवर्तनीय है। कोई भी माता के अपनी संतान के प्रति शर्तहीन प्रेम को नष्ट नहीं कर सकता और यह प्रेम किसी से भी ठण्डा नहीं हो सकता। ऐसे सांसारिक सिद्धान्त के द्वारा, हमें आत्मिक सिद्धान्त भी समझना चाहिए कि इस तरह से आत्मिक माता भी सन्तान की देखरेख करती हैं और सन्तान से प्यार करती हैं।
परमेश्वर की सारी आज्ञाओं को जानना भी महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात परमेश्वर के महान प्रेम को महसूस करना है और उसे अमल में लाना है। अगर कोई परमेश्वर की आज्ञाएं जानता है, परंतु उनके प्रेम को नहीं समझता, वह सिर्फ ठनठनाता हुआ पीतल और झंझनाती हुई झांझ के समान है।(1कुर 13:1–13) बेशक, परमेश्वर की आज्ञाएं सचमुच बहुमूल्य और महत्वपूर्ण हैं, पर बाइबल का सबसे आधारित उद्देश्य यह है कि हमें उन आज्ञाओं के द्वारा परमेश्वर का प्रेम, यानी माता का प्रेम दिखाए।
पुराने नियम में सभी बलिदान हमारे पिता को दर्शाते हैं जो लगभग 2,000 वर्ष पहले एक पापबलि के रूप में बलिदान हुए और हमारी माता को भी दर्शाते हैं जो इस युग में भक्तिपूर्ण प्रेम के साथ संतान को ढूंढ़ने और बचाने के लिए अपने आपको बलिदान कर रही हैं।
पुराने नियम के समय से परमेश्वर ने अपनी संतान को तीसरे दिन की आराधना की विधियां और सातवें दिन के सब्त की आराधना की विधियां दी हैं। इनकी विधियों के द्वारा, माता ने खुद को बलिदान करके हमारी आत्माओं को शुद्ध किया है, ताकि हमें परमेश्वर की महासभा में से नष्ट न किया जाए।
… मेरे पास एक लाल निर्दोष बछिया ले आओ, जिसमें कोई भी दाष न हो, जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो। तब उसे एलीआज़ार याजक को दो, और वह उसे छावनी से बाहर ले जाए, और कोई उसको उसके सामने बलिदान करे; तब एलीआज़ार याजक अपनी उंगली से उसका कुछ लहू लेकर मिलापवाले तम्बू के सामने की ओर सात बार छिड़क दे। तब कोई उस बछिया को… उसके सामने जलाए… फिर कोई शुद्ध पुरुष उस बछिया की राख बटोरकर छावनी के बाहर किसी शुद्ध स्थान में रख छोड़े; और वह राख इस्राएलियों की मण्डली के लिये अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल के लिये रखी रहे; वह पापबलि है… जो किसी मनुष्य का शव छूए वह सात दिन तक अशुद्ध रहे; ऐसा मनुष्य तीसरे दिन उस जल से पाप छुड़ाकर अपने को पावन करे, और सातवें दिन शुद्ध ठहरे; परन्तु यदि वह तीसरे दिन अपने आपको पाप छुड़ाकर पावन न करे, तो सातवें दिन शुद्ध न ठहरेगा। जो कोई किसी मनुष्य का शव छूकर पाप छुड़ाकर अपने को पावन न करे, वह यहोवा के निवासस्थान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी इस्राएल में से नष्ट किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा, उसकी अशुद्धता उसमें बनी रहेगी… जो कोई अशुद्ध होकर अपने पाप छुड़ाकर अपने को पावन न कराए, वह प्राणी यहोवा के पवित्र स्थान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मण्डली के बीच में से नष्ट किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा। और यह उनके लिये सदा की विधि ठहरे। जो अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छिड़के वह अपने वस्त्रों को धोए…गिन 19:1–21
पुराने नियम में दोषबलि, पापबलि, मेलबलि, आदि बलि के रूप में इस्तेमाल किया गया पशु था। विशेष रूप से उन बलियों में पशु नर और नारी में भेद किए जाते थे: फसह के मेमने के रूप में, नर का इस्तेमाल किया जाता था; और इस भविष्यद्वाणी की पूर्ति के लिए, यीशु, जो नर थे, बलिदान हुए।
गिनती की पुस्तक ने बछिया के बारे में विशेष रूप से लिखा है। शुद्ध करने की विधि में बछिया जलाई जाती थी, यहां तक कि बछिया का पूरा अंग भी जलाया जाता था, और जलाने के बाद बची राख का इस्राएलियों की अशुद्धता दूर करनेवाले जल के लिए प्रयोग किया जाता था। पुराने नियम में हर बलिदान परमेश्वर के बलिदान का प्रतीक है। फिर बछिया किसको दर्शाती है? आज हम किसके बलिदान के द्वारा तीसरे और सातवें दिन शुद्ध होते हैं?
वास्तव में बछिया हमारी माता को दर्शाती है जो इस पृथ्वी पर आत्मा की दुल्हिन के रूप में आई हैं। इस्राएली बछिया के बलिदान के द्वारा शुद्ध किए जाते थे। यह दिखाता है कि परमेश्वर की संतान तीसरे और सातवें दिन पर माता के बलिदान के द्वारा शुद्ध की जाती हैं।
हमारी माता खुद को जलाते हुए एक पापबलि के रूप में बलिदान हो रही हैं; बछिया के रूप में दर्शाई गई माता की राखों के द्वारा, हम अपनी सारी अशुद्धताओं, अपराधों और पापों से तीसरे दिन पर और सातवें दिन पर शुद्ध किए जाते हैं। हम कैसे हमारी माता के दुख, बलिदान और प्रेम की कल्पना कर सकते हैं और कैसे शब्दों में बता सकते हैं?
परमेश्वर राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु हैं; वह मनुष्यों से और पूरे ब्रह्मांड के सभी आत्मिक जीवों से महिमा और प्रशंसा पाने के योग्य हैं। ऐसी बड़ी महिमा पीछे छोड़कर, परमेश्वर अपनी खोई हुई संतान को ढूंढ़ने के लिए आए। हमें परमेश्वर के बलिदान और प्रेम को नहीं भूलना चाहिए।
हम, संतान, अभी भी माता को दुख देते हैं, और हमारी माता उस दुख को सहन करती हैं। अब समय आ गया है कि हम माता के बलिदान और प्रेम को अपनी खुली आंखों से देखें। इस सत्य के द्वारा कि हमारी माता तीसरे और सातवें दिन लगातार बलिदान होती हैं, हमें जानना चाहिए कि हमने कितने ज्यादा पाप किए हैं।
कुछ आसानी से सोच सकते हैं कि उन्हें क्षमा किया गया क्योंकि वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। हालांकि, हमें जानना चाहिए कि हमारे पापों की क्षमा में परमेश्वर का महान बलिदान और प्रेम मौजूद है जो वर्णन से बाहर है। परमेश्वर के घावों के द्वारा हम चंगे होते हैं; जो कर्ज. हमें चुकाना था, यानी हमारा दण्ड था, उसे परमेश्वर ने चुका कर हमें शांति दी है। परमेश्वर के ऐसे बलिदान के द्वारा, हमें क्षमा किया गया। हमें अपने पिता और माता के प्रेम को महसूस करना चाहिए, और तीसरे दिन और सब्त के दिन की आराधना के द्वारा उन्हें धन्यवाद देना चाहिए।
माता के प्रेम को पहने बगैर, हम में से कोई भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता; हम स्वर्ग से निकाल दिए गए थे, और हम अपनी सामर्थ्य से स्वर्ग में कभी भी प्रवेश नहीं कर सकते।
माता के बलिदान के द्वारा, हम शुद्ध किए गए हैं। हमारे अपराधों के कारण माता बेधी जाती हैं। उनके घावों से हम चंगे होते हैं और शांति पाते हैं। हम माता के प्रेम के बगैर कुछ भी नहीं कर सकते, है न? हमें वह प्रेम भूलना नहीं चाहिए, पर हमेशा आनंदित और धन्यवादित रहते हुए उसे हृदय में रखना चाहिए।
प्रकाशितवाक्य के 7 वें और 22 वें अध्याय में, यह लिखा है कि धन्य हैं वे लोग जिन्होंने अपने वस्त्र मेमने के लहू में धोकर श्वेत किए हैं, ताकि वे जीवन के वृक्ष के अधिकारी रहें और नगर में फाटकों से प्रवेश कर सकें। हम राख के जल में, जो परमेश्वर के बलिदान और प्रेम के द्वारा बनाया गया है, अपने दोष और पापों को धो लेते हैं, ताकि हम उन पवित्र लोगों के रूप में फिर से जन्म ले सकें जो जीवन के वृक्ष के अधिकारी होते हैं। इसे याद रखकर, हमें सचमुच परमेश्वर को धन्यवाद और प्रशंसा देनी चाहिए।
क्या ऐसा कुछ है जिसके लिए हम परमेश्वर को धन्यवाद नहीं दे सकते? क्या ऐसा कुछ है जो हम भाइयों और बहनों के लिए नहीं कर सकते? परमेश्वर ने हमें सब कुछ बहुतायत से दिया है। इसलिए हमें परमेश्वर को प्रशंसा देनी चाहिए, और तीसरे दिन की और सब्त की आराधना को पवित्र मानना चाहिए।
कुछ भी वापस पाने की उम्मीद के बिना हमारी माता हमें बिना शर्त के प्रेम देती हैं। हम कैसे हमारी माता को प्रसन्न करेंगे? क्या हम नाराज होकर उनके विरुद्ध कुड़कुड़ाएंगे? क्या हम हमेशा अपने लाभ के लिए कुछ न कुछ परमेश्वर से मांगते रहेंगे?
हमें ठोस भोजन खाने वाले बड़े लोग बनने चाहिए जिनकी ज्ञानेन्द्रियां अभ्यास के कारण भले–बुरे की पहिचान करने में निपुण हो गई हैं।(इब्र 5:14) हमें माता के हृदय को पूर्ण रूप से समझना चाहिए और जानना चाहिए कि माता अपनी सन्तान खोकर सब से क्या चाहेंगी। हमें माता के बलिदान और प्रेम को पूरी तरह से समझना चाहिए और उस प्रेम का अभ्यास करना चाहिए जो माता ने स्वयं दिखाया और सिखाया है।
आइए हम अपने सभी खोए हुए भाइयों और बहनों को जल्दी से ढूंढ़ें, ताकि हमारी माता फिर से अनन्त महिमा पाएं और महिमामय सिंहासन पर बैठें। यही सबसे बड़ी चीज है जो हमें उनके लिए उनकी संतान के रूप में करनी चाहिए।
जब हम 1,44,000 में अन्तिम भाई को माता की बांहों में ले आएंगे, हम स्वर्गीय माता के सब बलिदान और प्रेम को लौटा सकेंगे। हमेशा माता के त्यागपूर्ण प्रेम को याद रखते हुए और उन्हें धन्यवाद देते हुए, आइए हम पृथ्वी के छोर तक परमेश्वर के प्रेम का प्रचार करें और बहुतायत से प्रेम के फल उत्पन्न करें।