नई वाचा के सेवकों के यत्नपूर्वक वचन का प्रचार करने के द्वारा, अब सारे क्षेत्रों में और विदेशों में, नये परिवार, सत्य को ढूंढ़ कर सिय्योन में वापस आ रहे हैं। जगह का ध्यान किए बिना प्रचारक कहीं भी प्रचार कर रहे हैं। कोरिया में और विदेश में, कहीं भी हो, प्रचारक प्रचार करने में लगे रहते हैं। कभी विमान में सवार हुए और कभी वायुयान वाहक में सवार हुए और कभी सेना में यत्नपूर्वक प्रचार कर रहे हैं। चाहे ज़मीन पर हो, या चाहे समुद्र पर हो, या चाहे हवा में हो, कहीं भी निर्भयता से परमेश्वर के वचन को सुनाते हैं, जिसके द्वारा परमेश्वर के सुसमाचार का कार्य शीघ्रता से पूरा हो रहा है।
बहुतेरे सिय्योन के परिवार, सत्य में आ रहे हैं। उनमें से कोई कोई शुरू से एकदम परमेश्वर पर विश्वास करता है, और कोई कोई शरीर में आए परमेश्वर के प्रति जिज्ञासु होता है। परमेश्वर को सही तरह से पहचानने के लिए आइए हम ‘परमेश्वर, जितना महसूस होता है, उतना दिखाई देता है।’ विषय को जांचें।
2 हज़ार वर्ष पहले, यीशु के प्रत्येक चेलों का विश्वास भिन्न था। किसी ने एकदम यीशु पर विश्वास किया और किसी ने ऐसा नहीं किया।
एक बार फिलिप्पुस ने यीशु को पिता परमेश्वर को दिखाने का निवेदन किया। उस समय यीशु ने कहा, “फिलिप्पुस, मैं इतने समय से तुम्हारे साथ हूँ, फिर भी तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है। तू कैसे कहता है, ‘हमको पिता दिखा दे?’ ”(यूह 14:6 9) फिलिप्पुस ने यीशु को सिर्फ उत्कुष्ट नबी समझा, लेकिन वह यह तथ्य महसूस नहीं कर पाया कि यीशु, जो हमेशा उसके साथ था, पिता परमेश्वर है।
चेलों ने यीशु से एक ही शिक्षा पाई, लेकिन प्रत्येक चेलों की दृष्टि, जिससे यीशु को देखा, भिन्न भिन्न थी। पतरस ने यीशु को इस दृष्टि से देखा कि वह अनन्त जीवन का वचन देने वाला है,(यूह 6:68 69) और थोमा ने, जिसे पहले यीशु के पुनरुत्थान का संदेश सुनने पर शंका हुई, बाद में यीशु के हाथ में कीलों का चिह्न और पंजर में भाले का चिह्न देखा और तभी ‘हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!’ कहकर कबूल किया।(यूह 20:24 29) और इस्करियोती यहूदा ने यीशु का सच्चा रूपलेख नहीं, बल्कि सिर्फ उसका शारीरिक रूपलेख देखते हुए अन्त में इनकार किया।
क्यों प्रत्येक चेलों की दृष्टि, जिससे यीशु को देखा, अलग थी? यह उनके विश्वास के अंतर के कारण था। धुंधले चश्मे से चीजें स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देती हैं। जैसे आगे अच्छी तरह से देखने के लिए चश्मे की गंदगी को पोंछना चाहिए वैसे ही सभी चीजों को, जो हमारी आत्मिक दृष्टि को धुंधला करती हैं, हटाने से हम परमेश्वर को सम्पूर्ण रूप से देख सकते हैं। जो परमेश्वर को महसूस करता है उसे परमेश्वर और अधिक बुद्धि देकर विश्वास दिलाता है, परन्तु जो परमेश्वर को महसूस नहीं करता है उसे परमेश्वर केवल संदेह दिलाता है, जैसा कि लिखा है, “जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा, और जिसके पास नहीं है, उस से जो कुछ उसके पास है वह भी ले लिया जाएगा।”
इसी तरह जिसने परमेश्वर के बारे में सिर्फ आधा महसूस किया है उसे उतना आधा परमेश्वर दिखाई देगा, और जिसने परमेश्वर के बारे में सम्पूर्ण महसूस किया है उसे परमेश्वर का सम्पूर्ण रूप दिखाई देगा।
जब सन्तान का विश्वास 100 प्रतिशत है तब परमेश्वर अपना 100 प्रतिशत रूप दिखाता है, और जब सन्तान का विश्वास 50 प्रतिशत है तब परमेश्वर अपना 50 प्रतिशत रूप दिखाता है। जितना विश्वास है उतना ही दिखाता है। उदाहरण के लिए, एक बार यीशु पतरस, यूहन्ना और याकूब को लेकर पर्वत पर चढ़ गया, और वहां यीशु ने दिव्य रूपान्तर करने के द्वारा अपना वास्तव रूप उन्हें दिखाया था।(मत 17:1 8) लेकिन इस्करियोती यहूदा ने कभी वैसा यीशु का वास्तव रूप नहीं देखा।
परमेश्वर को सम्पूर्ण रूप से देखने के लिए, हमें सम्पूर्ण महसूस करना चाहिए। जितना ज्ज्यादा हम विश्वास करते और महसूस करते हैं उतना ज्ज्यादा परमेश्वर साक्षी और बुद्धि देता है कि हम और महसूस कर सकें, लेकिन जो कोई महसूस नहीं करता और मन में संदेह करता है, उससे परमेश्वर छिपा रहता है।(यश 45:15 संदर्भ) परमेश्वर ऐसा आश्चर्यकर्म करता है कि जितना महसूस होता है उतना वह दिखाता है।
“…“मनुष्य का पुत्र कौन है? लोग क्या कहते हैं?” उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला कहते हैं, कुछ एलिय्याह और अन्य यिर्मयाह अथवा नबियों में से एक।” उसने उनसे कहा, “पर तुम क्या कहते हो? मैं कौन हूं?” शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीवित परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” यीशु ने उस से कहा, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है,…मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दूंगा, और जो कुछ तू पृथ्वी पर बांधेगा वह स्वर्ग में बंधेगा, और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा वह स्वर्ग में खुलेगा।” तब उसने चेलों को चेतावनी दी कि वे किसी से न कहें कि मैं मसीह हूं।”मत 16:13–20
यीशु ने सन्तानों को चेतावनी दी कि वे किसी से न कहें कि मैं मसीह हूं, क्योंकि आत्मिक आशीष केवल उसे दी जाती है जिसने मसीह को पहचाना। यीशु ने पतरस के विश्वास का उंचा मूल्यांकन किया, जिसने सही तरह से समझ लिया कि यीशु इस धरती पर आया मसीह है। इसलिए परमेश्वर ने पतरस को अत्यंत अनुग्रहमय उपहार, राज्य की कुंजियां दीं और अनेक आश्चर्यजनक सामर्थ्य दिखाए, जैसा कि उसने उसे अपना रूपान्तर दिखाया और उसे, जो सारी रात मछली नहीं पकड़ पाया, बड़ी संख्या में मछलियां यहां तक घेर लाने दिया कि नाव डूबने लगी। वैसा परमेश्वर ने पतरस को आशीष दी कि वह यीशु को मसीह, परमेश्वर के रूप में पक्का विश्वास कर सके। इस तरह से परमेश्वर उसकी, जो परमेश्वर को महसूस करता है, बुद्धि बढ़ाता है कि वह और महसूस कर सके। यीशु, जिसे प्रेरित पौलुस ने देखा, यीशु जिस,े पतरस ने देखा और यीशु, जिसे यूहन्ना ने देखा, मूल रूप से परमेश्वर था। जब हम भी वैसे ही ऐलोहीम परमेश्वर, स्वर्गीय पिता और माता पर, बिना सन्देह किए विश्वास करते हैं कि वे सृष्टिकर्ता परमेश्वर हैं, जिन्होंने संसार में सारी वस्तुओं को सृजा, तब परमेश्वर हमें आश्चर्यजनक सामर्थ्य बार बार दिखाता है।
“आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था। सब कुछ उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कुछ भी उसके बिना उत्पन्न न हुआ। उसमें जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। और ज्योति अंधकार में चमकती है, पर अंधकार ने उसे ग्रहण नहीं किया…वह सच्ची ज्योति जो प्रत्येक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आने वाली थी। वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे न पहचाना। वह अपनों के पास आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं …”यूह 1:1–14
यूहन्ना ने महसूस किया कि यीशु परमेश्वर है, जो आदि में वचन था और वह शरीर में होकर हमारे साथ रहता है। अविश्वासियों की आंखों में यीशु बढ़ई, आम आदमी था लेकिन यूहन्ना की आंखों में यीशु परमेश्वर था, जिसने संसार में सारी वस्तुओं को सृजा।
यूहन्ना, जिसने यीशु को इस तरह से महसूस किया, इस पर बहुत प्रसन्न था और धन्यवाद दिया कि वह परमेश्वर के साथ एक ही जगह में एक सांस लेता और परमेश्वर के महान कार्य में भागीदारी हुआ है। इसलिए मानो जैसे कि बच्चे मां के आसपास फिरते हुए मां का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश करते हैं, वह यीशु के आसपास रहते हुए कभी नरमी से सिर यीशु के कंधे पर टेकता और कभी हमेशा यीशु के पास जाने की कोशिश करता था। वह यीशु का प्यारा चेला था। और जिस मार्ग से यीशु जा रहा था उस मार्ग को जब अशिष्ट लोगों ने बन्द किया था, वह उनसे आगबबूला हो गया था।(यूह 13:23, लूक 9:51 56 संदर्भ)
जब यूहन्ना ने ऐसा सोचते हुए यीशु को देखा कि परमेश्वर शरीर में हमारे बीच वास करता है और यीशु के हर एक चाल चलन के प्रति ध्यान दिया, तब वह समझ सका कि, कितना ज्ज्यादा, यीशु हम मानव से प्रेम और हमारी देखभाल करता है, और यह भी महसूस कर सका कि जो वचन में आज्ञाकारी रहता है वह कौन सी आशीष पाएगा। इसलिए चाहे मसीह के नाम के कारण अत्याचार पाता और मरता हो, फिर भी स्वर्ग की महिमा की आशा करते हुए इन सबों को सह लिया था। यूहना का विश्वास इतना बड़ा था, इसलिए पतमुस द्वीप में उसका निर्वासन किया जाकर भी उसने प्रकाशितवाक्य, जो परमेश्वर की अन्तिम इच्छा का वर्णन करती है, और मेमने की पत्नी के बारे में, जो स्वर्गीय माता है, लिखने की आशीष भी मिली थी।
यीशु के जीवन की शिक्षा यहूदा के हर प्रदेश में सुनाई तो गई थी, पर किसी ने महसूस किया और किसी ने महसूस नहीं किया, और किसी ने विश्वास किया और किसी ने अस्वीकार किया।
परमेश्वर विविध प्रकार से प्रत्येकों के पास आता है। जो विश्वास नहीं कर पाता है उसे परमेश्वर हमेशा अविश्वासनीय बातें दिखाता है, पर जो विश्वास करता है उन सन्तानों को परमेश्वर हमेशा विश्वासनीय बातें और महिमामय सामर्थ्य दिखाता है। परमेश्वर की वैसी योजना सच में चकित है, यहां तक कि भयावह है।
“मैं और पिता एक हैं। यहूदियों ने उसे पथराव करने को फिर पत्थर उठाए। यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने पिता की ओर से बहुत से अच्छे कार्य किए। उनमें से किसके लिए तुम मुझे पथराव कर रहे हो?” यहूदियों ने उसे उत्तर दिया, “हम अच्छे कार्य के लिए तुझे पथराव नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा करने के करण, और इसलिए भी कि तू मनुष्य होकर अपने आपको परमेश्वर बताता है।”यूह 10:30-33
यीशु ने यहूदियों को अनेक आश्चर्यजनक सामर्थ्य और चमत्कार दिखाए थे, फिर भी उन्होंने यीशु की सच्ची पहचान, परमेश्वर के रूप में नहीं पाई। उनकी आंखें और विवेक मानो जलते लोहे से दागा गया हो, शुरू से संदेह के साथ यीशु की शिक्षा देखते थे और सुनते थे। इसलिए यीशु के यह सिखाते हुए भी कि वह शरीर पहनकर आया परमेश्वर है, उन्होंने विश्वास करने का मन नहीं लिया, पर प्रतिरोधी मन लेकर दुष्ट और शारीरिक विचार में फंसे हुए थे, अंत: परमेश्वर ने उन्हें यीशु को क्रूस पर लटकाने का अवसर भी दिया। परमेश्वर जो दुष्ट कार्य करता है उसे और ज्ज्यादा दुष्ट कार्य करने के लिए छोड़ देता है।
इस्करियोती यहूदा को भी, जो संदेह करता था, परमेश्वर मात्र संदेहजनक बातें दिखाता था कि उसे विश्वास करने में और मुश्किल हो सके। ‘क्या वह सच में मसीह होगा?’, ‘क्या हमें बचा सकेगा?’, उसका मनोभाव संदेह से भरा हुआ था। जब संदेह की दृष्टि से यीशु को देखा, सूखी भूमि से निकली जड़ के समान यीशु में न रूप था, न सौंदर्य कि हम उसे देखते, न ही उसका स्वरूप ऐसा था कि हम उसको चाहते। यीशु न तो पढ़ा लिखा था और न ही दूसरे प्रशासकों की तरह बड़ा अधिकारी था। जो बातें उसकी मुंह से निकलती थीं वह तो उसे सामर्थी लगती थीं, फिर भी यहूदा को सभी दृष्टिकोण से, यीशु दुर्बल लग रहा था और कुछ भी परमेश्वर की तरह नहीं दिख रहा था।
ऐसे विचार करते समय, उसके मन में शैतान ने आक्रमण किया, और शैतान ने उसे यीशु को पकड़वाने का मन दिया। अंतत: इस्करियोती यहूदा को जो दिखावटी में शक्तिशाली थे, उनके साथ भागीदारी होकर यीशु को क्रूस पर लटकाने के काम में अगुवे की भूमिका निभानी पड़ी।
“जब वह यह कह ही रहा था तो देखो, यहूदा जो बारहों में से एक था आ गया, और उसके साथ तलवारें और लाठियां लिए हुए एक बड़ी भीड़ थी जिसे मुख्य याजकों और लोगों के प्राचीनों ने भेजा था…फिर देखो, यीशु के साथियों में से एक ने तलवार निकालकर महायाजक के दास पर चलाई और उसका कान काट डाला। तब यीशु ने उस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख, क्योंकि जो तलवार उठाते हैं वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे। क्या तू सोचता है कि मैं अपने पिता से विनती नहीं कर सकता? और क्या वह तुरन्त ही बारह सेनाओं से अधिक स्वर्गदूतों को मुझे नहीं सौंप सकता? परन्तु तब पवित्रशास्त्र का लेख कैसे पूरा होगा कि ऐसा ही होना अवश्य है?” ”मत 26:47-54
जब यीशु इस धरती पर शरीर में था, तब भी वह ऐसे पद में था, कि वह बारह सेनाओं से अधिक स्वर्गदूतों को आज्ञा दे सकता था। यद्यपि परमेश्वर स्वर्गीय कपड़े को सांसारिक कपड़े(शरीर)में बदल कर पहनता हो, तब भी परमेश्वर का ईश्वरीय गुण और सामर्थ्य बदलते नहीं।
परमेश्वर हमारे जैसा शरीर में रहता था और शारीरिक एंव सीमित स्थान में चेलों के साथ रहता था। इसलिए पतरस भी, जिसने परमेश्वर को महसूस किया, संकटपूर्ण स्थिति आने पर, उसका विश्वास हिचकने लगा। फिर भी यीशु ने जिनके पास विश्वास था, उन चेलों को पुनरुत्थान के बाद बड़ा विश्वास दिया और उन्हें विश्वस्त किया कि वह संसार के अन्त तक प्रेम करेगा। यीशु ने उन्हें मृतकों में से तीसरे दिन जी उठने को और स्वर्ग में उठा लिए जाने को भी दिखाया था। इस तरह से परमेश्वर जो विश्वास करते थे, उन्हें विश्वासनीय साक्षी दिखाता था, लेकिन इस्करियोती यहूदा को, जिसके पास विश्वास नहीं था, परमेश्वर ने एक बार भी ऐसा नहीं दिखाया। अंत: यहूदा ने ऐसा विश्वासनीय दृश्य न देख कर यीशु को पकड़वाया था और उसका अन्त नाश हुआ। ऐसी खेदजनक घटना का वर्णन बाइबल करती है।
परमेश्वर संसार में शरीर पहन कर आया लेकिन संसार ने उसे न पहचाना। अपवादी के लिए, हमेशा उसमें दोष का कारण पाया जाता था। इसलिए यीशु ने कहा, “धन्य है वह जो मेरे कारण ठोकर खाने से बचा रहता है।”(मत 11:6) जो मसीह को सही रूप से देखता और पहचानता है वह धन्य व्यक्ति है।
2 हज़ार वर्ष पहले, जब यीशु क्रूस पर लटकाया गया, अविश्वासियों का ध्यान केवल इस पर केंद्रित हुआ कि यीशु किस सामर्थ्य का प्रयोग करके ऐसी संकटपूर्ण स्थिति से खुद को छुड़ाएगा। इसके विपरित यीशु ने क्रूस पर शांतिपूर्वक लहू बहाते हुए अत्यधिक पीड़ा और दुख झेला था। अविश्वासियों की आंखों में ऐसा लगा कि यीशु इसलिए दुख उठा रहा है, क्योंकि उसे खुद को छुड़ाने की कोई शक्ति नहीं। लेकिन जिन्होंने महसूस किया, वे वैसे यीशु को देख सके जो जैसा यशायाह अध्याय 53 में लिखा है, हमारे दुखों को उठा रहा था और हमारे ही अपराधों के कारण बेधा और कुचला जा रहा था। उन लोगों को मसीह ने परमेश्वर की आश्चर्यजनक सामर्थ्य दिखाई, कि वह मृतकों में से तीसरे दिन जी उठा।
आज भी, यदि हम पूरी तरह से विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर का वचन है, तो हमें बाइबल में लिखित ऐलोहीम परमेश्वर के बारे में सच्ची शिक्षाओं को खुले मन से ग्रहण करना चाहिए। परमेश्वर को इस बात की आवश्यकता नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी मनुष्य के सम्बन्ध में साक्षी दे, क्योंकि वह स्वयं जानता है कि मनुष्य के मन में क्या है।(यूह 2:25) बाइबल परमेश्वर के सम्बन्ध में साक्षी देती है। इसलिए हमें सिर्फ इस पर विश्वास करना चाहिए। यदि बाइबल की शिक्षा पर विश्वास करके परमेश्वर को देखते, तब हम परमेश्वर का वास्तव स्वभाव देख पाएंगे।
“ “आओ, ज्ञान की खोज करें, वरन् यहोवा के ज्ञान को यत्न से ढूंढें.। उसका प्रकट होना भोर के समान निश्चित है, वह वर्षा के समान, हां, बसन्त की वर्षा के समान जो धरती को सींचती है हम पर आएगा।”… क्योंकि मैं बलिदान से नहीं पर निष्ठा से, और होमबलि से नहीं परन्तु इस से प्रसन्न होता हूं कि परमेश्वर का ज्ञान रखा जाए।”हो 6:3-6
परमेश्वर ने कहा कि यहोवा के ज्ञान को यत्न से ढूंढें.। चाहे मनुष्य परमेश्वर को हजारों बार या लाखों बार बलिदान देता या आराधना करता हो, परमेश्वर को जाने बिना यह सब व्यर्थ है। मनुष्य, जो सही विश्वास के बिना परमेश्वर को आराधना चढ़ाता है, वह, जैसा प्रेरित पौलुस ने एथेंस में देखा वैसा मूर्ख मनुष्य है, जो अनजान परमेश्वर को पूजता है।(प्रे 17:22 23 संदर्भ)
कृपया विश्वास सहित परमेश्वर को देख लीजिए, जो हमारे साथ रहता है। यदि विश्वास की आंखों से देखते, तब जैसे चेलों ने यीशु को दिव्य रूपान्तर हुए और आश्चर्यकर्म करते देखा कि सिर्फ पांच रोटियों और दो मछलियों से पांच हज़ार लोगों को खिलाया, हम आज भी आश्चर्यकर्म का क्षण देख सकते हैं। यदि कोई देखते हुए भी नहीं देख पाता है, तो इसका कारण यह है कि वह धुंधले चश्मे से देख रहा है। परमेश्वर कभी बदलता नहीं और न वह छाया के समान परिवर्तनशील है।(याक 1:17) प्रत्येक मनुष्यों के भिन्न विश्वास के द्वारा ही, जिससे परमेश्वर को देखते हैं, परमेश्वर का वास्तव रूप अधूरा रहता है।
होमबलि से नहीं परन्तु परमेश्वर इस से प्रसन्न होता है कि परमेश्वर का ज्ञान रखा जाए। हमें परमेश्वर के ज्ञान को यत्न से ढूंढ़कर महसूस करना चाहिए। आइए, यह सोच कर, कि जो विश्वास करके महसूस करते हैं, उनके लिए परमेश्वर आशीष पाने का मार्ग खोलता है, हम भी पतरस और यूहन्ना की तरह परमेश्वर को सही रूप से जानें और महसूस करें कि स्वर्ग की आशीष पा सकें।
हमारा परमेश्वर संसार का उद्धार करने की महान शक्ति रखता है। सिय्योन की सन्तानो! आशा है कि आप लोग विश्वास रखें और पवित्र ऐलोहीम परमेश्वर के चकित सुसमाचार के कार्य में भागीदारी होकर सही रास्ते पर मानव की अगुवाई करें।