उन कामों का अफसोस जो हमने नहीं किए

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लोग उन कामों के लिए अफसोस करते हैं जो उन्होंने पहले नहीं किए। जब वे किसी विदेशी से मिलते हैं और उनसे बात नहीं कर पाते, तो वे अपने स्कूल के दिनों में विदेशी भाषा को अच्छे से न सीखने का अफसोस करते हैं। जब वे बड़े हो जाते हैं, तो उनकी छोटी उम्र में उनके माता–पिता के उन्हें अच्छे से पढ़ाई करने और उत्सुकता से कार्य करने के लिए कहने पर भी उनकी बात न सुनने का वे अफसोस करते हैं।

हमारे जीवन में ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनका हमें अफसोस हो सकता है। हालांकि, हमें आत्मिक रूप से ऐसा जीवन जीना चाहिए जिसमें कोई भी अफसोस न हो। परमेश्वर ने हमें सत्य दिया है जो हमें कभी भी अफसोस नहीं करने देगा, और उन्होंने हमें अनन्त स्वर्ग के राज्य की मीरास भी दी है। परमेश्वर के द्वारा प्रतिज्ञा किए गए स्वर्ग के राज्य का मूल्य समझकर, सिय्योन के सभी लोगों को अपने दिन–प्रतिदिन का जीवन पूरी ईमानदारी से जीना चाहिए, ताकि उन्हें किसी भी प्रकार का अफसोस न हो।

विपत्तियां और इस युग में हमारा कार्य

डिस्कवरी चैनल ने एक बार कम्प्यूटर–गै्रफिक का प्रयोग करके “सबसे बुरी विपत्तियां” नामक एक छोटी शृंखला पेश की थी, जिसमें कठोर जलवायु के कारण होने वाली सबसे बुरी घटनाओं और विपत्तियों के दृश्य का वर्णन किया गया था जिनका सामना विश्व के कुछ मुख्य शहर कर सकते हैं। उस शृंखला में एक प्रचण्ड तूफान को चीन के हांग कांग शहर को निगलते हुए, एक महा–बवंडर को अमेरिका के डालस शहर का विनाश करते हुए, सौर–तूफान को अमेरिका के न्यूयार्क को धमकाते हुए, बहुत बड़ी बाढ़ को इंगलैंड के लंदन शहर को दबोचते हुए, एक आग–तूफान को आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर की ओर आगे बढ़ते हुए, और एक बर्फीले तूफान को कनाडा के मोंट्रियल शहर को बर्फ से ढंकते हुए दिखाया गया था। इस कार्यक्रम ने उन विपत्तियों का सजीव ढंग से चित्रण किया था जिनके घटित होने की संभावना विशेषज्ञों ने पहले से बताई है। उनका कहना था कि यह कार्यक्रम परिस्थिति की गंभीरता के बारे में चेतावनी देने और उस समस्या से लड़ने के रास्तों को खोजने के लिए था।

अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण होनेवाला असामान्य जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है। वर्ष 2007 की गर्मियों में आस्ट्रेलिया ने “1,000 साल के सबसे बुरे सूखे” का सामना किया था, और उसके थोड़े ही समय बाद वहां पर बाढ़ आई थी। उसी समय के दौरान, यह खबर बार–बार दी जा रही थी कि चीन के मध्य और दक्षिणी भाग में आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण बहुत से लोग मारे गए हैं और 6 लाख से भी ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं। उत्तरी और दक्षिण ध्रुवों पर बर्फ बड़ी ही तेजी से पिघल रही है। कोरिया में वार्षिक औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस(34.7 डिग्री फारेनहाइट) तक बढ़ रहा है और इसके कारण यहां की समशीतोष्ण जलवायु बदलकर उपोष्ण कटिबंधीय हो रही है। यदि जलवायु का यह परिवर्तन होना जारी रहे, तो एक बड़ा और शक्तिशाली तूफान कोरिया पर आ सकता है। इन दिनों वैज्ञानिकों और जनसंपर्क साधनों के अलावा बहुत से लोग भी “एक बड़ी विपत्ति”(यहेजकेल का 7वां अध्याय) के बारे में चेतावनी देते हैं और उसके विषय में चिन्ता प्रकट करते हैं।

बाइबल में बहुत सी विपत्तियों की भविष्यवाणियां की गई हैं। ये मानव जाति को इस वर्तमान समय के प्रति चेतावनी देकर विपत्तियों से बचने का मार्ग समझाने की परमेश्वर की इच्छा प्रकट करती हैं। अब आइए हम सोचें कि ऐसा जीवन जीने के लिए जिसमें कोई अफसोस नहीं है, हमें क्या करना चाहिए। किसी ने कहा है कि, “यदि कल संसार का अंत हो जाए, फिर भी मैं आज एक सेब का पेड़ लगाऊंगा।” हालांकि, यदि ऐसी कोई परिस्थिति आ पड़ती है, क्या आज के दिन एक और आत्मा को बचाना अच्छा नहीं होगा? एक और आत्मा को विपत्तियों से बचाना एक सेब का पेड़ लगाने के प्रयास से बहुत ज्यादा अर्थपूर्ण और योग्य होगा।

विश्वास का तेल तैयार न रखने का अफसोस

अब आइए हम बाइबल के कुछ वचनों को देखते हुए सोचें कि कौन सी बातों के लिए हमें अनन्तकाल तक अफसोस हो सकता है।

स्वर्ग का राज्य उन दस कुंवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। उनमें पांच मूर्ख और पांच समझदार थीं। मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया; परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। जब दूल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब ऊंघने लगीं और सो गईं। आधी रात को धूम मची: “देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो।”… और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चली गईं और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुंवारियां भी आकर कहने लगीं, “हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे!” उसने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूं, मैं तुम्हें नहीं जानता।” इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को। मत 25:1–13

इस दृष्टान्त में पांच बुद्धिमान कुंवारियों ने अच्छे से तैयारी की थी कि बाद में उन्हें कोई अफसोस न हो, जबकि दूसरी पांच कुंवारियां मूर्ख थीं और अंत में उन्होंने अफसोस किया। जब द्वार बन्द कर दिए गए, तो उन मूर्ख कुंवारियों को अफसोस हुआ होगा कि वे दूल्हे के आने से पहले पर्याप्त तेल लेकर अपने आपको तैयार न कर पाईं।

बाद में उन्होंने आकर यह कहते हुए दरवाजा खटखटाया कि, “हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिए द्वार खोल दे।” हालांकि, उनके लिए कोई भी मौका नहीं था। बाइबल हमें कहती है कि एक बार यह धूम मच जाए कि, “दूल्हे से मिलने के लिए बाहर आओ,” उसके बाद उसके आगमन के लिए तैयारी करने में बहुत देर हो जाती है। जैसे 2,000 साल पहले यीशु ने अपनी प्रेमी सन्तानों से कहा था, हमें हमेशा जागते रहना चाहिए और दूल्हे के आगमन के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि हम नहीं जानते कि वह कब आएंगे, शायद आज या कल, या आधी रात को या भोर को या सोने के समय।(मर 13:35)

यदि इस समय हम मूर्ख कुंवारियों के समान हैं, तो हमें अब से लेकर अपने आपको बदल देना चाहिए। अभी भी देर नहीं हुई है। पांच बुद्धिमान कुंवारियों के समान, हमें दूल्हे के आगमन के लिए तैयार रहना चाहिए।

परमेश्वर के दिए तोड़ों से कुछ भी न कमाने का अफसोस

तोड़ों का दृष्टान्त भी हमें वही सबक सिखाता है।

… उसने एक को पांच तोड़े, दूसरे को दो, और तीसरे को एक; अर्थात् हर एक को उसकी सामर्थ्य के अनुसार दिया, और तब परदेश चला गया। तब, जिसको पांच तोड़े मिले थे, उसने तुरन्त जाकर उनसे लेन–देन किया, और पांच तोड़े और कमाए। इसी रीति से जिसको दो मिले थे, उसने भी दो और कमाए। परन्तु जिसको एक मिला था, उसने जाकर मिट्टी खोदी, और अपने स्वामी के रुपये छिपा दिए। बहुत दिनों के बाद उन दासों का स्वामी आकर उनसे लेखा लेने लगा। जिसको पांच तोड़े मिले थे, उसने पांच तोड़े और लाकर कहा… उसके स्वामी ने उससे कहा, “धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास…” और जिसको दो तोड़े मिले थे, उसने भी आकर कहा… उसके स्वामी ने उससे कहा, “धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास…” तब जिसको एक तोड़ा मिला था, उसने आकर कहा… “तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है, वह यह है।” उसके स्वामी ने उसे उत्तर दिया, “हे दुष्ट और आलसी दास… इस निकम्मे दास को बाहर के अंधेरे में डाल दो, जहां रोना और दांत पीसना होगा।” मत 25:14–30

जिसने पांच तोड़े पाए थे या जिसने दो तोड़े पाए थे, उसने अपने तोड़ों से लेन–देन किया और तोड़े और कमाए। उन्होंने एक अर्थपूर्ण जीवन जिया था जिसमें कोई भी अफसोस नहीं था। परिणाम स्वरूप, उन्होंने अपने स्वामी से प्रशंसा और इनाम पाए। हालांकि, उस व्यक्ति ने जिसने एक तोड़ा पाया था, उस एक तोड़े को मिट्टी में छिपा दिया और उसका कुछ भी उपयोग नहीं किया। अंत में उसे बाहर फेंक दिया गया। अंधेरे में फेंक दिए जाने पर, उसने अपनी गलती पर अफसोस किया होगा।

जब अफसोस की बात आती है, तो हम यहूदा इस्करियोती का वर्णन किए बिना नहीं रह सकते। तीस चांदी के सिक्कों के घूस के लिए यीशु के साथ विश्वासघात करने के बाद, उसने अपने पाप को महसूस किया और उसके लिए अफसोस किया। हालांकि, जिस क्षण उसने अफसोस किया, वह मर गया।

यहूदा इस्करियोती को, और जिसको एक तोड़ा मिला था उस व्यक्ति को उस बात का अफसोस था जो वे नहीं कर पाए थे। यहूदा इस्करियोती ने इसलिए अफसोस किया होगा कि वह यीशु के प्रति विश्वसनीय नहीं रहा था, और जिसको एक तोड़ा मिला था उस व्यक्ति ने इसलिए अफसोस किया होगा कि उसने अपने तोड़े का कुछ भी उपयोग नहीं किया लेकिन उसे केवल मिट्टी में गाड़ दिया, यानी कि उसने परमेश्वर के सुसमाचार का सत्य सुनने के बाद अपने आसपास के बहुत से लोगों को उसका प्रचार नहीं किया और बहुत से तोड़े कमाने में असफल रहा।

उनके समान हमारा अंत भी अफसोस के साथ नहीं होना चाहिए। जो हमें करना चाहिए उसे न कर पाकर अंत में अफसोस करने के बजाय, क्या यह अच्छा नहीं होगा कि हम उसे कर लें? अब, आइए हम उत्सुकता से उस कार्य को करें जिससे परमेश्वर अति प्रसन्न होते हैं, यानी वह कार्य जिसमें हमें परमेश्वर के राज्य में सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान करने की परमेश्वर की प्रतिज्ञा समाई हुई है। यदि हम अपना कार्य न करें और उस आलसी दास के समान जिसने एक तोड़ा पाया था, अपना समय कुछ भी न करते हुए व्यतीत करें, तो वे जो स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश करते हैं, उसे छीन लेंगे।(मत 11:12)

विश्वास जो स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश करता है

याकूब एक प्रतिनिधिक व्यक्ति है जिसने स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश किया और परमेश्वर का आशीर्वाद पाया। उसकी जांघ की नस चढ़ जाने पर भी उसने परमेश्वर से जो भी आशीष पा सके वह पाने के लिए अपने पूरे हृदय और पूरी आत्मा से प्रयास किया था, और अंत में उसने उसे पाया था। एसाव पहिलौठा था। उन दिनों की सामाजिक रीति–रिवाज के अनुसार, उसके छोटे भाई, याकूब के लिए यह बिल्कुल असम्भव था कि वह पहिलौठे का अधिकार पा सकता। फिर भी, उसने वह पा लिया। निस्संदेह ही परमेश्वर ने उसके लिए पहले भविष्यवाणी की थी। हालांकि, बलपूर्वक प्रयास और हर मुमकिन कोशिश करनेवाला जो चाहता है उसे निश्चय ही पा सकता है।

एसाव ने जन्म से पहिलौठे का जन्मसिद्ध अधिकार पाया, इसलिए उसने उसका मूल्य नहीं समझा और कुछ भी प्रयास नहीं किया। अंत में उससे उसका पहिलौठे का अधिकार छीन लिया गया। यहूदा इस्करियोती और एक तोड़े वाले व्यक्ति के समान, उसने अपना पहिलौठे का अधिकार खो देने के बाद अपने बेपरवाह निर्णय का अफसोस किया। एसाव ने अफसोस किया कि उसने अपने पहिलौठे के अधिकार का मूल्य नहीं समझा और मसूर की दाल के बदले अपने छोटे भाई याकूब को पहिलौठेपन का अधिकार बेच दिया। उसने अपने पिता इसहाक से कहा कि, “पिताजी, क्या आपके पास एक भी आशीर्वाद नहीं है? पिताजी, मुझे भी आशीर्वाद दें।” लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सभी आशीर्वाद पहले से याकूब को दिए जा चुके थे। इस बात का एहसास करने के बाद कि उसके छोटे भाई ने उसके आशीर्वाद ले लिए, वह फूट फूटके रोने लगा। (उत 25:21–34; 27:1–40)

“… एसाव फूट फूटके रोया।” यह वचन दिखाता है कि एसाव ने अपने किए का कितना अधिक अफसोस किया होगा और अपनी व्यथा पर कितने आंसू बहाए होंगे। यदि उसने अपने पहिलौठे के अधिकार का मूल्य समझा होता, तो बहुत भूखा होने पर भी, उसने एक समय के भोजन के लिए उसे बेच न दिया होता। उसने अपने पहिलौठे के अधिकार को तुच्छ जाना और उसे खो दिया। जब एसाव ने याकूब को अपना पहिलौठे का अधिकार दे दिया, तब शायद उसे यह पता नहीं था कि अंत में उसे इसके लिए बहुत पछताना होगा। ‘यदि मैं समय को पीछे मोड़ सकता! यदि मैं ने उस समय थोड़ी देर के लिए अपनी भूख को सहा होता, तो मैं ने अपना पहिलौठे का अधिकार बनाए रखा होता।’ लेकिन उस समय अफसोस करने का कोई अर्थ नहीं था।

‘क्यों मैं ने उस समय यह कार्य नहीं किया?’
‘क्यों मैं ज्यादा सहनशील न बना और अपने आप पर संयम न रखा?’
‘क्यों मैं ने अपनी मशाल के लिए पर्याप्त तेल तैयार न किया?’

एसाव, यहूदा इस्करियोती, एक तोड़े वाले व्यक्ति और पांच मूर्ख कुंवारियों ने ऐसे खेदजनक शब्द कहे होंगे। ऐसा अफसोस न होने के लिए, हमें परमेश्वर के निम्न वचनों का पालन करना चाहिए।

आत्मिक कार्य करके अनन्त महिमा पाओ

अत: जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह विद्यमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ… अपने उन अंगों को मार डालो जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्तिपूजा के बराबर है। इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है। कुल 3:1–6

जैसा कि उपर्युक्त वचन में लिखा गया है, परमेश्वर की सन्तानों को, जो मसीह के साथ जिलाई गई हैं, स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाना चाहिए और परमेश्वर के राज्य की महिमा खोजनी चाहिए। ऐसा करते हुए, हमारे पास कोई अफसोस नहीं रहना चाहिए। यदि कोई अपने जीवन के अंतिम क्षण में परमेश्वर से ऐसा कहते हुए विनती करे कि, “कृपया मुझे कुछ और समय दीजिए, और मैं यह या वह करके प्राण देने तक विश्वासी रहूंगा,” तो इसका कुछ अर्थ न होगा।

हमें आज ही शुरुआत करनी चाहिए। कल बहुत देर हो जाएगी। आज का दिन किसी भी चीज की शुरुआत करने का सबसे अच्छा समय है। बीता हुआ कल अतीत है और आनेवाला कल भविष्य है, जो सिर्फ “काल्पनिक” है और जो “वास्तविक” नहीं बना है। लेकिन आज का दिन वास्तविक समय है जो हमारे पास है। सबसे बुद्धिमान मनुष्य वही है जो कल के दिन पर चीजें न टालकर आज ही शुरुआत करता है कि उसे ऐसा कहते हुए अफसोस करना न पड़े कि, “क्यों मैं ने वह नहीं किया?”

बिना मेहनत के कुछ भी नहीं पाया जा सकता। हमें उन कार्यों के लिए जो हमने नहीं किए, अफसोस करने में समय न गंवाते हुए, कर्मठता से कार्यों को अभ्यास में लाना चाहिए, ताकि हम परमेश्वर के सामने उस बुद्धिमान मनुष्य के समान बनकर खड़ा रह सकें जिसने दस तोड़े और कमाए थे। आइए हम इन अंतिम दिनों में परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले सुसमाचार के कार्यों में सहभागी होते हुए, अपनी मशालों के लिए पर्याप्त तेल तैयार करें और स्वर्ग के राज्य के लिए तैयारी करें।

… परन्तु उस समय तेरे लोगों में से जितनों के नाम परमेश्वर की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वे बच निकलेंगे। जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिये, और कितने अपनी नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिये। तब सिखानेवालों की चमक आकाशमण्डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे। दान 12:1–3

परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है कि जो बहुतों को धार्मिकता की ओर ले आते हैं वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे। परमेश्वर ने हम सब को सुसमाचार का प्रचार करने और स्वेच्छा से उनकी इच्छा का पालन करने जैसे बहुत से मौके दिए हैं कि हम उनके लिए कार्य कर सकें। और परमेश्वर ने कहा है कि अंत में वह हर एक को उसके कार्यों के अनुसार बदला देंगे।(प्रक 22:12)

हमें अपना समय अर्थहीन कार्यों में नहीं गंवाना चाहिए, लेकिन जाग उठकर इस अंधेरे संसार में सुसमाचार की ज्योति को चमकाना चाहिए। हमें अंत में ऐसे किसी कार्य के लिए अफसोस नहीं होना चाहिए जिसे हमने सिर्फ मन में सोचा लेकिन नहीं किया था। ‘पृथ्वी पर जीवन जीते समय यदि मैंने परमेश्वर की इच्छा पर और अधिक ध्यान देकर जोश के साथ पालन किया होता, तो आज जो मैं हूं उससे बेहतर होता…’ ऐसे अफसोस भरे शब्द हममें से किसी के मुंह से नहीं निकलने चाहिए। चाहे हम किसी पद या परिस्थिति में हों, हम सिय्योन के लोगों को उत्सुकता के साथ जीवन की नई वाचा का प्रचार करना चाहिए और संसार को बचाना चाहिए।

पौलुस का दृढ़ विश्वास और देमास का अफसोस

यदि हम याकूब के समान परमेश्वर के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश करें और उस सुसमाचार का प्रचार करने के लिए मेहनत करें, जिसमें परमेश्वर के आशीर्वादों की प्रतिज्ञाएं हैं, तो हम परमेश्वर के आशीर्वाद और महिमा को पा सकते हैं। यदि हम ऐसा न करें, तो हम ऐसा कहते हुए कि काश, हम और मेहनत कर सकते, जो कार्य हमने नहीं किए उनका अफसोस करेंगे, लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी; हम समय को वापस नहीं मोड़ सकते।

परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य की सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह… पर तू सब बातों में सावधान रह, दु:ख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर… मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं वरन् उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं। 2तीम 4:1–8

प्रेरित पौलुस अपनी पूरी सामर्थ्य से विश्वास की दौड़ में दौड़ा था, इसलिए वह विश्वास के साथ यह कह सका कि उसने अपनी दौड़ पूरी कर ली है और अब उसके लिए धर्म का मुकुट तैयार किया गया है। बाइबल हमसे कहती है कि हमें समय और असमय तैयार रहकर वचन का प्रचार करना चाहिए और सुसमाचार के प्रचारक का कार्य करना चाहिए ताकि हमारे पास ऐसे किसी कार्य के लिए अनन्तकाल का अफसोस न रहे जो हमने न किया हो।

मेरे पास शीघ्र आने का प्रयत्न कर। क्योंकि देमास ने इस संसार को प्रिय जानकर मुझे छोड़ दिया है और थिस्सलुनीके को चला गया है… 2तीम 4:9–10

पौलुस ने सुसमाचार का प्रचार करते हुए, अफसोस रहित जीवन जिया था। तब देमास के बारे में क्या है? शुरुआत में उसने सुसमाचार के लिए जोश के साथ कार्य किया था, लेकिन बाद में वह संसार में वापस चला गया। इस समय, वह इस बात के लिए अफसोस कर रहा होगा कि उसने संसार के मोह में पड़ कर सांसारिक जीवन जिया। यदि उसने थोड़ा और सहन किया होता और पौलुस के साथ अंत तक खड़ा रहा होता, तो उसका नाम स्वर्ग में लिखा गया होता और सर्वदा महिमा के साथ चमकता होता। नरक में पीड़ा पाते हुए उसने इस बात के लिए निश्चय ही अफसोस किया होगा कि उसने क्षणिक मुसीबतों को सहन नहीं किया।

अब परमेश्वर हमें मौके दे रहे हैं। जब कभी हमें मौके दिए जाते हैं, तो हमें उन पांच बुद्धिमान कुंवारियों और पांच तोड़े पाने वाले व्यक्ति के समान उन मौकों को परमेश्वर की ओर से आए आशीर्वाद समझना चाहिए। और हमें याकूब के समान बनना चाहिए जिसने मुश्किल परिस्थिति में होने पर भी परमेश्वर से आशीर्वाद पाने तक हार नहीं मानी, और प्रेरित पौलुस के समान बनना चाहिए जो धर्म के मुकुट की आशा करते हुए, इस पृथ्वी पर अपने जीवन के अंत तक उत्सुकता के साथ विश्वास की दौड़ में दौड़ता रहा।

मैं विश्वास करता हूं कि जब सिय्योन के सभी लोग स्वर्ग वापस जाएंगे, तो उन्हें किसी भी प्रकार का अफसोस नहीं होगा, और वे पौलुस से अधिक अपने पर गर्व करके कह सकेंगे कि उन्होंने पृथ्वी पर सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हर संभव प्रयत्न किया है। मैं आशा करता हूं कि आप सभी संपूर्ण रूप से परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हुए और अपने परिवार वालों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों समेत पूरे संसार के लोगों को बचाते हुए अफसोस रहित जीवन जीएं और स्वर्गीय पिता और माता से बहुत ज्यादा प्रेम और आदर पाएं।