आत्मा के बारे में प्रेरितों के विचार

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“क्या होता है जब मनुष्य मरता है?” “क्या मनुष्य के पास सच में आत्मा होती है?” “मृत्यु के बाद मनुष्य कहां जाता है?” ये अनगिनत लोगों के लिए लंबे समय से अनसुलझे सवाल थे।

अनगिनत लोगों ने “मैं” के अस्तित्व के बारे में सोचा और इस पर अध्ययन किया, लेकिन कोई भी जवाब नहीं पा सका। यह न जानते हुए कि किसने “मुझे” बनाया है, उन्होंने आत्मा के विषय में जानने की लालसा को पूरा करने के लिए विभिन्न विचारों व दर्शनों को प्रस्तुत किया है। लेकिन आत्मा के बारे में जो ज्ञान मसीह के द्वारा सिखाया गया है, वह मानवजाति को यह जानने देता है कि वे कौन हैं, उनके अस्तित्व का मूल्य कितना है और उनके जीवन का उद्देश्य क्या है।

1. मनुष्य की सृष्टि की प्रक्रिया में प्रकट हुई आत्मा

तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया। उत 2:7

यहां “जीवित प्राणी” का मतलब वह प्राणी है जिसके पास जीवन है। भूमि की मिट्टी जीवन का सार नहीं है। जब मनुष्य भूमि की मिट्टी से बनाया गया, तब वह जीवित प्राणी नहीं था। जैसे ही परमेश्वर के जीवन के श्वास ने मनुष्य में प्रवेश किया, वह जीवित प्राणी बन गया। इसलिए जीवन का सार शरीर नहीं, लेकिन परमेश्वर से फूंका गया जीवन का श्वास, यानी आत्मा है। मानव का शरीर भूमि की मिट्टी से आया है, लेकिन आत्मा जो शरीर के अंदर है, वह परमेश्वर से बनाई गई है और परमेश्वर से आई है। सुलैमान ने कहा, “मिट्टी ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिसने उसे दिया लौट जाएगी”(सभ 12:7)।

2. आत्मा के बारे में यीशु की शिक्षा

नए नियम के युग में आत्मा की अवधारणा और अधिक स्पष्ट बन गई।

किनसे मत डरना? जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है। मत 10:28

यीशु का यह वचन मनुष्यों की सृष्टि की प्रक्रिया को दिखाता है, जो उत्पत्ति के दूसरे अध्याय में लिखी गई। क्योंकि यीशु ने आत्मा की मृत्यु और शरीर की मृत्यु में फर्क किया। मत्ती 10:28 में “आत्मा” यूनानी भाषा में “पनुमा” है।

परमेश्वर आत्मा(पनुमा) है… यूह 4:24

प्रभु(यीशु) तो आत्मा(पनुमा) है… 2कुर 3:17

क्या वे सब सेवा टहल करनेवाली आत्माएं(पनुमा) नहीं… इब्र 1:14

परमेश्वर शरीर के नहीं, बल्कि आत्मा के हैं। यीशु भी शरीर के नहीं, बल्कि आत्मा के हैं। स्वर्गदूत भी शरीर के नहीं, बल्कि आत्मा के हैं। इसी कारण मनुष्य की मृत्यु को शरीर की मृत्यु और आत्मा की मृत्यु में विभाजित किया गया है। मनुष्य या शैतान हमारे शरीर को घात कर सकता है, लेकिन जो आत्मा को नष्ट कर सकता है, वह सिर्फ परमेश्वर हैं।

प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस के चर्च को भेजे पत्र में इस प्रकार लिखा;

मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता है, केवल मनुष्य की आत्मा(पनुमा) जो उसमें है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेवर का आत्मा। 1कुर 2:11

हमें यीशु की शिक्षा से यह सीखना चाहिए कि हमारे जीवन का सार शरीर में नहीं, लेकिन आत्मा में है।

3. आत्मा के बारे में प्रेरित पौलुस के विचार

हमें प्रेरितों के विचार इस कारण से जानने चाहिए क्योंकि उनके विचारों का निर्माण यीशु की शिक्षाओं और सबकों के आधार पर किया गया।

प्रेरितों के मन पर यह विचार उत्कीर्ण था कि शरीर आत्मा का डेरा है।

क्योंकि हम जानते हैं कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा(यदि शरीर मर जाएगा), तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा जो हाथों से बना हुआ घर नहीं, परन्तु चिरस्थाई है। 2कुर 5:1

अब हमारी आत्माएं डेरे(शरीर) में अस्थाई रूप से रहती हैं, लेकिन जब हम उद्धार पाकर स्वर्ग के राज्य में जाएंगे, तब हम परमेश्वर के बनाए हुए चिरस्थाई भवन में रहेंगे।

अत: हम सदा ढाढ़स बांधे रहते हैं और यह जानते हैं कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं… इसलिये हम ढाढ़स बांधे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं। इस कारण हमारे मन की उमंग यह है कि चाहे साथ रहें चाहे अलग रहें, पर हम उसे भाते रहें। 2कुर 5:6–9

प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस में चर्च के संतों को भेजे पत्र में यह लिखा कि प्रभु(यीशु) आत्मिक दुनिया में रहते हैं और हम शारीरिक दुनिया में रहते हैं, इसलिए जब हम शरीर में रहते हैं, तब हम प्रभु से अलग हैं। और पौलुस और संत चाहते थे कि वे जल्दी शरीर से अलग हो जाएं और प्रभु के साथ जीएं। यहां, शरीर में कौन रहता है? और शरीर को कौन छोड़ता है?

वह जो शरीर से अलग होना चाहता था, पौलुस स्वयं था, यानी पौलुस की आत्मा थी। इसका मतलब है कि शरीर जिसमें पौलुस था, जीवन का सार नहीं था, लेकिन शरीर के अंदर की आत्मा ही पौलुस स्वयं था। दूसरे शब्दों में प्रेरित पौलुस ने अस्थाई डेरे(शरीर) के लिए नहीं जिया, लेकिन उस चिरस्थाई भवन के लिए जिया जो उसकी आत्मा के डेरे से बाहर निकलने के समय परमेश्वर उसे देने पर थे, और उसने उस क्षण की तैयारी की। उसने फिलिप्पी के चर्च को भेजे पत्र में इस प्रकार लिखा;

क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है… क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है। परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है। फिलि 1:21–24

2कुरिन्थियों के पांचवें अध्याय में “देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहने” और फिलिप्पियों के पहले अध्याय में “कूच करके मसीह के पास जा रहने,” का अर्थ एक ही है। कूच करके जाने का मतलब है, शरीर से बाहर जाना; इसे अगले शब्दों से समझा जा सकता, “शरीर में रहना।”

तब, शरीर में कौन रहता है और शरीर से बाहर कौन जाता है? वह पौलुस स्वयं है, यानी पौलुस की आत्मा है। उसने कहा कि संतों के लिए शरीर में उसका विद्यमान रहना इससे और अधिक हितकर है कि वह शरीर को छोड़कर जाए। यदि पौलुस अपने शरीर से बाहर निकल जाता, तो वह मसीह के पास जाता, और यह उसके लिए अच्छा था, लेकिन संतों के लिए यह अधिक लाभदायक था कि पौलुस शरीर में उनके साथ रहे और उन्हें परमेश्वर का सत्य सिखाए और उनकी अगुवाई धार्मिकता के मार्ग पर करे।

और जब पौलुस ने परमेश्वर से प्राप्त हुए प्रकाशन को व्यक्त किया, तो उसने इस प्रकार लिखा;

यद्यपि घमण्ड करना मेरे लिये ठीक नहीं तौभी करना पड़ता है; इसलिए मैं प्रभु के दिए हुए दर्शनों और प्रकाशनों की चर्चा करूंगा। मैं मसीह में एक मनुष्य को जानता हूं; चौदह वर्ष हुए कि न जाने देहसहित, न जाने देहरहित, परमेश्वर जानता है, ऐसा मनुष्य तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया। मैं ऐसे मनुष्य को जानता हूं न जाने देहसहित, न जाने देहरहित परमेश्वर ही जानता है। 2कुर 12:1–3

जब पौलुस ने प्रकाशन देखा, तब उसने लगातार कहा, “क्या एक मनुष्य(जो पौलुस स्वयं था) शरीर सहित था या शरीर रहित, मैं नहीं जानता बस परमेश्वर ही जानता है।” जब पौलुस ने प्रकाशन देखा, तब वह नहीं जानता था कि उसकी आत्मा शरीर के बिना स्वर्गलोक गई या शरीर के साथ गई। इन वचनों के द्वारा, हम समझ सकते हैं कि पौलुस के पास ऐसा विचार था कि शरीर के अलावा आत्मा का अस्तित्व है। अगर उसने सोचा होता कि आत्मा का अस्तित्व नहीं है, तो वह इस भाव का उपयोग न करता था, “न जाने देहसहित, न जाने देहरहित परमेश्वर ही जानता है।”

4. आत्मा के बारे में प्रेरित पतरस के विचार

पतरस ने हमेशा उन वचनों को याद रखा जो यीशु ने स्वर्ग जाने से पहले उससे कहे थे।

“मैं तुझ से सच सच कहता हूं, जब तू जवान था तो अपनी कमर बांधकर जहां चाहता था वहां फिरता था; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा तो अपने हाथ फैलाएगा, और दूसरा तेरी कमर बांधकर जहां तू न चाहेगा वहां तुझे ले जाएगा।” उसने इन बातों से संकेत दिया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा… यूह 21:18–19

पतरस ने अपना सुसमाचार का जीवन समाप्त करने से पहले उन वचनों को याद रखा जो यीशु ने उसके बारे में कहे थे, और वह चिंतित था कि उसकी मृत्यु के बाद संतों के साथ क्या होगा, और इस प्रकार लिखा;

… तौभी मैं तुम्हें इन बातों की सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूंगा। मैं यह अपने लिये उचित समझता हूं कि जब तक मैं इस डेरे में हूं, तब तक तुम्हें सुधि दिला दिलाकर उभारता रहूं। क्योंकि यह जानता हूं कि मेरे डेरे के गिराए जाने का समय शीघ्र आनेवाला है, जैसा कि हमारे प्रभु यीशु मसीह ने मुझ पर प्रगट किया है। इसलिये मैं ऐसा यत्न करूंगा कि मेरे कूच करने के बाद तुम इन सब बातों को सर्वदा स्मरण कर सको। 2पत 1:12–15

पतरस ने अपनी मृत्यु का ऐसा वर्णन किया कि उसका डेरा गिराया जाएगा। उसके डेरे के गिराए जाने के बारे में उसने इस प्रकार वर्णन किया कि वह कूच करेगा। यहां, शरीर के डेरे से जो कूच करता है, वह उसकी आत्मा है, है न? जब पतरस की आत्मा शरीर में निवास करती है, तब शरीर पतरस का डेरा है; लेकिन जब उसकी आत्मा चली जाती है, तब शरीर(डेरा) नष्ट होता है और मिट्टी में लौट जाता है।

हमें प्रेरितों के विचारों को जानना चाहिए ताकि हम जान सकें कि प्रेरितों ने यीशु से किस प्रकार की शिक्षा पाई। प्रेरितों के विचारों के द्वारा जिनका अभी तक हमने अध्ययन किया, हम समझ सकते हैं कि उन्होंने यीशु से यह शिक्षा पाई कि मनुष्य की आत्मा का अस्तित्व है।

5. असली “मैं” के लिए जीवन

हम जीवन जीते समय, अक्सर सोचते हैं, “मैं क्या हूं?”

मेरा सही अस्तित्व शरीर नहीं, बल्कि शरीर के अन्दर आत्मा है। मैं, ठीक ठीक कहें तो मेरी आत्मा “शरीर” नामक डेरे में रहती है। इसका मतलब है कि इस पृथ्वी पर का जीवन सब कुछ नहीं है। जब हम पिकनिक या कैम्पिंग के लिए जाते हैं, तब हम कुछ दिनों तक अस्थाई तम्बू में रहते हैं। ठीक इसी तरह से इस शरीर में जीवन जीना सिर्फ कुछ समय तक अस्थाई तम्बू में जीने जैसा है।

अगर हम सिर्फ अपने शरीर के लिए जीएं, तो हम सिर्फ डेरे के लिए जीने वाले लोग होंगे। क्या हमें डेरे के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए नहीं जीना चाहिए?

जब हम विश्वास का जीवन जीते हैं, हम कभी–कभी अपने शारीरिक जीवन की तरफ झुक जाते हैं। जब तक हम शरीर में हैं, हम अपने शारीरिक जीवन को नकार नहीं सकते। मगर यह कितना व्यर्थ और मूर्ख होगा यदि हम सिर्फ डेरे के लिए जीएं जो कुछ समय तक मौजूद होने के बाद आखिर में नष्ट होगा?

भले ही हम पापों के कारण डेरे में रहते हैं, लेकिन हमने मसीह के फसह के द्वारा छुटकारा, यानी पापों की क्षमा पाई है, और चिरस्थाई भवन जो परमेश्वर से बनाया गया है, हमारा इंतजार कर रहा है। तो यह बहुत स्पष्ट है कि पृथ्वी पर रहते समय हमें किस पर और ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं। 2कुर 4:18

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