
मैं पैदा होने से पहले ही चर्च ऑफ गॉड में जाती आई हूं। जिसका अर्थ है कि मैं बचपन से ही चर्च ऑफ गॉड की सदस्य हूं।
जब मैं माध्यमिक स्कूल में थी, तब मैंने अपनी माता के विश्वास पर नहीं, परन्तु अपने स्वयं के विश्वास पर खड़ा रहना शुरू किया। जब मैं स्कूल में अपने अन्य दोस्तों से मिलती थी जिनका धर्म मुझसे अलग था, तो मैं सोचती थी कि, ‘वह कौन सा सत्य है जो स्वर्ग के राज्य तक मेरी अगुआई कर सकता है?’
इस प्रश्न का जवाब मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा। जब मैंने मेहनत से सिय्योन में बाइबल का अध्ययन किया, तो मैं नई वाचा के सत्य को सही ढंग से समझ सकी।
लेकिन जब मैं हाई स्कूल में थी, तो मेरे विश्वास के जीवन में रुकावट आ गई। मुझे अपने दोस्तों के साथ घूमना बहुत अच्छा लगता था, और इसने मेरे जीवन का संतुलन बिगाड़ दिया। मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं देती थी और अक्सर देर रात को घर वापस आती थी। मैं शायद ही कभी आराधना करके परमेश्वर के साथ संबंध को बनाए रखती थी।
मैं देर से किशोरावस्था की नाजुक मोड़ पर पहुंची। जब कभी मैं अपने कुछ खास दोस्तों के साथ होती थी, तब मैं अपनी सीमाओं के पार हो जाती थी और भावात्मक रूप से पेश आती थी और बिना किसी विचार के हर एक क्षण का आनन्द लेती थी। मैं अपने परिवार के सदस्यों की चिंता की भी परवाह नहीं करती थी।
लेकिन मैं हर समय खुश नहीं रहती थी। पता नहीं क्यों, जब कभी मैं अपनी मर्जी से कुछ करती थी, तो कुछ था जो मेरे विवेक को चुभाता था। दोस्तों के साथ कुछ अच्छा समय बिताने के बाद भी हमेशा मुझे मन में खाली–खाली सा लगता था। निस्संदेह, मैं जानती थी कि वह किस चीज का संकेत था। जब कभी ऐसा होता था, तो मैं परमेश्वर के बारे में सोचती थी।
लेकिन फिर भी मुझमें इतना साहस नहीं था कि मैं अपनी जीवन शैली बदल देती। मुझे डर था कि यदि मैं अपने दोस्तों से अलग कुछ व्यवहार करूंगी तो वे सब मुझसे दोस्ती नहीं रखेंगे। हर दिन, मैं अपने आपको कसूरवार समझती थी।
तब मेरी किशोरावस्था के अंत में एक अनपेक्षित घटना हुई; एक छोटी सी गलतफहमी के कारण एकदम से मेरे दोस्तों से मेरा संबंध टूट गया। इससे मुझे नए दोस्त बनाने और मेहनत से पढ़ाई करने का मौका मिला।
मुझे लग रहा था कि जैसे मेरे लंबे समय से चलते आ रहे भटकाव का अंत आ रहा था, लेकिन स्नातक होने के बाद और भी कठिन समय आया। 20 साल की होने पर, जो मैं पहले स्कूल के दिनों में मनमर्जी से करती थी, वह मेरे लिए एक विशेषाधिकार बन गया जिसे एक वयस्क होने के तौर पर मैं भोग सकती थी।
परमेश्वर की इच्छा की उपेक्षा कराने वाले बहुत से प्र्रलोभनों के कारण जब कभी मुझमें आंतरिक संघर्ष या अफसोस होता था, तब जैसे मेरे हाई स्कूल के समय में होता था, मेरा विवेक मुझे चिताता था कि एक परमेश्वर की सन्तान के रूप में मुझे अब वह सब नहीं करना चाहिए।
बचपन से ही मेरे पास विश्वास था, चाहे वह बड़ा नहीं हो। भले ही मैं सभी आराधनाएं नहीं करती थी, लेकिन आराधना करने से मिलने वाली आशीषें मुझमें कभी न रुकी थीं। वही आशीषें मेरी आत्मा को परमेश्वर के साथ बांधे रखने वाली डोरी बनी थीं। मुझे लगता है कि कुछ खास मौकों पर उसी डोरी ने मुझे पकड़कर रखा था। लेकिन अपने भटकाव से पूरी तरह से बाहर आने के लिए यह इतना काफी नहीं था।
उसी समय के दौरान, प्रथम नए गीत महोत्सव की तैयारी के लिए युवा और छात्र सदस्य अक्सर इकट्ठे होते थे। मैं भी बहुत बार सिय्योन में गई।
अपनी ही समान उम्र के भाइयों और बहनों के साथ नए गीतों का अभ्यास करने में बड़ा मजा आया। जब कभी मैं उन नए गीतों के मूल्य के बारे में सोचती थी जिन्हें केवल परमेश्वर की सन्तान गा सकती हैं, तो मुझे बहुत ही अच्छा लगता था। मुझे दिल को छू लेने वाली सुंदर कहानियां भी पसंद होती थीं जो मीटिंग के दौरान भाई और बहनें मुझसे कहते थे। जब भी मीटिंग के बाद घर वापस जाती थी, तो मुझे मन में बड़ी प्रशंसा होती थी।
जब मेरी आत्मा फिर से शांति पा रही थी, उसी समय पतझड़ के पर्व शुरू हुए। वो पर्व उन पर्वों से जिन्हें उस समय तक मैंने मनाया था, बिल्कुल अलग लग रहे थे। इसका कारण केवल यह नहीं था कि मैं उस समय आत्मिक खुशी को थोड़ा–थोड़ा जानने लगी, बल्कि यह झोपड़ियों के पर्व के प्रचार समारोह में दिए गए स्वर्गीय माता के प्रोत्साहन के संदेश के कारण था। इसने मुझ पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाला। जब मैंने माता का संदेश सुना, तब मुझे अपने सब पाप याद आ गए जो मैंने लड़कपन में किए थे।
जब मैं अपनी पसंद की चीजों के पीछे समय बर्बाद कर रही थी, तब माता हर समय मेरे साथ थीं और अपने टूटे हुए मन से मुझे देख रही थीं। जब मैंने सोचा कि मुझे वैसा करते देखकर माता का मन कितना टूट गया होगा, मेरे चेहरे पर पश्चाताप के आंसू बहने लगे।
‘वह माता के लिए कितना मुश्किल रहा होगा!’
मैं ऐसी सबसे ज्यादा अपरिपक्व संतान थी जिसने स्वर्ग में पाप किया था और इस पृथ्वी पर भी माता के हृदय को तोड़ रही थी। भले ही माता ने स्वयं लंबे समय तक तूफानों का सामना करके अपना असीमित बलिदान किया है, फिर भी स्वर्ग के राज्य की खुशी का एहसास कराने के लिए उन्होंने हमेशा मुझे शक्ति और हिम्मत प्रदान की।
चूंकि मैंने माता को बहुत सी चिंताएं दी थीं, अब से मैं अपने पूरे मन से माता की मदद करना चाहती थी। परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले सुसमाचार के कार्य में सहभागी होकर माता का बोझ थोड़ा सा हल्का करने का मन बनाकर, मैंने प्रचार समारोह में पूरा प्रयास किया।
मैंने प्रत्येक सेकंड में आत्मा बचाने की कोशिश करते हुए भाइयों और बहनों के साथ प्रचार किया, और परमेश्वर ने मुझे बहुत से फलों की आशीष दी। मैंने अपनी आंखों से देखा कि सिय्योन के सदस्यों से मिलकर दुखी आत्माएं कितनी खुश हो जाती हैं, और मैंने सुबह में, दोपहर में और शाम में निरंतर फल पैदा किए।
चाहे वह थोड़ा सा ही समय था, मैंने अपने दोनों पांवों में सूजन होने तक बिना आराम किए स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार मेहनत से प्रचार किया। प्रत्येक आत्मा जो परमेश्वर के वचनों पर ध्यान देती थी, बहुत ही बहुमूल्य लगती थी। मैंने धन्यवाद दिया कि इस पर्व के दौरान चाहे वह थोड़ा सा ही हो, मैं माता के मन को नाप सकी।
वर्ष 2015 समाप्त हो गया, लेकिन प्रचार समारोह का जोश और खुशी अभी भी नहीं रुकी है। अब नए वर्ष 2016 का आधा समय बीत गया है, लेकिन मैं अभी भी व्यस्त हूं। चूंकि मैं अभी–अभी विश्वविद्यालय में आई हूं, मैं कैंपस में सत्य की ज्योति को फैलाने के लिए मेहनत से परमेश्वर के वचनों का अध्ययन कर रही हूं, और पहले के समान फिर से न भटक जाने के लिए हमेशा सिय्योन में जाती हूं।
मुझे प्रतिदिन सिय्योन में जाकर परमेश्वर की इच्छा के अनुसार एक पवित्र जीवन जीने का प्रयास करते हुए देखकर, मेरी मां रोने लगीं। मेरे पिता जो अपनी भावनाओं को अच्छी तरह से व्यक्त नहीं कर सकते, कहते हैं, “मेरी बेटी सबसे अच्छी है!” और उन्हें खुशी है कि उनकी अच्छी बेटी उन्हें वापस मिल गई है। मेरी बड़ी बहन मुझमें आए बदलाव को देखकर असहज महसूस करती है। मेरा बड़ा भाई जो मेरे भटकाव के चरम दौर में सेना में गया था, इस साल वापस आया है। मुझे लगता है कि उसके लिए मुझमें आया बदलाव अकल्पनीय है, क्योंकि वह मुझे देखकर हमेशा परमेश्वर की स्तुति करता रहता है।
मेरे परिवार के सदस्य जो पहले मेरे भटकाव के कारण मेरी चिंता करते थे, अब जब भी अपना मुंह खोलते हैं, केवल एक दूसरे की प्रशंसा करते हैं और परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। मेरी मां और पिता ने सत्य से प्रेम करनेवाली एक आत्मा को यरूशलेम माता के बारे में प्रचार करके सिय्योन में अगुआई की है। मैं मानती हूं कि मेरे परिवार में स्वर्गीय माता का यह वचन पूरा हुआ है कि यदि युवा सदस्यों का सुसमाचार का कार्य अच्छे से होता है तो सब कुछ अच्छा हो जाता है।
प्रतिदिन खुशी उमड़ती रहती है। मैं परमेश्वर की इच्छा के बारे में सोचती हूं जिन्होंने मुझे गहरी नींद से जगाया और मुझे बदलने दिया और सुसमाचार के कार्य की खुशी को महसूस कराया। मुझे लगता है कि परमेश्वर की इच्छा मुझे यह समझाने की थी कि परमेश्वर के साथ कुछ भी नामुमकिन नहीं है।
ऐसी चीजें थीं जिन्हें मैं केवल इसी विचार से करने से हिचकिचाती थी कि अपने पिछले समय के व्यवहार के कारण मैं परमेश्वर की महिमा को छिपा दूंगी। लेकिन परमेश्वर पर निर्भर होकर और उनसे सहायता मांगकर, मैं उन चीजों को भी कर पाई। अपने दोस्तों के सामने पहली बार अपने विश्वास को अंगीकार करना उनमें से एक बात थी। मेरी चिंता के विपरीत, मेरे दोस्तों ने स्वीकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई। उनमें से एक दोस्त ने जो एक–दो बार सिय्योन में आई थी, रास्ते में चलते हुए चर्च ऑफ गॉड की इमारत देखकर उसकी तस्वीर खींची और मुझे भेजकर कहा, “यह तुम्हारा चर्च है न? वह सच में सुंदर है!”
दूसरी एक दोस्त ने अपनी दोस्त से कहा कि हमारे चर्च ने कोरिया के राष्ट्रपति का प्रशस्ति पत्र पाया है, और अन्य एक दोस्त ने मुझसे कहा कि जब भी तुम्हारे चर्च में कुछ कार्यक्रम हो तो मुझे जरूर बुलाना। मैं एक–एक करके उन सब को सिय्योन में बुलाने के लिए उत्साही हूं। चूंकि परमेश्वर मेरे साथ हैं, इसलिए मैं विश्वास करती हूं कि सब कुछ अच्छे से हो जाएगा।
निस्संदेह, ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें मैं करना चाहती हूं या जिन्हें मुझे करना चाहिए। लेकिन सबसे पहले मैं सुसमाचार के लिए सबसे सुंदर पात्र के रूप में नए सिरे से जन्म लेना चाहती हूं, जिसका माता उपयोग कर सकें। मैं प्रार्थना करती हूं कि वह आत्मिक प्रचुरता जो माता से मुझे प्राप्त हुई है, और भी ज्यादा फैल जाए और संसार की छोर तक पहुंच जाए। एक व्यक्ति से शुरू हुआ बदलाव अभी समाप्त नहीं हु ।