
इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी स्टूडेंट बाइबल अकादमी(IUBA) का विदेशी संस्कृति अनुभव चर्च ऑफ गॉड का एक शिक्षण कार्यक्रम है, जिसके द्वारा स्कूल की छुट्टियों के दौरान कॉलेज के छात्र विदेश जाते हैं और विभिन्न गतिविधियां आयोजित करके अपने अनुभवों का विस्तार करते हैं। अर्थपूर्ण छुट्टियां बिताने की इच्छा से मैंने भी खुशी से उस कार्यक्रम में भाग लिया।
मैं इंडोनेशिया के जकार्ता गई। मैं वहां बहुत सी गतिविधियों में से एक स्वयंसेवा कार्य को नहीं भूल सकती जो मैंने अनाथालय पर किया।
उनके यहां जाने से एक सप्ताह पहले, हमने इस बारे में बहुत विचार किया था कि हम कैसे बच्चों को एक अनमोल स्मृति दिलाएं। गाइड ने हमें बताया कि बच्चे सिर्फ इस बात में ही बहुत दिलचस्पी दिखाएंगे कि हम कोरिया से हैं, इसलिए हमने पारंपरिक कोरियाई खेल तैयार किए जैसे कि जेगीछगी(कोरियाई हैकी–सैक खेल) और दाकजीछीगी(कोरियाई मिल्क कैप खेल)। हमने खेल शुरू होने से पहले माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए डांस दिखाने और कार्यक्रम के दौरान फेस पेंटिंग करने की योजना बनाई।
लेकिन समस्या यह थी कि कैसे हम उसके लिए जरूरत की सभी वस्तुओं को तैयार करें। इंडोनेशिया में जेगी(हैकी–सैक) और दाकजी(मिल्क कैप)जैसे कोरियाई खिलौनों को खोजना लगभग असंभव था। आपस में अनेक बार विचार–विमर्श करने के बाद, हमने सफेद कपड़े से जेगी और कैलेंडर के कागज से दाकजी बनाए। हमने सफेद कपड़े को पेंट किया और कागज पर चित्र बनाए, लेकिन हम इस बात को लेकर चिंतित थे कि बच्चों को वह पसंद आएगा या नहीं।
कार्यक्रम के दिन हम एक घंटा कार चलाकर अनाथालय पहुंचे। बच्चों ने उज्ज्वल चेहरों के साथ हमारा स्वागत किया। जब हमने बच्चों के गीत पर डांस किया, तब उन्होंने अपनी जिज्ञासु व चमदार आंखों से हमें देखा।
उसके बाद कोरियाई पारंपरिक खेल शुरू किए गए। वे जेगी को कितनी बार पैरों से ठुकराते हैं और दाकजी कितना जीतते हैं, इस प्रकार प्रतिस्पर्धा करते हुए वे सभी खुश थे, और उन्हें फेस पेंटिंग भी पसंद आया। जब बच्चों के चेहरों को पेंट किया जा रहा था, तब वे उत्सुक होकर चारों ओर देख रहे थे कि उनके आसपास क्या हो रहा है। वे बहुत भोले और प्यारे थे।
भले ही वहां एक उत्सव की तरह बेहद उत्साह का माहौल था, लेकिन मुझे बच्चों के लिए खेद महसूस हुआ, क्योंकि हमारा कार्यक्रम बहुत साधारण था। मैं अपने मन से यह विचार नहीं निकाल सकी।
‘हम कोरिया से आए, और हम बस यही उनके लिए कर सकते हैं?’
मैंने बाद में सुना कि जब खेल अपने चरम पर था, एक बच्ची गाइड के पास गई और इंडोनेशियाई भाषा में उससे पूछा,
“कोरियाई भाषा में ‘आप वापस कब आएंगे?’ कैसे कहते हैं?”
मुझे लगता है कि बच्ची को वह कहने में शर्म महसूस हुई थी, क्योंकि उसने हम में से किसी से भी वह नहीं कहा था। भले ही मैं व्यक्तिगत रूप से उसे वह कहते हुए नहीं सुन पाई थी, परन्तु गाइड से उसके बारे में सुनते ही मैं भावुक हुई। मुझे लगता है कि भले ही हमें उनके प्रति खेद महसूस हुआ, लेकिन बच्चे दिन भर खुश थे।
मैं अब भी नहीं जानती कि हमने वहां जो किया, वह यह कहने के लिए काफी था या नहीं कि हमने उनकी अच्छे से सेवा की है। लेकिन हमने यह बात निश्चित रूप से जान ली है कि एक छोटा सा कार्य भी किसी को बहुत प्रेरित कर सकता है और बड़ा आनन्द दे सकता है, ठीक जैसे हमारे छोटे स्वयंसेवा कार्य ने बच्चों को मजेदार स्मृति दिलाई है।
इस अनुभव के आधार पर मैंने संकल्प किया कि काम चाहे छोटा सा हो, दूसरों के प्रति विचारशील होकर करते हुए मैं संसार में प्रेम और प्रोत्साहन पहुंचाऊंगी।