एक शोकसंतप्त व्यक्ति की सहायता कैसे करें?

समझ और सहानुभूति सबसे अच्छी सांत्वना है। आइए हम साथ में शोक मनाएं और साथ में उस पर काबू पाएं।

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सभी लोग अपने जीवन में किसी को गंवाने का छोटा या बड़ा अनुभव करते हैं। हो सकता है कि वे अपने मित्रों को, परिवार जनों को, सहकर्मियों को, परिचितों को गंवा दें। हर व्यक्ति के अनुसार किसी को गंवाने का शोक और दर्द अलग अलग होता है, लेकिन अपने परिवार जनों को गंवाने का शोक सबसे बढ़कर होता है।

किसी परिवार के सदस्य को गंवाने का दु:ख एक भावना है जिससे हर कोई बचना चाहता है, लेकिन किसी को भी क्षणिक तौर पर या स्थायी रूप से, यह दु:ख झेलना पड़ सकता है। छोटे बच्चे अपने दादा-दादी को गंवाते हैं जिनके वे बहुत निकट थे; तितर-बितर हुए परिवार के सदस्य चाहने पर भी एक दूसरे से नहीं मिल सकते; कुछ बेटे और बेटियां अपने पिता को याद करते हैं जो कई सालों तक बीमारी से जूझने के बाद चल बसे थे; कुछ पत्नियां अपने पति को गंवा देती हैं जिनके साथ उन्होंने अपना आधा जीवन गुजारा था; और कुछ माता-पिता अपने छोटे बच्चों को अपने दिल में दफनाते हैं जिन्हें उन्होंने एक दुर्घटना में खो दिया था। यदि हमारे आसपास ऐसा कोई व्यक्ति है, तो हम कैसे उसकी सहायता कर सकते हैं?

किसी परिवार के सदस्य को गंवाने के उत्तर प्रभाव

जब कोई अपने परिवार के सदस्य को खो देता है, तो वह सदमा, घबड़ाहट, और शोक जैसी नकारात्मक भावनाओं की गिरफ्त में आ जाता है। विशेष रूप से, अचानक और अनपेक्षित ढंग से किसी परिवार के सदस्य को गंवा देना एक स्थायी मानसिक आघात के रूप में रह सकता है और कुछ समय के बाद भी वह स्वाभाविक रूप से ठीक नहीं होता है।

मानसिक आघात या पोस्ट-ट्रोमैटिक तनाव विकार (PTSD) एक ऐसा उत्तर प्रभाव है जो किसी युद्ध, तबाही या त्रासदी जैसी मनुष्य के साधारण अनुभवों से परे भयानक घटनाओं के अनुभव के बाद पैदा होता है। लेकिन, हाल ही में किया गया एक शोध में कहा गया है कि वह केवल युद्ध या त्रासदी के द्वारा ही नहीं होता, परन्तु निजी घटनाएं, किसी की मृत्यु या किसी के द्वारा धमकाए जाने जैसे अपमान से भी हो सकता है।

पोस्ट-ट्रोमैटिक तनाव विकार के तीन बड़े लक्षण हैं। पहला, वह छोटी छोटी बातों के लिए भी बहुत संवेदनशील होता है। दूसरा, वह छोटी बातों से भी बहुत आसानी से डर जाता है। तीसरा, उसे सोने में परेशानी होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस घटना से मिले आघात के कारण, उसकी अनुकंपी तंत्रिका तनाव से निपटने में बहुत सक्रिय होती है। वह वही घटना को बार बार याद करता रहता है भले ही उसे बीते काफी समय हो गया हो। जैसे कि कहा जाता है, “एक बार मार खाने पर, दो बार शर्म आती है,” जब वह किसी ऐसी वस्तु या परिस्थिति का सामना करता है जो उसे उस घटना की याद दिलाती है, तो वह उस पिछली घटना के कारण भय और दहशत का अनुभव करता है। यदि वह ऐसे लक्षणों से लगातार गुजरता रहे, तो वह वास्तविकता को सपना समझने लग सकता है, और यहां तक कि वह उस घटना से संबंधित यादों को मिटा भी दे सकता है।

ऐसा कहा जाता है कि 40 प्रतिशत बच्चे वयस्क होने से पहले कम से कम एक घटना से गुजरे होते हैं जिसके कारण मानसिक आघात लग सकता है। हालांकि, ऐसा नहीं कि हर कोई जिसने कुछ मुश्किल का सामना किया है, मानसिक आघात से पीड़ित होता हो। उदासी एक साधारण प्रतिक्रिया है, लेकिन यदि कोई उस पर काबू न पा सके, तो वह एक मानसिक आघात बन सकता है। इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि मुश्किल से गुजरनेवाले लोगों के लिए सांत्वना देनेवाले की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।

गलतियां जिन्हें लोग किसी को सांत्वना देने की कोशिश करते समय करते हैं

जिसने अपने प्रियजन को खोया हो, उनके दु:ख को नापना मुश्किल है। चूंकि उनका दु:ख गहरा होता है, तो उन्हें सांत्वना देना भी मुश्किल होता है। लोग नहीं जानते कि ऐसी गहरे शोक में पड़े व्यक्ति से क्या कहना चाहिए, इसलिए वे ऐसा कहते हैं, “मैं समझता हूं कि आपको कैसा महसूस हो रहा है।” चाहे उन्होंने इस बात को सांत्वना देने के लिए कहा हो, अपने प्रियजनों को खोनेवाला व्यक्ति ऐसे शब्दों के लिए प्रतिरोधी महसूस कर सकता है। चूंकि सभी के संबंध अलग-अलग होते हैं, इसलिए चाहे लोगों को एक समान अनुभव हुए हों, फिर भी किसी प्रियजन को खोने के दु:ख की भावना हर व्यक्ति में एक समान नहीं हो सकती।

लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से डरते हैं, खासकर नकारात्मक भावनाओं को। कुछ लोग उन्हें यह कहते हुए सांत्वना देने की कोशिश करते हैं, “अपने आपको संभालो और मजबूत बनो” या “इतने दु:खी मत हो जाओ।” हालांकि, ऐसे शब्द सही नहीं हैं, क्योंकि वे शोकसंतप्त व्यक्ति को उसकी भावनाएं व्यक्त करने से रोकते हैं।

सांत्वना के कुछ और शब्द भी हैं जैस कि, “सब ठीक हो जाएगा” और “आपको जीवन में तो आगे बढ़ना चाहिए।” चाहे ये सब शब्द उनके सच्चे मन से आते हैं, लेकिन वे अपने परिवारजनों को खोने के शोक से पीड़ित व्यक्ति की सहायता नहीं कर सकते; वे शोकसंतप्त व्यक्ति को सांत्वना के शब्दों के बदले केवल सलाह के शब्दों की तरह लगते हैं। शोक में पड़े लोग चाहते हैं कि कोई उनके मन की बात को सुने, न कि कोई उन्हें समस्या का समाधान करने का मार्ग सिखाए या उन्हें कोई सलाह दे।

लोग जिन्होंने दु:ख को महसूस किया है, कभी-कभी अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। लेकिन, कुछ समय तक उनकी कहानी सुनने के बाद, कुछ लोग अचानक से विषय बदल देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे उनके शोक को साझा करने के लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन, यदि आप उन्हें सांत्वना देना चाहते हैं, तो आपको उनके साथ रोने के लिए तैयार रहना चाहिए।

लोग यह सोचकर बड़ी गलती करते हैं कि शोकसंतप्त लोग हमेशा उदास ही दिखेंगे। हर किसी के पास शोक से निपटने का एक अलग तरीका होता है, और लोग अक्सर एक ही समय में मिश्रित भावनाओं को महसूस करते हैं। उनके क्षणिक खुश दिखने का मतलब यह नहीं है कि वे पूरी तरह से अपने शोक से मुक्त हो गए हैं।

उससे बढ़कर, कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि शोकसंतप्त लोगों को जल्दी से ऐसी साधारण अवस्था में आ जाना चाहिए जैसे कुछ हुआ ही न था। परन्तु, यह अच्छा होगा कि वे अपने विचारों को बदल दें। उदासी एक भावना है जो हर एक को महसूस होती है, और उसे दबाना नहीं चाहिए। लोग कहते हैं कि एक दिन के बीतने पर शोक आधा हो जाता है। इसका अर्थ है कि वह कम होता है, लेकिन कभी गायब नहीं होता। जब एक जख्म भर जाता है, वहां एक हल्का सा निशान बाकी रहता है। शोक की भावना को ठीक करना मुमकिन है, लेकिन वह पूरी तरह से गायब नहीं हो सकती।

एक सांत्वना देनेवाली बात: “हम आपके साथ हैं”

हाल ही में, एक शोध परिणाम कहता है कि निराशा, व्यग्रता, हृदय रोग और कैंसर की घटनाएं उन लोगों में कम होती हैं जिन्हें अच्छे से समर्थन और प्रेम मिलता है। पीड़ा पर काबू पाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि आत्मविश्वास पुन:प्राप्त किया जाए और एक स्थिर संबंध को फिर से स्थापित किया जाए। इसलिए चाहे वे कितना भी अच्छा इलाज करवाएं, वे एक स्थिर और विचारशील संबंध के बिना ठीक नहीं हो सकते। वे जो शोक से गुजर रहे हैं, तब अच्छे से ठीक हो सकते हैं, जब उन्हें एक अर्थपूर्ण और ईमानदार संबंध मिले।

दया करना या सहमत करना नहीं, बल्कि सहानुभूति ही सबसे पहला कदम है जो किसी शोकसंतप्त व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए लेना चाहिए। उनके लिए दया या खेद महसूस करने से उनकी सहायता नहीं होती। सहानुभूति ऐसी योग्यता है जिसके द्वारा दूसरे व्यक्ति के एहसास और भावनाएं बांट सकते हैं, और उसे हमारे दिमाग से नहीं समझा जा सकता; वह हमारे हृदय से आना चाहिए। हमें ईमानदारी से यह भी समझने की आवश्यकता है कि वे कितनी अधिक निराशा और अकेलापन महसूस कर रहे हैं और उन्हें कितनी अधिक सहायता की जरूरत है। स्वयं को उनके स्थान पर रखकर, सही समझ के साथ भावात्मक ढंग से उन्हें समर्थन देना, और उनकी भावनाओं को बांटना उन्हें शांति दिलाने के लिए सांत्वना और सहायता देने की शुरुआती बातें हैं।

एक बार आप वही भाषा में बात करना शुरू करें, तो वे थोड़ा थोड़ा करके अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं, और तब आप उनसे बात कर सकते हैं। उनके अनुभव और उनकी भावनाओं के बोझ को उन पर से दूर करने से उन्हें शोक पर काबू पाने की शक्ति मिलती है। उनके घावों को शब्दों में बयान करना उन्हें चंगा करने का एक तरीका है, लेकिन यदि वे उन बोझ को उतारने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको उन पर दबाव नहीं देना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें उस घटना को फिर से याद करके दु:ख होगा। कभी-कभी, एक मददगार हाथ बहुत से शब्दों से कहीं अधिक सहायता करता है। यदि उन्हें ऐसा लगे कि वे किसी ऐसे व्यक्ति से जुड़े हुए हैं जो हमेशा उनका समर्थन करता है और उनके दु:ख को समझता है, तो उनके मनके घाव धीरे-धीरे करके ठीक होते जाते हैं।

कुछ लोग जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है, उस घटना का कारण खोजने की कोशिश करते हैं और स्वयं को दोषित मान सकते हैं और यह सोचते हुए कसूरवार महसूस कर सकते हैं कि, ‘यह सब मेरी गलती है’ या ‘अगर मैंने वैसा न किया होता तो अच्छा होता।’ इसलिए हमें उन्हें अपने दु:ख को दबाने के लिए नहीं, वरन् उसे व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उससे बढ़कर, खुशी महसूस करना ऐसी कोई बात नहीं जिसके लिए उन्हें कसूरवार महसूस करना चाहिए। उसके बदले उन्हें आराम करना, खाना, अपनी देखभाल करना और चाहे छोटी चीज हो, उन्हें बहाल करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें उन्हें इस अभिप्राय से समर्थन करना चाहिए। यह भी अच्छा होगा कि हम उनके घर के काम में उनकी सहायता करें या उनके बच्चों को संभालें और ऐसा करते हुए उन्हें शोक पर काबू पाने के लिए समय देने की सहायता करें।

जब वे सोचते हैं कि वे अकेले हैं और कोई उनकी सहायता नहीं कर रहा है, तो उनका शोक दुगुना हो जाता है और उन्हें और ज्यादा पीड़ा होती है। लोग जो किसी को खोने के दु:ख में होते हैं, उन्हें प्रेम की आवश्यकता होती है। प्रेम की भावना कि कोई उन्हें सच्चे मन से समझता है और उनकी भावनाओं के प्रति सहानुभूति रखता है, उन्हें शोक पर काबू पाने की हिम्मत देगी।

“बोस्टन स्ट्रॉन्ग!”

बोस्टन मैराथन में हुई बमबारी के कारण तीन लोग मारे गए थे और 260 लोग घायल हुए थे। एक साल के बाद 21 अप्रेल, 2014 में 118वीं बोस्टन मैराथन का आयोजन किया गया, और पिछले साल से भी अधिक लोगों ने उसमें हिस्सा लिया था। बोस्टन शहर ने सभी लोगों को आपस में एक दूसरे को गले लगाने के लिए “बोस्टन स्ट्रॉन्ग” जैसा एक नारा बनाया था, और बोस्टन शहर के बहुत सी जगहों में वह लगाया गया था। पीड़ित लोग, उनके परिवार और पूरा शहर एक परिवार जैसा बन गया और उन्होंने एक दूसरे को सांत्वना के शब्द भेजे। एक साल तक सहने के बाद, वह पीड़ा एक आशा में बदल गई।

हम अब मानसिक आघात के युग में जी रहे हैं। जिस प्रकार बोस्टन शहर ने किया, हमें भी मरुस्थल के बीच एक ओएसिस जैसे हमारे परिवार की अति आवश्यकता है जहां हम चंगे हो सकते हैं और थोड़ी देर के लिए आराम कर सकते हैं। आइए हम उनके लिए जो शोक के कारण पीड़ा में हैं, समझदारी और सहानुभूति के द्वारा एक परिवार की भूमिका निभाएं, ताकि हम उनके शोक को साझा कर सकें और उस पर काबू पाने के लिए उनकी सहायता कर सकें।