एक आदमी जिसने पत्थर पर ठोकर खाई

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एक आदमी मार्ग के किनारे चल रहा था। घने पेड़ों के बीच से आती धूप और ताजी हवा से उसे खुश और तरोताजा महसूस हुआ। अपने पूरे शरीर से प्रकृति की खुशबू महसूस करते हुए, वह अपनी आंखें बंद करके धीरे–धीरे चल रहा था। फिर वह जमीन पर पड़े एक नुकीले पत्थर से टकराकर फिसल गया । वह इतना क्रोधित हुआ कि उसने उस पत्थर को निकालने का फैसला किया। उसने सोचा कि खुरदुरे पत्थर को बाहर निकालना आसान होगा। लेकिन जितना अधिक उसने गहरी खुदाई की, उतना अधिक उसे महसूस हुआ कि पत्थर कितना बड़ा है। उसके कपड़े पसीने से सराबोर हो चुके थे, और सूर्य अस्त हो रहा था। तब उसे एहसास हुआ कि पत्थर को बाहर निकालने के लिए वह कितना मूर्खतापूर्ण प्रयास कर रहा था। उसने फिर से गड्ढे में वह मिट्टी डाल दी जिसे उसने यत्न से खोदकर निकाली थी, और उसने जमीन से बाहर निकले पत्थर के नुकीले हिस्से को ढंक दिया। तब, वह पत्थर पूरी तरह से नजरों से ओझल हो गया।

कभी–कभी, हम दूसरों की गलतियों पर ठोकर खाते हैं या उनके द्वारा आहत महसूस करते हैं। जब ऐसा होता है, तो उनकी गलतियों को ठीक करने की कोशिश करने के बजाय, आइए हम अपने हाथ बढ़ाकर उनकी गलतियों को गले लगाएं। पत्थर को बाहर निकालने की तुलना में उसे मिट्टी से ढंक देना ज्यादा आसान है। उनकी खूबियों की तुलना में, उनकी गलतियां शायद बहुत छोटी होती हैं।