माता के मन और माता के हाथों के साथ

काठमांडू, नेपाल से तेजेंद्र गौतम

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25 अप्रैल 2015 को दोपहर 12 बजे के आसपास नेपाल में 7.8 तीव्रता का बड़ा भूकंप आया। अचानक सब कुछ हिलने लगा और ऐसा लग रहा था जैसे आसमान गिर रहा हो और जमीन धंस रही हो। सदस्य जो शांतिपूर्ण सब्त का दिन मना रहे थे, वे जबरदस्त झटके से हक्के–बक्के रह गए; वे खंभे या रेलिंग को पकड़े रहे, और कुछ सदस्य अपना संतुलन खोकर गिर गए। उस दिन तक मैंने कभी नहीं जाना था कि भूकंप कितना भयावह हो सकता है।

जब झटका रुक गया, हमने बाहर निकलकर चारों तरफ देखा। अत्यधिक सौभाग्य की बात थी कि चर्च की इमारत को कुछ नुकसान नहीं हुआ था, और सभी सदस्य सुरक्षित थे। लेकिन काठमांडू के केंद्रीय भाग सहित बहुत सी जगहें बर्बाद हुई थीं; इमारतें बुरी तरह ढह गई थीं, और अनगिनत लोग इमारतों के मलबों के नीचे दब गए थे। भूकंप के झटकों का सिलसिला जारी रहने से लोगों में डर व्याप्त हो गया।

सिय्योन के सदस्य भी बड़े सदमे में थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत जुटाई और अपनी आस्तीनें ऊपर चढ़ाई। क्योंकि जीवितों की तलाश करना और तबाह हुए शहर में राहत और बहाली का काम करना अत्यावश्यक था। हमारा मुख्य काम ढह गई इमारतों के सभी खतरनाक भागों को निकालना था ताकि आगे कोई दूसरा नुकसान न हो सके। ढह गई दीवारों को पूरी तरह ध्वस्त करना, टूटी हुई ईंटों को हटाना, मलबों को हटाकर मार्ग बनाना… हमारा काम जारी रहा। हमने बेघर लोगों के लिए तम्बू भी खड़े किए, उन्हें भोजन प्रदान किया, और महामारी को फैलने से रोकने के लिए सड़कों की साफ–सफाई की।

चूंकि हम चिलचिलाती धूप में धूल से पूरी तरह सराबोर होकर काम करते थे, इसलिए काम समाप्त होने पर हमारे चेहरे इतने गंदे दिखते थे कि हम एक दूसरे को भी नहीं पहचान सकते थे। भले ही सदस्य कठिन परिश्रम से बहुत थके–हारे दिखते थे, फिर भी वे अगले दिन मरम्मत की जगह पर आते थे। भले ही मैं उनसे कहता था, “कल थोड़ा आराम कीजिए,” लेकिन वे मुस्कुराकर कहते थे, “हम थके नहीं हैं। हम कल फिर से आएंगे।”

दरअसल ज्यादातर सदस्य धनी नहीं हैं। लेकिन जिसका उन्होंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था, उस बड़ी आपदा से पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए उन्होंने अधिक बलिदान किया। वे माता के सदृश्य बने जो अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना केवल अपनी संतानों के लिए प्रेम से बलिदान करती हैं।

लोगों को सदस्यों के मार्मिक प्रयासों का एहसास हुआ होगा। यहां और वहां यह समाचार फैलने लगा कि सिय्योन के सदस्य पूर्णत: समर्पित होकर स्वयंसेवा कर रहे हैं। इसलिए जहां–जहां सदस्य पीली वास्कट पहनकर काम करने जाते थे, वहां–वहां लोग उनका मुस्कुराकर स्वागत करते थे। कुछ लोग हमारे लिए ठंडा पेय और बिस्कुट लाते थे, और जब हम थोड़ा आराम करते थे, तब कुछ लोग हमें बैठने के लिए ऐसी जगह देते थे जहां हम ठंडी छाया में आराम कर सकते थे। पुलिसवालों ने भी सदस्यों की तारीफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब कभी सदस्यों ने तारीफ सुनी, उन्होंने परमेश्वर को महिमा दी।

मुझे लगता है कि नेपाल को जैसा पहले था वैसा बनने के लिए बहुत ज्यादा समय लगेगा। इसके लिए जो सबसे ज्यादा आवश्यक है, वह प्रेम है। शहर का पुनर्निर्माण करने और घायल पीड़ितों का आलिंगन करने के लिए, हम नेपाली सदस्य माता के प्रेम को अभ्यास में लाने से नहीं रुकेंगे। हम बड़े आग्रह के साथ प्रार्थना करते हैं कि नेपाली जनता माता के प्रेम के द्वारा अपने जीवन में आशा और साहस पाए।