माता का प्रेम, मेरे जीवन का एक मोड़
हेलसिंकी, फिनलैंड से पेट्रा इडा एमिलिया रुकोजारवी
मेरा जन्म फिनलैंड में एक नास्तिक परिवार में हुआ। अपने बचपन में जब मैं अपने घर के आंगन में झूला झूल रही थी, अचानक मेरे मन में विचार आया कि एक दिन मेरे मरने का समय आएगा। मैं उस विचार को बिल्कुल सहन नहीं कर सकी और इस तथ्य को स्वीकार करना कठिन था कि किसी दिन मेरा अस्तित्व नहीं होगा। मैं हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक रहती थी कि क्यों मैं इस पृथ्वी पर रहती हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है और मरने के बाद मेरे साथ क्या होगा। किशोरावस्था के शुरू होने पर यह सवाल बड़ा होता गया, लेकिन मुझे कहीं भी उसका जवाब नहीं मिल सकता था।
व्यावसायिक स्कूल से ग्रेजुएट होने के बाद, मैं नई चीजों का अनुभव करने के लिए अमेरिका गई। मैं वहां “ओ पेर (au pairÁ एक विदेशी परिवार में रहते हुए उसका घरेलू कामकाज संभालने वाला है और वह उनके साथ रहकर विदेशी भाषा सीखता और सैलरी भी पाता है) कुछ महीनों बाद, मैं धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल सकी। एक दिन मैं वॉशिंगटन डी.सी. में काम करने वाली अपनी एक सहेली से मिलने गई। उससे मिलने जाने वाले मार्ग पर मैंने माता परमेश्वर के बारे में सत्य सुना। आम तौर पर मैं किसी भी धर्म को खारिज करती थी, लेकिन वह दिन कुछ अलग था। उस दिन जो बात हुई, उसे मैंने अपनी सहेली के साथ साझा किया और वह भी बाइबल का अध्ययन करना चाहती थी। मेरे पास प्रचारक का फोन नंबर था, तो मैंने उसे फोन किया और अपनी सहेली के साथ सिय्योन गई।
मैं उस पल को नहीं भूल सकती जब मैंने पहली बार सिय्योन में प्रवेश किया था। मुझे अपने घर में रहने से ज्यादा आरामदायक महसूस हुआ था। मुझे लगा जैसे मैं बादलों पर चल रही हूं। वह आरामदायक अनुभूति माता का अदृश्य प्रेम था जिन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरा। भले ही बहुत देर हो चुकी थी, लेकिन बाइबल का अध्ययन करते हुए समय कैसे बीत गया, इसका मुझे पता ही नहीं चला और थकान भी महसूस नहीं हुई। हमने माता परमेश्वर और सब्त के दिन के बारे में अध्ययन किया। जैसे ही मुझे एहसास और विश्वास हुआ कि यह सत्य है, मेरे मन में उत्तेजना उत्पन्न हुई। उस दिन मेरी सहेली और मैंने उद्धार की आशीष को प्राप्त किया। उसके बाद मैंने बाइबल का अध्ययन करना जारी रखा और सत्य का प्रचार करने में भी भाग लिया।
लगभग आधा वर्ष बीत गया, और मेरा विश्वास और सुसमाचार के कार्य के प्रति मेरा उत्साह अपने चरम पर था। परमेश्वर के पतझड़ के पर्वों को मनाते हुए, मैंने फैसला किया कि मैं वापस फिनलैंड जाकर वहां शुभ संदेश का प्रचार करूंगी। मेरे लौटने के कुछ महीने पहले से ही फिनलैंड में एक सुंदर सिय्योन स्थापित किया गया था और वहां अभी–अभी सुसमाचार के बीज बोए गए थे। जब मैंने बिना जोती हुई सुसमाचार की भूमि में फिनलैंड के सदस्यों के साथ वचनों का प्रचार किया, तब स्वर्गीय परिवार के सदस्य एक–एक करके इकट्ठे होने लगे। लेकिन फिनलैंड में ज्यादातर लोग वचन सुनना नहीं चाहते थे। भले ही वे अच्छे से सुनते थे, लेकिन वे आगे और अधिक जानने की कोशिश नहीं करते थे। फिर भी हमने बिना हार माने निरंतर परमेश्वर के वचनों का प्रचार किया।
वर्ष 2011 के वसंत में मेरे सामने विदेशी मुलाकाती दल में भाग लेने का मौका आया, तो मैं स्वर्गीय माता से मिल सकी जिन्हें मैं अपने सपनों में भी देखना चाहती थी। कोरिया की यात्रा के द्वारा सुसमाचार के कार्य के प्रति मेरा जोश और अधिक बढ़ गया और मेरा खाली हृदय माता के सच्चे प्रेम से भर गया। मैं स्वर्गीय माता के साथ कितनी आनन्दित और खुश थी, शब्दों में इसका वर्णन नहीं हो सकता। और पहली बार मुझे महसूस हुआ कि मैं स्वभाव से कितनी पापी हूं, और मैंने पश्चाताप किया। जैसे ही मैं अपने जलते हुए हृदय के साथ फिनलैंड लौटी, पिता और माता ने वहां एक शार्ट टर्म मिशन टीम भेजी। उनके साथ यत्न से प्रचार करते हुए, जब भी मैंने एक के बाद एक आत्माओं को उद्धार की ओर आते हुए देखा, तो मैं बहुत ही खुश थी।
बाद में सुसमाचार की नई भूमि को जोतने के लिए, मैं हेलसिंकी के उत्तरी भाग में स्थित टाम्परे गई। टाम्परे फिनलैंड का आर्थिक केंद्र है, जहां एक ऐसी कंपनी है जिसने एक बार मोबाइल फोन के विश्व बाजार का नेतृत्व किया था। वह मेरे गांव से गाड़ी के द्वारा करीब 30 मिनट की दूरी पर है, इसलिए वहां सुसमाचार का प्रचार करते हुए, मैं अपनी मां के साथ जिन्होंने पहले सत्य को ग्रहण किया था, बाइबल का अध्ययन कर सकी, और हमने एक साथ आराधना मनाई। उस दौरान मेरी मां का विश्वास पहले से अधिक बढ़ गया और वह अब सभी कठिनाइयों और परीक्षाओं पर जय पाकर अपने विश्वास को बनाए रख रही हैं। पर मैं बहुत खेदित थी, क्योंकि टाम्परे में बहुत सी आत्माओं ने सत्य को पूरी तरह महसूस नहीं किया। एक ओर मुझे पिता और माता के कष्ट और बलिदान का गहराई से एहसास हुआ, लेकिन दूसरी ओर सुसमाचार के कार्य के प्रति मेरा उत्साह ठंडा हो रहा था क्योंकि सुसमाचार का काम धीमी गति से ही चल रहा था। मैं अपने विश्वास के जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रही थी। मैं फिर हेलसिंकी लौटी और सुसमाचार के कार्य के लिए मेरा उत्साह फिर से जाग उठा, और पिता और माता ने मुझे फल की आशीष दी। लेकिन मेरे मन के एक गहरे कोने में यह अफसोस की भावना मौजूद थी कि मैंने वहां सुसमाचार के कार्य के लिए पर्याप्त मेहनत नहीं की थी।
उस बीच, मुझे बहन मिया के साथ जो मेरी फल थी, फिर से विदेशी मुलाकाती दल में शामिल होने का सौभाग्य मिला है। माता ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा कि मैंने कठिनाइयों से उबरकर अच्छा कार्य किया है। मैंने कभी किसी को नहीं बताया था कि टाम्परे में मैं किस तरह की कठिनाइयों से गुजरी थी। मैंने सिर्फ परमेश्वर के प्रति खेद महसूस करते हुए प्रार्थनाएं चढ़ाई थीं। लेकिन माता सब कुछ जानती थीं और उन्होंने मुझे सांत्वना दी। मुझे और अधिक स्पष्ट रूप से महसूस हुआ कि वह सच में परमेश्वर हैं जो हमारे मनों को जांचती हैं। जिस दिन मैं कोरिया में पहुंची, उस दिन से लेकर मेरे अपने देश वापस जाने के दिन तक, माता ने मेरी घायल और थकी हुई आत्मा की देखभाल की। माता के प्रेम के द्वारा, मेरी आत्मा फिर से हिम्मत जुटा सकी।
आज भी, मैं अपने हृदय में स्वर्गीय माता के प्रेम और बलिदान को रखकर उन आत्माओं को खोजती हूं जो संसार में किसी भी चीज से ज्यादा बहुमूल्य हैं। यानी उन आत्माओं को जो हमेशा पिता और माता के बलिदान और प्रेम के बारे में सोचने वाली बहन जेनेट के जैसी हैं। सत्य को ग्रहण करने के बाद वह हर आराधना में और सब सभाओं में पूरी तरह उपस्थित होती है और वह पिता और माता को धन्यवाद देना कभी नहीं भूलती। उसने भी फल उत्पन्न किया है और वह विदेशी मुलाकाती दल में भाग लेने की तैयारी कर रही है। बहन मिया ने भी अपनी माता का नेतृत्व सिय्योन में किया है। उसकी माता अब हेलसिंकी से बहुत दूर अपने गांव में अकेले आराधना मना रही है।
फिनलैंड में अब बहुत सदस्य नहीं हैं, परन्तु 7 अरब लोगों को प्रचार करने के आंदोलन के द्वारा हम सुसमाचार के मोड़ का सामना कर रहे हैं। यह वैसा ही है जैसे भविष्यवाणी कहती है, “छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा(यश 60:22)।” फिनलैंड में अब सुसमाचार की भूमि में बीज बोने, पानी देने और उसे उपजाऊ बनाने लिए परिश्रम करने का समय बीत गया है, और अब कटनी का समय है। हम खुशी के साथ फलों की कटाई करेंगे, क्योंकि हमने आंसू बहाते हुए उन्हें बोया था।
जब मैं मुश्किलों और परीक्षाओं का सामना करती थी, तब मैं हमेशा सोचती थी कि मैं अकेली हूं। यदि मैं पीछे मुड़कर अपने अतीत को देखूं, तो मैं महसूस करती हूं कि माता हमेशा मेरे साथ रहती थीं और मेरे लिए प्रार्थना करती थीं। अब मैं प्रार्थना करती हूं कि जैसे माता कहती हैं, “आप मेरे जीवन का सब कुछ है और मुझे सिर्फ आपकी चिंता है,” ठीक वैसे ही मैं भी यह कह सकूं, “माता, आप मेरे जीवन का सब कुछ है और मुझे सिर्फ आपकी चिंता है।”