जब तक आप हार नहीं मानते

सिडनी, ऑस्ट्रेलिया से विक्टोरिया ढेडेडिग

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मैंने अपने बड़े भाई से सत्य के बारे में सुनकर नए सिरे से जन्म लिया, लेकिन बस इतना ही था। मैंने कई वर्षों तक सिय्योन के सदस्यों से संपर्क नहीं किया। लेकिन, जब मैंने एक नई नौकरी शुरू की, तब परमेश्वर ने मुझे फिर से सिय्योन से जुड़ी होने की अनुमति दी। मेरे विभाग में सिय्योन की एक बहन काम कर रही थी।

बहन ने कार्यस्थल में साहस के साथ परमेश्वर के वचन का प्रचार किया। आत्मविश्वास और साहस से भरी हुई बहन को देखकर मैं बहुत चकित हो गई। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी उम्र का कोई व्यक्ति परमेश्नर के बारे में विस्तार से जानता है और बिना हिचके बाइबल के वचन का प्रचार करता है। काम के बाद घर जाने के रास्ते में, मैंने बस में बहन को देखा। मैंने उससे पूछा कि वह कहां जा रही है, और उसने कहा कि वह चर्च जा रही है। तो मैंने उससे पूछा कि क्या मैं उसके साथ चर्च जा सकती हूं। जब उसने मेरे सवाल पर हां कहा, तो मैं बिना कारण ही उत्साहित थी। उस दिन से, मैंने परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के लिए सिय्योन में जाना जारी रखा। दरअसल, सत्य इतना स्पष्ट और अद्भुत है कि मैं परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना नहीं रोक सकी। इसलिए मैं ऐसा कह सकती हूं कि परमेश्वर ने ही मेरी अगुवाई सिय्योन में की है।

जब मुझे नई वाचा के सत्य पर यकीन हुआ, तब मुझमें सुसमाचार का प्रचार करने का जोश पैदा होने लगा। मेरे सिय्योन में वापस आने के पांच महीने बाद, मैंने अपने परिवार को सत्य का प्रचार किया। मैंने उत्सुकता से चाहा कि मैं अपने प्रिय परिवार के साथ उद्धार पाएं। लेकिन परमेश्वर के वचन सुनने के बजाय, मेरे परिवार ने कठोरता से मेरे विश्वास का विरोध किया। कठिन समय बिताते हुए, मेरे परिवार के साथ स्वर्ग जाने का मेरा संकल्प हिल गया। मैंने यह सोचकर हार मान लेना चाहा कि मेरा परिवार कभी मेरी बात ध्यान से नहीं सुनेगा क्योंकि मैं सबसे छोटी संतान थी।

जब मुझे नई वाचा के सत्य पर यकीन हुआ, तब मुझमें सुसमाचार का प्रचार करने का जोश पैदा होने लगा। मेरे सिय्योन में वापस आने के पांच महीने बाद, मैंने अपने परिवार को सत्य का प्रचार किया। मैंने उत्सुकता से चाहा कि मैं अपने प्रिय परिवार के साथ उद्धार पाएं। लेकिन परमेश्वर के वचन सुनने के बजाय, मेरे परिवार ने कठोरता से मेरे विश्वास का विरोध किया। कठिन समय बिताते हुए, मेरे परिवार के साथ स्वर्ग जाने का मेरा संकल्प हिल गया। मैंने यह सोचकर हार मान लेना चाहा कि मेरा परिवार कभी मेरी बात ध्यान से नहीं सुनेगा क्योंकि मैं सबसे छोटी संतान थी।

मेरे इक्कीस साल का जन्मदिन पर, मैंने जन्मदिन के उपहार का बहाना बनाकर अपने परिवार को सिय्योन में आमंत्रित किया। उस समय से, सब कुछ सुचारू रूप से चलने लगा। पवित्र सब्त के दिन की आराधना के साथ आयोजित नरसिंगों का पर्व मनाने के बाद, मेरे बड़े भाई और उसके बेटे, मेरी भाभी और बाकी सब भतीजों ने एक-एक करके परमेश्वर की सन्तान बनने की आशीष पाई।

एक ही क्षण में किए गए परमेश्वर के उद्धार के कार्य को देखकर मैं हक्का–बक्का रह गई। यह दिल तोड़ने वाली बात है कि आपके अनमोल लोग सत्य को नजरअंदाज करते हुए उसे अस्वीकार करते हैं। लेकिन, मुझे पता चला कि यदि मैं बिना हार माने प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के प्रेम का अभ्यास करूं, तो आखिरकार परमेश्वर लोगों के हृदय के द्वार खोल देंगे।

अब केवल एक काम बाकी है जिसे मेरे परिवार को और मुझे करना चाहिए, वह परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाना है। मुझे आशा है कि हम सभी एकजुट होकर सुसमाचार के सुंदर फल उत्पन्न करें और परमेश्वर को प्रसन्न करें।